शून्य का आविष्कार किसने और कब किया था? Who invented zero and when?

शून्य का अविष्कार किसने किया था? zero ka avishkar kisne kiya tha

Zero Ka Avishkar Kisne Kiya – गणित (Mathematics) के क्षेत्र में कई आविष्कार हुए हैं, लेकिन शून्य का आविष्कार (Invention of a zero) गणित का सबसे बड़ा आविष्कार माना जाता है। क्योंकि शून्य (Zero) के आविष्कार ने गणित का स्वरूप ही बदल दिया और गणनाओं को बहुत आसान बना दिया।

आइए आज के इस लेख में जानते हैं कि Zero Ka Avishkar Kisne Kiya? भारत में शून्य की खोज कब और कैसे हुई?

शून्य क्या है? What is zero?

शून्य एक विशेष संख्या (Special number) है जो किसी संख्या के पहले और बाद में आती है लेकिन स्वयं नहीं आती है। शून्य का उपयोग संख्याओं को सार्थक तरीके से लिखने और गणितीय कार्यों जैसे जोड़, घटाव, गुणा, भाग आदि को करने के लिए किया जाता है।

वैसे, शून्य एक गैर-ऋणात्मक (Non-negative number) संख्या है, जिसका कोई मूल्य (Value) नहीं है। लेकिन अगर इसे किसी संख्या के पीछे जोड़ा जाता है, तो यह उस संख्या के मूल्य को 10 गुना बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए, 1 के आगे एक शून्य जोड़ने पर 10 हो जाता है और 10 के आगे 0 जोड़ने पर 100 हो जाता है।

वहीं दूसरी ओर जब किसी संख्या के पहले शून्य लगाया जाता है तो उस संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और उसके मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे 99 से पहले 0 जोड़ दिया जाए तो यह 099 हो जाएगा अर्थात संख्या का कोई मान न घटेगा न बढ़ेगा, वही रहेगा।

लेकिन यदि शून्य को किसी संख्या से गुणा किया जाए तो वह संख्या भी शून्य हो जाती है। जैसे – (X * 0 = 0 या 0 * X = 0)। तथा किसी वास्तविक संख्या में शून्य जोड़ने या घटाने पर वही संख्या प्राप्त होती है। जैसे (X + 0 = X; X – 0 = X)।

यदि हम किसी संख्या को शून्य से भाग दें तो वह मान अनंत (Infinity) हो जाता है और यदि शून्य को किसी संख्या से भाग दें तो वह भी शून्य (0) हो जाता है। 

इस प्रकार, भले ही अकेले शून्य का कोई मूल्य नहीं है, लेकिन इसे किसी अन्य संख्या से गुणा और विभाजित करके या जोड़ने या घटाने से बदला जा सकता है।

दोस्तों आज के इस लेख में हम आगे जानेंगे कि शून्य की खोज किसने की (0 Ki Khoj Kisne Ki), शून्य की खोज क्यों की, शून्य का इतिहास क्या रहा है, आदि विस्तार से। 

शून्य का आविष्कार किसने किया था? Zero invention in Hindi

शून्य के आविष्कार (Invention of zero) को लेकर प्राचीन काल से ही मतभेद रहा है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गिनती का प्रयोग बहुत पहले से हो रहा है और ऐसे में शून्य के बिना गिनती की संभावना आसान नहीं है।

वैसे तो शून्य के आविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ब्रह्मगुप्त (Brahmagupta) को जाता है। क्योंकि ऐतिहासिक विवरण से ज्ञात होता है कि 628 ई. में उन्होंने ही सबसे पहले शून्य के सिद्धांत (Principles of zero) का वितरण पेश किया था।

हालांकि, अन्य कुछ लोग महान भारतीय अर्थशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट (Aryabhata) को शून्य का आविष्कारक मानते हैं। क्योंकि आर्यभट्ट ने ब्रह्मगुप्त से पहले शून्य का प्रयोग किया था। लेकिन वे शून्य का सिद्धांत नहीं दे सके, जिसके कारण आर्यभट्ट को शून्य का मुख्य आविष्कारक न मानते हुए ब्रह्मगुप्त को शून्य का मुख्य आविष्कारक माना जाता है।

