शिल्पी की अद्भुत मांग (तेनाली रामा की कहानियां) – Shilpi Ki Adbhut Maang | Tenali Raman Stories In Hindi
एक बार महाराज कृष्ण देवराय अपने पड़ोसी राज्य को जीतकर विजयनगर लौट रहे थे। यह एक महान जीत थी, इसलिए महाराजा ने जीत के उपलक्ष्य में शहर में एक उत्सव की घोषणा कर दी। त्योहार के लिए पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया था।
इस विजय को युगों-युगों तक याद रखने के लिए महाराज ने नगर के मध्य में एक विजय स्तम्भ बनाने का विचार किया। महाराज ने नगर के श्रेष्ठ शिल्पकार को बुलाकर एक आकर्षक विजय स्तम्भ बनवाने का आदेश दिया।
महाराज के बताए अनुसार शिल्पकार ने अपने साथियों के साथ कई सप्ताह तक दिन-रात मेहनत कर विजय स्तंभ बनाया। जब महाराज और अन्य दरबारियों ने उस विजय स्तंभ को देखा तो वे सभी उस शिल्पकार की कला के कायल हो गए।
विजय स्तंभ पर की गई नक्काशी बेहद ही आकर्षक थी। शिल्पकार की अद्भुत कारीगरी से प्रसन्न होकर महाराज ने उसे राजदरबार में बुलाया और मनचाहा पुरस्कार मांगने को कहा।
शिल्पकार ने कहा “महाराज! आपने मेरा काम पसंद किया, यही मेरा इनाम है। आप मुझ पर इसी प्रकार कृपा बनाए रखे, मुझे इसके सिवा और कुछ नहीं चाहिए।”
शिल्पकार का उत्तर सुनकर महाराज प्रसन्न हुए, लेकिन उन्होंने जिद की कि आप मुझसे कुछ पुरस्कार मांगें।
महाराज की बात सुनकर एक मंत्री ने कहा, महाराज आपको हृदय से कुछ देना चाहते हैं, आप शीघ्र ही अपनी इच्छा महाराज के सामने प्रकट करें।
शिल्पकार अपने शिल्प में निपुण होने के साथ-साथ स्वाभिमानी और बुद्धिमान व्यक्ति भी था। उसने सोचा कि अगर मैं महाराज से कुछ नहीं मांगूंगा तो वह मुझ पर जरूर नाराज होंगे और अगर मैंने महाराज से कुछ मांगा तो मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचेगी।
इस प्रकार शिल्पकार ने कुछ देर सोचने के बाद अपना औजारों का थैला खाली कर दिया और महाराज की ओर घुमाते हुए बोला, “महाराज, कृपया इस थैले को मेरे लिए पुरस्कार के रूप में दुनिया की सबसे मूल्यवान वस्तु से भर दें।”
अब शिल्पकार की बात सुनकर महाराज सहित सभी दरबारी चिंतित हो गए कि संसार की सबसे कीमती वस्तु कौन सी है?
महाराज ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, “दुनिया में सबसे कीमती चीज हीरे-जवाहरात ही हैं, मैं तुम्हारी झोली हीरे-जवाहरातों से भर सकता हूं।”
शिल्पकार ने महाराज की बात सुनकर इनकार में सिर हिलाया और कहा, “हीरे-जेवरात इस दुनिया की सबसे महंगी चीज नहीं है, तो मैं इसे कैसे ले सकता हूं?”
दूसरी तरफ सभी दरबारी इस समस्या का हल ढूंढ रहे थे कि दुनिया की सबसे महंगी चीज कौन सी है? लेकिन किसी भी दरबारी को इस समस्या का समाधान नहीं सूझ रहा था। ठीक उसी दिन किसी कारण से तेनाली रामा दरबार में उपस्थित नहीं थे।
जब कोई भी दरबारी महाराज को इस बात का उत्तर नहीं दे सका तब महाराज ने तुरंत तेनाली रामा को दरबार में बुलाया। जैसे ही तेनाली रामा को महाराज की चिंता के बारे में पता चला, वे तुरंत शाही दरबार के लिए रवाना हो गए। रास्ते में सिपाही ने उन्हें महाराज की चिंता का कारण भी बताया।
सभा-कक्ष में जाते ही तेनालीराम ने महाराज को प्रणाम किया और सभा में पूछा, “जिस किसी को भी संसार की सबसे महंगी वस्तु चाहिए, वह मेरे सामने आ जाए।” यह सुनकर शिल्पकार तेनाली रामा के सामने आया और अपना थैला तेनाली रामा को दे दिया।
तेनाली ने उस थैले को तीन-चार बार हवा में ऊपर-नीचे उछाला और उसका मुंह बांधकर शिल्पकार को सौंप दिया। शिल्पकार उस थैले और अपने औजारों के साथ महल से चला गया।
यह दृश्य देख हर कोई हैरान रह गया। महाराज ने बड़ी उत्सुकता से तेनाली रामा से पूछा कि “भले ही तुमने उन्हें एक खाली थैला दिया, लेकिन उन्होंने चुपचाप उसे ले लिया, जबकि उन्होंने हीरे-जवाहरातों से भरा थैला लेने से भी मना कर दिया था।”
तेनाली रामा ने उत्तर दिया “महाराज! किसने कहा कि झोला खाली था? उसमे तो दुनिया की सबसे महंगी वस्तु हवा थी। हवा दुनिया की सबसे महंगी चीज है जिसके बिना हम एक पल भी जीवित नहीं रह सकते।”
तेनाली रामा की चतुराई देखकर महाराज एक बार फिर प्रसन्न हुए और अपने गले से हीरे जड़ित हार निकालकर तेनाली रामा को भेंट कर दिया।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
धन-दौलत से कभी भी स्वाभिमान नहीं खरीदा जा सकता।
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