ओशो आचार्य रजनीश की जीवनी – Biography of Osho Acharya Rajneesh

ओशो आचार्य रजनीश की जीवनी - Biography of Osho Acharya Rajneesh

Osho Acharya Rajneesh Biography In Hindi – ओशो भारत के ऐसे आध्यात्मिक गुरु (Spiritual teacher) रहे हैं जिन्होंने ध्यान (Meditation) की बेहद महत्वपूर्ण विधियां बताईं। वर्तमान में ओशो के प्रशंसक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। उन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे में बताया और हमें ध्यान की शक्ति का बोध कराया।

ध्यान क्या है? हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? और ध्यान कैसे किया जाता है? ओशो ने अपने विचारों में इनके बारे में विस्तार से बताया है। कई बार मंच पर उनकी निंदा भी हुई, लेकिन उनके खुले विचारों के कारण उनके लाखों शिष्य भी हो गए हैं। उनकी मृत्यु के 30 वर्ष बाद भी उनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।

Table of Contents

अध्यात्मिक गुरु ओशो का संक्षिप्त में जीवन परिचय – Brief biography of Osho Acharya Rajneesh

नामरजनीश चंद्रमोहन जैन (Rajneesh Chandramohan Jain)
उपनाम / पहचानआचार्य रजनीश (Acharya Rajneesh), ओशो (Osho)
राष्ट्रीयताभारतीय
जन्म तिथि11 दिसंबर 1931
जन्म स्थानकुचवाड़ा (मध्य प्रदेश)
पिता का नामबाबूलाल जैन (Babulal Jain)
माता का नामसरस्वती जैन (Saraswati Jain)
धर्महिन्दू
पेशाआध्यात्मिक गुरु
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
मृत्यु19 जनवरी 1990, पुणे (महाराष्ट्र)

Osho ka jivan parichay

ओशो का जीवन परिचय – Osho Biography in Hindi

ओशो से पहले लोगों ने कई संतों, मनोवैज्ञानिकों, दार्शनिकों आदि को पढ़ा या सुना होगा, लेकिन ओशो ने उनके संदेशों का असली मतलब समझाया। ओशो ने सच्चे अर्थों में इस संसार को मानवता का एक नया अर्थ दिया, इस बोझिल जीवन को कैसे सार्थक बनाया जाए, इसकी एक नई सीख दी।

ओशो ने सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी सोच और मान्यताओं को नया अर्थ देने का काम किया और धर्म को एक नई परिभाषा दी। ओशो ने सिखाया कि कैसे बाहरी और आंतरिक दुनिया के साथ तालमेल बिठाकर जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है।

ओशो ने ध्यान की ऐसी पद्धतियों का परिचय दिया जिससे मनुष्य अपने अंतर्मन की गहराइयों तक पहुंचकर जीवन के अर्थ को समझ सके। ओशो हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि जीवन जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करो, उसे बदलने की कोशिश मत करो।

परिस्थितियों को बदलने और उनसे दूर भागने की कोशिश करने के बजाय, ओशो ने सिखाया कि कैसे उनके बारे में जागरूक होना और उनसे परे जाना है। 

ओशो अपने पीछे साहित्य का इतना बड़ा भंडार छोड़ गए हैं कि आप जो भी पढ़ेंगे आपको लगेगा कि ओशो ने इसके बारे में पहले ही बता दिया है। ओशो को सुनने और पढ़ने पर आपको ऐसा लगता है जैसे ओशो ने यह बात मेरे लिए ही कही है।

ओशो किसी भी पुरानी परंपरा का हिस्सा नहीं हैं, ओशो से एक नए युग की शुरुआत होती है, ओशो पूरब और पश्चिम के बीच का सेतु है। ओशो के माध्यम से एक नई मानवता का जन्म हुआ है जो अतीत की धारणाओं से पूरी तरह मुक्त है।

ओशो का जन्म और शिक्षा (Osho Life Story In Hindi)