अतः शून्य की खोज और आविष्कार का श्रेय ब्रह्मगुप्त को जाता है जो ईसा पूर्व 7वीं शताब्दी में भारत में रहते थे।

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि शून्य की खोज (Discovery of zero) और शून्य का आविष्कार (Invention of zero) किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया था। इसका आविष्कार अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग समय और जगहों पर किया था।

यह भी दावा किया जाता है कि शून्य (0) का उल्लेख सर्वप्रथम “लोक विभाग (Lok Vibhag)” नामक ग्रन्थ में मिलता है, जिसकी रचना सर्वनन्दी (Sarvanandi) नामक एक दिगम्बर जैन मुनि ने मूल रूप से प्राकृत में की थी।

जबकि एक अमेरिकी गणितज्ञ का कहना है कि शून्य का आविष्कार भारत में नहीं हुआ था। बल्कि अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एजेल (Amir Aczel) ने कंबोडिया में सबसे पहले शून्य का अविष्कार किया था।

शून्य का क्या मतलब होता है? Zero meaning in Hindi

शून्य एक गणितीय संख्या है जिसका अर्थ है “कुछ नहीं (Nothing)” या “रिक्त / खाली (Empty)”। इसका उच्चारण करने के लिए भारतीय गणितज्ञों ने इसे शून्य, शून्य स्थान, शून्य संख्या और निर्देशांक जैसे अनेक नामों से संबोधित किया।

शून्य का महत्व इसके नाम से परे है, क्योंकि यह गणित की एक बहुत ही महत्वपूर्ण संख्या (Number) है जिसका उपयोग संख्या प्रणाली (Number system) के विभिन्न भागों में किया जाता है।

शून्य के बिना हम संख्याओं से गणना नहीं कर सकते थे, जिससे गणित का विकास बहुत असंभव हो जाता। इसलिए शून्य ने गणित को एक नया आयाम दिया है और गणित, विज्ञान, तकनीक, वाणिज्य और कंप्यूटर विज्ञान में इसका महत्व आज भी बना हुआ है।

शून्य का इतिहास (History of zero in Hindi)

शून्य का एक लंबा इतिहास रहा है। शून्य की जानकारी कई भारतीय प्राचीन मंदिरों और ग्रंथों में मिलती है। 

शून्य की खोज और आविष्कार का श्रेय अधिकतर भारतीय गणितज्ञों को जाता है। भारत शून्य की खोज के बारे में ज्ञान के सबसे पुराने केंद्रों में से एक था। 

शून्य भारतीय संस्कृति और गणित का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसे शून्य, शून्य स्थान, शून्य संख्या और निर्देशांक जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारत के प्राचीन वैदिक साहित्य में भी शून्य का उल्लेख किया गया है और इसे “शून्य (Shunya)” या “शून्यता (Shunyata)” कहा जाता था। इसे संख्या के रूप में प्रयोग करने का श्रेय भी भारत को ही जाता है।

भारत में शून्य के इतिहास की बात करें तो पांचवी शताब्दी तक भारत में शून्य का पूर्ण विकास हो चुका था। शून्य का उल्लेख कई प्राचीन भारतीय गणितीय ग्रंथों (Mathematical texts) में मिलता है।

ऐतिहासिक अनुमानों के अनुसार प्राचीन बख्शाली पाण्डुलिपि (Bakhshali Manuscript) में सबसे पहले शून्य का प्रयोग किया गया था और इसके लिए चिन्ह (Sign) भी निर्धारित किया गया था। लेकिन बख्शाली पांडुलिपि की सही तिथि अभी निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन यह निश्चित रूप से आर्यभट्ट के काल से भी पुरानी बताई जाती है।

