दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – मूर्खमंडली / सुनहरे गोबर की कथा (Tale Of The Golden Droppings Story In Hindi) पेश कर रहे हैं। Sunahare Gobar Ki Katha में बताया गया है की एक पक्षी स्वर्णमल त्यागता है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – Tale Of The Golden Droppings In Hindi।
Tale Of The Golden Droppings Story In Hindi – Tales of Panchatantra
एक पहाड़ी प्रदेश में महाकाल के पेड़ पर सिंधुक नाम का एक दुर्लभ पक्षी रहता था। आश्चर्य की बात थी कि उस पक्षी की विष्ठा यानी मल सोना बन जाता था। लेकिन इंसानों को इस बात का पता नहीं था।
एक बार एक शिकारी महाकाल के पेड़ के पास से गुजर रहा था। शिकारी ने सिंधुक को पेड़ की शाखा पर बैठे देखा, लेकिन उस पक्षी के बारे में जानकारी न होने के कारण शिकारी ने उसकी उपेक्षा की, लेकिन मूर्ख सिंधुक ने उस शिकारी के सामने ही विष्ठा कर दी। जैसे ही पक्षी का मल जमीन पर गिरा, वह सोने में बदल गया।
सोने के मल को देखकर शिकारी को बड़ा कौतूहल हुआ और उसने सोने के लालच में उस पेड़ पर जाल फेंका और सिंधुक को पकड़ लिया। शिकारी उसे पकड़कर अपने घर ले आया और पिंजरे में कैद कर लिया।
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लेकिन, अगले ही दिन उसे डर लगने लगा कि अगर किसी ने राजा को इस पक्षी के मल के सुनहरे होने के बारे में बताया, तो उसे राजा के सामने पेश होना पड़ेगा और हो सकता है कि राजा मुझे सजा भी दे। इस डर से शिकारी ने खुद ही उस पक्षी को राजा के सामने दरबार में पेश कर दिया।
राजा को शिकारी की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, इसलिए राजा ने गौर से पक्षी का निरीक्षण किया। राजा ने सेवकों को आदेश दिया कि वे पक्षी को संभाल कर रखें और उस पर नजर रखें। पक्षी की देखभाल में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।
तब राजा के एक मंत्री ने सलाह दी कि “हे राजन! शिकारी की मूर्खतापूर्ण बातों पर विश्वास करके आप उपहास का पात्र न बनें। क्योंकि कोई भी पक्षी स्वर्णमई विष्ठा नहीं कर सकता है? आप इसे जाने दें।”
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मंत्री की बात सुनकर राजा को लगा कि मंत्री ठीक कह रहा है तो राजा ने पक्षी को मुक्त करने का आदेश दिया। सिंधुक उड़ते-उड़ते महल के द्वार पर बैठ गया और स्वर्णमई विष्ठा कर दी, और जाते-जाते कहता गया:-
“पूर्वं तावदहं मूर्खो द्वितीयः पाशबन्धकः।
ततो राजा च मन्त्रि च सर्वं वै मूर्खमण्डलम्।।”
अर्थात, पहले मैं मूर्ख था जिसने शिकारी के सामने विष्ठा कर दी, फिर शिकारी ने अपनी मूर्खता दिखाते हुए मुझे राजा के सामने पेश किया। राजा और मन्त्री तो मूर्खों के अधिनायक निकले। इस राज्य में तो सब मूर्ख-मंडल इकट्ठे हो गए हैं।
हालांकि राजा के सैनिकों ने फिर से पक्षी को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
कहानी का भाव:
बिना जांचे-परखे किसी निर्णय पर न पहुंचें। कभी भी दूसरे की बातों में नहीं आना चाहिए और अपने दिमाग से काम लेना चाहिए।
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