हीरों का सच (तेनाली रामा की कहानियां) – Heeron Ka Sach | Tenali Raman Stories In Hindi
विजयनगर साम्राज्य के राजा श्री कृष्ण देव राय के मुख्य सारथी तेनाली राम हर चीज में निपुण थे। वे अपनी बुद्धिमत्ता और उत्तर से किसी को भी चुप करा सकते थे। न्याय देने के मामले में तेनाली रामा राजा से भी अधिक निपुण थे। राजा भी किसी को न्याय देने से पहले तेनाली रामा से सलाह जरूर लेते थे।
एक बार महाराज के सामने दरबार में एक ऐसा मामला आया कि उनके लिए न्याय करना कठिन हो गया। ऐसे में तेनाली रामा ने अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता से उस व्यक्ति को न्याय दिलाया और वही मामला सुलझ गया।
हुआ यू की एक दिन नामदेव नाम का एक व्यक्ति राजा के पास न्याय की गुहार लगाने आया। उसने रोते-बिलखते हुए कहा महाराज मेरे साथ अन्याय हुआ है। महाराज ने पूछा कि तुम्हारे साथ क्या अन्याय हुआ है, कृपया विस्तार से बताओ।
अपनी कहानी सुनाते हुए नामदेव कहते हैं, महाराज, एक दिन मैं अपने सेठ के साथ कहीं जा रहा था, रास्ते में मुझे एक गठरी मिली, जिसमें दो चमकते हीरे थे। मैंने सेठ से कहा कि इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं है, हमें इसे राजकोष के खजाने में जमा कर देना चाहिए।
यह सुनकर सेठ ने नामदेव को फटकार लगाई और सेठ ने सारे हीरे अपने पास रख लिए। सेठ ने नामदेव से यह भी कहा कि इनमें से एक हीरा तुम रख लो, एक हीरा मैं रख लूंगा। फिर मैं भी थोड़ा लालची हो गया था तो मैंने कहा ठीक है। लेकिन घर आते ही उन्होंने मेरा हीरा भी अपने पास रख लिया।
इसलिए मैं आपके पास आया हूं। महाराज! मुझे न्याय चाहिए। नामदेव की बातें सुनकर महाराज में उसके मालिक को राजदरबार में बुलाने का आदेश दिया। थोड़ी ही देर में मालिक भी दरबार में पहुंच गया।
महाराज ने सेठ से पूछा कि क्या नामदेव सही कह रहा हैं? क्या तुमने दोनों हीरों को अपने कब्जे में ले लिया है। नामदेव का मालिक बहुत कपटी व्यक्ति था और वह महाराज के सामने भी अपनी बातों से मुकर गया।
उसने महाराज से कहा कि महाराज यह सत्य है कि मुझे हीरे मिले थे। लेकिन मैंने उन हीरों को नामदेव को सुरक्षित रखने के लिए दे दिए थे। मैंने उसे यह भी कहा था कि इन हीरों को राजकोष के खजाने में जमा करा दो क्योंकि इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं है।
नामदेव के मन में लालच है इसलिए वह ऐसी कहानियां बना रहे हैं। जब महाराज ने नामदेव के मालिक से सत्यता का प्रमाण मांगा तो नामदेव के मालिक ने कहा कि जब मुझे हीरे मिले तो मेरे साथ तीन अन्य सेवक भी थे, आप चाहो तो उनसे भी पूछ लीजिए।
महाराज ने तीनों सेवकों से पूछा, तो तीनों सेवकों ने उत्तर दिया कि मालिक ने दोनों हीरे नामदेव को खजाने में जमा करने के लिए दे दिए हैं। महाराज समझ नहीं पा रहे थे कि कौन सच्चा है और कौन झूठा। महाराज ने दरबारियों और मंत्रियों से सलाह ली लेकिन सभी के अलग-अलग उत्तर थे।
कुछ दरबारी कह रहे थे कि नामदेव के मन में लोभ है और कुछ लोग कह रहे थे कि नामदेव का मालिक ही ढोंगी है। तब महाराज ने सभा रोक दी और कहा कि न्याय का निर्णय कुछ देर बाद किया जाएगा।
महाराजा ने तुरंत तेनाली रामा को दरबार में बुलाया और उनसे सलाह मांगी। तेनालीराम ने सारी कहानी सुनी और महाराज से कुछ समय मांगा। महाराज ने भी तेनालीराम को अनुमति दे दी।
तेनाली रामा ने अपना दिमाग लगाया और एक शानदार योजना बनाई। तेनाली रामा ने महाराज से महल का एक खाली कमरा मांगा। फिर तेनाली रामा में उन तीनों नौकरों को अलग-अलग करके कमरे में अंदर बुलाया।
सबसे पहले एक नौकर को बुलाया और कहा कि तुम्हारे मालिक ने जो हीरा नामदेव को दिया था, उसका चित्र यहां पर बनाओ। पहले नौकर ने कहा कि मैंने हीरे नहीं देखे क्योंकि हीरे लाल पोटली के अंदर बंद थे। इसके बाद तेनालीराम ने दूसरे नौकर को कमरे में बुलाया। जब तेनाली रामा ने उससे वही सवाल किया तो दूसरे नौकर ने कागज पर दो गोल हीरे बना दिए।
अब तीसरे नौकर की बारी आई। तीसरे नौकर से भी वही सवाल किया गया तो तीसरे नौकर ने कहा कि हीरे कागज के लिफाफे में बंद थे। तेनाली रामा को जवाब मिल गया था। सब कमरे के अंदर आ गए। तीनों नौकरों को पता चला कि उनकी चोरी पकड़ी गई है क्योंकि सभी ने अलग-अलग जवाब दिए।
तीनों सेवक डर गए और बोले महाराज इसमें हमारा दोष नहीं है। मालिक ने दोनों हीरों को वहीं अपने पास रख लिया और हमें मुंह बंद रखने को कहा। अगर हम यहां मुंह खोलते तो मालिक हमें जान से मार देता।
ये बातें सुनकर मालिक वहां से भागने लगा तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया। महाराज ने मालिक को कारागार में बंद करने का आदेश दिया और साथ ही इनाम के रूप में नामदेव को हजार सोने के सिक्के दिए और तेनालीराम को भी उपहार दिया।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
हमें कभी भी सच का साथ नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि सच हमेशा हमें सही रास्ते पर ले जाता है और झूठ हमेशा मुसीबत में डालता है।
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