Sanskrit Suktiyan Hindi Arth Sahit / Sanskrit proverbs with Hindi meaning – सूक्तियां जिन्हे हम हिंदी में मुहावरे या कहावतें भी कहते है, वास्तव में मौखिक ज्ञान का सार होते हैं और इनके माध्यम से कम शब्दों में बेहतर ज्ञान प्राप्त होता है।
हमारे विद्वानों, महापुरुषों और नीतिज्ञों के अनुभव और परिपक्व विचारों का समावेश आप लोकोक्तियों (सूक्तियों) में देख सकते हैं। इससे हमारा जीवन पथ सार्थक होता है।
अर्थपूर्ण नीतिवचन (सूक्तियां) हमारी मानसिकता और हमारे शुद्ध विचारों का निर्माण करते हैं, जिनका पालन करके जीवन को आसानी से जिया जा सकता है। वह एक बेस्ट फ्रेंड की तरह जीवन में हमारा मार्गदर्शन करती हैं।
संस्कृत सूक्तियां (मुहावरे) हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit Suktiyan Hindi Arth Sahit
आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ 100 से भी ज्यादा सूक्तियां (कहावतें) शेयर करने जा रहे हैं जिन्हें आपको अपने जीवन में जरूर अपनाना चाहिए।
अतिथि देवो भव।
अर्थ- अतिथि हमारे लिए भगवान के समान होता है।
अति सर्वत्र वर्जयेत।
अर्थ- किसी भी प्रकार की अति का त्याग कर देना चाहिए।
अहिंसा परमो धर्म:।
अर्थ- अहिंसा सबसे बड़ा (परम) धर्म है।
विनाशकाले विपरीत बुद्धिः।
अर्थ- जब बुरे दिन आते हैं तो बुद्धि विपरीत हो जाती है।
असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय।
अर्थ- वह ज्ञान जो असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
वसुधैव कुटुम्बकम।
अर्थ- पृथ्वी के सभी निवासी एक परिवार हैं।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
अर्थ- सभी स्वस्थ रहें।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with meaning
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थ- हमारी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
लोभः पापस्य कारणम्।
अर्थ- लोभ ही पाप का कारण है।
सत्यमेव जयते नाऽनृतम्।
अर्थ- सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं।
कः परः प्रियवादिनाम्।
अर्थ- प्रिय बोलने वालों से पराया कौन होता है?
परोपकाराय सतां विभूतयः।
अर्थ- सज्जनों का धन दूसरों के कल्याण के लिए होता है।
विद्यारत्नं महाधनम्।
अर्थ- ज्ञान रत्न ही सबसे बड़ा धन है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
अर्थ- कोई भी काम परिश्रम से पूरा होता है, चाहने से नहीं।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan Hindi anuvad sahit
जीवेम शरद: शतम्।
अर्थ – हम सब सौ वर्ष की आयु प्राप्त करें और सौ वर्ष तक जीवित रहें।
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति।
अर्थ- कायर पुरुष भाग्य के भरोसे रहते हैं।
परोपकाराय सतां विभूतयः:।
अर्थ- सज्जनों की प्रतिष्ठा सदैव परोपकार के लिए होती है।
सम्पूर्णकुम्भो न करोति शब्दम्।
भरा हुआ घड़ा नहीं छलकता।
यत्ने कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः।
अर्थ- यदि प्रयत्न करने पर भी सफलता न मिले तो देखना चाहिए कि दोष कहां है?
नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
अर्थ – ज्ञान से बढ़कर इस संसार में कुछ भी पवित्र नहीं है।
भोगो भूषयते धनम्।
अर्थ- धन की महिमा उसके उपभोग में है।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with arth
विद्या विहीन पशु।
अर्थ- जो मनुष्य ज्ञान से रहित (ज्ञान को ग्रहण करने में सक्षम नहीं) है वह पशु के समान है।
विद्या धर्मेण शोभते।
अर्थ- ज्ञान धर्म से सुशोभित होता है।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
अर्थ- आलस्य घोर शत्रु है।
मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
अर्थ- कोई भी दुखी न हो अर्थात सभी सुखी रहें।
नास्तिको वेदनिन्दकः।
अर्थ- वेदों की आलोचना करने वाला व्यक्ति नास्तिक होता है।
मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।
अर्थ- दूसरे के धन का लोभ नहीं करना चाहिए।
योगः कर्मसु कौशलम्।
अर्थ – समता रूपी योग ही कर्म बंधन से छूटने का एकमात्र उपाय है।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan arth sahit
सन्तोष एव पुरुषस्य परमनिधानम्।
अर्थ- संतोष मनुष्य का सबसे बड़ा धन है।
सहसा विदधीत न क्रियाम्।
अर्थ- बिना सोचे समझे काम नहीं करना चाहिए।
यस्तु क्रियावान् पुरुषः स एव।
अर्थ- जो सक्रिय है, वही पुरुष है।
अशांतस्य कुत: सुखम्।
अर्थ- अशांत व्यक्ति को कभी सुख नहीं मिल सकता।
मातृवत् परदारेषु।
अर्थ- दूसरे की पत्नी माता के समान होती है।
अनार्य: परदारव्यवहार:।
अर्थ- पराई स्त्री के बारे में बात करना अपराध है।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with meaning
मा ब्रूहि दीनं वचः
अर्थ- दीन वचन न बोलें।
मानो हि महतां धनम्।
अर्थ- सम्मान ही पुरुषों का धन है।
वीरभोग्या वसुन्धरा।
अर्थ- वीर ही पृथ्वी का भोग करते हैं।
वचने का दरिद्रता।
अर्थ- मीठा बोलने में कैसी दरिद्रता है।
नास्ति क्रोधसमो रिपुः।
अर्थ- क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है।
शत्रोरपि गुणा वाच्याः।
अर्थ- शत्रु के गुणों का भी उल्लेख करना चाहिए।
गतस्य शोचनं नास्ति।
अर्थ- बीती बातों को भुला दें।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan Hindi anuvad sahit
अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति।
अर्थ- बिना परिश्रम के बलवान भी कुछ नहीं कर सकता।
शीलं हि सर्वनरस्य भूषणम्।
अर्थ- शीलता मनुष्य का सौंदर्य है।
अनुलड़्घनीय: सदाचार:।
अर्थ- सदाचार का कभी उल्लंघन न करें।
बुभुक्षितः किं न करोति पापम्।
अर्थ- भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं कर सकता?
अनतिक्रमणीया नियतिरिति।
अर्थ- भाग्य को कोई नहीं टाल सकता।
शठे शाठ्यं समाचरेत्।
अर्थ- दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए।
अत्यादर: शंकनीय:।
अर्थ- अत्यधिक आदर-सम्मान संदेह पैदा करता है।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with arth
शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।
अर्थ- शरीर धर्म का प्रथम साधन है।
आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः।
अर्थ- वेद भी दुष्टों को पवित्र नहीं करते।
सुलभा रम्यता लोके दुर्लभो हि गुणार्जनम्।
अर्थ- संसार में सौंदर्य तो आसानी से मिल जाता है, पर गुण प्राप्त करना कठिन है।
महाजनो येन गतः स पन्थाः।
अर्थ- महापुरुष जिस मार्ग से जाते हैं, वही श्रेष्ठ मार्ग है।
आत्मज्ञानं परमज्ञान।
अर्थ- सबसे बड़ा ज्ञान स्वयं को जानना है।
ज्ञानमेव परमो धर्मः।
अर्थ- ज्ञान ही सबसे बड़ा धर्म है।
स्वाध्यायान्मा प्रमदः।
अर्थ- स्वाध्याय में आलस्य न करें।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan arth sahit
ओदकान्तं स्निग्धो जनोsनुगन्तव्य:।
अर्थ- शारदर्गव कहते हैं- भगवान को हमेशा प्रिय व्यक्ति का साथ देना चाहिए।
गरीयषी गुरो: आज्ञा।
अर्थ- गुरुजनों की आज्ञा महान होती है, उनका पालन करना चाहिए।
दु:खशीले तपस्विजने कोS भ्यर्थ्यताम्?
