Speech On Raksha Bandhan In Hindi – रक्षाबंधन का त्यौहार पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भाई-बहन के प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक माना जाने वाला रक्षाबंधन का यह त्योहार हम सभी के लिए विशेष महत्व रखता है।
बहनें अपने भाइयों की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं और भाई बहन की रक्षा करने का वचन देता है। साथ ही भाई अपनी बहनों को सभी बुराइयों से बचाने का संकल्प लेते हैं। लेकिन रक्षाबंधन का त्यौहार न केवल भाई-बहन का त्यौहार है बल्कि प्रेम, सामाजिक कर्तव्य और भाईचारे का भी त्यौहार है।
आज इस लेख में हम आपको बहुत ही सरल भाषा में रक्षा बंधन पर भाषण (Raksha Bandhan Speech In Hindi) के बारे में जानकारी प्रदान करने जा रहे है। यह भाषण हर कक्षा के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होगा।
रक्षा बंधन पर भाषण – 1 (200 शब्दों में) – Raksha Bandhan speech in Hindi
प्रिय विद्यार्थी मित्रों, सभी उपस्थित व्यक्तिगण,
सुप्रभात!
आज मैं “रक्षाबंधन” के अवसर पर अपने विचार प्रकट करने के लिए आप सभी के सामने खड़ा हूं। आज आप गुरुजनों ने मुझे इस मंच पर बोलने का मौका दिया है, इसके लिए मैं हृदय से आपका आभारी हूं।
रक्षा बंधन भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है, जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबंधन को राखी, सलोनो और श्रावणी जैसे नामों से भी जाना जाता है।
रक्षा बंधन हमें याद दिलाता है कि भाई-बहन का बंधन दो अद्वितीय आत्माओं के बीच एक विशेष मार्मिक संबंध होता है, जो सदैव मजबूती से बँधा रहता है। हमारे भाई-बहनों के साथ हमारी अनगिनत यादें और अनुभव होते हैं, जो हमारी जीवन यात्रा को खूबसूरत और यादगार बनाते हैं।
रक्षाबंधन के इस पर्व पर हमें यह सोचने का मौका मिलता है कि हम अपने रिश्ते को कैसे अधिक मजबूत और वृद्धिंगत बनाए रख सकते हैं।
हमें अपने भाई-बहनों के साथ समय बिताना चाहिए, उनके विचारों और सपनों का समर्थन करना चाहिए, उनके साथ खुशियों का आदान-प्रदान करना चाहिए और एक-दूसरे के जीवन में आने वाली कठिनाइयों का मिलकर सामना करना चाहिए।
इस अवसर पर, मैं सभी से आग्रह करता हूं कि हम अपने करीबी रिश्तों को भी महत्व दें और उन्हें सहयोग और समर्थन की भावना दें। क्योंकि यह रक्षाबंधन हमें एक-दूसरे को स्नेह और समर्पण के प्रतीक के रूप में याद करने का अवसर देता है।
धन्यवाद।
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प्रिय विद्यार्थी मित्रों, सभी उपस्थित व्यक्तिगण,
सुप्रभात!
