Biography of Field Marshal Sam Manekshaw In Hindi – हमारे देश भारत के लिए आजतक न जाने कितने वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। ऐसे वीर पुरुषों के बलिदान के कारण ही हम अपने देश भारत में स्वतंत्रता और स्वाभिमान के साथ रह रहे हैं। यदि उन सभी वीरों ने समय-समय पर अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान न दिया होता तो आज हमारे भारत का इतिहास कुछ और होता।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक ऐसे ही महान व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें हम फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नाम से जानते हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने चार दशकों तक सेना में सेवा की और अपने कार्यकाल के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) सहित पांच युद्ध लड़े।
सैम बहुत खुले विचारों वाले व्यक्ति थे, वह लोगों के सामने खुलकर अपने विचार व्यक्त करते थे। एक बार ऐसा हुआ कि सैम जी ने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) जी को “मैडम” कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि इस संबोधन का इस्तेमाल केवल विशेष कक्षाओं के लिए ही किया जाना चाहिए। मानेकशॉ ने कहा कि वह उन्हें प्रधानमंत्री (Prime Minister) ही कहेंगे।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का संक्षिप्त में जीवन परिचय – Brief biography of Field Marshal Sam Manekshaw
नाम | सैम होर्मूसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ (Sam Hormusji Framji Jamshedji Manekshaw) |
उपनाम / पहचान | सैम बहादुर (Sam Bahadur) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जन्म तिथि | 3 अप्रैल 1914 |
जन्म स्थान | अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश भारत |
पिता का नाम | होर्मिज़्ड मानेकशॉ (Hormizd Manekshaw) |
माता का नाम | हिलेला मानेकशॉ (Hillela Manekshaw) |
धर्म | पारसी |
पेशा | सैन्य अफसर |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | सिलू बोडे (Siloo Bode) |
बच्चे | शेरी (Sherry), माजा (Maja) और श्यामोली (Shyamoli) |
मृत्यु | 27 जून 2008 (उम्र 94) |
सैम मानेकशॉ कौन थे? (Sam Manekshaw introduction in Hindi)
भारतीय सेना (Indian Army) की वीरता और पराक्रम की हम सभी सदैव प्रशंसा करते हैं। जब भी सेना कोई ऐसा काम करती है जिससे हमारे देश की ताकत का पता चलता है तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। लेकिन इसके बावजूद हम ऐसे कई सैन्य अधिकारियों के बारे में नहीं जानते जिन्होंने अपनी रणनीतियों से विरोधी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। ऐसी ही एक शख्सियत थे सैम मानेकशॉ जिन्हें देश के पहले फील्ड मार्शल (First Field Marshal) बनने का गौरव प्राप्त हुआ था।
उन्होंने एक नहीं बल्कि 5 युद्धों में भाग लिया है और हर युद्ध में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है, चाहे वह द्वितीय विश्व युद्ध हो या भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध हो जिसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का पूरा नाम “सैम होर्मूसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ” है और उन्हें आमतौर पर सैम मानेकशॉ के नाम से जाना जाता है। वह भारत में एक अत्यधिक सम्मानित और प्रसिद्ध सैन्य नेता (Military Leader) थे। उन्हें भारतीय सेना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान सेना प्रमुख (Military General) होने के लिए जाना जाता है।
सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के प्रमुख (Chief of the Indian Army) थे जिनके नेतृत्व में भारत ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध (India-Pakistan war) में जीत हासिल की, जिसके परिणामस्वरूप “बांग्लादेश” का जन्म हुआ।
देश के प्रति उनकी देशभक्ति और निस्वार्थ सेवा के कारण उन्हें 1972 में “पद्म विभूषण (Padma Vibhushan)” और 1 जनवरी 1973 को “फील्ड मार्शल (Field Marshal)” के पद से सम्मानित किया गया। चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद, सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए।
सैम मानेकशॉ का 27 जून 2008 को निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत भारतीय सैन्य कर्मियों की पीढ़ियों और पूरे देश को प्रेरित करती रहेगी। वह भारतीय सैन्य इतिहास के इतिहास में साहस, अखंडता और नेतृत्व का प्रतीक बने हुए हैं।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को न केवल उनकी सैन्य कौशल के लिए बल्कि उनकी बुद्धि, बुद्धिमत्ता और अद्वितीय नेतृत्व शैली के लिए भी याद किया जाता है। वह भारत में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए और अक्सर उन्हें देश के महानतम सैन्य नायकों (Military Hero) में से एक के रूप में याद किया जाता है।
सैम मानेकशॉ का प्रारंभिक जीवन (Sam Manekshaw early life)
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल, 1914 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था, जो उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था। उनका जन्म भारत के एक जातीय और धार्मिक समुदाय पारसी परिवार (Parsi family) में हुआ था। उनके पिता होर्मिज़्ड मानेकशॉ एक डॉक्टर थे जो अमृतसर के सिटी सेंटर में एक सफल क्लिनिक और फार्मेसी के मालिक थे। उनका पूरा परिवार उच्च शिक्षित था और अच्छे पदों पर आसीन था।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ होर्मिज़्ड मानेकशॉ की पांचवीं संतान और तीसरे लड़के थे और उनके कुल छह बच्चे थे, चार बेटे और दो लड़कियां थीं। उनका परिवार गुजरात के वलसाड शहर से पंजाब आ गया था।