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव कुचवाड़ा (Osho Birth Place) में हुआ था। ओशो का पूरा नाम और बचपन का नाम “रजनीश चंद्रमोहन जैन (Rajneesh Chandramohan Jain)” था।

ओशो के जन्म के समय एक अजीबोगरीब घटना घटी, कहा जाता है कि ओशो अपने जन्म के तीन दिनों तक न तो रोए और न ही अपनी मां का दूध पिया, जिससे उनके परिवार के लोग चिंतित हो गए।

इसके बाद ओशो के नाना, जो ओशो के काफी करीब रहे, ने ओशो की मां को समझाया कि तुम इसे नहा लो और इसके बाद इसे दूसरे कमरे में ले जाओ, यह तुम्हारा दूध पी लेगा और ठीक वैसा ही हुआ। इससे ओशो के नाना और ओशो की मां को अहसास हुआ कि उनके यहां पैदा हुआ बच्चा कोई साधारण बच्चा नहीं है।

ओशो का विद्रोही बचपन और स्कूली शिक्षा

ओशो बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे, उन्हें किसी भी बात के लिए इतनी आसानी से राजी करना आसान नहीं था। ओशो के लिए बरसात के मौसम में प्रचंड रूप से बहने वाली और उफान पर बहने वाली नदियों में तैरना एक साधारण सी बात थी।

ओशो असाधारण प्रतिभा के धनी थे जो उन्हें अपनी उम्र के अन्य बच्चों से अलग बनाता था। वे बचपन से ही स्वतंत्र और निडर स्वभाव के थे। सदियों पुरानी सोच और व्यवस्था को बदलने का उनका प्रयास किसी क्रांति से कम नहीं था।

अंधभक्तों की भीड़ के गुरु के रूप में बैठे तथाकथित महात्माओं से भरी भीड़ में वे बहस करने से नहीं डरते थे, उनके तीखे सवालों से पंडित और पुरोहित घबरा जाते थे।

बचपन में स्कूल के दिनों में वे शिक्षकों से ऐसे-ऐसे सवाल किया करते थे जो उनकी समझ से बाहर होते थे। लगातार इस तरह के सवालों से परेशान होकर स्कूल प्रशासन ने उनके क्लास में आने पर रोक लगा दी और नगर पालिका से शिकायत की कि इस बच्चे को अब से स्कूल नहीं आने दिया जाये।

लेकिन इस पर नगर पालिका ने हस्तक्षेप किया और स्कूल प्रबंधन से कहा कि वह एक जिज्ञासु बच्चा है और उसे पढ़ने की अनुमति दी जानी चाहिए। रजनीश स्कूल की परीक्षाओं में सबसे ज्यादा अंक लाकर शिक्षकों को चौंका देते थे।

ओशो की महाविद्यालयीन शिक्षा

ओशो ने 21 मार्च, 1953 को परम जागरण का अनुभव किया, जिसे ज्ञानोदय (Enlightenment) कहा जाता है। इस संबंध में ओशो की अभिव्यक्ति है कि “अब मैं किसी खोज में नहीं हूं, अस्तित्व ने मेरे लिए अपने सारे द्वार खोल दिए हैं।”

इस घटना के दौरान, ओशो मध्य प्रदेश के जबलपुर में कॉलेज में दर्शनशास्त्र (Philosophy) के छात्र थे। आत्मज्ञान के बाद भी, उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और 1957 में दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी और स्वर्ण पदक विजेता रहकर सागर विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की।

इसके बाद कुछ वर्षों तक उन्होंने जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में भी कार्य किया। वे छात्रों के बीच लोकप्रिय रूप से “आचार्य रजनीश (Acharya Rajneesh)” के नाम से जाने जाते थे। इस दौरान वे पूरे भारत में भ्रमण कर आध्यात्मिक जागृति की लहर फैला रहे थे।

ओशो ने अपने जीवन का 25 प्रतिशत हिस्सा अलग-अलग जगहों की यात्रा करने में बिताया था। उनके क्रांतिकारी प्रवचनों को सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती थी, उनकी उपस्थिति में एक ऐसा आकर्षण था जो लोगों को उनकी ओर खींचे जाने के लिए मजबूर कर देता था।