आज हम सभी यहां एक विशेष अवसर पर एकत्र हुए हैं, जो हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह अवसर है “रक्षा बंधन” का, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का त्यौहार है। हालाँकि भाई-बहन के बीच का प्यार और कर्तव्य की भावना किसी एक दिन के लिए ही सीमित नहीं है, बल्कि अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण यह त्योहार हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
रक्षा बंधन का अर्थ है ‘सुरक्षा’ और ‘बंधन’ – जो एक विशेष प्रकार के रिश्ते को संदर्भित करता है जिसमें एक भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वादा करता है। यह रिश्ता न सिर्फ खुशियों में बल्कि मुश्किलों में भी एक-दूसरे का साथ निभाने की शक्ति देता है।
भारतीय संस्कृति में रिश्तों का महत्व बहुत ज्यादा है और भाई-बहन का ये खास रिश्ता उसी का अहम हिस्सा है। हमने देखा है कि भारतीय समाज में भाई-बहन का प्यार और समर्पण अमूल्य है और यह एक-दूसरे के साथ साझा किए गए आदर्शों का परिणाम है।
आज बदलती दुनिया में जब हम तकनीक और विज्ञान से गहराई से जुड़े हुए हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पारिवारिक रिश्तों का महत्व हमारे जीवन में कभी कम नहीं हो सकता। रक्षा बंधन का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारे प्रियजन हमेशा हमारा समर्थन और सुरक्षा करेंगे।
इस अवसर पर मैं आप सभी से आग्रह करना चाहूंगा कि हमें अपने संबंधों के महत्व को समझना चाहिए और उन्हें मजबूती से बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए। हमारे पारिवारिक रिश्ते ही हमारे जीवन की सबसे मूल्यवान संपत्ति हैं और हमें हमेशा इसका सम्मान करना चाहिए।
मुझे यकीन है कि रक्षा बंधन के इस पवित्र त्योहार को मनाकर हम अपने रिश्तों को मजबूती और खुशियों से भर देंगे। अंत में, मैं आप सभी के लिए शुभकामनाएं और ईश्वर से आशीर्वाद की कामना करता हूं।
धन्यवाद!
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प्रिय विद्यार्थी मित्रों, सभी उपस्थित व्यक्तिगण,
सुप्रभात!
हमने बचपन से ही “रक्षा बंधन” का आयोजन किया है, जो हमें सिखाता है कि भाई-बहन का रिश्ता कितना महत्वपूर्ण है। चूँकि भाई-बहन का रिश्ता सबसे पवित्र और पावन होता है, इसलिए चाहे बहन हो या भाई, दोनों एक-दूसरे के प्रति अच्छी भावना रखते हैं और एक-दूसरे की प्रगति चाहते हैं, वह भी बिना किसी स्वार्थ के।
सच कहें तो रक्षाबंधन पवित्रता का पवित्र त्योहार है, जिसमें भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधने की परंपरा है। इस त्योहार के जरिए जहां भाई अपनी बहनों की सुख-समृद्धि और तरक्की की कामना करते हैं, वहीं बहन भी अपने भाई की लंबी उम्र के साथ उसकी तरक्की की प्रार्थना करती है।
इस त्यौहार की शुरुआत क्यों और कैसे हुई, इसके बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। एक समय की बात है, श्री कृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रहते थे। उन दिनों असुर बहुत शक्तिशाली हो गए थे और ऋषि-मुनियों तथा अन्य लोगों को भी परेशान करते थे।
असुरों के अत्याचार से तीनों लोकों के सभी प्राणी दुखी हो गये थे। ऋषि-मुनियों की पूजा तथा यज्ञ आदि करना सर्वथा असंभव हो गया था। राक्षस कभी बच्चों को चुरा लेते थे तो कभी अकारण ही लोगों को मारते-पीटते और लूट लेते थे, जो दिन शांति से बीत जाता था तो लोग उसे अपना बड़ा सौभाग्य समझते थे।
