संत कबीर दास जी के 350+ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित – Sant Kabir Das Ji Ke Dohe in Hindi

Sant Kabir Das Ji Ke Dohe in Hindi - संत कबीर दास जी के 350+ प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय ।।

कबीर दास जी कहते हैं कि हर कोई दुख में भगवान को याद करता है लेकिन सुख में कोई याद नहीं करता. अगर आप इसे सुख में याद करते हैं तो दुःख क्यों होना चाहिए?

तिनका कबहुं ना निंदिये, जो पांव तले होय ।
कबहुं उड़ आंखों मे पड़े, पीर घनेरी होय ।।

तिनके को भी बहुत मामूली नहीं माना जाना चाहिए भले ही वह आपके पैरों के नीचे क्यों न हो क्योंकि अगर वह आपकी आंखों में उड़ जाता है, तो बहुत दर्द देता है.

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दें, मन का मनका फेर ।।

कबीरदास जी कहते हैं कि भले ही माला फेरते-फेरते युग बीत गया हो, लेकिन मन का कपट दूर नहीं हुआ है. अरे, मनुष्य हाथ का मनका छोड़ दे और अपने मन रूपी मनके को फेर ले, अर्थात मन को सुधार ले.

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय ।।

गुरु और भगवान दोनों मेरे सामने खड़े हैं, मैं किसके पैरों पर गिरूं? क्योंकि दोनों ही मेरे लिए समान हैं. कबीर जी कहते हैं कि यह गुरु की ही बलिहारी है जिन्होंने हमें भगवान की ओर इशारा करते हुए मुझे गोविंद (भगवान) के आशीर्वाद के योग्य बनाया.

कबीर माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥

कबीरदास जी ने कहा है कि माला मन के लिए है और बाकी सब कुछ एक दिखावा है. यदि माला फेरने से भगवान प्राप्त होते, तो रहट की गर्दन को देखें, माला कितनी बार फिरती है. मन की माला फेरने से ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है.

सुख में सुमिरन न किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीरा ता दास की, कौन सुने फ़रियाद ॥

सुख में तो कभी याद किया नहीं और जब दुख आया तो याद करने लगे, कबीर दास जी कहते हैं कि उस दास की प्रार्थना कौन सुनेगा.

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मै भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय ॥

कबीरदास जी भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे परमेश्वर आप मुझे इतना दे दें जिससे मेरे परिवार का गुजारा हो जाए. मुझे भी भूखा न रहना पड़े और मेरे दरवाजे से कोई अतिथि या भिक्षु भी भूखा नहीं लौटे.

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

कबीरदास जी ने कहा है कि, हे प्राणी, हर जगह भगवान के नाम की लूट मची हुई है, अगर आप इसे लेना चाहते हैं, तो ले जाइए, जब समय निकल जाएगा तब तू पछताएगा. यानी जब आपका जीवन निकल जाएगा, तो आप भगवान के नाम का जाप कैसे कर पाएंगे.

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

साधु से उसकी जाति के बारे में न पूछें, बल्कि उससे ज्ञान के बारे में पूछें. इसी तरह, तलवार की कीमत पूंछे म्यान को पड़ा रहने दो, क्योंकि महत्व तलवार का होता है म्यान का नहीं.

जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ तहां पाप ।
जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा तहां आप ॥

जहां दया है, वहां धर्म है और जहां लालच है वहां पाप है, और जहां क्रोध है वहां काल (नाश) है. और जहां क्षमा है, वहां स्वयं परमात्मा है.

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ॥

हे मन! धीरे-धीरे सब हो साध्य जाएगा. माली पेड़ को सैकड़ों घड़े पानी देता है, लेकिन फल तो ऋतु के आने के बाद ही प्राप्त होता है. यानी धैर्य रखने से और सही समय आने पर कार्य पूरा हो जाता है.

कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि वे पुरुष अंध हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं, क्योंकि भगवान के क्रोधित होने पर गुरु का सहारा तो होता है, लेकिन गुरु के नाराज होने पर कोई ठिकाना नहीं होता है.

पांच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिनु, मुक्ति कैसे होय ॥

रोजाना के आठ में से पांच प्रहर तो काम धंधे में बिता दिए और तीन प्रहर सो गए. इस प्रकार आपने हरि भजन के लिए एक भी प्रहर नहीं रखा, तो आप मोक्ष कैसे प्राप्त कर पाएंगे।

कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥

कबीरदास जी कहते हैं, हे जीव! आप सोते रहते है (अपनी चेतना जगाएं) उठें और भगवान से प्रार्थना करें क्योंकि, जिस समय यमदूत आपको अपने साथ ले जायेंगे, तब आपका शरीर एक खाली म्यान की तरह पड़ा रहेगा.

शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की संपदा, रही शील मे आन ॥

जो शील (शांत और सदाचारी) प्रकृति का होता है मानो वह सब रत्नों की खान है क्योंकि तीनों लोकों की माया शीलवन्त (सदाचारी) व्यक्ति में ही निवास करती है।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गया शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का मन और उसमें फंसी हुई माया कभी नष्ट नहीं होती है और उसकी आशा और इच्छायें भी कभी समाप्त नहीं होती हैं, केवल दृश्यमान शरीर ही मर जाता है. यही कारण है कि मनुष्य हमेशा दुःख के समुद्र में डूबा रहता है.

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
इक दिन ऐसा आएगा, मै रौंदूंगी तोय ॥

मिट्टी कुम्हार से कहती है, कि तू क्या मुझे रौंदता है. एक दिन ऐसा आएगा कि मैं तुम्हें रौंद दूंगी. अर्थात मृत्यु के बाद मानव शरीर इसी मिट्टी में मिल जाएगा।

रात गंवाई सोय के, दिन गंवाई खाय ।
हीरा जनम अनमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥

रात तो सोकर गंवा दी और दिन खाने-पीने में बिता दिया. यह हीरे जैसा कीमती मानव जन्म कौड़ियो में बदल दिया.

नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥

कबीरदास जी कहते हैं, हे प्राणी! जागो, नींद तो मौत की निशानी है. अन्य रसायनों को छोड़कर, आपको भगवान के नाम रूपी रसायनों में मन लगाना चाहिए. 

जो तोकू काटा बुवे, ताहि बोय तू फूल । 
तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥

आप उस व्यक्ति के लिए भी फूल बोये जो आपके लिए कांटे बोता है. आपको फूलों के बदले फूल मिलेंगे और जो आपके लिए कांटे बोएगा उसे त्रिशूल की तरह तेज कांटे मिलेंगे. इस दोहे में, कबीरदास जी ने यह सिखाया है कि, हे मनुष्य, तुम सबके लिए अच्छा करते रहो, जो लोग तुम्हारे लिए बुरा करते हैं, वे स्वयं उनके कुकर्मों का फल प्राप्त करेंगे.

दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारंबार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥

यह मानव जन्म बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है और यह शरीर बार-बार नहीं पाया जाता है. जिस तरह पेड़ से पत्ता झड़कर गिरता है, तो उसे फिर कभी पेड़ में वापस नहीं लगाया जा सकता. इसलिए, इस दुर्लभ मानव जन्म को पहचानें और अच्छे कार्यों में संलग्न हों.

आए हैं सो जाएंगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर ॥

जो आया है, वह निश्चित रूप से इस दुनिया से जाएगा, चाहे वह राजा हो, कंगाल हो या फकीर, सभी को इस दुनिया से जाना ही है, लेकिन कुछ लोग सिंहासन पर बैठकर जाएंगे और कुछ जंजीर में बंधकर जाएंगे. यानी जो अच्छे कर्म करेंगे, वे सम्मान के साथ दुनिया छोड़ जाएंगे और जो बुरा कर्म करेंगे, वे बुराई की जंजीरों में बंधकर जाएंगे.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

जो कार्य कल करना चाहते है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो. समय और परिस्थितियां एक पल में बदल सकती हैं, एक पल के बाद प्रलय हो सकता है, इसलिए कल तक किसी भी कार्य को स्थगित न करें.

मांगन मरण समान है, मति मांगो कोई भीख ।
मांगन ते मरना भला, यही सतगुरु की सीख ॥

किसी से कुछ मांगना मरने के बराबर है, इसलिए किसी से भीख मत मांगो. सतगुरु का यह उपदेश है कि मांगने से मरना अच्छा है, इसलिए यह कोशिश करनी चाहिए कि हमें जो कुछ भी चाहिए वह अपनी मेहनत से प्राप्त हो न की किसी से मांगकर लेना पड़े. 

जहां आपा तहां आपदा, जहां संशय तहां रोग ।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥

जहां मनुष्य में घमंड होता है, तब उस पर आपत्तियां आना शुरू हो जाती हैं, और जहां संदेह होता है, वहां निराशा और चिंता छा जाती है. कबीरदास जी कहते हैं कि इन चार रोगों को धीरज से ही मिटाया जा सकता है.

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भागत के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥

माया और छाया एक जैसी ही हैं, यह कोई-कोई ही जानता है, यह उन लोगों के पीछे भागती है जो निरंतर भागते रहते हैं, और जो उसके सामने खड़ा होता है और उसका सामना करता है, तो फिर वह खुद भाग जाती है.

