तेनाली रामा की कहानियां: खूंखार घोड़ा और तेनाली रामा

Tenali Raman Funniest Stories In Hindi For Kids

खूंखार घोड़ा और तेनाली रामा (तेनाली रामा की कहानियां) – Khunkhar Ghoda Aur Tenali Rama | Tenali Raman Stories In Hindi

एक समय की बात है दक्षिण भारत में विजयनगर नाम का एक समृद्ध साम्राज्य हुआ करता था। उस राज्य की बागडोर राजा कृष्णदेव राय को सौंपी गई थी। कृष्णदेव राय ने हमेशा अपनी प्रजा के हित और कल्याण के लिए काम किया।

एक दिन एक अरब व्यापारी कृष्णदेव राय के दरबार में ढेर सारे घोड़े लेकर आया। वह महाराजा से सिफारिश करता है कि वह इन सभी घोड़ों को बेचना चाहता है। तब राजा ने उस अरब व्यापारी से पूछा कि इन घोड़ों में ऐसा क्या विशेष है जिसके कारण हमें इन्हें खरीदना चाहिए।

वह अरबी व्यापारी अपना माल बेचने में निपुण था, उसने राजा के सामने अपने घोड़ों की इतनी प्रशंसा की कि राजा उन सभी घोड़ों को खरीदने के लिए तैयार हो गए।

महाराज उस अरबी व्यापारी से सारे घोड़े खरीद लेते हैं। अरबी व्यापारी व्यापारी बहुत खुश होता है और सभी घोड़ों की कीमत लेने के बाद दरबार से चला जाता है।

व्यापारी के जाते ही दरबारियों ने राजा से पूछा कि आप इन घोड़ों को कहां रखेंगे? हमारे पास उन सभी घोड़ों को रखने के लिए अस्तबल में पर्याप्त जगह नहीं है। हमें इन घोड़ों को रखने के लिए एक बड़े अस्तबल की आवश्यकता होगी।

अब राजा के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। इस समस्या से निपटने के लिए राजा ने अपने दरबार में मंत्रियों की एक सभा बुलाई। अगले दिन राजा के कहने पर सभी मंत्री राज्य की बैठक में एकत्रित हुए।

राजा ने अपनी समस्या मंत्रियों के सामने रखी और मंत्रियों को समस्या का समाधान खोजने को कहा। सभी मंत्रियों ने एक उचित योजना बनाई और राजा को प्रस्तुत की।

अगले दिन राजा ने अपनी प्रजा को इकट्ठा होने का आदेश दिया। राजा के कहने पर सभी लोग अपना काम-धंधा छोड़कर एक स्थान पर एकत्रित हुए। राजा वहां पहुंचता है और अपनी सारी प्रजा से कहता है कि मैंने तुम सबको एक जरूरी काम सौंपने के लिए बुलाया है।

हमने अरबी घोड़ों का एक बड़ा जत्था खरीदा है। ये सभी घोड़े बेशकीमती, अद्भुत और बुद्धिमान हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि इन सभी घोड़ों को रखने के लिए शाही अस्तबल में पर्याप्त जगह नहीं है।

इसके लिए एक बहुत बड़े अस्तबल की आवश्यकता है, जो तीन महीने से पहले बनकर तैयार नहीं होगा, इसलिए आप में से प्रत्येक को तीन महीने के लिए एक-एक घोड़ा दिया जाएगा, जिसकी आपको देखभाल करनी होगी। इसके लिए आप सभी को हर महीने एक सोने का सिक्का दिया जाएगा।

राजा की ये बातें सुनकर सभी प्रजा के चेहरे उतर गए। भला सोने के एक सिक्के से क्या होता है? इससे तो घोड़े का एक दिन का चारा पानी भी नहीं आएगा। अब राजा का आदेश था सो सब प्रजा को मानना पड़ा। राजा ने सबको एक-एक घोड़ा दिया और सब लोग अपना घोड़ा लेकर घर की ओर चल दिये।

प्रजा के साथ-साथ दरबार के मंत्रियों और तेनाली रामा को भी एक घोड़ा दिया गया। तेनाली रामा घोड़े को घर ले जाता है और घर के पीछे एक छोटा सा अस्तबल बनाता है, और तेनाली रामा उसे कुछ चारा भी खिलाता है।

तेनाली रामा घोड़े को हमेशा थोड़ा सा ही चारा और पानी देता था। बाकी प्रजा घोड़े की खूब सेवा करते थे क्योंकि प्रजा राजा के क्रोध से डरती थी कि यदि घोड़ा मर गया तो राजा हमें मृत्युदंड दे सकता है। इसलिए प्रजा अपनी कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा घोड़े पर खर्च करती थी। प्रजा तो स्वयं भूखे ही सो जाते थे, पर उनका घोड़ा खूब चारा-पानी देकर सो जाता था।