कॉलेज प्रोफेसर के पद से ओशो का इस्तीफा और भारत भ्रमण (About Osho in Hindi)

साल 1966 में, ओशो ने विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के पद से इस्तीफा दे दिया और अपना शेष जीवन उन लोगों को समर्पित कर दिया जो स्वयं को जानना चाहते थे और आध्यात्मिकता के गहरे अर्थ से परिचित होना चाहते थे। ओशो का मानना था कि वे सभी जो मानव रूप में जन्म ले चुके हैं वे ज्ञान के उस खजाने के हकदार हैं जो अस्तित्व ने उन पर बरसाया है।

ओशो ने अपने सन्यासियों को “ज़ोरबा द बुद्धा (Zorba the Buddha)” के रूप में परिभाषित किया, यानि एक ऐसा व्यक्ति जो ज़ोरबा की तरह जानता था कि भौतिक जीवन का पूर्ण रूप से आनंद कैसे लिया जाए, और जो, गौतम बुद्ध की तरह, गहन मौन में उतरने की कला जानता है।

“ज़ोरबा दी बुद्धा” को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से एक समृद्ध व्यक्ति कहा जाता है। वह जीवन को टुकड़ों में देखने के बजाय उसकी संपूर्णता को स्वीकार करता है।

श्री रजनीश आश्रम की स्थापना (Osho International Foundation In Hindi)

पूरे भारत की यात्रा करने के बाद 1970 में ओशो मुंबई रहने आ गए। ओशो के मुंबई आगमन के बाद भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों की भी भारी भीड़ ओशो की शिक्षाओं को समझने के लिए उत्सुक होने लगी।

यह वह समय था जब ओशो ने मनाली, हिमाचल प्रदेश में अपने एक ध्यान शिविर में नव-सन्यासियों को दीक्षा देना शुरू किया था। इसके बाद उन्हें आचार्य रजनीश से “भगवान श्री रजनीश (Bhagwan Shree Rajneesh)” के रूप में जाना जाने लगा।

1974 में, ओशो अपने कई अनुयायियों के साथ स्थायी रूप से रहने के लिए पुणे आ गए और यहां उन्होंने “श्री रजनीश आश्रम (Shri Rajneesh Ashram)” की स्थापना की। पूना आने के बाद भारत के साथ-साथ विदेशों में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी।

पूना में रहते हुए ओशो ने अपनी शिक्षाओं का जोरदार प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने अपने प्रवचनों में मानव-चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है जिस पर ओशो के प्रवचन उपलब्ध न हों। ओशो के प्रवचन हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध हैं।

अमेरिका के ओरेगन राज्य में “रजनीशपुरम (Rajneeshpuram)” की स्थापना – Rajneeshpuram in USA in Hindi

1980 में ओशो के विदेशी सन्यासियों ने अमेरिका के ओरेगॉन राज्य में 64 हजार एकड़ बंजर भूमि खरीदी और एक कम्यून बनाया जहां ओशो को रहने के लिए आमंत्रित किया गया था। ओशो अपने प्रवचनों में हमेशा कहा करते थे कि वे एक ऐसे कम्यून का निर्माण करना चाहते हैं जहां मनुष्य के संपूर्ण विकास की परिकल्पना हो और मनुष्य अपने पूर्ण विकसित रूप में प्रकट हो सके। ओशो का यह कम्यून सैन फ्रांसिस्को के आकार का तीन गुना था।

1980 में ओशो भारत छोड़ कर अपने कई सन्यासियों के साथ अमेरिका चले गए। उस 64 हजार एकड़ बंजर भूमि को एक सुंदर स्थान में बदलने के लिए ओशो के सभी संन्यासी दिन-रात काम कर रहे थे। इसी मेहनत का नतीजा था कि ओरेगन की रेगिस्तानी और बंजर घाटी कुछ ही समय में एक सुंदर और हरे-भरे वातावरण में तब्दील हो गई।