शून्य का सबसे पहला ज्ञात प्रयोग 575 ईसा पूर्व में लिखे गए वराहमिहिर (Varahamihira) के “बृहत्जातक (Brihat Jataka)” में मिलता है। शून्य का एक और उल्लेख शुंग वंश के गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने अपनी पुस्तक “ब्रह्मस्फुटसिद्धांत (Brahmasphutasiddhanta)” में 628 ईसा पूर्व में किया था।

आर्यभट्ट और भास्कराचार्य जैसे अन्य भारतीय गणितज्ञों ने भी शून्य के उपयोग के बारे में लिखा था। इसके अलावा कुछ बौद्ध ग्रंथों में भी शून्य का उल्लेख मिलता है, लेकिन उनमें शून्य को गणना में उपयोगी नहीं माना गया है।

ब्रह्मगुप्त द्वारा शून्य की संकल्पना (Concept of zero) देने के बाद भारत में शून्य का प्रयोग बहुत तेजी से होने लगा। अधिकांश लोग इस बात से सहमत हैं कि आधुनिक गणित का विकास शून्य की खोज के आधार पर हुआ है। 

बारहवीं शताब्दी के अंत तक शून्य यूरोप के देशों में भी पहुंच गया और वहां के यूरोपीय गणितज्ञों द्वारा गणना में शून्य का प्रयोग किया जाने लगा।

हालांकि पहले शून्य का उपयोग केवल स्थान धारक (Placeholder) के रूप में किया जाता था। लेकिन बाद में शून्य गणित का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया और इसका उपयोग गणनाओं में होने लगा। शून्य के आविष्कार ने गणित में सुधार किया और गणित को बहुत आसान बना दिया।

शून्य ने गणित में एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है और आज यह एक महत्वपूर्ण संख्या है जो हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग की जाती है।

शून्य के अन्य नाम – Other names of Zero

हम शून्य (0) के दो ही नाम जानते हैं एक हिंदी में “शून्य” और अंग्रेजी में “जीरो (Zero)”। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब हम भारत और भारत के बाहर ज़ीरो की यात्रा और इतिहास देखते हैं तो हमें ज़ीरो के कई नाम पता चलते हैं।

प्राचीन काल में हिन्दू पांडुलिपियों में खाली स्थान के लिए “शून्यम” शब्द का प्रयोग किया जाता था।

जब “0” भारत से अरब पहुंचा तो अरबी में इसे “सिफ्र” कहा गया। उसके बाद इस शून्य को उर्दू में “सिफर” कहा जाने लगा, इसका मतलब होता है – कुछ भी नहीं।

मिस्र के राजदूत डायोनिसियस ने “नल्ला” शब्द के रूप में शून्य का प्रयोग किया। वहीं, 11वीं सदी में अब्राहम इब्न एज्रा ने अपनी किताबों में शून्य को गलगल शब्द के तौर पर इस्तेमाल किया था।

शब्द “ज़ेफिरस (Zephyrus)” इटली में शून्य के लिए इस्तेमाल किया गया था, जिसकी जानकारी इतालवी गणितज्ञ फिबोनाची ने अपनी पुस्तक “The Book of Calculations” में दी है। बाद में इटली में ही, “ज़ेफिरम” शब्द “ज़ेफिरो (Zefiro)” में बदल गया।

जीरो के लिए ऊपर प्रयोग किए गए सभी नामों के बाद इसका अंग्रेजी नाम जीरो (Zero), जो वर्तमान में उपयोग किया जा रहा है, सबसे पहले वेनेटियन में प्रयोग किया गया था और आज तक हम अंग्रेजी में इस शब्द का उपयोग करते हैं।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने शून्य का आविष्कार किसने किया (Zero Ka Avishkar Kisne Kiya Tha), इसका आविष्कार कब और कहां हुआ, शून्य का इतिहास क्या था और शून्य को और किन नामों से प्रयोग किया जाता है, उनसे जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त की।

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