शेर, ऊंट, सियार और कौवा – पंचतंत्र की कहानी (The Lion, Camel, Jackal And Crow Story In Hindi)

शेर, ऊंट, सियार और कौवा – पंचतंत्र की कहानी (The Lion, Camel, Jackal And Crow Story In Hindi)

दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – शेर, ऊंट, सियार और कौवा की कथा (The Lion, Camel, Jackal And Crow Story In Hindi) पेश कर रहे हैं। Panchatantra Ki Kahani में बताया गया है की कपटी और धूर्त लोगों की मीठी बातों पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – Panchatantra Tales The Lion, Camel, Jackal And Crow Story In Hindi

The Lion, Camel, Jackal And Crow Story In Hindi – Tales of Panchatantra

शेर, ऊंट, सियार और कौवा – पंचतंत्र की कहानी (The Lion, Camel, Jackal And Crow Story In Hindi)
Sher Aur Oont Ki Kahani

एक जंगल में मदोत्कट नाम का एक शेर बहुत शान से रहता था। उसके तीन वफादार सेवक थे – सियार, कौआ और चीता। शेर प्रतिदिन शिकार करके भोजन करता और तीनों बचे हुए शिकार से अपना पेट भरते थे।

एक दिन शेर ने जंगल में एक ऊंट को अकेले घूमते देखा जो अपने गिरोह से भटक गया था। शेर ने अपने जीवन में कभी ऊंट नहीं देखा था। 

शेर ने अपने सभी सेवकों को बुलाया और पूछा कि यह विचित्र जीव कौन है? तुम सब जाकर पता करो कि यह जानवर जंगली जानवर है या ग्रामीण जानवर और यह यहां क्या कर रहा है।

शेर की बात सुनकर कौए ने कहा, “महाराज, यह अजीब जीव ऊंट है। जो अपने समूह से अलग हो गया और अभी आपका भोजन बन सकता है। आप इसका शिकार करें।”

शेर ने कौए की बात टाल दी और कहा कि यह जीव हमारा मेहमान है और मैं घर आए मेहमान को नहीं मारता। बड़े-बुजुर्गों ने कहा है कि “विश्वस्त और निर्भय होकर घर आने वाले शत्रु को कभी नहीं मारना चाहिए।” अत: तुम सब जाकर ऊंट को आदर सहित मेरे पास ले आओ ताकि मैं उससे यहां आने का कारण पूछ सकूं।

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शेर का आदेश सुनकर उसके सभी सेवक ऊंट के पास गए और ऊंट को आदर सहित महाराज सिंह के पास ले आए। शेर ने ऊंट से अपने जंगल में भटकने का कारण पूछा।

ऊंट ने महाराज को प्रणाम किया और कहा “महाराज, मैं अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया हूं और मैं बिल्कुल अकेला और असुरक्षित महसूस कर रहा हूं”। शेर ने ऊंट को आश्वासन दिया और उसे जंगल में रहने की अनुमति दे दी। 

उस दिन के बाद सिंह के कहने पर कथानक नामक ऊंट उसके साथ रहने लगा। जंगल की घास और हरी पत्तियां खाकर शीघ्र ही वह स्वस्थ हो गया।

कुछ दिन बाद किसी बात को लेकर शेर की एक वयस्क जंगली हाथी से भयंकर लड़ाई हो गई। पहाड़ जैसे उस हाथी के दांत वज्र के समान मजबूत थे। उस युद्ध में सिंह दुर्बल और अधमरा हो गया। लेकिन किसी तरह उसने अपनी जान बचा ली।

युद्ध के बाद गंभीर रूप से घायल होने के कारण सिंह चलने में भी असमर्थ हो गया था, जिससे उसके सेवक भी भूखे रहने लगे। 

शेर जब शिकार करता था तो अपने शिकार का कुछ हिस्सा सेवकों को खाने के लिए दे देता था। लेकिन अब जब शेर अपने आप चलने में असमर्थ होने के कारण शिकार नहीं कर पा रहा था, तो सभी भूख से तड़प रहे थे।

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एक दिन शेर ने सभी को बुलाया और कहा, “इस जंगल में कोई ऐसा जीव खोजो जिसका मैं इस स्थिति में भी शिकार कर सकूं।” सिंह की आज्ञानुसार सभी सेवक वन में विचरण करने लगे, किन्तु किसी को भी ऐसा जीव नहीं मिला जिसका शिकार किया जा सके।

