राष्ट्रीय प्रतिज्ञा (National Pledge of India) भारत देश के प्रति निष्ठा की शपथ है. यह प्रतिज्ञा देश के नागरिकों में राष्ट्रवाद और एकता बनाये रखने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
भारत में लगभग सभी भाषाओं के पाठ्यपुस्तक के पहले पन्ने पर राष्ट्रीय प्रतिज्ञा छपी होती है, और इसका नियमित पठन भी किया जाता है. भारत वासी आम तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में राष्ट्रीय प्रतिज्ञा का पठन करते हैं, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोह पर भी सार्वजनिक राष्ट्रीय प्रतिज्ञा ली जाती है.
राष्ट्रीय प्रतिज्ञा को आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तेलुगु साहित्यकार पिदिमारी वेंकट सुब्बा राव (Pydimarri Venkata Subba Rao) द्वारा तेलुगु भाषा में 1962 में रचा गया था. इसे पहली बार 1963 में विशाखापत्तनम के एक विद्यालय में सार्वजनिक रूप से पढा गया था और बाद में देश के विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया.
पिदिमारी वेंकट सुब्बा राव का जन्म 10 जून 1916 को आंध्र प्रदेश में नलगोंडा जिले के अन्नपर्थी गांव में हुआ और यही पर उन्होने तेलुगु, संस्कृत, अंग्रेजी और अरबी भाषाओं में महाविद्यालय तक की शिक्षा प्राप्त की. उन्हें एक प्राकृतिक चिकित्सक (Naturopath) के रूप में भी जाना जाता था. उन्होंने विशाखापत्तनम जिले में कई वर्षों तक जिला कोष अधिकारी के रूप में भी कार्य किया था. उन्होने तेलुगु भाषा में कई किताबें लिखीं, जिनमें “कालभैरवुडू” नामक उपन्यास विशेष रूप से प्रसिद्ध है. देशभक्ति से प्रेरित होकर, स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान रहा है.
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सुब्बाराव के एक करीबी राजनैतिक दोस्त तन्नेति विश्वनाधम ने राष्ट्रीय प्रतिज्ञा से प्रभावित होकर आंध्र प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पी.वी.जी. राजू को राष्ट्रीय प्रतिज्ञा दिखाई. शिक्षा मंत्री राजू ने भी इसकी सराहना करते हुए जिले के सभी विद्यालयों के छात्रों को प्रतिज्ञा लेने के लिए निर्देश दिए और बाद में इसे राष्ट्रीय स्तर पर भी लागु किया गया.
शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा क्षेत्र में हर साल निरंतर नयी सई सुधारणाये की जाती है. इसके लिए भारत में शिक्षा के विकास के लिए “डेव्हलपमेंट ऑफ एज्युकेशन इन इंडिया” नामक एक समिति गठित की गई है, और इस समिति के अध्यक्ष देश के केंद्रीय शिक्षा मंत्री होते है.
समिति की 31 वीं सभा तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री एम. सी. छागला की अध्यक्षता में 11 और 12 अक्टूबर 1964 को बैंगलोर में संपन्न हुई थी. समिति द्वारा छात्रों में देश के प्रति राष्ट्रीय भावना और एकात्मता बनाये रखने के लिए विद्यालओं और महाविद्यालओं में साथ ही राष्ट्रीय दिवस के शुभ दवस पर एक प्रतिज्ञा होने की सिफारिश सभा में की गई.
प्रतिज्ञा की पूर्तता के लिए पिदिमारी वेंकट सुब्बा राव द्वारा लिखी “भारत मेरा देश है. समस्त भारतवासी मेरे भाई-बहन हैं” इस प्रतिज्ञा को अपनाने की सिफारिश करने का निर्णय लिया गया. और सुझाव दिया गया कि इस प्रतिज्ञा को 26 जनवरी, 1965 से राष्ट्रिय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए.
भारत सरकार द्वारा इस प्रतिज्ञा का सात भाषाओं में अनुवाद किया गया और 1965 से देश के सभी राज्यों की पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया गया. इसके अलावा, इस प्रतिज्ञा को पाठ्यपुस्तक की प्रतिज्ञा के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय प्रतिज्ञा का दर्जा भी दिया गया.
लेकिन, सुब्बाराव स्वयं इस प्रतिज्ञा की सफलता से अनभिज्ञ थे की उनकी रचना को राष्ट्रीय प्रतिज्ञा के तौर पर अपनाया गया है. सेवानिवृत्ति के बाद, एक दिन जब उन्होने अपनी पोती को एक पाठ्यपुस्तक से प्रतिज्ञा पढते हुए सुना तब उन्हे और उनके परिवार को यह इस बात का पता चला.
खेद की बात थी की पाठ्यपुस्तक में छपी प्रतिज्ञा के आगे लेखक के तौर पर सुब्बाराव का नाम तक नहीं था. कई सालों तक तो किसी को पता भी नहीं था की राष्ट्रीय प्रतिज्ञा किसने लिखी है, यहां तक की शिक्षा समिति के पास भी इसकी कोई जानकारी नहीं थी.
कुछ समय बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा सुब्बाराव को राष्ट्रीय प्रतिज्ञा के रूप में दर्ज किया गया, लेकिन उनके परिवार द्वारा केंद्र और राज्य सरकार को लिखे पत्र सुब्बाराव की मृत्यु (1988) तक अनुत्तरित ही रहे.
भारत की राष्ट्रीय प्रतिज्ञा का हिंदी अनुवाद :
भारत मेरा देश है।
समस्त भारतवासी मेरे भाई-बहन है ।
मैं अपने देश से प्रेम करता हु ।
इसकी समृद्ध एवं विविध संस्कृति पर मुझे गर्व है।
मैं सदा इसका सुयोग्य अधिकारी बनने का प्रयत्न करता रहूंगा ।
मैं अपने माता-पिता, शिक्षकों एवं गुरुजनों का सम्मान करूंगा और प्रत्येक के साथ विनीत रहूंगा ।
मैं अपने देश और देशवासियों के प्रति सत्यनिष्ठा की प्रतिज्ञा करता हुं ।
इनके कल्याण एवं समृद्धि में ही मेरा सुख निहित है।
भारत की राष्ट्रीय प्रतिज्ञा का अंग्रेजी अनुवाद:
India is my country and all Indians are my Brothers and Sisters.
I love my country and I am proud of its rich and varied heritage.
I shall always strive to be worthy of it.
I shall give respect to my parents, teachers and all the elders and treat everyone with courtesy.
To my country and my people, I pledge my devotion.
In their well being and prosperity alone, lies my happiness.
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