लेकिन अमृतसर में सैम मानेकशॉ के जन्म के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। 1903 में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के माता-पिता गुजरात छोड़कर लाहौर में बस गये, जहाँ उनके पिता के दोस्त भी रहते थे जिनकी अपनी क्लीनिक थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न वहीं जाकर अपना जीवन शुरू किया जाए।
इस दौरान उनका गुजरात आना-जाना लगा रहता था, एक समय की बात है जब सैम मानेकशॉ का जन्म नहीं हुआ था, वह अपनी मां के गर्भ में थे, तब वह ट्रेन से लाहौर जा रहे थे, तभी बीच में उनकी माता को दर्द होने लगा। ये वो दौर था जब ट्रेन अगर कहीं भी रुक जाती थी तो काफी देर तक रुकी रहती थी।
इसलिए सैम मानेकशॉ के पिता बहुत चिंतित हो गए और उन्होंने स्टेशन मास्टर से सलाह मांगी, जिस पर उन्होंने कहा कि आप लोगों को कुछ दिन और यहीं रुकना चाहिए। जिसके बाद सैम मानेकशॉ के माता-पिता पंजाब के अमृतसर में रहने लगे और कुछ दिनों के बाद उनके यहां एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम “सैम” रखा गया।
सैम मानेकशॉ का परिवार (Sam Manekshaw Family)
पिता का नाम | होर्मिज़्ड मानेकशॉ (Hormizd Manekshaw) |
माता का नाम | हिलेला मानेकशॉ (Hillela Manekshaw) |
भाई | जान, सेहरू, फली |
बहने | जेमी, किल्ला |
पत्नी | सिलू बोडे (Siloo Bode) |
बच्चे | शेरी (Sherry), माजा (Maja) और श्यामोली (Shyamoli) |
सैम मानेकशॉ का शैक्षिक विवरण (Sam Manekshaw’s educational details)
अपनी युवावस्था में, सैम बहादुर ने अपने पिता से अनुरोध किया कि उन्हें चिकित्सा का अध्ययन करने के लिए लंदन भेजा जाए, क्योंकि सैम बहादुर अपने पिता की तरह डॉक्टर बनना चाहते थे। उनके पिता ने यह दावा करते हुए इनकार कर दिया कि अभी सैम आयु में बहुत छोटे है और होर्मिज़्ड पहले से ही उनके दो बड़े भाइयों को आर्थिक सहायता कर रहे थे जो लंदन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे।
मानेकशॉ ने हिंदू सभा कॉलेज (अब हिंदू कॉलेज, अमृतसर) में दाखिला लिया और अप्रैल 1932 में पंजाब विश्वविद्यालय में अपनी अंतिम परीक्षा पूरी की और विज्ञान में तृतीय श्रेणी प्राप्त की।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में पूरी की और बाद में नैनीताल के एक प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल शेरवुड कॉलेज (Sherwood College) में दाखिला लिया। इसके बाद वह देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में शामिल हो गए, जहां उन्होंने एक सैनिक बनने का अपना सपना पूरा किया।
सैम मानेकशॉ का वैवाहिक जीवन (Sam Manekshaw’s married life)
सैम मानेकशॉ 1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए थे। वहां सैम की मुलाकात सिलू बोडे (Siloo Bode) से हुई। दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को शादी में बदल गई। उनकी शादी कई दशकों तक चली, और उनके बीच जीवन भर करीबी और सहयोगी रिश्ता रहा।
सैम और सिलू मानेकशॉ की तीन बेटियाँ हुयी: शेरी (Sherry), माजा (Maja) और श्यामोली (Shyamoli)। उनका पारिवारिक जीवन उनके लिए महत्वपूर्ण था, भले ही उन्होंने खुद को अपने सैन्य करियर और जिम्मेदारियों के प्रति समर्पित कर दिया था।
कई सैन्य परिवारों की तरह, सैम की सैन्य पोस्टिंग और तैनाती के कारण मानेकशॉ को लगातार अलगाव की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सेना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का मतलब अक्सर लंबे समय तक घर से दूर रहना होता था।
उनकी पत्नी सिलू बोडे मानेकशॉ को अक्सर उनके समर्थन और त्याग के लिए याद किया जाता है। उन्होंने अपने पति की लंबे समय तक अनुपस्थिति के दौरान परिवार और घर की देखभाल की और उनके लिए योग्य जीवनसाथी बनी रहीं।
मानेकशॉ सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, वेलिंग्टन, तमिलनाडु में बस गए। वृद्धावस्था में वे फेफड़ों के रोग से पीड़ित हो गये और कोमा में चले गये। 27 जून 2008 को सुबह 12.30 बजे मिलिट्री अस्पताल, वेलिंग्टन के आईसीयू में उनका निधन हो गया।
सिलु बोडे मानेकशॉ अपनी बेटियों के साथ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के निधन के बाद भी उनका सम्मान करने और उनकी स्मृति को संरक्षित करने में कभी पीछे नहीं रहीं। वह अपनी विरासत का गौरव मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और पहलों में शामिल रहे हैं।
सैम मानेकशॉ का सैन्य जीवन (Sam Manekshaw military career)
वह भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पहले बैच (1932) के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे। वहां से कमीशन प्राप्त करने के बाद सैम मानेकशॉ को 1934 में ब्रिटिश भारतीय सेना (British Indian Army) में नियुक्त किया गया था। वह IMA से स्नातक करने वाले कैडेटों के पहले बैच का हिस्सा थे। उनके प्रारंभिक सैन्य प्रशिक्षण ने भारतीय सेना में उनके शानदार करियर की नींव रखी।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का भारतीय सेना में एक लंबा और शानदार सैन्य करियर था, जो कई दशकों तक चला। उनकी सैन्य सेवा समर्पण, बहादुरी और उत्कृष्ट नेतृत्व द्वारा प्रतिष्ठित थी। यहां उनकी सैन्य सेवा की कुछ झलकियां साझा की गई हैं:
ब्रिटिश भारतीय सेना में नियुक्ति (British Indian Army Service):
सैम मानेकशॉ 1932 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्हें 12वीं फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में नियुक्त किया गया और बाद में ब्रिटिश भारतीय सेना में एक कमीशन अधिकारी बन गए।
द्वितीय विश्व युद्ध (World War II):
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सैम मानेकशॉ ने मध्य पूर्व और बर्मा (अब म्यांमार) सहित कई युध्भूमियों पर सफलता प्राप्त की। युद्ध में उनके प्रदर्शन ने उन्हें बहादुरी और नेतृत्व के लिए पहचान दिलाई।
स्वतंत्रता और विभाजन (Independence and Partition):
