राक्षस का भय – पंचतंत्र की कहानी (Fear Of Daemon Story In Hindi)

राक्षस का भय – पंचतंत्र की कहानी (Fear Of Daemon Story In Hindi)

दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – राक्षस का भय की कहानी (Fear Of Daemon Story In Hindi) पेश कर रहे हैं। Rakshas Ka Bhay Panchtantra Story में बताया गया है की कैसे एक राक्षस खुद भय का शिकार हो जाता है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – Fear Of Daemon Panchatantra Story In Hindi

Fear Of Daemon Story In Hindi – Tales of Panchatantra

राक्षस का भय – पंचतंत्र की कहानी (Fear Of Daemon Story In Hindi)
Rakshas Ka Bhay Panchtantra Story

प्राचीन काल में भद्रसेन नाम का एक राजा राज्य करता था। वह अपने राज्य को सुचारू रूप से और नैतिक रूप से चलाता था। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम रत्नावती था। वह दिखने में इतनी खूबसूरत थी कि उसकी तुलना अप्सराओं से की जाने लगी।

उसे हमेशा डर रहता था कि कोई राक्षस उसका अपहरण न कर ले। रात में उसका डर और भी बढ़ जाता। इसलिए उसने अपने महल की रक्षा के लिए हर समय हथियारबंद सैनिक तैनात रखे हुए थे।

एक रात एक भयंकर दैत्य सैनिकों की नजरों से बचकर रत्नावती के महल में घुस गया। महल के किसी कोने में चुपचाप बैठकर वह राजकुमारी और उसकी सखियों की बातें सुनने लगा।

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राजकुमारी अपनी सहेली से कह रही थी कि “यह दुष्ट विकाल मुझे हर समय परेशान करता रहता है, इसका कोई उपाय करना होगा।” राजकुमारी की बातें सुनकर दैत्य के मन में थोड़ा भय उत्पन्न हो गया। 

उसने सोचा कि राजकुमारी शायद किसी अन्य राक्षस के बारे में बात कर रही है, जो बहुत शक्तिशाली और दुर्जेय है। क्यों ना इस बात का पता लगाया जाए? यह सोचकर दैत्य घोड़े का रूप धारण कर अस्तबल में जा छिपा।

उसी समय एक चोर राज महल में घुस गया। चोर सीधे घोड़ाशाला में आया और घोड़ों को ठीक से देखने लगा। चोर को सबसे अच्छा घोड़ा वह पसंद आया जो की असल में एक राक्षस था। चोर ने घोड़े पर लगाम डाली और उसकी पीठ पर चढ़ गया।

घोड़े रूपी दैत्य ने समझा की यह वही विकाल दैत्य है जिसके बारे में राजकुमारी कह रही थी। यह मुझे पहचान गया है, और मुझे मार डालने के लिथे यहां से ले जा रहा है। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि राक्षस के मुख में लगाम लग चुकी थी।

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चोर पीठ पर बैठा था और उसके हाथ में चाबुक था। चाबुक लगते ही राक्षस भागने लगा। महल से कुछ दूर जाने के बाद जब चोर ने घोड़े को रोकने के लिए लगाम खींची तो घोड़ा नहीं रुका। चोर की लाख कोशिशों के बाद भी घोड़ा रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उसकी गति बढ़ती ही जा रही थी।

चोर ने सोचा बेशक यह कोई घोड़ा नहीं है, घोड़े के रूप में कोई राक्षस है जो मुझे मारना चाहता है। यह मुझे किसी सुनसान जगह पर ले जाएगा और मुझे नीचे फेंक देगा और मुझे मार डालेगा।

चोर जब यह सोच ही रहा तब घोड़ा एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे से गुजर रहा था। अपनी जान बचाने के लिए चोर ने पीपल के पेड़ की एक टहनी पकड़ ली, जिससे घोड़ा उससे आगे निकल गया और चोर उस पेड़ पर लटक गया।

उसी पेड़ पर राक्षस का मित्र बंदर रहता था। बंदर ने जब अपने दोस्त को इस तरह डर के मारे भागते देखा तो उसने उसे आवाज दी और कहा, “दोस्त, तुम इससे क्यों डर रहे हो, यह तो एक साधारण मनुष्य है। तुम तो इसे पल भर में ही मार कर खा सकते हो।

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यह सुनकर चोर को गुस्सा आ गया। जिस डाली से चोर लटका हुआ था, उसके ऊपर की डाली पर ही वह बंदर बैठा हुआ था। चोर के हाथ बन्दर तक न पहुंच सके, परन्तु बन्दर की पूंछ नीचे लटक रही थी, इसलिये चोर ने बन्दर की पूंछ को मुंह से चबाना शुरू कर दिया।

बंदर को बहुत पीड़ा हुई, लेकिन वह अपने मित्र दैत्य के सामने चोर की शक्ति को कम आंकने के लिए वहीं बैठा रहा। फिर भी उसके चेहरे पर पीड़ा की छाया साफ दिखाई दे रही थी।

दैत्य ने कहा, “मित्र, तुम चाहे जो कुछ भी कह दो, लेकिन तुम्हारे चेहरे पर पीड़ा साफ दिखाई दे रही है। तुम विकाल दैत्य के चंगुल में फंस गए हो। यह कहकर दैत्य वहां से भाग गया।”

कहानी का भाव:

यदि जीवन संकट में हो और उस मुसीबत से निकलने के लिए भागना उचित जान पड़ता है तो भाग लेना चाहिए।

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