इस तरह काफी समय बीत गया और असुरों के बढ़ते उत्पात के कारण लोगों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया। लोग अपने बच्चों को घर के अंदर ही रखते थे और उन पर किसी की छाया भी नहीं पड़ने देते थे। ऋषि-मुनि और सन्यासी सभी डर के मारे कंदराओं में छिप जाते थे और वहीं पूजा-पाठ और यज्ञ-हवन करते थे।
समय-समय पर श्रीकृष्ण को राक्षसों के अत्याचारों की खबर मिलती रहती थी और वे प्रजा की रक्षा के लिए अपने दूत भेजते रहते थे। लेकिन राक्षसों के उपद्रव में कोई कमी नहीं आई, इसी पीड़ा से एक दिन सभी लोग इन उत्पात से दुखी होकर अपनी शिकायत लेकर रोते हुए श्री कृष्ण के पास आए।
अपनी प्रजा का कष्ट देखकर उस दिन श्रीकृष्ण के हृदय को बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने उसी समय वचन दिया कि अब वे स्वयं इन राक्षसों का विनाश करके ही दम लूंगा।
श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाई असुरों का नाश करने के लिए अस्त्र-शस्त्र लेकर तैयार होने लगे। उन्होंने अपनी पूरी चतुरंगिणी सेना को तैयार रहने का आदेश भी दिया। बड़े उत्साह से युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं। बलराम स्वभाव से थोड़े उग्र थे, लेकिन श्रीकृष्ण कभी क्रोध नहीं करते थे। परन्तु इस समय श्रीकृष्ण को भी क्रोधित होते देख सुभद्रा बहुत डर गयीं।
सुभद्रा इस बात से भली-भांति परिचित थीं कि श्रीकृष्ण का संकल्प कोई साधारण संकल्प नहीं है, वे एक बार जो कुछ करने की ठान लेते हैं तो उसे करके ही छोड़ते हैं। उन्हें श्रीकृष्ण की शक्ति का ज्ञान तो था ही, साथ ही वे राक्षसों के माया-जाल को भी जानती थीं।
यह सब सोचते-सोचते उनका मन अत्यंत बेचैन हो गया। फिर उन्होंने तुरंत पूजा की थाली सजाई और अपने भाइयों की मंगल कामना के लिए गौरी-पार्वती के मंदिर में प्रार्थना करने चली गई। मंदिर पहुंचकर उन्होंने गौरी-पार्वती की खूब पूजा-अर्चना की, साथ ही अपने भाइयों की लंबी उम्र और युद्ध में उनकी सफलता के लिए भी प्रार्थना की।
सुभद्रा की प्रार्थना से गौरी जी प्रसन्न हुईं। सुभद्रा ने देखा कि मां गौरी के गले का मंगलसूत्र अपने आप नीचे गिर गया है, उन्होंने प्रसाद समझकर तुरंत उसे उठा लिया और घर लौट आईं। सुभद्रा ने यह रेशम का धागा जो गौरी-पार्वती का मंगलसूत्र था, अपने दोनों भाइयों की कलाइयों पर बाँध दिया।
बहन सुभद्रा को पूर्ण विश्वास था कि गौरीजी का प्रसाद हाथ में बाँधने से उनके दोनों भाइयों का कल्याण अवश्य होगा और वे राक्षसों को परास्त करके अवश्य लौटेंगे। अंत में यह बात सत्य हुई, श्री कृष्ण और बलराम दोनों ही युद्ध में विजयी होकर आये। उनके लौटने पर बहन सुभद्रा ने बहुत उत्सव मनाया और कढ़ी चावल, खीर तथा अन्य स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने भाइयों को खिलाया।
माँ गौरी जी के मंगलसूत्र का प्रभाव किसी से छिपा नहीं था। अब सुभद्रा हर वर्ष सावन माह की पूर्णिमा को उसी मंदिर में जाती और गौरी-पार्वती की बहुत पूजा करती और जब मंगलसूत्र नीचे गिर जाता तो खुशी-खुशी उसे उठाकर माथे पर लगा लेती और घर लाकर अपने भाइयों के हाथों में बांध देती हैं और उनके सुखी जीवन की कामना करती।
धीरे-धीरे समय के साथ भाइयों के कलाई पर रक्षासूत्र बांधने का चलन बन गया और बढ़ता ही गया। अब सभी बहनें अपने भाइयों की रक्षा के लिए गौरा पार्वती का मंगलसूत्र लाकर हाथों में बांधने लगीं। कई सदियां बीत गईं लेकिन आज भी भाईयों की मंगलकामना के लिए रक्षाबंधन का त्योहार उसी भावना से मनाया जाता है।
धन्यवाद!
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