अर्थ– तपस्वियों से प्रार्थना नहीं करे वह पहले से कष्ट सहन करते है।
भोगीव मन्त्रोषधिरुद्धवीर्य:।
अर्थ-अपराधी अपने कुकृत्यों के कारण भीतर ही भीतर जलते रहते हैं।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।
अर्थ- ऐसी बातें कहने वाले दुर्लभ हैं जो अप्रिय हैं लेकिन परिणाम में लाभकारी हैं।
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य।
अर्थ- धन की इच्छा से मनुष्य कभी तृप्त नहीं होता, उसका लोभ बढ़ता ही जाता है।
विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।
अर्थ- मूर्खों का चुप रहना ही श्रेयस्कर होता है।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with meaning
सर्वे गुणा कांचनम् आश्रयन्ते।
अर्थ- सोने में सभी गुण निहित होते हैं।
छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्।
अर्थ- राजा दिलीप ने रानी नंदिनी को छाया की तरह पालन किया है।
अतिस्नेह: पापशंकी।
अर्थ- अत्यधिक प्रेम भी पाप की आशंका को जन्म देता है।
अवेहि मां कामुधां प्रसन्नाम्।
अर्थ- कामधेनु गाय – मैं प्रसन्न हूं, वर मांगो!
गुर्वपि विरह दु:खमाशाबन्ध: साहयति।
अर्थ- अनसूया शकुन्तला से कहती हैं – आशा का बन्धन वियोग के कठोर दु:ख को सहने की शक्ति देता है।
धूमाकुलितदृष्टेरपि यजमानस्य पावके एवाहुति: पपिता।
अर्थ- धुएं से व्याकुल दृष्टि वाले मेहमान की आहुति ठीक अग्नि में ही पड़ी।
प्रसादचिह्नानि पुर:फलानि।
अर्थ- पहले सुख के लक्षण प्रकट होते हैं, उसके बाद फल की प्राप्ति होती है।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan Hindi anuvad sahit
बहुभाषिण: न श्रद्दधाति लोक:।
अर्थ- जो ज्यादा बोलता है उस पर लोग विश्वास नहीं करते।
अर्थो हि कन्या परकीय एव।
अर्थ- कन्या हमारे लिए पराई वस्तु के समान होती है।
क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः।
अर्थ- जो व्यक्ति हर समय नवीनता धारण किए रहता है वही रमणीयता का स्वरूप कहलाता है।
नास्ति विद्या समं चक्षु।
अर्थ – ब्रह्मविद्या अर्थात् महापुरुष के समान संसार में दूसरा कोई नेत्र नहीं है।
शठे शाठ्यं समाचरेत्।
अर्थ- मूर्ख व्यक्ति के साथ कठोर व्यवहार नहीं करना चाहिए।
क: कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले।
अर्थ- जब मृत्यु निकट हो तो कोई किसी की रक्षा नहीं कर सकता।
अनतिक्रमणीयो हि विधि:।
अर्थ- भाग्य निश्चित है, इसे हम कभी नहीं बदल सकते।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with arth
काले खलु समारब्धा: फलं बध्नन्ति नीतय:।
अर्थ- समय पर सही नीति सदैव सफल होती है।
दिनक्षपामध्यगतेव संध्या।
अर्थ- वह दिन और रात के बीच की संध्या के समान सुन्दर है।
बलवान् जननीस्नेह:।
अर्थ- मां की ममता सब पर प्रबल (शक्ति देने वाली) है।
अहो दुरंता बलवद्विरोधिता।
अर्थ- बलवान से झगड़ा नहीं करना चाहिए।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
अर्थ- हे मनुष्य! उठो, जागो और महापुरुषों की संगति में परमेश्वर को जानो।
नास्ति मातृसमो गुरु।
अर्थ- हमारी माता के समान कोई दूसरा गुरु नहीं है (मां प्रथम गुरु है)।
न हि प्रियं प्रवक्तुमिच्छन्ति मृषा हितैषिण:।