1947 में भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने और विभाजन के बाद, सैम मानेकशॉ ने रियासतों को नवगठित भारतीय संघ (Indian Union) में एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके सैन्य नेतृत्व ने इस अशांत अवधि के दौरान कानून और व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पदोन्नति और कमांड पद (Promotions and Command Posts):
इन वर्षों में, सैम मानेकशॉ को पदोन्नति मिली है और उन्होंने भारतीय सेना में विभिन्न प्रमुख पदों पर कार्य किया है। उन्होंने पश्चिमी और पूर्वी कमानों की कमान समेत बढ़ती जिम्मेदारी वाली भूमिकाओं में काम किया।
1962 भारत-चीन युद्ध (1962 Sino-Indian War):
मानेकशॉ ने अपने पूरे करियर में भारतीय सेना में विभिन्न वरिष्ठ पदों पर कार्य किया। उन्हें अक्सर 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की तैयारियों के ईमानदार मूल्यांकन और भविष्य में ऐसी स्थितियों को रोकने के लिए सैन्य सुधारों की वकालत करने के लिए याद किया जाता है।
1971 भारत-पाक युद्ध (1971 Indo-Pak War):
सैम मानेकशॉ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान आया। थल सेनाध्यक्ष के रूप में, उन्होंने नेतृत्व और रणनीति प्रदान की जिसके कारण भारत को निर्णायक जीत मिली, जिसके परिणामस्वरूप “बांग्लादेश” का निर्माण हुआ। इस संघर्ष में सैन्य अभियानों की उनकी योजना और कार्यान्वयन से उन्हें अत्यधिक सम्मान और प्रशंसा मिली।
फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नति (Promotion to the rank of Field Marshal):
सैम मानेकशॉ को 1973 में भारतीय सेना के सर्वोच्च पद “फील्ड मार्शल” के पद पर पदोन्नत किया गया, जो भारत के पहले और एकमात्र फील्ड मार्शल बने। यह सम्मान उनके असाधारण नेतृत्व और भारतीय सेना में योगदान का प्रमाण था।
सेवानिवृत्ति (Retirement):
सैम मानेकशॉ 1973 में सक्रिय सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त हुए लेकिन भारत और भारतीय सैन्य समुदाय में एक सम्मानित व्यक्ति बने हुए हैं। एक सैन्य नेता, रणनीतिकार और सशस्त्र बलों में ईमानदारी और व्यावसायिकता के प्रतीक के रूप में उनकी विरासत आज भी मजबूत है।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की सैन्य सेवा को भारतीय सेना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और राष्ट्र के प्रति उनके अटूट समर्पण द्वारा चिह्नित किया गया था। भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण क्षणों में, विशेष रूप से 1971 के युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व ने देश में सबसे सम्मानित सैन्य शख्सियतों में से एक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया।
भारतीय सेना में सैम मानेकशॉ की उपलब्धियाँ (Sam Manekshaw achievements in the Indian Army)
भारतीय सेना में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की उपलब्धियाँ असंख्य और महत्वपूर्ण हैं। उन्हें व्यापक रूप से भारत के सबसे कुशल सैन्य नेताओं में से एक माना जाता है, और सशस्त्र बलों में उनके योगदान की अत्यधिक सराहना की जाती है। भारतीय सेना में उनकी कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
1) भारत के पहले फील्ड मार्शल (First Field Marshal of India): सैम मानेकशॉ को भारत के पहले और एकमात्र फील्ड मार्शल होने का गौरव प्राप्त है। यह भारतीय सेना में सर्वोच्च प्राप्य रैंक है, और यह सेना में उनके असाधारण नेतृत्व और योगदान को दर्शाता है।
2) 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान नेतृत्व (Leadership during the 1971 Indo-Pak War): शायद उनकी सबसे प्रतिष्ठित उपलब्धि, 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सेनाध्यक्ष (Army Staff (COAS)) के रूप में सैम मानेकशॉ का नेतृत्व भारत की निर्णायक जीत में सहायक था। उनकी रणनीतिक योजना और परिचालन उत्कृष्टता के कारण बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्ति मिली और लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण हुआ। इस संघर्ष ने उनके असाधारण सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया।
3) रियासतों का एकीकरण (Integration of the princely states): 1947 में भारत की आजादी और उसके बाद विभाजन के तुरंत बाद, सैम मानेकशॉ ने रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कूटनीतिक और सैन्य प्रयासों से यह सुनिश्चित हुआ कि ये राज्य आसानी से भारत में शामिल हो गए।
4) द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेवा (Service during World War II): द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मानेकशॉ ने मध्य पूर्व और बर्मा सहित विभिन्न युद्धभूमि में सेवा की। इस अवधि के दौरान उन्हें अपनी बहादुरी और नेतृत्व के लिए कई पुरस्कार और प्रशंसाएँ मिलीं।
5) ईमानदारी और जवाबदेही (Honesty and Accountability): मानेकशॉ अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते थे। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की तैयारियों के उनके स्पष्ट मूल्यांकन ने तत्परता के महत्व पर जोर देते हुए भारतीय सेना में महत्वपूर्ण सुधार और परिवर्तन किए।
6) सैन्य सुधार (Military Reforms): उन्होंने भारतीय सेना के भीतर आधुनिकीकरण और व्यावसायिकता सहित कई महत्वपूर्ण सैन्य सुधारों की शुरुआत की और उनका निरीक्षण किया। उनके नेतृत्व ने सशस्त्र बलों की वृद्धि और विकास में योगदान दिया।
भारतीय सेना और राष्ट्र सेवा में सैम मानेकशॉ के योगदान का आज भी उल्लेख किया जाता है और यह भारत के लिए गर्व का स्रोत बना हुआ है। भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण क्षणों में उनके नेतृत्व ने देश की सेना और उसकी सामूहिक स्मृति पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