ओशो के अनुयायियों द्वारा इस स्थान का नाम “रजनीशपुरम (Rajneeshpuram)” रखा गया था। यह भगवान रजनीश का ऐसा स्थान था जहां उनका अपना निजी विमान था, अपना हवाई अड्डा था और रॉयल्स रॉयल कारों का पूरा बेड़ा भी था।

अमेरिका में निवास के दौरान ओशो की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी थी। ओशो से प्रभावित अधिकांश युवा तन, मन और धन से ओशो के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। इस तरह एक विदेशी व्यक्ति की बढ़ती लोकप्रियता से अमेरिकी सरकार घबरा गई थी।

ओशो को अमेरिकी सरकार ने जेल भेज दिया और उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ा

धीरे-धीरे अमेरिकी सरकार ने ओशो के आश्रम पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया। सरकार ने ओशो के यहां आने वाले संन्यासियों को वीजा देना बंद कर दिया और आश्रम में अवैध गतिविधियों की अफवाहें भी फैलाई जाने लगी साथ ही भगवान रजनीश की छवि खराब करने की पूरी कोशिश की जाने लगी।

इस संबंध में स्पष्टीकरण देते हुए ओशो ने कहा है कि:-

“मेरी एक भी बात का पश्चिम में उत्तर नहीं दिया जाता है, मैं राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन (अमेरिकी राष्ट्रपति) के साथ व्हाइट हाउस में एक खुले मंच पर चर्चा करने के लिए तैयार था क्योंकि वह एक कट्टरपंथी ईसाई हैं, उनका मानना है कि ईसाई धर्म ही एकमात्र धर्म है और बाकी सभी धर्म झूठे हैं, पाखंडी हैं, शायद मैं उन्हें दुश्मन की तरह महसूस होने लगा था।”

आखिरकार ओशो को अमेरिकी सरकार ने झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया और इस दौरान उन्हें 12 दिनों तक अज्ञातवास में रखा गया। ओशो का इस तरह जेल जाना उनके अनुयायियों के लिए किसी गहरे सदमे से कम नहीं था। इसके बाद तय हुआ कि अब भगवान रजनीश को अमेरिका में रहने नहीं दिया जाएगा।

14 नवंबर 1985 को ओशो ने अमेरिका छोड़ दिया और इस दौरान ओशो ने बसने के उद्देश्य से दुनिया के अलग-अलग देशों की यात्रा की। लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव में 21 देशों ने उन्हें अपने देश में नहीं रहने दिया, वहीं कुछ देशों ने ओशो के देश में प्रवेश पर रोक लगा दी।

ओशो की भारत वापसी

इसके बाद 1987 में ओशो फिर से अपने आश्रम और अपने देश भारत लौट आए, उनके पुणे स्थित आश्रम को आज “ओशो इंटरनेशनल कम्यून (Osho International Commune)” के नाम से जाना जाता है। भारत पहुंचने के कुछ दिनों बाद ओशो ने एक बार फिर प्रवचन देना शुरू कर दिया।

ओशो ने अपने प्रवचनों में पाखंड और मानवता के खिलाफ साजिशों का पर्दाफाश करना शुरू कर दिया। इस दौरान भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों ने ओशो के प्रति अपने लेखों में निर्दलीय सोच को अपनाया।

अक्सर ओशो के लेख अखबारों और पत्रिकाओं में छपने लगे थे। ओशो आश्रम पुणे में अधिकांश कला वर्ग के लोग आने लगे। मानवता के लंबे समय से पोषित सपने को पूरा होते देख लोगों को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

ओशो द्वारा भगवान् शब्द का त्याग और उनकी मृत्यु का पूर्वाभास

26 दिसंबर 1988 को ओशो ने अपने नाम से “भगवान (Bhagwan)” शब्द हटा दिया और आश्रम के बुद्ध सभागार में शाम की सभा (सत्संग) में सभी प्रेमियों ने अपने सद्गुरु को “ओशो (Osho)” कहकर संबोधित करने का फैसला किया।

