दुनिया कैसे बनी? पृथ्वी का इतिहास व जीवन की उत्पत्ति

दुनिया कैसे बनी? पृथ्वी का इतिहास व जीवन की उत्पत्ति

Prithvi Kaise Bani? ब्रह्मांड और दुनिया हमेशा से ही इंसानों के लिए रहस्य का विषय रहे हैं। आज इतनी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद हमारी धरती पर कई ऐसे रहस्य मौजूद हैं, जिनका पता लगाना वैज्ञानिकों के लिए भी लगभग नामुमकिन है।

आम लोगों के मन में पृथ्वी के संबंध में अनेक प्रश्न अवश्य होते होंगे, जैसे पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई? यह दुनिया कैसे अस्तित्व में आई? पृथ्वी का जन्म कब और कैसे हुआ? Earth ka nirman kaise hua? पृथ्वी कैसे बनी? पृथ्वी की संरचना कैसे हुई? इस तरह के सवालों का जवाब जानने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है।

कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रुष्टि या पृथ्वी का निर्माण देवता या ईश्वर ने किया है। वहीं, दुनिया की रचना को लेकर हिंदू, ईसाई और इस्लाम धर्म की मान्यताएं भी अलग-अलग हैं। वहीं, पृथ्वी की रचना को लेकर विज्ञान का नजरिया अलग है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी आग का गोला थी जो सूर्य से निकली और समय के साथ ठंडी होती गई, जिसके बाद पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई।

आज इस लेख में हम आपकी ऐसी ही सभी जिज्ञासाओं का समाधान करने का प्रयास करेंगे।

संसार की रचना कैसे हुई? पृथ्वी इतिहास – Duniya Kaise Bani

Earth Kaise Bani? पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिक मान्यता है कि लगभग 5 अरब वर्ष पूर्व अंतरिक्ष में कई गैसों के एक साथ मिलने से भयंकर विस्फोट हुआ था। इससे आग का एक विशाल गोला बना, जिसे अब हम सूर्य (Sun) कहते हैं।

धमाका इतना जोरदार था कि चारों तरफ धूल के कण (Dust particles) फैल गए। और गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational force) के कारण ये कण पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल गए। कई सालों के अंतराल के बाद ये कण आपस में जुड़ने लगे और कुछ समय बाद सौर मंडल (Solar system) का जन्म हुआ। और इस तरह लाखों साल बाद गुरुत्वाकर्षण के कारण पत्थर और चट्टान आपस में जुड़ने लगे, इस तरह धरती आग के गोले के रूप में पैदा हो रही थी। 

वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार 4.54 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी का तापमान 1200 डिग्री सेल्सियस था। ऐसे समय में धरती पर सिर्फ उबलता हुआ लावा, चट्टानें और कई जहरीली गैसें हुआ करती थीं। ऐसे में पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व होना असंभव था।

पृथ्वी की उत्पत्ति के समय थिया (Theia) नामक ग्रह 50 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी की ओर बढ़ रहा था। यह गति बंदूक से निकली गोली से 20 गुना अधिक होती है। ऐसे में जब थिया ग्रह पृथ्वी की सतह से टकराया तो जोरदार विस्फोट हुआ। जिससे बहुत सारा कचरा धरती से बाहर निकल गया और साथ ही वह ग्रह धरती में समा गया।

हजारों वर्षों के अंतराल के बाद गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से निकला कचरा एक गेंद के रूप में बन गया, जिसे हम चंद्रमा (Moon) कहते हैं, इस प्रकार चंद्रमा की उत्पत्ति हुई।

पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद अंतरिक्ष में बची शेष चट्टानें पृथ्वी पर गिरने लगीं। इन चट्टानों में अजीब प्रकार के क्रिस्टल होते थे जिन्हें आज हम नमक (Salt) के रूप में इस्तेमाल करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इन चट्टानों के अंदर मौजूद नमक से समुद्र का पानी बनता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार ये चट्टानें करीब 20 करोड़ साल तक धरती पर गिरती रहीं, जिससे धरती ने समुद्र के रूप में ढेर सारा पानी इकट्ठा कर लिया। इतने पानी के लगातार जमा होने से धरती की सतह ठंडी होने लगी और चट्टानें सख्त हो गईं। लेकिन लावा (Lava) अभी भी उसी रूप में पृथ्वी के आतंरिक भाग में मौजूद था। और सतह का तापमान 70-80 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

पृथ्वी पर वर्तमान जल लाखों वर्ष पूर्व का है। उस समय चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत निकट था जिसके कारण उसके गुरुत्वाकर्षण बल के कारण प्राय: पृथ्वी पर तूफान आते रहते थे, परन्तु एक लम्बे अन्तराल के बाद चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच दूरी बढ़ने के कारण पृथ्वी पर तूफान तूफ़ान शांत होने लगे।

पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई? – Prithvi Par Jeevan Kaise Aaya

धरती पर जीवन की इस यात्रा के दौरान 3.8 अरब साल पहले पानी की उत्पत्ति हुई थी। धरती पर लगातार ज्वालामुखी फट भी रहे थे और साथ ही उल्कापिंडों की बारिश भी हो रही थी। उल्कापिंडों के माध्यम से पानी और नमक के साथ-साथ अन्य पदार्थ भी पृथ्वी पर आ रहे थे। जिसमें कार्बन और अमीनो एसिड आदि पदार्थ थे जो हर जीव-जंतु और पौधे में मौजूद होते हैं।

इतनी ऊंचाई से उल्कापिंड गिरने के कारण वे गहरे पानी में चले जाते थे जहां सूर्य की किरणों का उन तक पहुंचना असंभव था। बाद में ये उल्कापिंड ठंडे होकर पानी में जमने लगे। 

