दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – चुहिया का स्वयंवर की कहानी (Panchtantra Story The Wedding Of The Mice In Hindi) पेश कर रहे हैं। Chuhiya Ka Swayamvar Ki Kahani में बताया गया है की जो जैसा है वैसा ही रहता है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – The Wedding Of The Mice Story In Hindi।
The Wedding Of The Mice Story In Hindi – Tales of Panchatantra
प्राचीन काल में गंगा नदी के तट पर याज्ञवल्क्य नामक ऋषि का आश्रम था। एक दिन जब वह सुबह-सुबह अपने ध्यान में लीन थे, तो उनकी हथेली में एक चुहिया आन पड़ी जिसे चील अपने भोजन के लिए ले जा रहा था। चुहिया बेहोश थी लेकिन उसमें अभी भी जान बाकी थी।
ऋषि को उस पर दया आ गई, इसलिए उन्होंने उस पर गंगाजल छिड़का और अपने तपोबल से उसे कन्या का रूप दे दिया।
ऋषि उस कन्या को अपने साथ अपने आश्रम ले गए और अपनी पत्नी से कहा कि वह इस कन्या की अपने बच्चे की तरह देखभाल करे। चूंकि ऋषि की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनकी पत्नी ने भी बड़े प्यार से उस बच्ची का लालन-पालन किया।
देखते ही देखते बारह वर्ष बीत गए और वह कन्या विवाह योग्य हो गई थी।
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एक दिन ऋषि की पत्नी ने ऋषि से कहा, “हे नाथ! यह कन्या अब विवाह योग्य हो गई है। कोई अच्छा सा वर खोजकर इसका विवाह कर देना चाहिए।”
ऋषि ने कहा, “मैं अभी भगवान सूर्य को आमंत्रित करता हूं और उसे इस कन्या को सौंप देता हूं। यदि हमारी कन्या को वह पसंद आता है, तो इसका विवाह सूर्य से ही होगा, अन्यथा नहीं।”
बेटी ने जवाब दिया, “पिताजी, यह तो आग से भी अधिक गर्म है। मुझे यह स्वीकार नहीं है, आप मेरे लिए कोई दूसरा वर चुन लीजिए।”
तब ऋषि ने स्वयं सूर्य से पूछा कि आपसे अच्छा वर कौन हो सकता है?
तब सूर्य ने कहा, “यह मेघ मुझसे भी बेहतर है, जो मुझे भी ढक लेता है।”
ऋषि ने मेघ को बुलाकर अपनी पुत्री से पूछा, “क्या तुम इस वर को स्वीकार करती हो?”
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बेटी ने कहा, “यह बहुत ही सांवला है, कोई इससे अच्छा वर बुलाइए।”
तब ऋषि ने मेंघ से पूछा कि तुमसे अच्छा वर कौन हो सकता है?
तब मेघ ने कहा, “मुझ से उत्तम वायु है जो मुझे सब दिशाओं में उड़ा ले जाता है।”
ऋषि ने वायु को बुलाया और अपनी पुत्री से पूछा “क्या तुम्हें यह वर पसंद है?”
कन्या ने कहा, “यह तो बहुत ही चंचल है, इससे अच्छा वर बुलाइए।”
ऋषि ने वायु से पूछा “तुमसे अच्छा वर कौन हो सकता है?”
तब वायु ने कहा, “मुझसे भी अच्छा तो पहाड़ हैं, जो मुझे भी रोक लेता हैं।”
ऋषि ने पर्वत को बुलाया और अपनी पुत्री से पूछा “क्या तुम्हें यह वर पसंद है?”
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कन्या ने कहा, “यह तो बहुत विशाल और सख्त है, इससे अच्छा वर बुलाइए।”
ऋषि ने पर्वत से पूछा “तुमसे अच्छा वर कौन हो सकता है?”
पर्वत ने कहा, “मुझसे अच्छा तो चूहा है, जो मुझे भी तोड़ देता है और मेरे भीतर बिल बना देता है।”
ऋषि ने मूषकराज को बुलाकर अपनी पुत्री से पूछा “क्या तुम्हें यह वर पसंद है?”
मूषकराज को देखते ही बेटी को अपनापन लगने लगा। कन्या को मूषकराज पसंद आ गए और उसने कहा, “पिताजी, मुझे अपने तपोबल से चुहिया बनाकर मुशकराज को सौंप दें।”
तब ऋषि ने अपने तपोबल से उस कन्या को फिर से चुहिया बनाकर मुश्कराज को सौंप दिया। इस प्रकार चुहिया को उसका योग्य वर मिल गया और वह उसके साथ खुशी-खुशी रहने लगी।
कहानी का भाव:
बाह्य स्वरूप परिवर्तित हो जाने से आंतरिक स्वरूप परिवर्तित नहीं होता है। जो जन्म से जैसा होता है, उसका स्वभाव कभी नहीं बदल सकता।
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