दो महीने बीत गए, तेनाली रामा का घोड़ा पूरी तरह सूख गया था। अब तेनालीराम का घोड़ा चिड़चिड़ा भी होने लगा था। यदि कोई उसके सामने आ जाता तो वह अपने मुंह से सामने वाले को घात लगाने का प्रयास करता। तेनाली रामा अस्तबल की खिड़की से ही उस घोड़े की देखभाल करता था। वहां से वह थोड़ा चारा पानी घोड़े को डाल देता।

जब तीन महीने बीत गए, तो महाराजा ने सभी को अपने घोड़े के साथ इकट्ठा होने का आदेश दिया। सब लोग अपने-अपने घोड़ों को लेकर महल के सामने पहुंच गए। लेकिन तेनाली रामा अपना घोड़ा साथ नहीं लाया। जब तेनाली रामा से इसका कारण पूछा गया तो तेनाली रामा ने कहा कि महाराज घोडा बहुत खूंखार और बिगड़ैल है। वह किसी को भी अपने पास नहीं आने देता।

महाराज, आप मुझे उस घोड़े को यहां लाने की बात कर रहे हैं, मैं तो अस्तबल तक जाने की हिम्मत भी नहीं कर सकता, उसे यहां लेकर आना तो दूर की बात है। मैं स्वयं अस्तबल की खिड़की से घोड़े को चारा पानी देता हूं।

तभी राजगुरु ने महाराज से कहा कि महाराज हमें तेनाली रामा की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। हमें स्वयं वहां जाकर उस घोड़े की दशा देखनी चाहिए। सभी लोग तेनाली रामा के घर जाते हैं और राजगुरु छोटे से अस्तबल को देखते हैं।

इतना छोटा अस्तबल देखकर राजगुरु गुस्से में तेनालीराम से कहते हैं, अरे मूर्ख तेनाली, यह क्या अस्तबल बना रखा है। आपने इस छोटी सी झोंपड़ी को अस्तबल का नाम दिया है, यह बड़े शर्म की बात है।

राजगुरु की बात पर तेनाली रामा ने कहा कि आप बड़े विद्वान हैं, इसलिए आप मुझसे ज्यादा जानते हैं। लेकिन घोड़ा खूंखार हो गया है, इसलिए आप अंदर मत जाइएगा। मैंने अस्तबल में एक खिड़की बनाई है, जहां से मैं घोड़े की देखभाल करता हूं, आप भी उसमें से झांक सकते हैं।

तेनाली रामा के कहने पर राजगुरु घोड़े को देखने खिड़की के पास जाते हैं। जैसे ही वह खिड़की से झांकते है, वह घोड़ा राजगुरु की दाढ़ी मुंह में पकड़ लेता है। दर्द से राजगुरु जोर-जोर से चीखने लगते हैं। राजगुरु और अन्य सभी लोग राजगुरु की दाढ़ी छुड़ाने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन घोड़ा उनकी दाढ़ी नहीं छोड़ता।

तभी एक दरबारी अपनी तलवार निकालता है और एक झटके में राजगुरु की दाढ़ी काट देता है। महाराजा की आज्ञा से दस सेवक किसी तरह उस घोड़े को राजमहल में ले जाते हैं। घोड़े को देखकर महाराजा तेनालीराम से पूछते हैं कि घोड़ा इतना दुबला-पतला क्यों हो गया है।

तेनाली रामा कहता है कि मैंने घोड़े को कम से कम चारा और पानी दिया है। जैसे, प्रजा थोड़े से में अपनी आजीविका का प्रबंधन करती है। इस वजह से घोड़ा इतना दुबला-पतला हो गया है। आगे तेनाली रामा ने कहा कि लोग आपका सम्मान करते हैं, इसलिए वह आपकी बात नहीं टाल सकती। यही कारण है कि सभी लोग एक सोने के सिक्के के बदले घोड़ा पालने को तैयार हो गए।

सब लोगों ने अपनी कमाई का आधा हिस्सा उस घोड़े पर लगा दिया जो आपने उन्हें पालन-पोषण के लिए दिया था। घोड़ों को तो भरपेट भोजन मिल जाता था, लेकिन आधे लोगों को बिना खाए-पिए ही सोना पड़ता था। इससे आपके घोड़े तो हष्ट-पुष्ट हो गए लेकिन आपकी प्रजा कमजोर हो गई।

लोगों के कल्याण के लिए काम करना आपका कर्तव्य है न कि उन पर अधिक से अधिक बोझ डालना। यह कहकर तेनाली रामा अपने सभी शब्दों के लिए क्षमा मांगते हुए पीछे हट गए।

महाराजा तेनाली राम की सारी बात समझ गए और महाराजा को अपने किए पर पछतावा होने लगा। राजा ने लोगों से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और उनके नुकसान की भरपाई भी की।

इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें कोई भी काम बिना सोचे-समझे नहीं करना चाहिए ताकि उसका परिणाम किसी और को न भुगतना पड़े।

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