आया था किस काम को, तु सोया चादर तान ।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि ए गाफिल! तू चादर तान कर सो रहा है, अपनी इंद्रियों को कार्यक्षम कर और अपनी पहचान कर कि तुम किस उद्देश्य से आए थे, और तू कौन है? खुद को पहचान और अच्छे कर्म कर.

क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
सांस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ॥

इस शरीर का क्या भरोसा है, यह तो हर पल मिटता जा रहा है, इसलिए, अपनी हर सांस पर हरी का सुमिरन करो और कोई दूसरा उपाय नहीं है.

गारी ही सों ऊपजे, कलह, कष्ट और मींच । 
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नीच ॥

गालियां (दुर्वचन) कलह, दुःख और मृत्यु की ओर ले जाती हैं, जो गालियां सुनकर और उसे पुष्पांजलि मानकर आगे बढ़ता है, वही साधु, सज्जन व्यक्ति होता है. और जो गाली देने के बदले में गाली देने लगता है, वह नीच प्रकृति का होता है.

दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय । 
बिना जीव की सांस सों, लौह भस्म हो जाय ॥

किसी को भी किसी कमजोर पर अत्याचार नहीं करना चाहिए, इसका कहर बहुत बड़ा होता है जैसा कि आपने देखा होगा, बिना जीव (बेजान) की धौंकनी (आग को हवा देने वाला पंखा) के सांस से लोहा भी भस्म जाता है.

दान दिए धन ना घटे, नदी न घटे नीर ।
अपनी आंखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥

कबीर जी कहते हैं कि आप ध्यान से देखिए कि नदी का पानी पीने से घटता नहीं है और दान देने से धन कम नहीं होता है.

अवगुन कहूं शराब का, आपा अहमक साथ । 
मानुष से पशुआ करे, दाय गांठ से खात ॥

मैं तुमसे शराब की बुराई करता हूं कि शराब पीने से आप (खुद) पागल हो जाते हैं, आप मूर्ख और जानवर बन जाते हैं और यहां तक कि आपके जेब से पैसा भी खर्च हो जाता है.

बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ ।
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥

जिस तरह बाजीगर अपने बंदर द्वारा तरह-तरह के नृत्य करता है और उसे अपने साथ रखता है, उसी तरह मन भी जीव के साथ होता है, वह भी जीव को उसके इशारे पर भी चलाता है.

अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट ।
चुम्बक बिना निकले नहीं, कोटि पट्ठ्न को फूट ।

जिस प्रकार तीर का भाला शरीर में अटक जाता है और इसे बिना चुंबक के नहीं निकाला जा सकता, उसी प्रकार आपके मन में जो खोट (बुराई) है वह किसी महात्मा के बिना नहीं निकल सकती, इसलिए आपको एक सच्चे गुरु की आवश्यकता होती है.

कबीरा जपना काठ कि, क्या दिखलावे मोय ।
हृदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥

कबीर जी कहते हैं कि इस लकड़ी की माला से भगवान का जप करने से क्या होता है? यह क्या असर दिखा सकता है? यह सिर्फ दिखावा है और कुछ नहीं. जब तक तुम्हारा मन (हृदय) भगवान का जप नहीं करता, तब तक जप का कोई फायदा नहीं है.

पतिव्रता मैली, काली कुचल कुरूप ।
पतिव्रता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि भले ही पतिव्रता स्त्री चाहे मैली-कुचैली या कुरूप हो लेकिन पतिव्रता स्त्री की इस एकमात्र विशेषता पर समस्त सुंदरताएं न्योछावर हैं.

वैद्य मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि बीमार की मृत्यु हो गई और जिस वैद्य का उसे सहारा था वह भी मर गया. यहां तक कि पूरी दुनिया भी मर गई, लेकिन वह नहीं मरा, जिसे केवल राम का आसरा था. अर्थात जो राम के नाम का जाप करता है वह अमर है.

हद चले सो मानव, बेहद चले सो साध ।
हद बेहद दोनों ताजे, ताको भाता अगाध ॥

मर्यादा तक काम करने वाला मनुष्य होता है. जो सीमा से अधिक की स्थितियों में ज्ञान को बढ़ाता है वह साधु है. और जो सीमा से अधिक कार्य करता है, विभिन्न विषयों में जिज्ञासा कर के साधना करता रहता है, उसका ज्ञान बहुत अधिक होता है.