अर्थ- जो कल्याण चाहते हैं, वे किसी से आशा (इच्छा) नहीं करते हैं।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan arth sahit
सरस्वती श्रुति महती महीयताम्।
अर्थ- ज्ञानी व्यक्ति की वाणी का पूरा सम्मान होता है।
अप्रार्थितानुकूल: मन्मथ: प्रकटीकरिष्यति।
अर्थ- प्रार्थना के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता, कामदेव (वासना) शीघ्र ही उसे प्रकट कर देंगे।
अनुपयुक्तभूषणोsयं जन:।
अर्थ – आभूषणों के प्रयोग से अनभिज्ञ।
आर्जवं हि कुटिलेषु न नीति:।
अर्थ- कुटिल लोगों के लिए सरलता की नीति नहीं अपनानी चाहिए।
परित्यक्त: कुलकन्यकानां क्रम:।
अर्थ- सभी कन्याएं गुरुजनों की सम्मति से ही योग्य वर का चुनाव करती हैं।
एको रस: करुण एव निमित्तभेदात्।
अर्थ – एक करुणा रस से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त हो सकते हैं।
गुणवते कन्यका प्रतिपादनीया।
अर्थ- हमें अपनी कन्या किसी गुणी पुरुष को देनी चाहिए।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with meaning
दु:खं न्यासस्य रक्षणम्।
अर्थ- दूसरे के धन की रक्षा करना कष्टकारी हो सकता है।
प्राणैरुपक्रोशमलीमसैर्वा।
अर्थ- राज्य से या निन्दा युक्त मलिन जीवन का क्या लाभ होता है।
बलवती हि भवितव्यता।
अर्थ – होनहार बलवान होते हैं।
सत्सड़्गति: कथन किं न करोति पुंसाम्।
अर्थ- अच्छी संगति से मनुष्य का भला नहीं होता।
अपुत्राणां न सन्ति लोकाशुभा:।
अर्थ- दंपतियों को पुत्र की प्राप्ति होती है, यह शुभ माना जाता है।
आचार परमो धर्मः।
अर्थ- हमारा श्रेष्ठ आचरण ही परम (बड़ा) धर्म है।
तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते।
अर्थ- तेजस्वी पुरुषों की आयु का आकलन नहीं किया जाता।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan Hindi anuvad sahit
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।
अर्थ- माता-पिता की अच्छी तरह से सेवा करनी चाहिए।
न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते।
अर्थ- तपस्या (आचरण) के कारण कम उम्र के लोगों का भी सम्मान होता है।
शीलं परं भूषणम्।
अर्थ- सहनशीलता सबसे बड़ा आभूषण है।
अस्यामहं त्वयि च सम्प्रति वीतचिन्त:।
अर्थ- मैं इस वनज्योत्सना के लिए और आपके लिए निश्चिंत हूं।
आचारपूतं पवन: सिषेवे।
अर्थ- झरनों के कणों से सिंचित पवनें आचारों से जुड़ी होती हैं।
तीर्थोदकंक च वह्निश्च नान्यत: शुद्धिमर्हत:।
अर्थ- तीर्थों की शुद्धि जल और अग्नि से होती है, अन्य पदार्थों से नहीं।
उत्सवप्रिया: खलु: मनुष्या:।
अर्थ- मनुष्य को सदैव सुख अच्छा लगता है।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with arth
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्।
अर्थ- दुष्टों और सज्जनों की मित्रता छाया के समान होती है।
न खलु धीमतां कश्चिद्विषयों नाम।
अर्थ- शारद्गर्व कहते हैं- विद्वानों के लिए कुछ भी अज्ञात नहीं है।
वाग्भूषणं भूषणम्।
अर्थ- वाणी रूपी अलंकार सदा बना रहता है, वह कभी नष्ट नहीं होता।
पराभवोsप्युत्सव एव मानिनाम्।
अर्थ– तेजस्वी पुरुष दुसरो की खुशी में उत्सव मानते है।
किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।
अर्थ- सज्जन व्यक्ति के लिए वस्तुएं आभूषण नहीं होती हैं?