इसके बाद ओशो का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, उनका शरीर कमजोर होकर अंदर से क्षीण होता जा रहा था। ऐसा माना जाता है कि उनके बिगड़ते स्वास्थ्य का कारण यह था कि उन्हें 1985 में अमेरिकी जेल के दौरान “थैलियम (Thallium)” नामक एक धीमा जहर दिया गया था और उनके शरीर को जानलेवा रेडिएशन से गुजरा गया था।

इस दौरान ओशो ने अचानक अपने प्रवचनों की संख्या बढ़ा दी थी। माना जाता है कि शायद ओशो को इस बात का अहसास हो गया था कि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है। ओशो हर रात पुणे आश्रम में अपने अनुयायियों के साथ ध्यान, सत्संग और प्रवचन करते रहे।

ओशो की आवाज में एक तरह का आकर्षण था, उनकी आवाज में ऐसा जादू था जिसने लाखों लोगों को प्रभावित किया। लेकिन 1989 में ये जादुई आवाज अचानक खामोश हो गई।

ओशो का शरीर अत्यंत कमजोर हो गया था, जिसके कारण उन्होंने व्याख्यान देना बंद कर दिया और केवल कुछ समय के लिए रात्रि सत्संग में अपने सन्यासियों के साथ मौन बैठकों में भाग लेने लगे। इस रात्रि सत्संग को ओशो ने “ओशो वाइट रॉब ब्रदरहुड (Osho White Robe Brotherhood)” नाम दिया था।

ओशो 16 जनवरी, 1990 तक हर रात सत्संग में भाग लेते रहे और 17 जनवरी को नमस्कार करके ही सत्संग से वापस चले गए। 18 जनवरी 1990 को पुणे आश्रम में रात्रि सत्संग के दौरान उनके निजी चिकित्सक स्वामी प्रेम अमृतो ने बताया कि ओशो के शरीर का दर्द बहुत बढ़ गया है इसलिए वह हमारे बीच नहीं आ सकते है। लेकिन वह अपने कमरे में ही हमारे साथ सात बजे से ध्यान में बैठेंगे।

ओशो का अंतिम विदाई समारोह

19 जनवरी, 1990 को ओशो अपने जर्जर और दर्द भरे शरीर को छोड़कर हमेशा के लिए अनंत में विलीन हो गए। जिसकी घोषणा 19 जनवरी को शाम की बैठक के दौरान की गई। ओशो की इच्छा थी कि जब वह देह त्याग देंगे तब उनके चाहने वाले रोएं नहीं, दुखी न हों, उनकी मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाएं। तदनुसार, ओशो के पार्थिव शरीर को उनके पुणे आश्रम के गौतम बुद्ध ऑडिटोरियम हॉल में दस मिनट के लिए रखा गया था।

लगभग दस हजार ओशो शिष्यों और प्रेमियों ने उत्सव, संगीत-नृत्य, ध्यान और मौन के रूप में अपने प्रिय सद्गुरु की अंतिम विदाई मनाई। इसके बाद उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया।

21 जनवरी, 1990 को उनके अस्थि-फूल के कलश को औपचारिक रूप से कम्यून में लाया गया और “चुआंग त्ज़ु हॉल (Chuang Tzu Hall)” में बने संगमरमर के मकबरे में स्थापित किया गया।

उनकी समाधि पर स्वर्ण अक्षरों से अंकित है:-

Never Born 
Never Died 
Only Visited this 
Planet Earth between 
Dec. 11, 1931 – Jan. 19, 1990

आखिर ओशो का इस धरती पर आने का उद्देश्य पूरा हुआ, लोग उनकी बातों को समझने लगे। जीवन और मृत्यु को उत्सव समझ जीवन को हर पल जीने की ओशो की सिखाई बातों को लोग समझ चुके थे।

आज से लगभग 30 साल पहले ओशो के समकालीन शायद ओशो की बातों को नहीं समझ पाए होंगे और समाज के लिए भी इतनी आसानी से उनकी बातों को मान लेना आसान नहीं रहा होगा। लेकिन वर्तमान में ओशो पहले से कहीं अधिक जीवंत हैं।

