Shri Durga Chalisa (Lyrics, Method, Importance, Rules, Benefits) – श्री दुर्गा चालीसा हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक साहित्य है, जिसमें माँ भगवती आदि शक्ति की स्तुति एवं महिमा का वर्णन किया गया है। श्री दुर्गा चालीसा में नारी शक्ति के विषय में चर्चा की गई है। हम सभी जानते हैं कि देवी दुर्गा शक्ति का प्रतीक है। संस्कृत भाषा में “दुर्गा” शब्द का अर्थ “शक्तिशाली” होता है, जिससे स्पष्ट होता है कि देवी दुर्गा का मतलब “नारी शक्ति” से है।
इसका पाठ और गायन भक्तों के लिए एक प्राचीन पारंपरिक पूजा और आराधना का एक हिस्सा है, जो मां दुर्गा के प्रति भक्ति, समर्पण और आदर्शों की एक महत्वपूर्ण भावना को व्यक्त करता है। यह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है।
श्री दुर्गा चालीसा क्या है?
“दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)” एक हिंदू धार्मिक भजन है जो माँ दुर्गा, देवी दुर्गा की स्तुति और पूजा के लिए गाया जाता है। यह माँ दुर्गा के महत्वपूर्ण गुणों और उनके आशीर्वाद का गुणगान करता है।
दुर्गा चालीसा की रचना देवीदास जी द्वारा की गई थी, और इस संदर्भ में माना जाता है कि वे माँ दुर्गा के सबसे बड़े उपासक थे, जिन्होंने दुर्गा चालीसा में माँ दुर्गा के सभी रूपों के साथ ही उनकी महिमा को विस्तार से व्यक्त किया था।
“चालीसा” शब्द का अर्थ है “चालीस” अर्थात 40, और यह स्तोत्र 40 छंदों में लिखा गया है। यह माँ दुर्गा की महिमा, शक्ति और कृपा का गुणगान करता है और भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इसे पढ़ने की सलाह दी जाती है।
दुर्गा चालीसा का पाठ और गायन करके भक्त अपनी भक्ति और समर्पण व्यक्त करते हैं और माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। यह भजन मां दुर्गा के भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है और उनकी पूजा में अहम भूमिका निभाता है।
श्री दुर्गा चालीसा का पाठ क्यों किया जाता है?
दुर्गा चालीसा का पाठ (Shri Durga Chalisa Ka Paath) देवी दुर्गा की पूजा और आराधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके माध्यम से भक्त अपनी भक्ति और समर्पण व्यक्त करते हैं और मां दुर्गा का आशीर्वाद मांगते हैं। भक्त दुर्गा चालीसा का पाठ करके मां दुर्गा से आशीर्वाद पाने की याचना करते हैं। वे सुख, समृद्धि, संपन्नता और आध्यात्मिक शांति के लिए मां दुर्गा के आशीर्वाद की आशा करते हैं।
दुर्गा चालीसा का पाठ विशेष अवसरों पर किया जाता है, जैसे कि नवरात्रि (Navratri), दुर्गा पूजा (Durga Puja) और दुर्गा जयंती (Durga Jayanti) के दौरान। इन अवसरों पर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है और दुर्गा चालीसा इसी का एक हिस्सा है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करके व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति और आत्मा की शुद्धि की कामना करता है। यह भक्तों को देवी दुर्गा के मार्गदर्शन में मदद करता है। दुर्गा चालीसा पौराणिक ग्रंथों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसे हिन्दू धर्म के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक साहित्य (Religious Literature) माना जाता है।
इन सभी कारणों से, दुर्गा चालीसा का पाठ हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है और माँ दुर्गा के प्रति उनकी आस्था और भक्ति का प्रतीक है।
श्री दुर्गा चालीसा पाठ (Durga Chalisa Lyrics)
॥ चौपाई॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी।।
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला।।
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे।।
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना।।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।।
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं।।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा।।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।।
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।।
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी।।
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै।।
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत।।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी।।
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा।।
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब।।
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी।।
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई।।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।।
आशा तृष्णा निपट सतावें।
मोह मदादिक सब बिनशावें।।
