मौत की सजा (तेनाली रामा की कहानियां) – Maut Ki Saja | Tenali Raman Stories In Hindi
एक समय की बात है बीजापुर नामक राज्य के सुल्तान इस्माइल आदिल शाह को डर था कि उनके पड़ोसी राज्य विजयनगर के महाराजा बीजापुर पर आक्रमण कर बीजापुर को अपने अधीन कर लेंगे, इस डर से उन्हें रात को नींद भी नहीं आती थी।
सुल्तान जानता था कि विजय नगर के राजा कृष्णदेव राय ने कई राज्यों को अपने अधीन कर लिया है, वह हर लड़ाई जीत जाते थे। सुल्तान इस बात से थोड़ा चिंतित हुआ। सुल्तान को किसी भी तरह से अपने देश को बचाना था।
एक दिन उसने दरबारियों और मंत्रियों की बैठक बुलाई। वहां सब लोगों ने मिलकर एक योजना बनाई कि क्यों न महाराज श्री कृष्णदेव राय को किसी के हाथों मरवा दिया जाय और विजयनगर को अपने अधीन कर लिया जाय।
सुल्तान यह काम तेनालीराम के घनिष्ठ मित्र कनकराजू को सौंपता है और उसे एक बड़ा इनाम देने का लालच भी देता है। कनकराजू तुरंत राजा को मारने की योजना बनाना शुरू कर देता है, योजना बनाकर वह तुरंत तेनालीराम से मिलने जाता है।
जब तेनालीराम ने बहुत दिनों बाद अपने मित्र को देखा तो वे दोनों बहुत प्रसन्न हुए। तेनाली रामा उसका अच्छी तरह से स्वागत करते है और सम्मान के साथ उसकी सेवा करते है।
कुछ दिनों बाद, जब तेनाली रामा किसी काम से बाहर जाते है, तब कनकराजू राजा को संदेश भेजता है कि उसके पास एक अद्भुत चीज है जो वह उन्हें दिखाना चाहता है। उसके लिए आपको तेनाली रामा के घर आना होगा। महाराज कनकराजू के निमंत्रण को स्वीकार करते हैं और अपनी सेना के साथ तेनाली रामा के घर जाते हैं।
कृष्णदेव राय बिना हथियार के तेनाली रामा के घर पहुंचते हैं। वह सैनिकों को बाहर ही ठहरने का आदेश देते है क्योंकि उन्हें तेनाली रामा पर बहुत विश्वास करते है। जैसे ही वह तेनालीराम के घर के अंदर दाखिल होते है, घात लगाए बैठा कंकराजू राजा पर चाकू से वार कर देता है।
महराज कृष्णदेव राय बहुत चतुर और बलवान थे। उन्होंने अपनी चतुराई से उस चाकू के वार से खुद को बचा लिया और तुरंत अपने अंगरक्षकों को सूचित कर दिया। महाराज की आवाज सुनकर सभी अंगरक्षक अंदर आ जाते हैं और तुरंत कंकराजू को मौके पर ही ढेर कर दिया जाता है।
क्योंकि यह विजयनगर साम्राज्य का नियम था कि जो कोई भी महाराजा पर हमला करने की कोशिश करता है उसे तुरंत मौत की सजा दी जाती है। नतीजतन, महाराज तेनालीराम को भी मृत्युदंड देने की सजा सुनाते है। जबकि महाराज अच्छी तरह जानते थे कि तेनाली राम उनका विश्वास नहीं तोड़ सकते।
परन्तु महाराज स्वयं राज्य के शासन नियम को नहीं तोड़ सके। महाराज तेनाली रामा को आश्वासन देते हैं कि तुम मेरे सलाहकार होने के साथ-साथ मेरे भरोसेमंद आदमी भी हो तो मैं तुम्हें इतनी आजादी दे सकता हूं कि तुम जिस तरह की मौत चाहते हो, वह आपको दी जाएगी।
महाराज यह भी जानते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए तेनाली रामा अपनी चतुराई से खुद की जान बचा ही लेगा। तब तेनाली रामा अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए कहते है कि महाराज मैं वृद्धावस्था में मरना चाहता हूं। महाराज तेनालीराम के उत्तर से बहुत प्रसन्न होते हैं और हंसते हुए कहते हैं कि तुम अपनी चतुराई से फिर बच गए।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
कठिनाई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, बुद्धिमानी से किया गया कार्य हमेशा जीत की ओर ले जाता है।
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