सैम मानेकशॉ को प्राप्त पुरस्कार एवं सम्मान (Sam Manekshaw’s awards and honors)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को उनकी असाधारण सेवा और नेतृत्व के लिए उनके पूरे सैन्य करियर के दौरान कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें पद्म भूषण (Padma Bhushan), पद्म विभूषण (Padma Vibhushan) और मिलिट्री क्रॉस (Military Cross) शामिल हैं। उन्हें प्राप्त कुछ सबसे उल्लेखनीय पुरस्कार और सम्मान इस प्रकार है:
मिलिट्री क्रॉस – Military Cross (MC): सैम मानेकशॉ को ब्रिटिश भारतीय सेना में एक युवा अधिकारी के रूप में सेवा करते हुए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनकी बहादुरी और वीरता के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान दुश्मन के सामने अनुकरणीय साहस के कार्यों के लिए दिया जाता है।
पद्म भूषण (Padma Bhushan): 1969 में, सैम मानेकशॉ को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक, “पद्म भूषण” से सम्मानित किया गया था। इस सम्मान ने राष्ट्र के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदान, विशेषकर भारतीय सेना में उनकी भूमिका को स्वीकार किया।
पद्म विभूषण (Padma Vibhushan): 1972 में, देश के प्रति उनकी उत्कृष्ट सेवा, विशेषकर 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व के सम्मान में, उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार, “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया गया था।
फील्ड मार्शल बैटन (Field Marshal’s Baton): जब सैम मानेकशॉ को 1973 में फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया, तो उन्हें “फील्ड मार्शल बैटन” से सम्मानित किया गया। यह भारतीय सेना में सर्वोच्च सैन्य रैंक का एक प्रतीकात्मक और प्रतिष्ठित प्रतीक चिन्ह है।
बांग्लादेश सेना में मानद रैंक (Honorary Rank in Bangladesh Army): 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सैम मानेकशॉ को बांग्लादेश सेना में जनरल के मानद रैंक से सम्मानित किया गया था।
विदेशी सैन्य सम्मान (Foreign Military Honors): मानेकशॉ को सैन्य सहयोग और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में उनके योगदान के लिए विभिन्न विदेशी सैन्य सम्मान और पदक प्राप्त हुए।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के पुरस्कार और सम्मान न केवल युद्ध के मैदान पर उनकी बहादुरी और नेतृत्व को दर्शाते हैं, बल्कि भारतीय सेना और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण और सेवा को भी दर्शाते हैं। वह भारतीय सैन्य इतिहास के इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बने हुए हैं, और उनकी स्मृति को सैन्य नेताओं की भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा के रूप में मनाया जाता है।
द्वितीय विश्व युद्ध में सैम मानेकशॉ की भूमिका (Sam Manekshaw’s role in the World War II)
1914 में पैदा हुए फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना (British Indian Army) में एक अधिकारी के रूप में अपना सैन्य करियर शुरू किया। इस वैश्विक संघर्ष के दौरान उनकी सेवा ने उन्हें युद्ध के विभिन्न माहौल में शामिल होते देखा।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मानेकशॉ को युद्ध के विभिन्न क्षेत्रों में तैनात किया गया था। उन्होंने इराक में सेवा की और बाद में उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने जापानी सेना (Japanese Army) के खिलाफ महत्वपूर्ण कार्रवाई में हिस्सा लिया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सैम जिस सेना कंपनी की कमान संभाल रहे थे, उसके लगभग 50% सैनिक मारे गए थे। लेकिन सैम जी ने हार नहीं मानी और बहादुरी से जापानी सेना का मुकाबला किया और इस युद्ध में सफलता हासिल की।
युद्ध की दृष्टि से “पैगोडा हिल (Pagoda Hill)” नामक स्थान बहुत महत्वपूर्ण था और इस पर अपना आधिपत्य स्थापित करते समय दुश्मन की ओर से अंधाधुंध गोलीबारी के कारण सैम जी को गंभीर रूप से घायल होना पड़ा। उनकी हालत बहुत गंभीर हो गई थी, इतनी गंभीर कि उनके बचने की संभावना बहुत कम लग रही थी।
सैम जी को घायल अवस्था में रंगून के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। उनकी हालत देखकर डॉक्टरों ने साफ मना कर दिया था कि अब उन्हें बचाया नहीं जा सकता। तभी सैम जी को होश आया और एक डॉक्टर ने पूछा, तुम्हें क्या हुआ? सैम जी ने हँसते हुए जवाब दिया, “लगता है शायद गधे ने मुझे लात मार दी है।”
उनके साहस को देखकर डॉक्टर ने उनका इलाज शुरू किया और उन्हें सफलतापूर्वक बचा लिया गया। आगे इस वीर योद्धा को कई बड़े और जिम्मेदारी भरे कार्य सौंपे गए, जिन्होंने उन्हें सफलतापूर्वक पूरा किया।
बर्मा में अपनी सेवा के दौरान मानेकशॉ को उनकी बहादुरी और नेतृत्व क्षमताओं के लिए पहचाना गया। वह आग के बीच अपने शांत व्यवहार और अपने सैनिकों को प्रेरित करने की क्षमता के लिए जाने जाते थे।
उनकी युद्धकालीन सेवा से पदोन्नति हुई और वे लगातार रैंकों में आगे बढ़ते रहे। युद्ध के दौरान वह मेजर बन गये और संघर्ष के बाद भी अपने सैन्य करियर में आगे बढ़ते रहे।
सैम मानेकशॉ को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में उनके कार्यों के लिए मिलिट्री क्रॉस (MC) से सम्मानित किया गया था। मिलिट्री क्रॉस दुश्मन के सामने बहादुरी के कार्यों के लिए एक प्रतिष्ठित ब्रिटिश सैन्य पदक है।
द्वितीय विश्व युद्ध ने सैम मानेकशॉ को बहुमूल्य युद्ध अनुभव और नेतृत्व की सीख प्रदान की। युद्ध के दौरान उनके अनुभवों ने उसके बाद के वर्षों में सैन्य रणनीति और नेतृत्व के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रभावित किया।
