दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी (Panchatantra Story Two Fishes & A Frog In Hindi) पेश कर रहे हैं। Do Machliyan Aur Ek Mendak Ki Kahani में बताया गया है की जान पर बन आने पर भी दो मछलियां बुद्धि का घमंड नहीं छोड़ती है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – Panchtantra Story Do Machliyan Aur Ek Mendak In Hindi।
The Tale of Two Fishes & A Frog Story In Hindi – Tales of Panchatantra
प्राचीन काल में, एक तालाब में दो मछलियां रहती थीं, जिनके नाम शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली) और सहस्त्रबुद्धि (हज़ार बुद्धियों वाली) था। उसी तालाब में एक मेंढक भी रहता था, जिसका नाम एकबुद्धि था।
सहस्त्रबुद्धि और शतबुद्धि को अपनी बुद्धि पर बहुत गर्व था, लेकिन मेंढक को अपनी बुद्धि पर कोई अभिमान नहीं था क्योंकि उसके पास केवल एक ही बुद्धि थी।
फिर भी तीनों बहुत अच्छे दोस्त थे। तीनों एक साथ तालाब में घूमते थे और हमेशा साथ रहते थे। जब भी कोई समस्या आती तो तीनों मिलकर उससे निपट लेते थे।
एक शाम कुछ मछुआरे उस तालाब के किनारे आये और अपना जाल डाल कर बोले, “इस तालाब में बहुत सारी मछलियां हैं, हम कल सुबह ऐसे ही आयेंगे और यहां से बहुत सारी मछलियां पकड़ेंगे।”
तीनों उन मछुआरों की बातें ध्यान से सुन रहे थे। मछुआरों के जाने के बाद मछलियों ने रात में सभा बुलाई। समस्या की गंभीरता को लेकर सभी मछलियां चिंतित हो गईं।
तभी सहस्त्रबुद्धि ने कहा, “यदि संसार में सब कुछ कहे अनुसार हो जाए तो इस संसार को चलाना कठिन हो जाएगा। दुष्टों की मंशा कभी पूरी नहीं होती, इसलिए तो आज तक यह संसार चला जा रहा है। पहली बात तो यह है की कल मछुआरे बिल्कुल नहीं आयेंगे, यदि आयेंगे भी तो मैं अपनी बुद्धि से सबकी रक्षा करूंगी।”
शतबुद्धि ने सहस्त्रबुद्धि की बातों का समर्थन करते हुए कहा, “ज्ञानी के लिए संसार में सब कुछ संभव है, इसीलिए कहा जाता है कि जहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच सकता, वहां ज्ञानी का ज्ञान पहुंच जाता है। हम किसी के कहने मात्र से मातृभूमि नहीं छोड़ सकते। मातृभूमि तो स्वर्ग से भी बेहतर होती है। ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है, इसलिए हमें उस बुद्धि का उपयोग अपनी रक्षा के लिए करना चाहिए। डर का सामना बुद्धिमानी से करने के लिए बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए।”
तालाब की सभी मछलियों ने सहस्त्रबुद्धि और शतबुद्धि की बातों पर विश्वास किया और वहीं रुक गईं।
लेकिन मेंढक ने कहा, “मैं तो अपनी प्रेयसी को ले कर यहां से बहुत दूर चला जाऊंगा।” यह कहकर मेंढक अपनी प्रेयसी के साथ दूसरे तालाब की यात्रा पर निकल गया।
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अगली सुबह मछुआरे आए और तालाब में अपना जाल फैला दिया। धीरे-धीरे सारी मछलियां जाल में फंसने लगीं। उन सब में सहस्त्रबुद्धि और शतबुद्धि भी शामिल थी।
दोनों ने मिलकर बचाव के लिए काफी कोशिशें की, लेकिन मछुआरे भी पुराने खिलाड़ी थे, उन्होंने भी मछलियों के हर कोशिश को नाकाम कर दिया। वे सभी मछलियां धीरे-धीरे तड़प-तड़प कर मरने लगीं।
सहस्त्रबुद्धि और शतबुद्धि दोनों का आकार बड़ा होने के कारण मछुआरे ने उनमें से एक को अपने कंधे पर रखा और दूसरी को अपने हाथ में लेकर अपने घर को चल दिया।
उनकी यह हालत देखकर मेंढक ने मेंढकी से कहा, “देखो प्रिये! मैं कितना दूरदर्शी हूं? आज जब सहस्त्रबुद्धि कंधों पर और शतबुद्धि हाथ में है, जबकि मैं इस छोटे से जलाशय में तुम्हारे साथ पानी से खेलने का आनंद ले रहा हूं।”
कहानी का भाव:
हमें अपनी बुद्धि से किसी भी कार्य को तुरंत हल कर लेना चाहिए। अपनी बुद्धि पर कभी अभिमान न करें। यही अहंकार एक दिन घातक सिद्ध हो सकता है।
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