तेनाली रामा की कहानियां: होली उत्सव और महामूर्ख की उपाधि

Tenali Raman Funniest Stories In Hindi For Kids

होली उत्सव और महामूर्ख की उपाधि (तेनाली रामा की कहानियां) – Holi Utsav Aur Mahamurkh Ki Upadhi | Tenali Raman Stories In Hindi

विजयनगर की होली आसपास के सभी राज्यों में सबसे प्रसिद्ध होली थी। विजयनगर में होली के दिन सबसे बड़ा रंगारंग और मनोरंजक कार्यक्रम हुआ करता था। विजयनगर की होली देखने के लिए आसपास के सभी गांवों के लोग इकट्ठा होते थे।

विजय नगर में होली का त्योहार सबसे मनोरंजक ढंग से मनाया जाता था। इस उत्सव पर आयोजित कार्यक्रमों में स्वयं विजयनगर के महाराजा भी भाग लेते थे।

विजय नगर में होली का यह दिन मनोरंजक माना जाता था क्योंकि इस दिन किसी एक व्यक्ति को महामूर्ख की उपाधि से विभूषित किया जाता था और साथ ही उस व्यक्ति को उपहार के रूप में दस हजार स्वर्ण मुद्राएं भी भेंट स्वरूप दी जाती थीं। तेनालीराम हर साल अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता से इस उपाधि को अपने नाम कर लेते थे।

इस बार होली का त्योहार नजदीक था और इस बार सबने तय किया कि इस बार वे किसी भी कीमत पर तेनाली रामा को यह उपाधि नहीं मिलने देंगे। वहां खड़ा एक बुद्धिमान व्यक्ति सबसे कहता है कि जब तक तेनाली रामा उस कार्यक्रम में भाग लेगा, वह उतनी ही बार जीतेगा भी।

इस बार कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए कि तेनाली रामा इस कार्यक्रम में शामिल ही न हो सकें। सभी ने निश्चय किया कि इस बार वे तेनाली रामा को भांग पिला देंगे, जिससे तेनाली रामा भांग के नशे में इस कार्यक्रम में भाग ही नहीं ले पाएगा, जिसके फलस्वरूप वह जीत भी नहीं पाएगा।

कुछ दिनों बाद नगर में होली का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। इस बार होली का कार्यक्रम एक विशेष बगीचे में आयोजित किया गया था। उस स्थान पर विशेष साज-सज्जा की गई थी, सुन्दर फूलों वाले पेड़-पौधे देखने में बहुत ही मनमोहक लग रहे थे। इसके अलावा वहां तरह-तरह के पकवान भी रखे गए थे और होली खेलने वालों के लिए रंग-बिरंगे गुलाल भी रखे गए थे। 

आसपास के सभी गांवों के लोग बगीचे के सुंदर दृश्य का आनंद लेने और होली खेलने के लिए एकत्र हुए। उत्सव की शुरुआत महाराज की घोषणा के साथ हुई, जिसमें महाराज ने कहा कि सभी लोग खुलकर खाएं, पिएं और होली खेलें। लेकिन इन सब बातों के पीछे इस बात का ध्यान रखें कि किसी को कोई परेशानी न हो, जितना हो सके अपनी हरकतों से अपनी मूर्खता का प्रमाण दें।

इसी के साथ होली का त्योहार शुरू हो गया और सभी बड़े उत्साह के साथ होली खेलने में जुट गए। कुछ लोग हवा में रंग फेंक रहे थे तो कुछ लोग खाना खाने में व्यस्त थे। इस बीच तेनालीराम का भांग का नशा उतर गया था और वे उत्सव में भाग लेने पहुंचे।

तेनाली रामा सभी लोगों को देखते है, कुछ लोग अपनी मस्ती में होली खेल रहे हैं तो कुछ लोग नाच-गाकर पकवानों का लुत्फ उठा रहे हैं। इतने में तेनाली रामा की नजर पुरोहित जी पर पड़ी। तेनाली रामा पुरोहित जी को ध्यान से देख रहे थे, जो मिठाई कम खा रहे थे और जेब में ज्यादा भर रहे थे।

जब पुरोहित जी की झोली और जेब दोनों भर जाती है तब तेनाली रामा उनके पास जाते हैं और उनकी जेब और झोली में पानी डालते हैं और तेनाली रामा खूब हंसते हैं। पुरोहित जी तेनाली रामा पर बहुत गुस्सा होते हैं और तेनाली रामा द्वारा पानी डालने का कारण भी पूछते हैं।

पुरोहित जी की चीख पर सभी उन दोनों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। महाराज भी दोनों को देखने आए और पुरोहित जी के चीखने-चिल्लाने का कारण पूछा।

पुरोहित जी ने कहा कि तेनालीराम ने मेरी झोली और जेब में पानी भर दिया। महाराज तेनाली रामा पर बहुत क्रोधित हुए और तेनाली रामा से इसका कारण पूछा।

तभी तेनाली रामा कहते हैं कि महाराज पुरोहित जी की झोली और जेब बहुत सारे व्यंजन खा गए थे, मैंने सोचा कि कहीं ज्यादा खाने से उन्हें बदहजमी न हो जाए, इसलिए मैंने उन्हें पानी पिला दिया।

तेनाली रामा की ये बातें सुनकर महाराज जोर-जोर से हंसने लगे। साथ ही इस बात पर सभी जनता जनार्दन भी ठहाके लगाकर हंसने लगी। थोड़ी देर बाद महाराज ने कहा कि तुम सबसे बड़े मूर्ख हो, जेब और झोली कब से मिठाई खाने लगे। महाराज की ये बातें सुनकर तेनाली रामा भी हंसने लगे।

इसी बीच तेनाली रामा ने पुरोहित की झोली पलट दी, जिससे सारी मिठाई घास पर गिर गई। तब पुरोहित जी को बहुत लज्जित होना पड़ा। पुरोहित जी और तेनालीराम को देखकर दोनों की हरकतों पर सभी हंसने लगे। 

इसी बीच तेनालीराम महाराज से पूछते हैं कि क्या आपने मुझे महामूर्ख कहा, यही बात जनता से पूछते है कि क्या आप मुझे महामूर्ख मानते हैं। तभी सभी ने एक स्वर में कहा कि अभी तुमने हरकत की है, उससे तो यही लगता है कि तुम ही यहां के सबसे बड़े मूर्ख हो। 

फिर हर साल की तरह इस साल भी चालाक और चतुर तेनाली राम को ही महामूर्ख की उपाधि दी गई। साथ ही उन्हें दस हजार स्वर्ण मुद्राएं भी प्रदान कीं गई।

इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी यदि व्यक्ति धैर्य, विनम्रता और अपनी बुद्धि का प्रयोग करे तो उसकी जीत अवश्य होती है।

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