युद्ध के बाद, मानेकशॉ ने नव स्वतंत्र भारत में एक अधिकारी के रूप में भारतीय सेना में अपनी सेवा जारी रखी। उन्होंने 1947-48 के संघर्ष और 1962 के भारत-चीन युद्ध सहित विभिन्न सैन्य अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1947-48 के युद्ध में सैम मानेकशॉ की भूमिका (Sam Manekshaw’s role in the 1947-48 war)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जो उस समय ब्रिगेडियर थे, ने भारत और पाकिस्तान के बीच 1947-48 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे अक्सर प्रथम कश्मीर युद्ध (First Kashmir War) या प्रथम भारत-पाक युद्ध (First Indo-Pak War) के रूप में जाना जाता है। यह संघर्ष 1947 में भारत के विभाजन के तुरंत बाद उत्पन्न हुआ, जब जम्मू और कश्मीर रियासत भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र बिंदु बन गई थी।
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान समर्थित आदिवासी लड़ाकों ने जम्मू-कश्मीर रियासत पर आक्रमण कर दिया। जम्मू और कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh) ने भारत से सहायता मांगी, जिससे क्षेत्र की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों की तैनाती हुई।
सैम मानेकशॉ, जो उस समय भारतीय सेना में ब्रिगेडियर थे, को 161 Infantry Brigade की कमान सौंपी गई थी, जिसे जम्मू और कश्मीर में पुंछ क्षेत्र की रक्षा करने का काम सौंपा गया था। इस अवधि के दौरान उनका नेतृत्व और रणनीतिक कौशल स्पष्ट हो गया।
पुंछ, क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण शहर, आदिवासी बलों द्वारा घेर लिया गया था। मानेकशॉ की कमान के तहत, 161 इन्फैंट्री ब्रिगेड ने पुंछ की सफलतापूर्वक रक्षा की और इसे दुश्मन के हाथों में जाने से रोका।
नवंबर 1948 में सैम मानेकशॉ ने घिरे हुए पुंछ शहर को छुड़ाने के लिए ऑपरेशन ईज़ी (Operation Easy) नामक एक सफल आक्रमण शुरू किया। इस ऑपरेशन में पुंछ गैरीसन तक आपूर्ति और सुदृढीकरण की एक साहसी और अच्छी तरह से निष्पादित एयरलिफ्ट शामिल थी।
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के हस्तक्षेप के बाद अंततः दिसंबर 1948 में युद्धविराम (Ceasefire) हुआ। युद्धविराम के परिणामस्वरूप नियंत्रण रेखा (Line of Control – LOC) की स्थापना हुई, जो क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक सीमा को परिभाषित करती है।
1947-48 के युद्ध में सैम मानेकशॉ की भूमिका ने उनकी सामरिक प्रतिभा और नेतृत्व कौशल को प्रदर्शित किया। पुंछ की रक्षा करने और ऑपरेशन ईज़ी को अंजाम देने में उनकी सफलता सैन्य कौशल के शुरुआती संकेतक थे जिसने बाद में उन्हें फील्ड मार्शल का सर्वोच्च पद दिलाया और उन्हें भारत के सबसे प्रसिद्ध सैन्य नेताओं में से एक बना दिया। इस संघर्ष में उनके योगदान ने भारत के लिए क्षेत्र सुरक्षित करने और जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1962 के युद्ध में सैम मानेकशॉ का नेतृत्व (Sam Manekshaw’s leadership in the 1962 war)
1962 के भारत-चीन युद्ध (Sino-Indian War) के दौरान फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का नेतृत्व महत्वपूर्ण था, खासकर भारतीय सेना के अनुभवों और उस संघर्ष से सीखे गए सबक के संदर्भ में। जबकि 1962 के युद्ध को अक्सर भारत के लिए एक कठिन अवधि के रूप में याद किया जाता है, एक सैन्य कमांडर के रूप में मानेकशॉ की भूमिका और उनके बाद के आकलन ने भारतीय सेना के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1962 के युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
सैम मानेकशॉ, जो उस समय मेजर जनरल के पद पर थे, उन कुछ सैन्य नेताओं में से एक थे जिन्होंने चीन के खिलाफ युद्ध के लिए भारत की तैयारियों का स्पष्ट और सटीक मूल्यांकन पेश किया था। उन्होंने कठोर पहाड़ी इलाकों में तैनात सैनिकों के लिए उचित उपकरण, कपड़े और बुनियादी ढांचे की कमी सहित पर्याप्त तैयारी के बिना शत्रुता शुरू करने के खिलाफ चेतावनी दी।
स्थिति के बारे में मानेकशॉ के आकलन ने संघर्षों के लिए अच्छी तरह से तैयार रहने के महत्व पर प्रकाश डाला। भारतीय सेना की तैयारियों में कमियों के बारे में उनकी अंतर्दृष्टि ने सेना की क्षमताओं और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए चर्चा और सुधारों को प्रेरित किया।
1962 के युद्ध के बाद भारतीय सेना में महत्वपूर्ण परिवर्तन और आधुनिकीकरण के प्रयास किये गये। ये सुधार, आंशिक रूप से, संघर्ष से सीखे गए सबक और मानेकशॉ की सिफारिशों से प्रभावित थे।
मानेकशॉ के नेतृत्व और भारतीय सेना के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में खुलकर बोलने की उनकी इच्छा ने व्यावसायिकता और तत्परता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया कि सेना के पास राष्ट्र की प्रभावी ढंग से रक्षा करने के लिए आवश्यक उपकरण और प्रशिक्षण हो।
1962 के युद्ध की असफलताओं के बावजूद, सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के रैंक में आगे बढ़ते रहे। उनके नेतृत्व और विभिन्न क्षमताओं में योगदान ने अंततः उन्हें एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान भारतीय सेना में सर्वोच्च रैंकिंग पद, सेनाध्यक्ष (COAS) बनने के लिए प्रेरित किया।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध ने जहां भारत के लिए कुछ कठिनाइयाँ खड़ी कीं, वहीं इसने भारतीय सेना के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में भी काम किया। इस अवधि के दौरान सैम मानेकशॉ के नेतृत्व ने भारतीय सशस्त्र बलों के भीतर तैयारियों, व्यावसायिकता और आधुनिकीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में योगदान दिया, जो बाद में 1971 के भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak War) जैसे बाद के संघर्षों में सफलता प्राप्त करने में सहायक साबित हुआ।