अपने चाहने वालों के लिए ओशो का आखिरी संदेश

“तुम मेरे शरीर को जाके, अर्थी पर चढ़ाके जला देना, लेकिन अगर किसी ने हृदय से भरकर मुझसे प्रश्न पुछा, तो उसे उत्तर मिल जायेगा। क्योंकि मैं तो हूँ, मैं तो रहूँगा, मुझे जलाने का कोई उपाय नहीं हैं और मुझे मिटाने का कोई उपाय नहीं हैं।”

ओशो के अनसुने और रोचक तथ्य हिंदी में – Unheard and interesting facts of Osho in Hindi

  • जब ओशो का जन्म हुआ तो उसके तीन दिन बाद तक ओशो न तो रोए और न ही दूध पिए। तीन दिन बाद जब ओशो को नहलाया गया तो ओशो पहली बार रोए।
  • ओशो बहुत जिज्ञासु थे, उन्हें हर बात जानने की जिज्ञासा होती थी। एक बार 12 साल की उम्र में ओशो रात में श्मशान घाट गए ये जानने के लिए कि मरने के बाद इंसान का क्या होता है और वो कहां जाता है।
  • ओशो बाएं हाथ से लिखते थे।
  • ओशो को जूते पहनना पसंद नहीं था इसलिए वह हमेशा चप्पल ही पहनते थे।
  • ओशो ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें 365 रोल्स रॉयल कारें खरीदनी हैं। एक समय था जब उनके पास 90 से अधिक Rolls Royal कारें थीं।
  • ओशो को फोटो खिंचवाने का शौक था और सुंदर पेन रखने का शौक था।
  • ओशो के पिता के पास 1400 एकड़ जमीन थी।
  • ओशो को किसी भी काम में देरी बिल्कुल पसंद नहीं थी।
  • उन्हें किताबें पढ़ने का शौक था, इसलिए वे कभी-कभी किताबें खरीदने चोर बाजार भी जाया करते थे।
  • ओशो अपने भोजन के लिए सोने और चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे।
  • ओशो को धूल और मिट्टी से एलर्जी थी और वे दुर्गंध वाली जगह पर नहीं सो सकते थे।
  • ओशो को पढ़ना-लिखना बहुत पसंद था। जब वे किशोर थे, तो वे एक दिन में 3-3 किताबें पढ़ते थे। उन्हें जर्मनी, मार्क्स और भारतीय दर्शन पर किताबें पढ़ना ज्यादा पसंद था।
  • ओशो हमेशा से लग्जरी लाइफ जीना पसंद करते थे। बचपन में एक बार उन्होंने यह जिद पकड़ ली थी कि उन्हें हाथी पर बैठकर स्कूल जाना है। उनकी जिद के आगे उनके पिता को हाथी मंगवाना पड़ा और उनको हाथी पर सवार होकर स्कूल छोड़ना पड़ा।
  • ओशो अपने दोस्तों को नदी में नहाते समय डुबा देते थे। इसी बात को लेकर उनका अपने दोस्तों से विवाद होता रहता था और इस पर वह कहते थे कि वह देखना चाहते हैं कि मरना कैसा होता है।
  • ओशो ने अपने पिता को भी सन्यास दिला दिया था, सन्यास लेते ही ओशो के पिता उनके चरणों में गिरकर रोने लगे।
  • ज्योतिषियों ने 21 वर्ष तक प्रत्येक सातवें वर्ष उनकी मृत्यु का योग बताया था। जब ओशो 14 साल के थे तब उन्होंने 7 दिनों तक एक मंदिर में लेटकर अपनी मृत्यु का इंतजार किया। वहां एक सांप भी आया लेकिन उसने कुछ नहीं किया।

ओशो की पुस्तके (Osho Books in Hindi)

