तेनाली रामा की कहानियां: राजगुरु की चाल

Tenali Raman Funniest Stories In Hindi For Kids

राजगुरु की चाल (तेनाली रामा की कहानियां) – Rajguru Ki Chaal | Tenali Raman Stories In Hindi

तेनाली रामा अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनकी इस चतुराई के आगे आज तक कोई टिक नहीं पाया है। राजा कृष्णदेव राय के दरबार में ऐसे ही कई किस्से आते रहते थे, वहां भी तेनालीराम अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता से सभी को आकर्षित कर लेते थे।

लेकिन राजगुरु के साथ-साथ उनके राज्य के ब्राह्मणों को भी तेनाली राम पसंद नहीं थे। राज्य के ब्राह्मण सोचते थे कि तेनाली राम एक निम्न वर्ग का ब्राह्मण होते हुवे वह हमेशा अपने ज्ञान और चतुराई से उन्हें हेय दृष्टि से देखता है। 

राज्य के सभी ब्राह्मणों के साथ साथ राजगुरु भी तेनाली राम को पसंद नहीं करते थे। जब राज्य के ब्राह्मणों को इस बात का पता चला तो सभी ब्राह्मणों ने तय किया कि वे राजगुरु के साथ मिलकर तेनाली राम को अपमानित कर सकते हैं।

सभी ब्राह्मण राजगुरु के पास जाते हैं और राजगुरु के सामने अपनी बात रखते हैं। राजगुरु ब्राह्मणों से सहमत होकर एक योजना बनाते हैं। योजना में उन्होंने निश्चय किया कि तेनालीराम को राजगुरु का शिष्य बनाने का कोई बहाना बनाया जाए, जिसके फलस्वरूप शिष्य बनने वाले व्यक्ति के शरीर को दागा जा सकता है।

राजगुरु और सभी ब्राह्मण सोचते हैं कि इस तरह उनका प्रतिशोध भी पूरा हो जाएगा और बाद में वे तेनालीराम को निम्न वर्ग का ब्राह्मण कहकर शिष्य बनाने से मना कर देंगे। इससे ब्राह्मणों और राजगुरु की बात हावी होगी और तेनालीराम को अपमानित किया जा सकता है।

फिर अगले ही दिन राजगुरु और ब्राह्मणों की योजना के फलस्वरूप तेनालीराम को राजगुरु का शिष्य बनाने के लिए राजगुरु ने तेनालीराम को अपने घर बुलाया। राजगुरु के बुलाने पर तेनालीराम कुछ ही देर में राजगुरु के घर पहुंच जाते है और तेनालीराम उनसे यहां बुलाने का कारण पूछते है।

राजगुरु तेनालीराम की बहुत प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि मैं तुम्हारी बुद्धि और चतुराई से बहुत प्रसन्न हूं और मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाना चाहता हूं। जबकि तेनालीराम को इंसान का सच और झूठ पकड़ने में महारत हासिल थी। उसी क्षण, उन्होंने राजगुरु के चेहरे पर झूठ का पर्चा पढ़ लिया और महसूस किया कि कुछ तो गड़बड़ जरूर है।

तेनालीराम ने बुद्धि का प्रयोग करते हुए राजगुरु से पूछा कि आप मुझे अपना शिष्य कब बनाओगे तो राजगुरु ने उत्तर दिया कि यह शुभ कार्य मंगलवार के दिन करना उचित रहेगा। यह कहकर राजगुरु ने तेनालीराम को नए वस्त्र दिए और कहा कि मंगलवार के इस अवसर पर तुम इन्हीं नए वस्त्रों को पहनकर आना और तुम्हें सौ स्वर्ण मुद्राएं भी उपहार में दी जाएंगी।

तेनालीराम राजगुरु की बात का समर्थन करते है और अपने घर की ओर चल देते है। रास्ते भर तेनालीराम के दिमाग में एक ही बात कौंध रही थी कि कहां गड़बड़ है। तेनालीराम ने घर पहुंचते ही यह सब बात अपनी पत्नी को बताई तो पत्नी ने बिना देर किए सीधा और सटीक उत्तर दिया और कहा कि मुझे राजगुरु पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।

मेरी मानें तो राजगुरु को साफ मना कर देना चाहिए, राजगुरु जरूर आपके साथ कोई चाल चल रहे हैं। राजगुरु अपना लाभ देखे बिना कोई कार्य नहीं करते, निश्चय ही इस युक्ति में उनका कोई निजी उद्देश्य है।