1971 के युद्ध में सैम मानेकशॉ की भूमिका (Sam Manekshaw’s role in the 1971 war)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने 1971 के भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak war) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण बांग्लादेश (Bangladesh) का निर्माण हुआ। इस संघर्ष के दौरान उनका नेतृत्व, रणनीतिक योजना और परिचालन निर्णय भारत की जीत में सहायक थे।
भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष (COAS) के रूप में, सैम मानेकशॉ 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान की योजना बनाने और उसकी देखरेख करने के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) को पश्चिमी पाकिस्तान (West Pakistan) से मुक्त कराने के उद्देश्य से एक व्यापक सैन्य रणनीति विकसित की।
मानेकशॉ की भूमिका युद्ध के मैदान से परे तक फैली हुई थी। उन्होंने बांग्लादेशी मुद्दे के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने और पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) में पाकिस्तान के मानवाधिकारों के हनन को उजागर करने के लिए भारत सरकार के राजनयिक प्रयासों में बहुमूल्य इनपुट प्रदान किया।
शीघ्र कार्रवाई के लिए राजनीतिक दबाव के बावजूद, मानेकशॉ के प्रमुख निर्णयों में से एक सैन्य आक्रमण की शुरुआत को 3 दिसंबर, 1971 तक विलंबित करना था। इस देरी ने भारतीय सेना को अधिक प्रभावी ढंग से तैयार करने की सहायता दी, खासकर रसद और सेना की तैनाती के मामले में।
मानेकशॉ ने भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के बीच उत्कृष्ट समन्वय सुनिश्चित किया, जिससे एक समकालिक और प्रभावी सैन्य संचालन संभव हो सका।
उनके मार्गदर्शन में, भारतीय सेना ने कई सफल अभियान चलाए, जिनमें पूर्वी पाकिस्तान के महत्वपूर्ण क्षेत्रों और प्रमुख शहरों पर कब्ज़ा भी शामिल था। ढाका की लड़ाई एक निर्णायक मोड़ थी, जिसके कारण पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा और अंततः 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
संघर्ष के प्रति फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के मानवीय और पेशेवर दृष्टिकोण का अक्सर उल्लेख किया जाता है। उन्होंने अपने सैनिकों को आचरण के उच्चतम मानकों को बनाए रखने और युद्धबंदियों के साथ सम्मान और मानवता के साथ व्यवहार करने का निर्देश दिया।
उनके नेतृत्व और सैन्य अभियान की सफलता की मान्यता में, सैम मानेकशॉ को 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था। इसने उन्हें भारतीय सेना के इतिहास में पहला और एकमात्र फील्ड मार्शल बना दिया।
1971 के युद्ध में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की भूमिका को सैन्य नेतृत्व और रणनीतिक कौशल के शानदार उदाहरण के रूप में मनाया जाता है। उनके निर्णयों और कार्यों ने न केवल जीत सुनिश्चित की बल्कि नागरिक जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित की और अंततः एक नए राष्ट्र, बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान अपने योगदान के लिए वह भारत के सैन्य इतिहास में एक सम्मानित व्यक्ति बने हुए हैं।
सैम मानेकशॉ की नेतृत्व शैली (Sam Manekshaw’s leadership style)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ अपनी विशिष्ट नेतृत्व शैली के लिए जाने जाते थे, जिसने उनके सफल सैन्य करियर और भारतीय सेना में उनके योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नेतृत्व शैली गुणों और सिद्धांतों का मिश्रण थी जिसने उन्हें सशस्त्र बलों में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया। सैम मानेकशॉ की नेतृत्व शैली के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
मानेकशॉ उदाहरण बनकर नेतृत्व करने में विश्वास करते थे। उन्होंने अपने लिए अनुशासन, व्यावसायिकता और सत्यनिष्ठा के उच्च मानक स्थापित किए, जिससे उनके अधीनस्थों को भी इसका पालन करने की प्रेरणा मिली।
वह उच्च दबाव की स्थिति में भी स्पष्ट और समय पर निर्णय लेने के लिए जाने जाते थे। उनकी निर्णायक क्षमता ने उनके सैनिकों में आत्मविश्वास पैदा किया और परिचालन दक्षता बनाए रखने में मदद की।
संकट के समय में, मानेकशॉ ने संयम बनाए रखा और शांत रहे, जो उनके अधीन लोगों के लिए आश्वस्त करने वाला था। तनावपूर्ण स्थितियों में तर्कसंगत रूप से सोचने की उनकी क्षमता उनकी ताकतों में से एक थी।
मानेकशॉ के पास मजबूत संचार कौशल था। वह अपने आदेशों और अपेक्षाओं को स्पष्ट और संक्षिप्त रूप से प्रकट कर सकते थे, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उसके अधीनस्थ अपनी भूमिका और जिम्मेदारियों को समझें।
उनके मन में अपने सैनिकों के प्रति बहुत सम्मान और सहानुभूति थी। उन्हें अग्रिम मोर्चों (Front Line) पर जाने, सैनिकों से बातचीत करने और उनकी चिंताओं को सीधे संबोधित करने के लिए जाना जाता था। इससे उन्हें आम लोगों के बीच बहुत सम्मान मिला।
मानेकशॉ एक रणनीतिक विचारक (Strategic thinker) थे जो बड़ी झलक देख सकते थे। जटिल सैन्य अभियानों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने की उनकी क्षमता, जैसा कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान प्रदर्शित हुई, उनकी रणनीतिक कौशल का प्रमाण थी।
उन्होंने सेना में व्यावसायिकता और नैतिकता के उच्चतम मानकों को बनाए रखा। पेशेवर विकास, प्रशिक्षण और सैन्य मूल्यों के पालन पर उनके जोर का भारतीय सेना पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
मानेकशॉ बदलते युद्धक्षेत्र में अनुकूलनशीलता के महत्व को समझते थे। वह नए विचारों और प्रौद्योगिकियों के लिए खुले थे और सेना के भीतर नवाचार को प्रोत्साहित करते थे।
अपने हास्यबोध और हाजिरजवाबी के लिए जाने जाने वाले मानेकशॉ तनावपूर्ण स्थितियों को शांत करने और अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए हल्के-फुल्के अंदाज का इस्तेमाल कर सकते थे। हास्य के साथ गंभीरता को संतुलित करने की उनकी क्षमता की उनके साथ काम करने वाले लोगों ने सराहना की।
