हालांकि अधिकांश लोग सोचते हैं कि ज़ैब्रा एक सफेद जानवर है, जिस पर काले रंग की धारियां होती हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जेब्रा वास्तव में एक काले रंग का जानवर है जिस पर सफेद धारियां होती हैं.
मानव उंगलियों के निशान की तरह, ज़ैब्रा पर बनी धारियां भी अद्वितीय होती हैं. किसी भी दो जानवरों का पैटर्न एक जैसा नहीं होता है. लेकिन सवाल यह है कि उनके शरीर पर धारियां क्यों होती हैं?
जीव-विज्ञानियों के अनुसार, ज़ैब्रा के शरीर पर धारियों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य त्सेत्से मक्खी (Tsetse fly) को अपने निकट आने से रोकना है. ‘त्सेत्से’, जिसे कभी-कभी ‘टेट्ज़’ भी कहा जाता है और जिसे ‘टिक-टीक’ मक्खियों के रूप में भी जाना जाता है, आकर में बड़ी और काटने वाली मक्खियां होती हैं जो उष्णकटिबंधीय अफ्रीका के कई हिस्सों में निवासी करती हैं. ‘त्सेत्से’ मक्खी एक प्रकार की अफ्रीकी मक्खी है जो नींद की बीमारी पैदा करती है.
पिछले डेढ़ सौ सालों से वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर बहस चल रही है कि विकास के दौरान ज़ैब्रा के शरीर पर कुछ विशेष प्रकार की काले और सफेद धारियां क्यों बनी होंगी. जीव-विज्ञानियों ने हमेशा तर्क दिया है कि जीवों में ये परिवर्तन किसी विशेष उद्देश्य के लिए हुए हैं. इसे एकल कोशिका जीव से विकास के दौरान विभिन्न प्रकार के जानवरों के विकास के पीछे का कारण कहा जाता है. इसलिए, यह सवाल उठता है कि ज़ैब्रा की धारियों का उद्देश्य क्या हो सकता है.
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‘नेचर कम्युनिकेशंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि परजीवी मक्खियों को खुद से दूर रखने के लिए ही धारियां बनी होंगीं. शरीर पर इस तरह की धारियों का उभरना ‘त्सेत्से’ मक्खियों और उसके जैसे अन्य खून चूसने वाली मक्खियों से बचने की कोशिश में एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है.
2012 में कुछ वैज्ञानिक परीक्षणों में पाया गया कि कई रक्त-चूसने वाली मक्खियां धारियों के बजाय एक समान दिखने वाली सतह पर बैठना अधिक पसंद करती हैं. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं की टीम के प्रमुख ‘टिम कारो’ मानते हैं कि धारियों की इस पहेली का कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन फिर भी परजीवी मक्खियों के सिद्धांत में बहुत दम है.
कारो की शोधकर्ता टीम ने पाया कि ज़ैब्रा और परजीवी मक्खियों के दो बड़े समूह भौगोलिक रूप से एक ही क्षेत्र में पाए जाते हैं. खून चूसने वाली ‘ताबानुस’ और ‘ग्लोसिना’ मक्खियां ‘इक्विड’ प्रजातियों के जानवरों का खून पीती हैं. ज़ैब्रा भी इस प्रजाति का एक जीव है. इससे यह स्पष्ट होता है कि ज़ैब्रा को इन परजीवी मक्खियों से सुरक्षित रहने के लिए कुछ उपाय की आवश्यकता थी. ‘त्सेत्से’ मक्खी के कारण होने वाली ‘स्लीपिंग सिकनेस’ नाम की बीमारी ‘इक्विड’ प्रजाति के लगभग सभी अफ्रीकी प्रजातियों में पाई जाती है. लेकिन ज़ैब्रा में इस बीमारी के बहुत कम मामले हैं.
एक अन्य कारण यह भी है कि जंगल में, ज़ैब्रा का मुख्य शिकारी शेर है, शेर रंग-अंधा (Colorblind) जानवर है. जानवरों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक – जिन्हें प्राणी विज्ञानी कहा जाता है – का मानना है कि ज़ैब्रा का पैटर्न एक प्रकार का छलावरण है जो इसे शिकारियों से छिपाने में मदद करता है.
कुछ जीवविज्ञानी यह भी मानते हैं कि झुंड में चलते समय ज़ैब्रा की धारियां सहायक हो सकती हैं. जब बड़ी संख्या में ज़ैब्रा एक साथ चलते हैं, तो उनकी धारियां एक बड़े जानवर के रूप में दिखाई दे सकती हैं. यह भ्रम शेर जैसे शिकारी को भ्रमित कर सकता है, जिससे ज़ैब्रा के झुंड पर हमला करके उन में से किसी एक जानवर को लक्ष्य बनाना मुश्किल हो जाता है.
जब से चार्ल्स डार्विन और अल्फ्रेड वालेस ने 1870 में क्रमिक विकास का सिद्धांत पेश किया, तभी से ज़ैब्रा की इस अनूठी दिखने वाली धारियों पर बहस चलती आ रही है. कभी कहा कहा गया था कि ये धारियां ज़ैब्रा को कहीं भी छिपने में आसान बनाती हैं ताकि वे अपनी रक्षा कर सकें. एक अन्य परिकल्पना के अनुसार, ज़ैब्रा के धारियों का उपयोग शेर, लकड़बग्घे और अन्य शिकारी जानवरों से बचने के लिए होती है. इसके द्वारा वह शिकारियों की आंखों में धूल झोंककर बच सकता है. यह भी कहा गया था कि शायद इन धारियों से गर्मी निकलती है, जिससे ज़ैब्रा खुद को ठंडा रखता है. या ये धारियां बाकी सभी जानवरों से अलग दिखने के लिए बनी होगी.
ज़ैब्रा के सदृश घोड़े परजीवी मक्खियों के काटने से होने वाली कई बीमारियों का कारण बनते हैं. इसका कारण यह हो सकता है कि मक्खियों से बचाने के लिए उनके पास धारियां नहीं होती हैं. और इसीलिए कई बार घोड़ा पालने वाले लोगों को घोड़ों पर सफेद पट्टी बनाने की सलाह भी दी जाती है ताकि वे मच्छरों और मक्खियों से बच सकें.
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