तब सियार ने कौवे से कहा, “हम पूरे जंगल में शिकार क्यों खोज रहे हैं, जबकि शिकार तो ठीक हमारे सामने ही है। क्यों न इस ऊंट को ही शिकार बनाया जाए।”

सियार शेर के पास पहुंचा और बोला, “महाराज, हम सबने पूरे जंगल में छानबीन की लेकिन हमें कोई ऐसा जीव नहीं मिला जिसे हम आपके भोजन के लिए ला सकें। हम सब भी भूख के मारे इतने कमजोर हो गए हैं कि अब एक कदम भी नहीं चल पाएंगे।”

आगे अपनी सलाह देते हुए सियार ने कहा कि ”आप चलने में असमर्थ है, क्योंना आज आप इस कथानक को ही अपना भोजन बना ले।”

शेर ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मैंने ऊंट को अपने यहां शरण दी है, इसलिए मैं इसे नहीं मार सकता।

सियार ने पूछा कि महाराज यदि वह खुद आपके सामने आत्मसमर्पण कर दे तो क्या आप उसका शिकार करेंगे? शेर ने कहा तो मैं उसे खा सकता हूं।

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तब सियार ने सभी साथियों को बुलाया और पूछा, “क्या आप सभी को कुछ मिला?” कौए, चीता और ऊंट ने कहा कि हमें भी ऐसा कुछ नहीं मिला जिसे महाराज अपना भोजन बना सके।

फिर सियार ने कौवे और चीता के साथ मिलकर एक योजना बनाई और ऊंट के पास जाकर कहा कि हमारे महाराज बहुत कमजोर हो गए है। उन्होंने कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। आज यदि महाराज मुझे भी खाना चाहेंगे तो मैं प्रसन्नतापूर्वक स्वयं को उनके सामने समर्पित कर दूंगा।

सियार की बात सुनकर कौआ, चीता और ऊंट भी कहने लगे कि, हां मैं भी महाराज का भोजन बनने को तैयार हूं।

कुछ देर चर्चा करने के बाद सबने निश्चय किया कि हम सब बारी-बारी से महाराज के सामने जाएंगे और उनसे विनती करेंगे कि हमें खाकर अपनी भूख को शांत करें।

जब सब बारी-बारी से जाने लगते तो सियार सबमें कोई न कोई कमी निकाल देता। 

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सबसे पहले कौए ने कहा कि महाराज, आप मुझे अपना भोजन बना लीजिए, सियार ने कहा कि तुम बहुत छोटे हो, तुम न केवल भोजन के लिए बल्कि नाश्ते के लिए भी अनुपयुक्त हो।

तब चीता ने कहा कि महाराज आप मुझे खा लीजिए, तो सियार ने कहा कि यदि आप मर गए तो महाराज का सेनापति कौन होगा? तब सियार ने खुद को समर्पित कर दिया, तब कौए और चीता ने कहा कि तुम्हारे बाद राजा का सलाहकार कौन बनेगा।

अंत में कथानक (ऊंट) की बारी थी। जब कथानक ने देखा कि सभी सेवक अपने प्राण देने की याचना कर रहे हैं तो उसने सोचा कि मैं अपने प्राणों की आहुति देने में क्यों पीछे रहूं।

अब जब महाराज ने तीनों में से किसी को भी नहीं खाया तो महाराज मुझे भी नहीं खाएंगे, क्योंकि मैं तो उनका अतिथि हूं।

यह सोचकर उसने महाराज को प्रणाम किया और विनयपूर्वक कहा कि यह सब जीव आपके खाने योग्य नहीं हैं। किसी का आकार छोटा है, तो किसी के नाखून नुकीले हैं या किसी के शरीर पर घने बाल हैं। कृपया, आज आप मेरे शरीर से ही अपनी भूख को शांत कर लीजिए।

इतना कहते ही चीता और सियार दोनों बिजली की तरह ऊंट पर झपट पड़े। इससे पहले कि ऊंट कुछ समझ पाता दोनों ने देखते ही देखते ऊंट का पेट फाड़ दिया, जिससे ऊंट की मौत हो गई। अत्यधिक भूख के कारण शेर और अन्य सभी ने तुरंत उसे खा लिया।

कहानी का भाव:

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें बिना सोचे समझे किसी की बातों में नहीं आना चाहिए। साथ ही कपटी और धूर्त लोगों की मीठी बातों पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए।

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