तेनालीराम बना जटाधारी सन्यासी (तेनाली रामा की कहानियां) – Tenali Raman Bana Jatadhari Sanyasi | Tenali Raman Stories In Hindi
बहुत समय पहले की बात है, विजयनगर साम्राज्य में शिवालयों की अनुपस्थिति के कारण, महाराजा कृष्णदेव राय ने एक शिवालय बनाने का निर्णय लिया। महाराज ने सभी मंत्रियों और दरबारियों को सभा में बुलाया और शिवालय के बारे में चर्चा की।
महाराज ने सभी मंत्रियों और दरबारियों को आदेश दिया कि वे नगर में शिवालयों के लिए उपयुक्त स्थान खोज लें। नगर में सर्वोत्तम स्थान पाकर सभी दरबारियों और मंत्रियों ने महाराज को सूचना दी, महाराज को भी वह स्थान बहुत अच्छा लगा। महाराज ने जल्द ही अपने शाही कारीगरों को शिवालय पर काम शुरू करने का आदेश दिया।
राजा ने मंदिर निर्माण की पूरी जिम्मेदारी अपने एक मंत्री को सौंपी थी। उस मंत्री ने वहां कुछ लोगों से सफाई कराई और तभी अचानक खुदाई के दौरान वहां शिव की एक सोने की मूर्ति मिली। सोने की मूर्ति को देखकर मंत्री के मन में लालच पैदा हो गया। मंत्री ने बिना किसी को बताए उस सोने की मूर्ति को अपने घर में छिपा लिया।
दो सफाई कर्मचारी तेनाली रामा के खास थे। इन दोनों मजदूरों ने मंत्री के पाखंड और लालच की पूरी कहानी तेनाली रामा को बता दी। तेनाली रामा को यह सब पता चलने के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं किया क्योंकि वह सही समय का इंतजारकर रहे थे।
कुछ दिनों बाद मंदिर के लिए निर्धारित स्थान के भूमि पूजन का शुभ मुहूर्त निश्चित हुआ, उस दिन महाराज ने अधिष्ठान के लिए राज्य के सबसे वरिष्ठ ब्राह्मणों को बुलाया था। भूमि पूजन होने के बाद महाराज ने फिर से मंत्रियों और दरबारियों की बैठक बुलाई और मंदिर के लिए मूर्ति बनाने के बारे में चर्चा करने लगे।
सभी मंत्री और दरबारी मूर्ति के बारे में आपस में बात कर रहे थे, महाराज ने सबकी राय पूछी। लेकिन कोई भी मूर्ति बनवाने का सही निर्णय नहीं ले सका। महाराज ने दो दिन तक लगातार इस विषय पर सभा बुलाई। महाराज अभी भी सही निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी एक जटाधारी सन्यासी महल में आता है।
सबने उस साधु को प्रणाम किया और उसे आसन पर बैठने की आदरपूर्वक जगह दी गई। आसन पर बैठकर सन्यासी महाराज से कहता हैं-
“महाराज! महादेव ने स्वयं मुझे यहां आपके पास भेजा है। मैं जानता हूं कि आप लोग यहां शिवालय बनाना चाहते हैं और शिवालय की मूर्ति को लेकर चर्चा चल रही है। शिव जी ने मुझे जो उपाय बताया है, वह मैं आपको बताने आया हूं।”
साधु की बातों से सब हैरान रह गए! तब चकित होकर महाराज ने जटाधारी सन्यासी से पूछा –
“क्या सच में आपको खुद महाकाल ने भेजा है?
सन्यासी कहता है – जी हां महाराज! स्वयं महादेव ने ही मुझे यहां भेजा है।
सन्यासी कहता है कि महादेव ने स्वयं उनके मंदिर के लिए एक सोने की मूर्ति भेजी है, (सन्यासी मंत्री के और अपनी उंगली दिखाता है) जो इस सज्जन के घर में रखी हुई है। महादेव ने स्वयं उनकी मूर्ति इनके घर में रख दी है, यह कहकर साधु वहां से चले गए।
मंत्री घबरा गया और हैरान होकर सोचने लगा कि इस सन्यासी को उस मूर्ति के बारे में कैसे पता चला? क्या भगवान शिव ने वास्तव में मूर्ति को अपने मंदिर के लिए उस थान पर रखा था? इस विचार से मंत्री कांपने लगा और उसने महाराज को सारी कहानी सुनाने की सोची।
उस मंत्री को महाराज के सामने सारी कहानी कहनी पड़ी और अपनी गलती भी माननी पड़ी। मंत्री ने कहा कि मुझे वह मूर्ति मिली है जो शिवालय की जगह की खुदाई में पड़ी थी। मेरे मन में लालच आ गया और मैं उस मूर्ति को लेकर घर चला गया।
फिर महाराज अपनी आँखें महल की ओर दौड़ाते हैं और तेनाली रामा को अनुपस्थित पाते हैं। तेनाली रामा की काफी तलाश की लेकिन वह वहां नहीं मिला। कुछ देर बाद तेनाली रामा खुद दरबार में पहुंचे।
तेनाली रामा को देखकर दरबार में सभी लोग हंसने लगे। तेनाली रामा भी सोच में पड़ गए कि ये सब लोग क्यों हंस रहे हैं। तेनाली रामा ने महाराज से सभी लोगों के हंसने का कारण पूछा।
तभी एक दरबारी ने कहा कि आप ही वह जटाधारी सन्यासी हैं। तेनाली रामा फिर सोच में पड़ गए कि इन सब लोगों को कैसे पता चला? दरबारी ने कहा, आप इस माला को उतारना भूल गए हो जो आपने जटाधारी सन्यासी के वेश में पहनती थी।
अपनी इस गलती को देखकर सभी दरबारी सहित तेनाली रामा भी जोर-जोर से हंसने लगे। सभी को हंसता देख महाराज भी मुस्कुराने लगे और तेनाली रामा की तारीफ करते हुए उन्हें मंदिर की जिम्मेदारी भी सौंप दी।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें कभी भी लालची नहीं होना चाहिए। ईमानदारी से कमाया हुआ धन ही काम आता है, छल से कमाया हुआ धन कभी टिकता नहीं है।
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