स्वभावो दुरतिक्रमः।
अर्थ- स्वभाव हमारे लिए भी दुर्लभ होता है।
अकारणपक्षपातिनं भवन्तं द्रष्ट्म् इच्छति में हृदयम्।
अर्थ- आपके प्रति मेरा स्नेह निःस्वार्थ है, मैं आपसे मिलने के लिए तरस रहा हूं।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan arth sahit
क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढ:।
अर्थ- महर्षि वशिष्ठ के प्रभाव से यमराज भी मुझ पर आक्रमण नहीं कर सकते।
को नामोष्णोदकेन नवमालिकां सिञ्चति।
अर्थ – प्रियंवदा कहती हैं – नवमालिका को गर्म जल से नहीं सींचना चाहिए।
दैवमविद्वांस: प्रमाणयन्ति।
अर्थ- मूर्ख व्यक्ति भाग्य को ही सब कुछ समझता है।
प्रतिबदध्नाति हि श्रेय: पूज्यपूजाव्यतिक्रम:।
अर्थ- पूजनीय की पूजा करने से कल्याण होता है।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
अर्थ- खान-पान और व्यवहार में कोई लज्जा नहीं होनी चाहिए।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवताः।
अर्थ- जिस परिवार में स्त्रियों का सम्मान होता है, उस घर में देवता प्रसन्न रहते हैं।
आलाने गृह्यते हस्ती वाजी वल्गासु गृह्यते। हृदये गृह्यते नारी यदीदं नास्ति गम्यताम्।।
अर्थ- हाथी को खंभे से रोका जाता है। एक घोड़े को लगाम से नियंत्रित किया जाता है और एक महिला को केवल दिल के प्यार से नियंत्रित किया जाता है।
संस्कृत सूक्तियां विथ हिंदी मीनिंग – Sanskrit suktiyan with meaning
दीर्घसूत्री विनश्यति।
अर्थ- जो हर काम में अकारण देर करता है, वह कभी सफल नहीं होता।
साहसे श्री प्रतिवसति।
अर्थ- लक्ष्मी का वास साहस में होता है।
पिण्डेष्वनास्था खलु भौतिकेषु।
अर्थ – ज्ञानियों को स्थूल शरीरों पर विश्वास नहीं होता, यह यश रूपी शरीर की रक्षा करके किया जाता है।
अपसृतपाण्डुपत्रा मुञ्चन्त्यश्रूणीव लता:।
अर्थ- शकुन्तला के पति के घर चले जाने के बाद भी पशु-पक्षी दु:खी हैं। बेलों से पीले पत्ते टूटकर जमीन पर गिर रहे हैं।
चित्रार्पितारम्भ इवावतस्थे।
अर्थ – चित्र में लिखे हुए बाण उद्योग में लगे हुए प्रतीत होते हैं।
धैर्यधना हि साधव:।
अर्थ- सज्जनों का धैर्य ही उनका सबसे बड़ा धन होता है।
न हि सर्व: सर्वं जानाति।
अर्थ- सब लोग सब कुछ नहीं जान सकते।
संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित – Sanskrit suktiyan Hindi anuvad sahit
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः।
अर्थ- मूर्ख व्यक्ति विघ्नों के भय से कार्य प्रारम्भ नहीं करते।
बलवता सह को विरोध:।
अर्थ – बलवान का विरोध नहीं करना चाहिए।
ईशावास्यमिदं सर्वं।
अर्थ- भगवान संसार में सर्वत्र व्याप्त हैं।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
अर्थ- शरीर धर्म का प्रमुख साधन है।
अहो मानुषीषु पक्षपात: प्रजापते:।
अर्थ- ब्रह्मा ने पत्रलेखा के प्रति पक्षपात दिखाया है। इनका सौंदर्य गन्धर्वों से भी अधिक सुन्दर है।
चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्ति:।
अर्थ- समय के साथ क्रम बदलता रहता है, संसार में भाग्य रेखा पहिये की आरे की तरह चलती है।
योधरीभूत चतु:समुद्रां, जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्।
अर्थ- चार थनों वाली नंदिनी गाय की रक्षा चार समुद्रों वाली पृथ्वी की रक्षा के समान है।
आज्ञा गुरुणामविचारणीया।
अर्थ- बड़ों की आज्ञा का विचार (पालन) करना चाहिए।
चारित्र्येण विहीन आढ्योपि च दुगर्तो भवति।
अर्थ- चरित्रहीन व्यक्ति धनवान होकर भी दुर्दशा को प्राप्त होता है।
पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते।
अर्थ- हमारे गुण ही शत्रु और मित्र बनाते हैं।
ऋद्धं हि राज्यं पदमैन्द्रमाहु:।
अर्थ- एक समृद्ध राज्य इंद्र के शासन के बराबर है।
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