राम रहे वन भीतरे, गुरु की पूजी न आस ।
कहे कबीर पाखंड सब, झूठे सदा निराश ॥

गुरु की सेवा के बिना और गुरु की शिक्षा के बिना, झूठे लोगों ने सीखा है कि राम वन में रहते हैं, इसलिए भगवान को वन में प्राप्त किया जा सकता है. कबीर दास जी कहते हैं कि यह सब पाखंड है. झूठे लोग कभी भगवान को नहीं पा सकते. वे हमेशा निराश रहेंगे.

जाके जिव्या बंधन नहीं, हृदय में नहीं सांच ।
वाके संग न लागिये, खाले वटिया कांच ॥

जिसे अपनी जीभ पर नियंत्रण नहीं है और जिसके मन में सच्चाई भी नहीं है, ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहिए. ऐसे इंसान के साथ रहकर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है.

तीरथ गए थे एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ॥

कबीर कहते हैं कि तीर्थ यात्रा करने से आपको एक फल प्राप्त होता है और संत महात्मा से चार फल मिलते हैं. अगर आपको सतगुरु मिले तो आपको सभी पदार्थ प्राप्त होते हैं और किसी बात की चिंता नहीं रहती है.

सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन ।
प्राण तजे बिन बिछड़े, संत कबीर कह दिन ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि जैसे मछली को एक पल के लिए भी पानी से अलग कर दिया जाता है, तो उसे चैन नहीं पड़ता. ऐसे ही सभी को हर समय भगवान को याद करना चाहिए.

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय ।
मैं खींचत हूं आपके, तू चला जमपुर जाए ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि मैं तुम्हें अपनी ओर खींचता हूं, लेकिन तू दूसरे के हाथ बिका जा रहा है और यमलोक की ओर चला जा रहा है. मेरे समझाने के बाद भी तू नहीं समझता.

हंसा मोती विणन्या, कुंचन थार भराय ।
जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥

मोती को सोने की थाल में बेचा जा रहा है. लेकिन जो लोग उनके मूल्यों को नहीं जानते हैं, उन्हें क्या करना है, उन्हें तो हंस रूपी जौहरी ही पहचान कर ले सकता है.

कहना था सो कह चले, अब कुछ कहा न जाय ।
एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ॥

मुझे जो कहना था वह मैंने कह दिया है और अब मैं जा रहा हूं, मुझसे अब कुछ और कहा नहीं जाता. एक ईश्वर के अलावा सब नश्वर है और हम सब इस संसार को त्याग कर चले जायेंगे. लहरें चाहे जितनी भी ऊंची उठें, वे वापस उसी तरह नदी में समा जाएंगी, उसी प्रकार हम सभी को भगवान के पास वापस लौट जाना है.

वस्तु है सागर नहीं, वस्तु सागर अनमोल ।
बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल ॥

ज्ञान की एक अमूल्य वस्तु आसानी से उपलब्ध तो होती है, लेकिन कोई भी इसे लेने में सक्षम नहीं है क्योंकि ज्ञान रूपी रत्न अच्छे सत्कर्म और सेवा के बिना उपलब्ध नहीं होता है. लोग कर्म किए बिना ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, इसलिए वे इस कीमती चीज से वंचित रह जाते हैं.

कली खोटा जग आंधरा शब्द न माने कोय ।
चाहे कहूं सत आईना, जो जग बैरी होय ॥

यह कलयुग खोटा है और पूरी दुनिया अंधी है, कोई भी मेरी बातों पर विश्वास नहीं करता है, लेकिन जिसे मैं अच्छी बात बताता हूं वह मेरा दुश्मन बन जाता है.

कामी, क्रोधी, लालची इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति, वरन, कुल खोय ॥

कबीरदास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी, लोभी इन तीनों से भक्ति नहीं हो सकती. केवल एक शूरवीर व्यक्ति ही भक्ति कर सकता है, जिसने जाति, वर्ण और कुल के प्रेम को त्याग दिया है.

जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय । 
सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ॥

जागते हुए भी सोये हुए के समान हरि को याद करते रहना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि हरि नाम का तार टूट जाए. अर्थात जीव को जागते-सोते हर समय भगवान का स्मरण करना चाहिए।

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय ।
सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ॥

कबीरदास जी कहते हैं – साधु को सूप की तरह होना चाहिए, जिस तरह से सूप अनाज के दानों को अपने पास रखता है और छिलकों को हवा में उड़ा देता है. इसी प्रकार, एक साधु (जो भगवान की भक्ति करता है) को केवल भगवान का ध्यान करना चाहिए और व्यर्थ के माया मोह का त्याग कर देना चाहिए.

संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे भाग २

संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे भाग ३

संत कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे भाग

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