इसके बाद यह एक तरह से चिमनियों का आकार लेने लगे और ज्वालामुखी की दरारों में पानी घुसने से चिमनियों से धुआं निकलने लगा, जिसने बाद में एक तरह के केमिकल सूप का रूप ले लिया। इससे पृथ्वी पर सूक्ष्म जीवन (Microscopic life) प्रारंभ हुआ और पृथ्वी पर एकल कोशिका जीवाणु (Single cell bacteria) की उत्पत्ति हुई।

पृथ्वी पर ऑक्सीजन की उत्पत्ति कैसे हुई? – Prithvi Kaise Bani

पृथ्वी की उत्पत्ति के समय जब समुद्र की निचली सतह पर पौधे और पत्तियां उग रही थीं और उन पर जीवित जीवाणु उत्पन्न हो रहे थे, वैज्ञानिक भाषा में इन्हें स्ट्रोमैटोलाइट (Stromatolite) कहते हैं। ये अपना भोजन सूर्य की किरणों से बनाते हैं और इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक रूप से प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहते हैं।

प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की प्रक्रिया में, सूर्य का प्रकाश कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है। इसके साथ ही इस प्रक्रिया में उपोत्पाद (Byproduct) के रूप में ऑक्सीजन गैस बनती है, जो मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण वायु है।

एक लंबी प्रक्रिया के बाद महासागरों में ऑक्सीजन गैस भर गई और इससे पानी में मौजूद लोहे में जंग लगने लगी और इससे लोहे का अस्तित्व सामने आया। लंबे अंतराल के बाद समुद्र की सतह पर ऑक्सीजन गैस आने लगी, जिससे जीवन संभव हुआ।

वैज्ञानिकों के अनुसार 2 अरब वर्षों तक पृथ्वी पर ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता रहा और साथ ही पृथ्वी के घूमने की समय सीमा भी कम होती गई। आज से 1.5 अरब साल पहले, एक दिन वर्तमान की तुलना में 16 घंटे का होता था।

धीरे-धीरे, समय के साथ, समुद्र के नीचे की भूमि की सतह बड़ी प्लेटों में तब्दील हो गई, और उसके नीचे के लावा ने ऊपर की सतह को गतिमान कर दिया। ऐसे में पृथ्वी की सभी प्लेटें आपस में जुड़कर एक विशाल द्वीप बन गईं। इस तरह लगभग 40 करोड़ साल पहले पृथ्वी के पहले सुपरकॉन्टिनेंट रोडिनिया (Supercontinent Rodinia ) का निर्माण हुआ था।

इससे अब पृथ्वी का तापमान घटकर 30 डिग्री सेल्सियस हो गया था और दिन 18 घंटे लंबे होते थे। उस समय पृथ्वी की स्थिति वर्तमान मंगल (Mars) जैसी ही थी। 

लगभग 7.50 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के नीचे पिघले हुए लावा से उत्पन्न ऊष्मा बाहर निकली, जिसने पृथ्वी को दो भागों में विभाजित कर दिया। इसके दो टुकड़ों में बंटने के कारण पृथ्वी की सतह कमजोर हो गई थी और यह दो भागों में बंट गई थी। जिससे साइबेरिया (Siberia) और गोंडवाना (Gondwana) नाम के दो महाद्वीप बन गए।

पृथ्वी को बर्फ के गोले में बदलने की प्रक्रिया

इतने सालों के बाद भी ज्वालामुखी के फटने और जहरीली गैसों के निकलने का सिलसिला अब भी जारी था। जहरीली गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड सूर्य से निकलने वाली किरणों को अवशोषित करने लगी और इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगा। 

बढ़ते तापमान के कारण समुद्र में गर्मी पैदा होने लगी और समुद्र का पानी भाप बनकर बादलों का रूप लेने लगा, साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण अम्लीय वर्षा (Acid rain) होने लगी। 

कार्बन डाइऑक्साइड के साथ वर्षा के कारण यह गैस चट्टानों और पत्थरों द्वारा अवशोषित हो गई और कुछ हजार वर्षों के बाद पृथ्वी का तापमान घटकर शून्य से -50 डिग्री कम हो गया। इससे धरती बर्फ के गोले में तब्दील हो गई।

धरती पर पानी कैसे आया?

ज्वालामुखी फटने की प्रक्रिया अभी भी चल रही थी लेकिन बर्फ की अधिकता के कारण ज्वालामुखी से निकलने वाली गर्मी बर्फ को पिघला नहीं पा रही थी और इसके अलावा कोई अन्य स्रोत नहीं था जो जहरीली गैस कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सके।

सभी चट्टानें और पत्थर बर्फ के नीचे दबे थे। कुछ समय बाद कार्बन डाइऑक्साइड गैस के बल ने सूर्य की गर्मी को अवशोषित करना शुरू कर दिया, जिससे बर्फ पिघलने लगी। इसके बाद पृथ्वी पर दिन 22 घंटे के हो गए।

पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कब और कैसे हुई?

Prithvi par jeevan kaise aaya? बर्फ के लगातार पिघलने से सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ रही थीं, जिससे एक रासायनिक अभिक्रिया शुरू हो गई और पानी से हाइड्रोजन पेरोक्साइड बनने लगा और उसके टूटने के बाद ऑक्सीजन बनने लगी।

जब ऑक्सीजन गैस धरती से 50 किमी ऊपर उठी तो वहां रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हो गई। जहां ओजोन (Ozone) नाम की एक परत बनी, जिसने सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को सीधे धरती पर आने से रोकने का काम किया। अगले 15 करोड़ सालों तक इस गैस की परत बहुत मोटी होती चली गई। और इधर पृथ्वी पर ऑक्सीजन गैस की मात्रा बढ़ने लगी जिससे पेड़-पौधे अस्तित्व में आए।

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