वह आवश्यकता पड़ने पर कार्रवाई में सबसे आगे रहने में विश्वास करते थे। महत्वपूर्ण क्षणों के दौरान युद्ध के मैदान में उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति ने उनके सैनिकों को प्रेरित किया और उनके उद्देश्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की नेतृत्व शैली व्यावसायिकता, करुणा, साहस और रणनीतिक सोच का मिश्रण थी। उनके नेतृत्व ने भारतीय सेना में एक स्थायी विरासत छोड़ी, और वह भारत और दुनिया भर में सैन्य नेताओं और कर्मियों के लिए प्रेरणा का एक स्थायी स्रोत बने हुए हैं।
सैम मानेकशॉ की सैन्य रणनीति (Sam Manekshaw’s military strategy)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ अपने रणनीतिक कौशल के लिए जाने जाते थे और उन्होंने भारतीय सेना में अपने कार्यकाल के दौरान सैन्य रणनीतियों को विकसित करने और क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका नेतृत्व और रणनीतिक सोच विशेष रूप से 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान स्पष्ट हुई, जिसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ। सैम मानेकशॉ की सैन्य रणनीति के कुछ प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं:
मानेकशॉ स्पष्ट और प्राप्त करने योग्य सैन्य उद्देश्यों को परिभाषित करने में विश्वास करते थे। 1971 के युद्ध में, प्राथमिक लक्ष्य पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तानी नियंत्रण से मुक्त कराना था और यह उद्देश्य उनके कमांडरों को स्पष्ट रूप से बताया गया था।
मानेकशॉ की एक ताकत एक समन्वित और प्रभावी सैन्य अभियान सुनिश्चित करने के लिए भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के प्रयासों में समन्वय स्थापित करने की उनकी क्षमता थी। उन्होंने आक्रामक रणनीति का समर्थन किया, दुश्मन को संतुलन से दूर रखने के लिए संघर्ष के कई क्षेत्रों में सुनियोजित और समन्वित हमले शुरू किए।
मानेकशॉ सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ कूटनीतिक प्रयासों (Diplomatic effort) के महत्व को भी समझते थे। उन्होंने बांग्लादेशी हितों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने और पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान के मानवाधिकारों के हनन को उजागर करने के लिए भारत सरकार के अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया।
उनकी रणनीति में इंटेलिजेंस (Intelligence) ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सूचित निर्णय लेने और आवश्यकतानुसार अपनी योजनाओं को समायोजित करने के लिए सटीक और समय पर बुद्धिमत्ता पर भरोसा किया।
1971 के युद्ध में मानेकशॉ की रणनीति में पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना को घेरना और अलग-थलग करना शामिल था। इससे उन्हें पश्चिमी पाकिस्तान से सुदृढ़ीकरण और आपूर्ति प्राप्त करने से रोका गया।
मानेकशॉ ने मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological warfare) के महत्व को पहचाना। उन्होंने दुश्मन को हतोत्साहित करने और अपनी हार के बारे में अनिवार्यता की भावना पैदा करने के लिए सैन्य कार्रवाई और मनोवैज्ञानिक संचालन दोनों का इस्तेमाल किया।
उन्होंने युद्ध में नैतिक आचरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए नागरिक जीवन की सुरक्षा और युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार पर जोर दिया।
पूर्वी पाकिस्तान के चुनौतीपूर्ण इलाके को पहचानते हुए, मानेकशॉ ने रसद और बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण ध्यान दिया, यह सुनिश्चित किया कि उनके सैनिकों को अच्छी तरह से आपूर्ति की गई और कठोर वातावरण के लिए सुसज्जित किया गया।
वह परिवर्तनशील थे और बदलती परिस्थितियों और सूचनाओं के अनुरूप ढलने के इच्छुक थे। इस अनुकूलनशीलता ने उन्हें युद्ध के दौरान उभरती स्थितियों पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने की महारत हासिल हुयी।
मानेकशॉ ने संघर्ष के भू-राजनीतिक निहितार्थों को समझा और भारत के कार्यों के अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों पर विचार किया। ऑपरेशन कैक्टस लिली (Operation Cactus Lily) और ऑपरेशन ट्राइडेंट (Operation Trident) जैसे सैन्य अभियानों के उनके सही समय पर निष्पादन ने युद्ध के परिणाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1971 के युद्ध के दौरान सैम मानेकशॉ की सैन्य रणनीति की सफलता ने न केवल बांग्लादेश को आज़ाद कराया बल्कि उनके असाधारण नेतृत्व और रणनीतिक क्षमताओं का भी प्रदर्शन किया। एक सैन्य रणनीतिकार और नेता के रूप में उनकी विरासत सैन्य पेशेवरों और इतिहासकारों को समान रूप से प्रेरित करती रहती है।
सैम मानेकशॉ का भारतीय सेना पर प्रभाव (Sam Manekshaw’s impact on Indian Army culture)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का भारतीय सेना की संस्कृति और लोकाचार पर गहरा और स्थायी प्रभाव था। उनके नेतृत्व, सिद्धांतों और योगदान ने सैन्य संस्थान और इसके रैंकों में सेवा करने वाले पुरुषों और महिलाओं पर एक अमिट छाप छोड़ी। यहां कुछ प्रमुख तरीके दिए गए हैं जिनसे उन्होंने भारतीय सेना की संस्कृति को प्रभावित किया:
मानेकशॉ ने सेना के भीतर व्यावसायिकता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने अनुशासन, प्रशिक्षण और परिचालन तत्परता के लिए उच्च मानक स्थापित किए, व्यावसायिकता की संस्कृति स्थापित की जो भारतीय सेना के लोकाचार की आधारशिला बनी हुई है।
अपनी अटूट सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाने वाले मानेकशॉ सदाचार और नैतिक आचरण के प्रति प्रतिबद्धता ने सभी सैनिकों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया। उनकी विरासत सेना के भीतर ईमानदारी और जवाबदेही की संस्कृति को प्रोत्साहित करती है।