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला।।
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ।।
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी।।
।।दोहा।।
शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक।।
।।इति श्री दुर्गा चालीसा।।
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श्री दुर्गा चालीसा पाठ हिंदी अर्थ सहित
(Shri Durga Chalisa text with Hindi meaning)
॥ चौपाई॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥
सुख प्रदान करने वाली माँ दुर्गा को मैं नमस्कार करता हूँ। दुःख दूर करने वाली माता श्री अम्बा को मेरा नमस्कार।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी।।
आपके ज्योति का प्रकाश अपरिमित है, जिसका प्रकाश तीनों लोकों (पृथ्वी, आकाश, पाताल) में फैल रहा है।
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला।।
आपका मस्तक चंद्रमा के समान है और आपका मुख बहुत विशाल है। आँखें रक्तरंजित हैं और भौंहें विकराल हैं।
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे।।
मां दुर्गा का यह रूप अत्यंत मनमोहक है। इसके दर्शन से भक्तों को परम सुख की प्राप्ति होती है।
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना।।
आपने विश्व की सभी शक्तियों को अपने अंदर समाहित कर लिया है। संसार के भरण-पोषण के लिए भोजन और धन उपलब्ध कराया है।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।
आप ही अन्नपूर्णा का रूप धारण करके जगत का पालन-पोषण करने वाली हैं तथा आदि सुन्दरी बाला के रूप में भी आप ही हैं।
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।
प्रलयकाल में आप ही संसार का नाश करती हैं। आप भगवान शंकर की प्रिया गौरी-पार्वती भी हैं।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।।
शिव और सभी योगी आपकी स्तुति गाते हैं। ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवता प्रतिदिन आपका ध्यान करते हैं।
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
आपने ही मां सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों को ज्ञान प्रदान किया और उनका उद्धार किया।
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा।।
हे अम्बे माता! आपने ही श्री नरसिम्हा का रूप धारण किया और खंभे को विभाजित करके प्रकट हुईं।
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।।
आपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की तथा हिरण्यकश्यप को स्वर्ग प्रदान किया, क्योंकि वह आपके हाथों मारा गया था।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं।।
आप स्वयं लक्ष्मीजी का रूप धारण करके क्षीरसागर में श्री नारायण के साथ शेषनाग की शय्या पर विराजमान हैं।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा।।
हे क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ विराजमान दयासिन्धु देवी! तुम मेरे हृदय की आशाएँ पूर्ण करो।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी।।
आप हिंगलाज की देवी भवानी के रूप में प्रसिद्ध हैं। आपकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता।
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।।
आप मातंगी देवी और धूमावती, भुवनेश्वरी और बगलामुखी देवी के रूप में भी सुख देने वाली हैं।
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।।
आप श्रीभैरवी और तारादेवी के रूप में संसार की तारणकर्ता हैं। छिन्नमस्ता के रूप में आप भवसागर के कष्ट दूर करती हैं।
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी।।
वाहन रूप में सिंह पर सवार हे भवानी! लंगूर (हनुमान जी) जैसे वीर आपका स्वागत करते हैं।
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै।।
जब आपके हाथ में काल रूपी खप्पर व खड्ग होता है तो काल भी उसे देखकर घबरा जाता है।
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
हाथों में शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र और त्रिशूल लिए हुए आपके स्वरूप को देखकर शत्रु के हृदय में वेदना उत्पन्न होने लगती है।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत।।
आप नगरकोट की देवी के रूप में विद्यमान हैं। तीनों लोकों में आपके नाम का डंका बजता है।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे।।
हे माँ! आपने शुंभ और निशुंभ जैसे राक्षसों को मार डाला और रक्तबीज (शुंभ-निशुंभ की सेना का एक राक्षस जिसे वरदान था कि अगर उसके रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरेगी, तो सैकड़ों राक्षस पैदा हो जाएंगे) और राक्षस शंख को भी मार डाला।
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी।।
