संगम के किनारे क्यों लेटे हैं हनुमानजी, जानिए क्या है इस मंदिर का रहस्य?
Information about Shri Bade Hanuman Ji Mandir / Lete Hanuman Mandir in Hindi – दोस्तों “श्री बड़े हनुमान मंदिर” भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें हनुमान जी की मूर्ति खड़ी नहीं है बल्कि लेटी हुई मुद्रा में विराजमान है.
यह भारत का एक बहुत ही प्रसिद्ध हनुमान मंदिर (Prayagraj Hanuman Mandir) है जो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम तट पर स्थित है.
इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति “वीर मुद्रा” अवस्था में विराजमान है, जिसके दर्शन करने के बाद भक्त वीर रस से भर जाते हैं.
ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति सतह से कम से कम 8-10 फीट नीचे है. मंदिर में स्थित हनुमान जी की यह अनूठी प्रतिमा दक्षिणमुखी और 20 फीट ऊंची है.
हनुमानजी के दाहिने पैर के नीचे अहिरावण (Ahiravan) को और बाएं पैर के नीचे अहिरावण की देवी कामदा देवी (Kamada Devi) को दर्शाया गया है. और उनके दाहिने हाथ पर राम-लक्ष्मण और उनके बाएं हाथ में गदा सुशोभित है.
हनुमान जी को प्रयाग का कोतवाल (Kotwal) भी कहा जाता है. बजरंगबली यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. यहां मंगलवार और शनिवार को भारी मात्रा में भीड़ उमड़ती है.
इस मंदिर के बारे में लोगों की अवधारणा – Prayagraj Hanuman Mandir Story
आखिर क्या कारण है कि हनुमान जी यहां लेटे हुए मुद्रा में हैं? संगम के किनारे स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि संगम स्नान के बाद यदि आप यहां दर्शन करने नहीं जाते हैं तो स्नान अधूरा माना जाता है.
आइए जानते हैं क्या है हनुमानजी की इस प्रतिमा का रहस्य (Prayagraj Hanuman Mandir Story) और कैसे हुई थी इस मंदिर की स्थापना!
हनुमान मंदिर प्रयागराज – Hanuman Mandir Prayagraj
सदियों पहले की बात है कि एक बार एक धनी व्यापारी हनुमान जी की मूर्ति को लेकर इस जलमार्ग से गुजर रहा था और साथ ही वह हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त भी था.
जैसे-जैसे वह प्रयाग की ओर आ रहा था, नाव धीरे-धीरे भारी होती जा रही थी और अंत में नाव यमुनाजी के पानी में डूब गई.
कुछ समय बाद गंगा नदी ने अपना मार्ग बदल लिया और हनुमानजी की भव्य प्रतिमा दिखाई देने लगी.
मुगल शासक अकबर द्वारा मंदिर निर्माण की अवधारणा
उस समय भारत में मुगल शासक अकबर (Akbar) का शासन था. 1582 में, अकबर मगध, अवध और बंगाल सहित पूर्वी भारत में हो रहे विद्रोह पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक जगह की तलाश कर रहा था.
अकबर ने मूर्ति को हटाकर उस जगह पर अपना किला बनाने की योजना बनाई थी.
बादशाह अकबर के आदेश पर मूर्ति को हटाने के लिए कई प्रयास किए गए, अकबर के विशेषज्ञों ने पूरी कोशिश की लेकिन हनुमान जी की मूर्ति टस से मस नहीं हो रही थी. कड़े संघर्ष के बाद हर व्यक्ति ने अपनी हार मान ली थी.
बादशाह अकबर भी हनुमान जी की महिमा देखकर दंग रह गया और हनुमान जी के आगे नतमस्तक हो गया था. इसके बाद बादशाह अकबर ने मंदिर के पीछे अपने किले की दीवार खड़ी कर दी.
कहा जाता है की अकबर ने हिंदुओं का दिल जीतने के लिए अपने किले के पास ही हनुमान मंदिर की स्थापना करायी, जिसके कारण इस मंदिर को “किले वाले हनुमानजी” के नाम से भी जाना जाने लगा.
मंदिर से संबंधित दूसरी अवधारणा लंका विजय से संबंधित है
यहां के बारे में कहा जाता है कि जब हनुमानजी लंका पर जीत हासिल करने के बाद भगवान राम, लक्ष्मण और सीता माता के साथ अयोध्या लौट रहे थे, तो उन्हें रास्ते में बहुत थकान महसूस होने लगी. तब सीता माता के कहने पर वह यहां संगम के तट पर विश्राम के लिए लेट गए और इसी बात को ध्यान में रखते हुए यहां लेटे हनुमानजी का मंदिर बनाया गया.
मंदिर से जुड़ी एक और अवधारणा कन्नौज के राजा से जुड़ी है
कहा जाता है कि कन्नौज के राजा की कोई संतान नहीं थी, तब उनके गुरु ने उपाय के रूप में राजा को हनुमानजी की ऐसी मूर्ति बनाने का निर्देश दिया, जो नागपाश से राम-लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए पाताल लोक गए थे.
राजा को यह भी सूचित किया गया की हनुमानजी की इस प्रतिमा को विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए.
कन्नौज के राजा ने वैसा ही किया और वह विंध्याचल से जलमार्ग से हनुमानजी की मूर्ति लेकर नाव से आ रहे थे कि तभी अचानक नाव टूट गई और हनुमानजी की यह मूर्ति जलमग्न हो गई.
इस दुर्घटना को देखकर राजा बहुत ही दुःखी हुए और वह भारी मन से अपने राज्य को लौट गए.
इस घटना के कई साल बाद जब नदी का जलस्तर कम हुआ तो वहां धूनी लगाने की कोशिश कर रहे रामभक्त बाबा बालागिरी महाराज ने इस प्रतिमा को देखा. तब वहां के राजा ने मूर्ति की स्थापना के लिए मंदिर का निर्माण किया.
प्राचीन काल में मुगल शासकों के आदेश पर हिंदू मंदिरों को नष्ट करने की कुप्रथा चल रही थी, लेकिन यहां मुगल सैनिक हनुमानजी की मूर्ति को हिला भी नहीं सकें थे. जैसे ही सैनिकों द्वारा मूर्ति को उठाने की कोशिश की जाती, मूर्ति अधिक से अधिक धरती में विराजमान होती जा रही थी, यही कारण है कि यह मूर्ति जमीन से लगभग 8-10 फीट नीचे बनी है.
इस हनुमान मंदिर को अन्य नामों से भी जाना जाता है
संगम नगरी के इस मंदिर को बड़े हनुमानजी, किले वाले हनुमानजी, लेटे हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है.
कहा जाता है कि गंगा नदी का जल भगवान हनुमान जी को छूता है और उसके बाद गंगा का जल उतर जाता है. गंगा-यमुना का जल बढ़ने पर इस नजारे को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
मान्यता के अनुसार गंगा में हनुमान जी का स्नान भारत भूमि के लिए सौभाग्य का सूचक माना जाता है. मंदिर में जल का प्रवेश प्रयाग और संम्पूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी माना जाता है.
हनुमानजी की अनुपम प्रतिमा वाले इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए देश के कोने-कोने से प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन मंदिर के महंत आनंद गिरि महाराज (Mahant Anand Giri Maharaj) के अनुसार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ-साथ पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और चंद्रशेखर आजाद जैसी तमाम विभूतियों ने यहां सिर झुकाकर पूजा-अर्चना की और अपने व अपने देश के लिए मनोकामनाएं मांगीं.
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