अपनी पत्नी की इन बातों को सुनकर तेनालीराम अपनी पत्नी से कहते है कि कुछ दिन पहले राज्य के ब्राह्मण राजगुरु के घर सभा करने गए थे,शायद उन सबसे कुछ पता चले। उस सभा में सोमदत्त नाम का एक गरीब ब्राह्मण भी था, मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं। वह गरीब परिवार से है, उसे फुसलाकर पूछने पर वह सब सच बता सकता है।

राजगुरु ने क्या योजना बनाई? यह जानने के लिए तेनालीराम सोमदत्त के घर जाते है और उसे 20 सोने के सिक्के देते हुए बैठक में हुई बातों के बारे में सारि जानकारी पूछते है। लेकिन सोमदत्त और भी लालची हो गया, तब तेनालीराम ने 25 स्वर्ण मुद्राएं देखकर उससे सारी योजना जान ली।

अब तेनालीराम राजगुरु को सबक सिखाने की अपनी योजना बना लेते है और अगले दिन मंगलवार को राजगुरु द्वारा दिए गए नए कपड़े पहनकर राजगुरु के घर शिष्य बनने चले जाते है। राजगुरु फिर तेनालीराम की बहुत प्रशंसा करने लगते हैं। तेनालीराम मन ही मन मुस्कुराते है और मन ही मन प्रसन्नता का अनुभव करने लगते है।

राजगुरु तेनालीराम को शिष्य बनाने की विधि शुरू करते हैं और तेनालीराम को सौ सोने के सिक्के देते हैं और उसे सिंहासन पर बैठने के लिए कहते हैं। तेनाली राम सौ सोने के मुद्राएं लेकर अनुष्ठान पूरा करने के लिए सिंहासन पर बैठने के लिए तैयार हो जाते हैं।

राजगुरु फिर अपने ब्राह्मण साथी से एक शंख और एक लोहे का चक्र गर्म करके लाने के लिए कहते हैं ताकि अनुष्ठान समाप्त होने के बाद वह तेनालीराम के शरीर को दाग सके। 

तेनालीराम शिष्य बनने की आधी विधि पूरी करने के बाद पचास सिक्के राजगुरु के सामने फेंक देते है और बाकी के सिक्के लेकर राजगुरु के घर से भाग जाते है। तब सारे ब्राह्मण साथी तेनालीराम के पीछे दौड़ पड़ते हैं। 

तेनालीराम काफी देर तक दौड़ते रहे और बचने की कोई संभावना न देखकर वह थका-मांदा शाही दरबार में पहुंच गए। वहां तेनालीराम को हांफते देख राजा ने पूछा कि तुम्हारा पीछा कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है?

तेनालीराम उत्तर देते हैं कि राजगुरु ने मुझे अपना शिष्य बनने के लिए आमंत्रित किया था और मैं उनका शिष्य बनने के लिए तैयार हो गया था। लेकिन उस समय मुझे बिल्कुल याद नहीं आया कि मैं एक नीच जाति का ब्राह्मण हूं। इसलिए मैं राजगुरु का शिष्य नहीं बन सकता।

जब शिष्य बनने की विधि शुरू हुई और तब मुझे याद आया कि मैं एक निम्न श्रेणी का ब्राह्मण हूं, तब तक आधी विधि पूरी हो चुकी थी और मैंने आधी विधि में पचास सोने के सिक्के राजगुरु को सौंप दिए और बाकी के सोने के सिक्के लेकर आ गया।

वास्तव में एक निम्न वर्ग का ब्राह्मण किसी राजगुरु का शिष्य नहीं बन सकता। लेकिन फिर भी राजगुरु मुझे दागना चाहते हैं। इसी बीच राजगुरु भी राज दरबार में पहुंचते हैं, तब राजा राजगुरु से इस बारे में पूछते हैं, तो राजगुरु सच्चाई छिपाते हुए कहते हैं कि मुझे नहीं पता था कि तेनालीराम एक निम्नवर्गीय ब्राह्मण है, इसलिए मैंने यह गलती की।

राजगुरु ने तेनालीराम की प्रशंसा करते हुए राजा के सामने झूठ बोला, अच्छा हुआ जो तुमने समय रहते बता दिया कि तुम एक निम्न श्रेणी के ब्राह्मण हो और मैं तुम्हे अपना शिष्य नहीं बना सकता, अन्यथा अनर्थ हो जाता।

राजा तेनालीराम की इस ईमानदारी को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। राजा तेनालीराम की ईमानदारी देखकर उसे हजार स्वर्ण मुद्राएं उपहार में देते है। वहां एक बार फिर तेनालीराम की जीत हुई।

इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?

हमें किसी व्यक्ति को अपने से कम नहीं समझना चाहिए, सबको समान मानना चाहिए। संयम, चतुराई और धैर्य से किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

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