मटका और तेनालीराम (तेनाली रामा की कहानियां) – Matka Aur Tenali Raman | Tenali Raman Stories In Hindi
बहुत समय पहले की बात है भारत में विजय नगर नाम का एक समृद्ध राज्य हुआ करता था जिसके महाराजा श्री कृष्ण देव राय थे। महाराज हमेशा अपनी प्रजा के हित के लिए कार्य करते थे और सभी प्रजा के प्रिय भी थे। उनके सबसे पसंदीदा मंत्री और दरबार में सलाहकार तेनालीराम थे।
एक दिन महाराज किसी बात पर तेनाली रामा से बहुत नाराज हो गए। महाराज इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने तेनाली रामा को अपना चेहरा दिखाने से भी मना कर दिया और उन्होंने आदेश दिया कि यदि तेनाली रामा ने फिर से इस दरबार में अपना चेहरा दिखाया, तो उन्हें पचास कोड़ों की सजा दी जाएगी।
तेनाली रामा उदास होकर बिना कुछ बोले चुपचाप वहां से चले गए। अब क्योंकि तेनाली रामा महाराज के पसंदीदा थे, तो जब भी नगर में कोई गतिविधि होती थी, तो महाराज सबसे पहले तेनाली रामा से ही सलाह लेते थे। इस कारण दरबार में तेनाली रामा से ईर्ष्या करने वालों की संख्या भी अधिक थी।
इधर तेनाली रामा की अनुपस्थिति में महल के दरबारी तेनाली रामा के विरुद्ध महाराज के कान भरने लगे। दरबारियों ने महाराज से कहा कि आपके मना करने के बाद भी तेनाली रामा महल के अंदर आ गया था और सभी दरबारियों के साथ हंसी-मजाक कर रहा था। तेनाली रामा ने आपकी आज्ञा का उल्लंघन किया है। इतना ही नहीं उन्होंने आपकी बातों का भी अपमान किया है।
तेनाली रामा के आने की सूचना पाकर महाराज क्रोध से आगबबूला हो उठे और तेजी से तेनाली रामा की ओर चल पड़े। तेनाली रामा उस समय दरबार में ही उपस्थित थे, उन्होंने अपने सिर पर एक मटका पहन रखा था और उस मटके में दो छेद भी किए हुए थे, ताकि वह आगे देख सके।
महाराज गुस्से में तेनाली रामा के पास गए, उन्होंने देखा कि तेनाली रामा सिर में मटकी धारण किय हुए है। उन्होंने तेनाली रामा से कड़े शब्दों में पूछा, हमारे मना करने पर भी तुम दरबार में मुँह क्यों दिखा रहे हो?
तेनाली रामा ने कहा महाराज मैं आपको अपना मुख कहां दिखा रहा हूं? आपने मुझे मना किया था कि आप मेरा मुँह नहीं देखना चाहते, इसलिए मैंने सिर पर मटका बाँध लिया है। इससे आप मेरा मुख नहीं देख पाओगे और मैं भी आपको देख सकूँगा।
तेनाली रामा की बातें सुनकर महाराज का क्रोध शांत हुआ और वह तेनाली रामा की बातों पर जोर-जोर से हंसने लगे। उन्होंने कहा, ‘तुम जैसे बुद्धिमान और तेज-तर्रार व्यक्ति पर कोई नाराज हो ही नहीं सकता। अब इस घड़े को हटाओ और सीधी तरह अपना आसन ग्रहण करो।’
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि परिस्थिति कैसी भी हो अपने पक्ष में की जा सकती है बस जरूरत है दिमाग से काम लेने की।
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