क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति?
मकर संक्रांति हिंदुओं का एक प्रमुख और नए साल का पहला त्यौहार है. मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल के अधिकांश शहरों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है. पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है वही तमिल लोग इसे पोंगल कहते हैं, लेकिन इसका अर्थ एक ही है.
हिंदू पंचाग के अनुसार पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है. मकर संक्रांति से दिन बढ़ने लगता है और रात की अवधि कम होती जाती है, जिसे उत्तरायण के रूप में भी जाना जाता हैं, इस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. और सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस दिन स्नान, दान, तप, जप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है. कहते हैं कि इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है. आमतौर पर 14 और 15 जनवरी के दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है.
इस त्यौहार को वसंत ऋतु के आगमन के तौर पर भी मनाया जाता हैं, जिसका मतलब होता है फ़सलों की कटाई और पेड़-पौधों के पल्लवित होने की शुरूआत. सभी भारतीय त्योहारों की तरह, मकर संक्रान्ति के पर्व पर विशिष्ट व्यंजन, पूजा-पाठ और पहनावे को महत्व दिया जाता है.
मकर संक्रान्ति को भारत में विभिन्न नामों से मनाया जाता है.
मकर संक्रान्ति: छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू
ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल: तमिलनाडु
उत्तरायण: गुजरात, उत्तराखण्ड
माघी: हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
भोगाली बिहु: असम
शिशुर सेंक्रात: कश्मीर घाटी
खिचड़ी: उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
पौष संक्रान्ति: पश्चिम बंगाल
मकर संक्रमण: कर्नाटक
लोहड़ी: पंजाब
मकर संक्रांति के दिन क्यों पहनते हैं काले कपड़े?
मकर संक्रांति के दिन लोग काले रंग के कपड़े पहनते हैं. वैसे तो काले रंग को आमतौर पर एक अशुभ रंग माना जाता है और किसी भी शुभ दिन के अवसर पर काले रंग के कपड़े नहीं पहनते हैं, लेकिन मकर संक्रांति के दिन काले रंग को विशेष महत्व दिया जाता है.
हिन्दू धर्म के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य उत्तर दिशा में प्रवेश करता है इस वजह से ऐसा माना जाता है कि इस दिन सदियों का मौसम खत्म हो जाता है और पतझड़ शुरू हो जाता है. इस त्यौहार के ठीक कुछ दिन पहले मौसम की सबसे ज्यादा ठंड पड़ती है और विज्ञान के अनुसार से ऐसा माना जाता है कि काला सबसे अधिक गर्मी को अवशोषित करता है जिससे शरीर में गर्मी बनी रहती है. इसलिए लोग इस दिन काले रंग के कपड़े पहनते हैं जिससे वे सर्दी से अपना बचाव कर सके और त्यौहार का पूरा आनंद ले सकें. हालांकि काले कपड़े परिधान करने की प्रथा केवल महाराष्ट्र में ही देखी जाती है, जबकि देश के बाकी हिस्सों में लोग अपने पारंपरिक तरीके से इस त्यौहार को मनाते है.
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