  • अकथ कहानी प्रेम की: फरीद-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
  • अकथ कहानी प्रेम की: फरीद-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
  • अजहूं चेत गंवार: पलटू-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं इक्कीस OSHO Talks
  • अंतर की खोज: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सूरत में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चार OSHO Talks
  • अंतर्यात्रा: ध्यान साधना शिविर, आजोल में ध्यान-प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं आठ OSHO Talks
  • अंतर्वीणा: विभिन्न मित्रों व प्रेमियों को ओशो द्वारा लिखे गए 150 पत्रों का संग्रह
  • अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 1: शांडिल्य के भक्ति-सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 40 OSHO Talks में से 20 (01 से 20) OSHO Talks का संग्रह
  • अथातो भक्ति जिज्ञासा, भाग 2: शांडिल्य के भक्ति-सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 40 OSHO Talks में से 20 (21 से 40) OSHO Talks का संग्रह
  • अध्यात्म उपनिषद: ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई सीरीज के अंतर्गत अध्यात्म उपनिषद के सूत्रों पर दी गईं सत्रह OSHO Talks
  • अनंत की पुकार: ओशो के कार्य में संलग्न कार्यकर्ताओं के बीच लोनावला, नारगोल, माथेरान एवं मुंबई में प्रश्नोत्तर सहित दी गईं चौदह OSHO Talks का संग्रह
  • अनहद में बिसराम: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
  • अपने माहिं टटोल: ध्यान साधना शिविर, उदयपुर में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
  • अमी झरत बिगसत कंवल: दरिया-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चौदह OSHO Talks
  • अमृत की दिशा: ध्यान साधना पर पुणे एवं मुंबई में दी गईं पांच OSHO Talks का संग्रह
  • अमृत द्वार: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं पांच OSHO Talks
  • अमृत वाणी: ओशो द्वारा विविध बिंदुओं पर लिखे गए तैंतीस क्रांति-सूत्रों का संग्रह
  • अरी, मैं तो नाम के रंग छकी: जगजीवन साहिब के वचनों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
  • असंभव क्रांति: ध्यान साधना शिविर, माथेरान में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं दस OSHO Talks
  • आंखों देखी सांच: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं पांच OSHO Talks
  • आपुई गई हिराय: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
  • ईशावास्योपनिषद: ध्यान साधना शिविर, माउंट आबू में हुई सीरीज के अंतर्गत ईशावास्योपनिषद के सूत्रों पर दी गईं तेरह OSHO Talks
  • उड़ियो पंख पसार: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
  • उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र: प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
  • उपासना के क्षण: मित्रों व प्रेमियों के छोटे-छोटे समूहों के बीच प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दी गई ग्यारह अंतरंग वार्ताओं का संग्रह
  • एक एक कदम: सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित दी गईं सात OSHO Talks का संग्रह
  • एक ओंकार सतनाम: गुरु नानकदेव के ‘जपुजी’ पर पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं बीस OSHO Talks
  • एक नया द्वार: जीवन के विभिन्न पहलुओं पर इंदौर में दी गईं पांच OSHO Talks का संग्रह

Osho Acharya Rajneesh FAQ

Q – ओशो का जन्म कब और कहां हुआ था?
A – ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव कुचवाड़ा में हुआ था।

Q – ओशो का असली नाम क्या था?
A – ओशो का पूरा नाम और बचपन का नाम “रजनीश चंद्रमोहन जैन (Rajneesh Chandramohan Jain)” था।

Q – ओशो की समाधि पर कौन से शब्द लिखे हैं?
A – Never Born
Never Died
Only Visited this
Planet Earth between
De. 11, 1931 – Jan. 19, 1990

Q – ओशो की मृत्यु कब और कहां हुई थी?
A – 19 जनवरी 1990 को पुणे के आश्रम में ओशो का निधन हो गया।

———————————————-//

उम्मीद है की आपको यह जानकारी अच्छी लगी. इसे अपने दोस्तों के साथ भी करे, हमारे अगले Post प्राप्त करने के लिए हमें करे और हमारा Facebook page करे, अपने सुझाव हमें Comments के माध्यम से दे.