जब अत्यंत अहंकारी राक्षस राजा महिषासुर के पापों के बोझ से पृथ्वी त्रस्त हो उठी।
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा।।
तब आपने काली का विकराल रूप धारण करके अपनी सेना सहित उस पापी का नाश कर दिया।
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब।।
हे माँ! जब भी संतों पर विपदा आई, आपने अपने भक्तों की सहायता की है।
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका।।
हे माँ! जब तक यह अमरपुरी तथा समस्त लोक विद्यमान हैं, तब तक आपके ही प्रताप से सभी दुःख-मुक्त रहेंगे।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी।।
हे माँ! श्री ज्वालाजी में भी आपकी ज्योति जल रही है। नर-नारी सदैव आपकी पूजा करते हैं।
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।।
जब कोई व्यक्ति प्रेम, विश्वास और भक्ति से आपका गुणगान करता है तो दुःख और दरिद्रता उसके पास नहीं फटकती।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई।।
जो प्राणी सच्चे मन से आपका ध्यान करता है वह निश्चय ही जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।
योगी, साधु, देवता और मुनिजन पुकार-पुकारकर कहते हैं कि आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है।
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।।
शंकराचार्यजी ने अचरज नामक तपस्या करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि पर विजय प्राप्त की।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
वह प्रतिदिन भगवान शंकर का ध्यान करते थे, परन्तु कभी आपका स्मरण नहीं किया करते थे।
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।।
वे आपकी शक्ति का सार नहीं जान सके। जब उनकी शक्ति छीन ली गई तो वह मन ही मन पश्चाताप करने लगे।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
उन्होंने आपकी शरण में आकर आपकी कीर्ति का गुणगान किया तथा जय-जय-जय जगदम्बा भवानी का जप किया।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।।
हे आदि जगदम्बा जी! तब आपने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति उन्हें लौटाने में देर न की।
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।।
हे माँ! अनेक संकटों ने मुझे चारों ओर से घेर लिया है। आपके अलावा इन दुखों को कौन दूर कर पाएगा?
आशा तृष्णा निपट सतावें।
मोह मदादिक सब बिनशावें।।
हे माँ! आशा और अभिलाषा मुझे सताती रहती हैं। मोह, अहंकार, काम, क्रोध और ईर्ष्या भी व्यक्ति को दुखी बनाते हैं।
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।।
हे भवानी! मैं तुम्हें एक मन से याद करता हूं। आप मेरे शत्रुओं का नाश कर दो।
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला।।
हे दया बरसाने वाली अम्बे माँ! मुझ पर कृपा दृष्टि करें और मुझे रिद्धि-सिद्धि आदि प्रदान करके प्रसन्न करें।
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ।।
हे माँ! जब तक मैं जीवित हूं, आपकी कृपा दृष्टि मुझ पर सदैव बनी रहे और मैं सभी को आपकी महिमा सुनाता रहूं।
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै।।
जो भी भक्त प्रेम और भक्तिपूर्वक दुर्गा चालीसा का पाठ करेगा, वह सभी सुखों को भोगकर परम पद को प्राप्त करेगा।
देवीदास शरण निज जानी।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी।।
हे जगदम्बा! हे भवानी! ‘देवीदास’ को अपनी शरण में लो और उसे आशीर्वाद दो।
।।दोहा।।
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक।।
।।इति श्री दुर्गा चालीसा।।
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श्री दुर्गा चालीसा के नियम/विधि
“श्री दुर्गा चालीसा” का पाठ करते समय कुछ नियमों और विधियों को ध्यान में रखना चाहिए:
- शुद्धि एवं स्नान: श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने से पहले शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए स्नान कर साफ कपड़े पहनना उचित रहता है।
- पूजा का स्थान: दुर्गा चालीसा का पाठ करते समय किसी पवित्र पूजा स्थल का चयन करें, जैसे मंदिर या पूजा कक्ष।
- समय: इस स्तोत्र का पाठ सुबह 4:00 बजे से 6:00 बजे तक किया जा सकता है, हालाँकि इसे व्यक्ति की अपनी जरूरत और समय के अनुसार भी किया जा सकता है।
- पाठ का अभ्यास: दुर्गा चालीसा का पाठ हमेशा समर्पण और भक्ति भाव से करें। पाठ के नियमित अभ्यास से अधिक आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
- आरती और प्रसाद: पाठ के बाद मां दुर्गा की आरती करें और पूजा से प्राप्त प्रसाद बांट दें।
- आपकी भावनाएँ: पाठ करते समय अपनी भावनाओं को ध्यान में रखें और माँ दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण की भावना को जीवंत करें।
