Tenali Rama biography in Hindi – तेनालीराम विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय के दरबार में एक कवि, विद्वान, विचारक और विशेष सलाहकार थे और उन्हें “विकट कवि” के उपनाम से संबोधित किया जाता था.
अकबर के नवरत्नों की तरह तेनालीराम भी राजा कृष्णदेवराय के दरबार के अष्टदिग्गजों में से एक थे. वह अपनी वाकपटुता के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे और इसके लिए वह हास्य का खूब इस्तेमाल किया करते थे.
तेनालीराम को “तेनाली रामा” एवं “तेनाली रमन” के नामों से भी जाना जाता है.
तेनालीराम का संक्षिप्त में जीवन परिचय – Brief biography of Tenaliram
नाम | तेनाली रामकृष्ण |
उपनाम | विकट कवि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जन्म तिथि | 22 सितंबर 1479 |
जन्म स्थान | गुंटूर जिला, आंध्रप्रदेश |
पिता का नाम | गरलापति रामय्या |
माता का नाम | लक्षम्मा |
पेशा | कवि |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | शारधा देवी |
बच्चे | भास्कर शर्मा |
मृत्यु | 5 अगस्त 1528 |
तेनाली राम का जन्म 22 सितंबर 1479 को 16वीं शताब्दी की शुरुआत में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था. ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के “तेनाली” नामक नगर में हुआ था.
तेनाली के पिता “गरलापति रामय्या” तेनाली नगर के रामलिंगेश्वर स्वामी मंदिर में पुजारी थे. उनके पिता गरलापति रामय्या की मृत्यु तेनालीराम के बचपन में ही हो गई थी.
पिता की मृत्यु के बाद, तेनालीराम अपनी मां “लक्षम्मा” के साथ अपने मामा के गांव “तेनाली” में रहने चले गए. तेनालीराम को उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके मामा ने पाला था. तेनालीराम अपने मामा के शहर में पले-बढ़े और उन्हें “रामकृष्ण” के नाम से जाना जाने लगा.
वह जन्म से एक “शैव” धर्मवादी थे, इसलिए उन्हें तेनाली “रामलिंग” भी कहा जाता था, लेकिन बाद में उन्होंने “वैष्णववाद” अपनाया और अपना नाम बदलकर “रामकृष्ण” कर लिया था. “शैव” और “वैष्णव” उस समय हिंदू धर्म के दो विपरीत संप्रदाय थे.
उनकी जाति के धार्मिक रीति-रिवाजों के कारण उन्हें शिक्षा नहीं दी गयी थी लेकिन उनकी सीखने की तीव्र इच्छा और ज्ञान के प्रति जुनून के कारण उन्हें छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी.
इतना ही नहीं उन्होंने मराठी, कन्नड़, तमिल और हिंदी जैसी कई भाषाओं में महारत हासिल कर ली थी.
लेकिन उनके पूर्व शिव भक्त होने के कारण उन्हें वैष्णव अनुयायियों द्वारा शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था, तब एक महान संत ने उन्हें “मां काली” की पूजा करने की सलाह दी थी.
और कहा जाता है कि संत की बात मानकर तेनालीराम ने काली देवी के लिए बहुत तपस्या की और परिणामस्वरूप, तेनालीराम को देवी काली से एक उत्कृष्ट हास्य कवि बनने का वरदान मिला.
तेनाली राम अपनी किशोरावस्था में “भागवत मेला” नामक एक प्रसिद्ध मंडली के साथ विजयनगर पहुंचे थे. उनके प्रदर्शन से प्रसन्न होकर कृष्णदेवराय ने उन्हें एक हास्य कवि के रूप में अपने दरबार में रखा और बाद में वे अष्टदिग्गजों में शामिल हो गए.
महाराजा कृष्णदेव राय – वर्ष 1509 से 1529 तक विजयनगर के सिंहासन पर विराजमान थे, तब तेनालीराम उनके दरबार में हास्य कवि और मंत्री सहायक के रूप में उपस्थित होते थे.
ऐसा माना जाता है कि तेनालीराम ने अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीति से समय-समय पर विजयनगर साम्राज्य को दिल्ली सल्तनत से भी बचाया था.
तेनालीराम के चरित्र की विशेषता यह थी कि वह कभी भी बड़े से बड़े शत्रु के आगे न हारे और न ही झुके थे. उनके पास हमेशा एक से बढ़कर एक तरकीबें होती थीं जिससे विरोधियों के छक्के छुट जाते थे.
इसके अलावा तेनालीराम के पास जनता के भरोसे की सबसे बड़ी ताकत भी थी. तेनालीराम हमेशा राजा कृष्ण देव राय को अनसुनी बातों से बचाकर अपनी भूमि और लोगों के कष्टों से जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया करते थे.
बुद्धिमता के मामले में तेनाली राम की तुलना बीरबल से की जा सकती है और बीरबल की तरह तेनाली राम भी धनवान नहीं थे.
तेनालीराम अपने समय के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति थे, जिनका हमेशा अपने समय, समाज और प्रजा की स्थिति की नब्ज पर हमेशा हाथ होता था.
जानकारी के अनुसार महाराजा कृष्णदेवराय की मृत्यु के एक साल बाद 1528 में तेनालीराम की घातक सर्पदंश से मृत्यु हो गई थी.
तेनाली रामकृष्ण का साहित्यिक जीवन – Literary Life of Tenali Ramakrishna
तेनालीराम भले ही शास्त्रों से पढ़े-लिखे न रहे हों लेकिन उन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान हासिल कर लिया था. तेनालीराम के काव्य “पांडुरंगा महात्यम” को तेलुगु साहित्य के पांच महान काव्यो में गिना जाता है. उन्होंने स्कंद पुराण से प्रभावित होकर अपनी यह रचना लिखी थी.
तेनाली रामकृष्ण ने कई कविताओं और उपन्यासों की रचना की, उन्होंने इसके लिए “चादुवु” नाम अपनाया. उन्होंने धार्मिक रचनाओं की भी रचना की है जिसमें उनकी कविताओं में “उदभताराध्या चरितमु” लोकप्रिय है.
इसके अलावा उन्होंने “पालकुरिकी सोमनाथ” कविता की रचना की है जो बसव पुराण पर आधारित है. उनके द्वारा रचित दो कहानियों “रामलिंग” और “रायलू” ने भी अपार प्रसिद्धि प्राप्त की.
उनके कार्य को देखते हुए उन्हें “कुमार भारती” की उपाधि से नवाजा गया है. इसके अलावा उनके सम्मान में “महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम” नामक एक संस्कृत कविता भी रची गई है.
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