मानेकशॉ ने युद्ध के मैदान और बाहर दोनों जगह एक मिसाल कायम की। उनके व्यक्तिगत आचरण और कर्तव्य के प्रति समर्पण ने अधिकारियों और सैनिकों की पीढ़ियों को उनकी नेतृत्व शैली का अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने युद्धबंदियों के साथ मानवीय व्यवहार और संघर्षों के दौरान नागरिक जीवन की सुरक्षा पर जोर दिया। युद्ध में नैतिक आचरण के प्रति यह प्रतिबद्धता सशस्त्र संघर्षों के प्रति भारतीय सेना के दृष्टिकोण को प्रभावित करती रहती है।
मानेकशॉ ने स्वतंत्रता के बाद के समय में रियासतों को भारतीय संघ में एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों ने देश की विविधता को प्रतिबिंबित करते हुए भारतीय सेना के भीतर एकता और एकीकरण की भावना को बढ़ावा दिया।
प्रशिक्षण और तैयारियों के महत्व को पहचानते हुए मानेकशॉ ने कठोर प्रशिक्षण और निरंतर सुधार की वकालत की। उनकी विरासत भारतीय सेना के भीतर निरंतर सीखने और पेशेवर विकास की संस्कृति को प्रोत्साहित करती है। रैंक या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सैनिकों के प्रति उनके सम्मान ने सेना के भीतर आपसी सम्मान और सौहार्द की संस्कृति को बढ़ावा दिया।
मानेकशॉ अपनी सीधी और स्पष्ट संचार शैली के लिए जाने जाते थे। चुनौतियों से निपटने और निर्णय लेने के इस खुले और ईमानदार दृष्टिकोण ने भारतीय सेना की संचार संस्कृति को प्रभावित किया है।
रणनीतिक सोच (Strategic thinking) और परिचालन योजना (Operational planning) पर मानेकशॉ के जोर ने एक ऐसी संस्कृति के विकास में योगदान दिया है जो सैन्य अभियानों में रणनीतिक अंतर्दृष्टि और योजना को महत्व देती है।
उन्होंने सेना में अनुकूलनशीलता की आवश्यकता को पहचाना और भारतीय सेना को व्यापक परिदृश्यों और चुनौतियों के लिए तैयार रहने के लिए प्रोत्साहित किया।
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनका नेतृत्व, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ, उनकी रणनीतिक और परिचालन प्रतिभा का प्रमाण है। सफलता की इस विरासत ने भारतीय सेना के रैंकों में आत्मविश्वास और गौरव को प्रेरित किया है।
भारतीय सेना की संस्कृति पर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का प्रभाव उनके सैन्य करियर से कहीं आगे तक फैला हुआ है। उनके मूल्य, नेतृत्व सिद्धांत और राष्ट्र के प्रति समर्पण भारतीय सशस्त्र बलों के लोकाचार को आकार देते हैं और सैन्य नेताओं और कर्मियों की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में काम करते हैं।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के अनमोल वचन (Quotes by Field Marshal Sam Manekshaw)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ अपनी बुद्धिमता, चतुरता और स्पष्ट संचार शैली के लिए जाने जाते थे। यहां उनसे जुड़े कुछ उल्लेखनीय उद्धरण दिए गए हैं:
“सेना का अपना दिमाग होता है, जिसे तुरंत आज्ञाकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है और उसे अपने व्यक्तिगत कल्याण पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसके लिए पूर्ण और निश्छल निष्ठा की आवश्यकता होती है, लेकिन बदले में वह अपने सेवकों के लिए एक अच्छा स्वामी होता है।”
“एक सैनिक में सबसे महत्वपूर्ण बात उसकी अपने पैरों पर खड़े होकर सोचने की क्षमता है।”
“हम अपने देश की सुरक्षा, विकास और शांति के लिए लड़ते हैं। भारतीय सेना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक है। वे अनुशासित हैं, वे वफादार हैं और वे बहादुर हैं।”
“अगर कोई आदमी कहता है कि वह मरने से नहीं डरता, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है।”
“देश तभी तक सुरक्षित रहेगा जब तक सशस्त्र बल भारत के संविधान के साथ हैं। जिस दिन सशस्त्र बल गैर-राजनीतिक हो जाएंगे, सब ठीक हो जाएगा।”
“मुझे सामान्य ज्ञान वाला एक पुरुष या महिला दीजिए जो मूर्ख न हो और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आप उसे एक नेता बना सकते हैं।”
“सबसे बहादुर वह है जिसने डरने की कला में महारत हासिल कर ली है।”
“मुझे आश्चर्य है कि क्या हमारे राजनीतिक आका जिन्हें देश की रक्षा का प्रभारी बनाया गया है, वे मोटर से मोर्टार, होवित्जर से बंदूक, गोरिल्ला से गोरिल्ला में अंतर कर सकते हैं, हालांकि इनमें से कई महान लोग एक ही हैं।”
“पेशेवर ज्ञान और पेशेवर क्षमता नेतृत्व के मूल गुण हैं।”
“भारतीय सेना में प्रत्येक अधिकारी के पास मजबूत दिल, स्पष्ट दिमाग और पेट में आग होनी चाहिए।”
“जब तक आप नहीं जानते, और जिन लोगों को आप आदेश देते हैं वे जानते हैं कि आप अपना काम जानते हैं, आप कभी भी नेता नहीं बन पाएंगे।”
“पेशेवर ज्ञान को कठिन तरीके से हासिल करना पड़ता है। यह निरंतर अध्ययन है और आज की जिस तेज़-तर्रार तकनीकी दुनिया में हम रहते हैं उसमें आप इसे कभी हासिल नहीं कर सकते।”
“नेतृत्व सुर्खियों में बने रहने के बारे में नहीं है, यह आपके द्वारा बिना देखे गए कदम उठाने के बारे में है।”
“आप हमेशा सही नहीं हो सकते, लेकिन मुख्य बात मूर्ख नहीं बनना है।”
ये प्रेरक उद्धरण कुछ प्रमुख सिद्धांतों और मूल्यों को दर्शाते हैं जिन्होंने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को उनके पूरे सैन्य करियर में मार्गदर्शन किया। उनके शब्द न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के सैन्य कर्मियों और नेताओं को प्रेरित करते रहते हैं।
सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म (Field Marshal Sam Manekshaw Biopic Movie)
कुछ खबरों और सूत्रों के हवाले से पता चला है कि सैम जी की पूरी रोमांचक जिंदगी पर एक फिल्म बनाई जाएगी जिसमें फिल्म अभिनेता विक्की कौशल (Vicky Kaushal) भी मुख्य भूमिका में नजर आएंगे।
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