- नियमितता: नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करना अच्छा होता है, खासकर नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान।
- समूह पाठ: यदि संभव हो तो व्यवस्थित और समूह तरीके से दुर्गा चालीसा पढ़ने का प्रयास करें, जो सामाजिक और आध्यात्मिक भावना को बढ़ावा देता है।
दुर्गा चालीसा का महत्व
दुर्गा चालीसा एक आध्यात्मिक भजन है जो माँ दुर्गा की महिमा, शक्ति और दिव्य गुणों का वर्णन करता है। इसका पाठ करने से भक्त अपनी आध्यात्मिक एवं आत्मिक उन्नति के लिए प्रेरित होते हैं तथा माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। यह दुर्गा पूजा के अवसर पर माँ दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और पूजा के दौरान देवी के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
नवरात्रि के दौरान जब नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा और आराधना की जाती है तो दुर्गा चालीसा का पाठ विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इसके माध्यम से भक्तों को मां दुर्गा के प्रति उनकी विशेष भक्ति का अभिनन्दन किया जाता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करके भक्तों का उद्देश्य मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। भक्त इसके माध्यम से सुख, समृद्धि, खुशहाली और विश्व शांति के लिए मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगते हैं।
दुर्गा चालीसा पौराणिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और हिंदू धर्म के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक साहित्य मानी जाती है। इन सभी कारणों से, दुर्गा चालीसा हिंदू धर्म में एक प्रमुख धार्मिक पाठ है और माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की आस्था, भक्ति और आशीर्वाद की कामना का प्रतीक है।
श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लाभ
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह ध्यान और समर्पण का एक माध्यम है और आपको आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ने में मदद करता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मानसिक चिंता कम होती है और शांति का एहसास होता है। यह मानसिक स्थिरता को बढ़ावा देता है और आत्मा को स्पष्टता देता है।
मां दुर्गा के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव से दुर्गा चालीसा का पाठ करके आप उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पाठ आपको जीवन की कठिनाइयों और दुखों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है और उनसे उबरने में मदद करता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आपका जीवन संतुलित रहता है और विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने में मदद मिलती है। यह पाठ आपके आध्यात्मिक संबंध को मजबूत बनाता है और आपके परिवार के बीच आध्यात्मिक वातावरण को बढ़ावा देता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आपकी भक्ति और सेवा भावना मजबूत होती है और आपको समाज में योगदान देने की प्रेरणा मिलती है। ऐसे फायदों के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ जीवन को आध्यात्मिक और मानसिक दृष्टि से सुखी और समृद्ध बनाता है।
दुर्गा चालीसा आरती
दुर्गा चालीसा का पाठ करने के बाद आप मां दुर्गा की आरती कर सकते हैं। यहाँ पर दुर्गा माता की आरती का पाठ दिया गया है:
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥
मांग सिंदूर विराजत, टिको मृगमणी।
माइके जन्मां की जीती, शोभित यही॥
कानन कुंडल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती॥
शुभ्र वस्त्रावरां, छवि ननाक पिय को।
चौणक रजां मलकिणी, जय विक्राल को॥
चंद्र मुण्डा सोहे, शोभा यह चढ़ावे।
कंठ केशरी वज्र, हंस कटि सौभाग्यवती॥
आंग गड़ायें, छूड़ा बढ़ायें।
सोहें श्रंगर, रजत मोकुट भवानी॥
काँपें रूप लक्ष्मी, तुम्हें माई दरसन को।
डारिया ब्रजदल बड़ि बिच आसगो दूर को॥
तुम्हारे भवन में जो यह आएं, ये अंहियां उदासी दूर को।
तुम्हारे बेटे की मां को, उसके मन की शांति को॥
तुम्हारे योग्य स्वामी, तुम्हारे बच्चों का मां को।
तुम्हें पूजत हर ब्राम्हा, तुम सादन विष्णु मोकुट धार को॥
मंद हस्त में तुम्हारे, ब्राम्हण अघनय को।
रुप सुन्दर मुकुट धर, लाल मुञ्ड माला तिन को॥
तारा छाया शीश मुख पर, विप्रवहिनी वीणा वाजत रंग धर को।
सिर अनकुश गदा धर, गंड प्रसंग विलसत कृपाल।
भगतन का मन रंग धरत, जन उब उब जाए दिन बित कर रो।
मां दुर्गा चालीसा पठ विधि, गीताते हो तुम त्रिनेत्र मंक नमो॥
मां दुर्गा की पूजा के दौरान इस आरती का पाठ किया जाता है और उनकी महिमा का गुणगान किया जाता है।
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