कबूतर का जोड़ा और शिकारी – पंचतंत्र की कहानी (The pigeon couple and the hunter)

कबूतर का जोड़ा और शिकारी - पंचतंत्र की कहानी (The pigeon couple and the hunter)

दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – कबूतर का जोड़ा और शिकारी की कहानी (The pigeon couple and the hunter) पेश कर रहे हैं। 

The pigeon couple and the hunter story in Hindi – Tales of panchatantra

कबूतर का जोड़ा और शिकारी - पंचतंत्र की कहानी (The pigeon couple and the hunter)
Kabootar Ka Joda Aur Shikari Story In Hindi

एक गांव में एक क्रूर और निर्दयी शिकारी रहता था। वह प्रतिदिन पास के जंगल में जाता था और विभिन्न प्रकार के पक्षियों को पकड़ता था और उन्हें मारकर खा जाता था और कुछ पक्षियों को बाजार में बेच देता था।

शिकारी की इस हरकत से नाराज होकर उसके परिवार वालों और उसके दोस्तों ने उसका साथ छोड़ दिया था। उस दिन के बाद वह एक झोपड़ी में जाली और लकड़ी लेकर अकेला रहने लगा।

एक शाम एक कबूतरी शिकारी के जाल में फंस गई। वह उस जाल में फंसी कबूतरी को लेकर अपने आश्रय की ओर चल पड़ा, तभी आकाश में घनघोर बादल छा गए और मूसलाधार वर्षा होने लगी।

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शिकारी आश्रय की तलाश करने लगा, और थोड़ी देर इधर-उधर देखने के बाद उसे एक पीपल का पेड़ दिखाई दिया। पीपल के खोल में प्रवेश करते हुए वह बोला, “यह जिस किसी का भी आसरा है, मैं उसकी शरण में हूं। इस समय जो भी मेरी मदद करेगा, मैं जीवन पर्यंत उसका ऋणी रहूंगा।”

यह आश्रय उस कबूतर का था जिसकी कबूतरी शिकारी के जाल में फंस गई थी। उस समय कबूतर अपनी पत्नी के वियोग से दुखी होकर बिलख रहा था। कबूतर को देखकर कबूतरी का मन हर्षोल्लास से भर गया। वह मन ही मन सोचने लगी, “ऐसा प्यारा पति पाकर मैं धन्य हो गई, मेरा जीवन धन्य हो गया। पति के सुख से ही हर स्त्री का जीवन सफल होता है।”

यह विचार कर कबूतरी अपने पति से बोली, “हे प्रियवर! मैं ठीक आपके सामने ही हूं, इस शिकारी ने मुझे अपने जाल में फंसा लिया है, यह मेरे उदंड कर्मों का ही फल है। आप मेरे बंधन की चिंता छोड़कर अपनी शरण में आए अतिथि की सेवा करो। जो जीव अतिथि की सेवा नहीं करता है, उसके सारे पुण्य अतिथि के साथ चले जाते हैं और सारे पाप वहीं छूट जाते हैं। यह शिकारी हमारी शरण में आया है, इसका सत्कार करना चाहिए।”

पत्नी की बात सुनकर कबूतर ने शिकारी से कहा, “चिंता मत करो शिकारी! इस घर को अपना ही घर समझो और मुझे बताओ कि मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकता हूं?”

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शिकारी ने कहा, “मुझे सर्दी लग रही है, सर्दी से निजात पाने का कोई उपाय करो।”

कबूतर ने आस-पास बिखरी लकड़ियों को इकट्ठा किया और उन्हें जलाकर शिकारी से कहा, “तुम आग सेक लो, तुम्हारी ठंड दूर हो जाएगी।”

अब कबूतर को अपने मेहमान के भोजन की चिंता सताने लगी। जब उसने अपने घोंसले में देखा तो उसे पता चला कि घोंसले में खाने के लिए एक दाना भी नहीं है।

कबूतर ने बहुत सोचने के बाद अपने शरीर से शिकारी की भूख शांत करने का विचार किया। यह सोचकर वह आतिथ्य सेवी कबूतर जलती आग में कूद पड़ा। उसने अपनी जान देकर मेहमान की भूख मिटाने का प्रण पूरा किया।

जब शिकारी ने कबूतर के इस बलिदान को देखा तो उसे आत्मग्लानि हुई, और उसने उसी समय से शिकार करना बंद कर दिया और कबूतरी को भी जाल से मुक्त कर दिया। इतना ही नहीं उसने पक्षियों को पकड़ने के सभी उपकरणों को भी तोड़कर फेंक दिया।

अपने पति को जलता देख कबूतरी विलाप करने लगी। उसने सोचा “मेरे पति के बिना मेरे जीवन का क्या महत्व है, मेरी दुनिया उजड़ गई है।” उसी क्षण पति के प्रति आस्थावान कबूतरी भी उसी अग्नि में कूद पड़ी।

इन दोनों का बलिदान देखकर आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी। यह देखकर शिकारी ने उसी क्षण से पशुहिंसा त्याग दी।

Kabutar aur Shikari Panchtantra ki Kahani Hindi

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