नीम करौली बाबा की जीवनी – Biography of Neem Karoli Baba 

नीम करौली बाबा की जीवनी - Biography of Neem Karoli Baba

Neem Karoli Baba Biography In Hindi – भारतवर्ष ऋषि मुनियों की भूमि रहा है. प्राचीन काल से लेकर अब तक भारत में महात्माओं के अनेक रूप हुए हैं. बाबा नीम करोली भारत की एक ऐसी ही चमत्कारी शख्सियत थे. देश-विदेश में फैले उनके अनुयायी उन्हें भगवान हनुमान का अवतार (Incarnation of lord Hanuman) मानते हैं.

हालांकि वह जीवनभर दिखावे से दूर रहे. व्यक्तित्व से वे सादगी और सदाचारपूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे. एक साधारण व्यक्ति की तरह रहने वाले बाबा भक्तों को अपने पैर भी छूने नहीं देते थे, वे उन्हें हनुमान जी के पैर छूने के लिए कहते थे.

आध्यात्मिक संत, महान गुरु और दूरदर्शी नीम करोली बाबा पर भक्तों की गहरी आस्था है. उन्हें नीब करौरी बाबा (Neeb Karauri Baba) और महाराजजी (Maharajji) भी कहा जाता था.

आम जनता के साथ ही राजनीति, खेल, बॉलीवुड और हॉलीवुड की दुनिया से कई नामी हस्तियां बाबा के आश्रम में दर्शन के लिए पहुंचती हैं. उनके संबंध में अनेक प्रकार की अविश्वसनीय चमत्कारी कहानियां प्रसिद्ध हैं.

आज इस लेख में हम उनके संपूर्ण जीवन परिचय की जानकारी (Neem Karoli Baba In Hindi) देने जा रहे हैं.

बाबा नीम करौली का संक्षिप्त में जीवन परिचय – Brief biography of Neem Karoli Baba

नामलक्ष्मीनारायण शर्मा
(Lakshminarayan Sharma)
उपनाम / पहचानबाबा नीम करौली
(Neem Karoli Baba)कैंची धाम वाले बाबा
(Kainchi Dham Wale Baba)
राष्ट्रीयताभारतीय
जन्म तिथि1900 के आसपास
जन्म स्थानअकबरपुर, उत्तर प्रदेश
पिता का नामदुर्गा प्रसाद शर्मा
माता का नामकौशल्या देवी शर्मा
गुरुहनुमानजी
धर्महिंदू 
पेशाहिंदू आध्यात्मिक गुरु
वैवाहिक स्थितिविवाहित
पत्नी का नामराम बेटी
बच्चेअनेग सिंह शर्मा (पुत्र)धर्म नारायण शर्मा(पुत्र)गिरजा देवी (पुत्री)
शिष्यभगवान दास, कृष्णा दास, रामदास, राम रानी, सूर्य दास आदि.
समाधि समय11 सितंबर 1973
समाधि स्थलवृंदावन, उत्तर प्रदेश

नीम करोली बाबा कौन थे? Who was Neem Karoli Baba?

बाबा नीब करोरी का प्रारंभिक जीवन (Early life of Baba Nib Karori): नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था. उनका जन्म 1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के पास अकबरपुर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके माता का नाम कौशल्या देवी शर्मा और पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था जो एक बहुत बड़े जमींदार थे.

ग्यारह वर्ष की आयु में, नीम करोली बाबा का विवाह एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार की लड़की राम बेटी से हुआ था. लेकिन जल्द ही लक्ष्मी नारायण का मन घर-गृहस्थी से उठ गया और उन्होंने उसी समय घर छोड़ने का फैसला कर लिया.

बाबा ने अपना घर-परिवार त्याग दिया और एक सन्यासी की तरह पूरे उत्तर भारत में भ्रमण करने लगे. बाबा ने प्रारंभ में गुजरात के मोरबी से 35 किलोमीटर दूर एक गांव में साधना की. यहां रहते हुए उन्होंने बहुत सारी सिद्धियां प्राप्त की. उन्होंने मात्र 17 वर्ष की आयु में ववनिया मोरबी में तपस्या करते हुए ज्ञान प्राप्त किया.

यहां आश्रम के गुरु महाराज ने उनका नाम लक्ष्मण दास रख दिया. बाद में महंत ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया. परन्तु अन्य शिष्यों के विवाद के कारण वह शीघ्र ही वह स्थान छोड़कर चले गए.

उस दौरान उन्हें लक्ष्मण दास (Laxman Das), हांडी वाले बाबा (Handi Wale Baba) और तिकोनिया वाले बाबा (Tikonia Wale Baba) समेत कई अन्य नामों से जाना जाता था.

इसके बाद वे राजकोट के पास बवाना गांव आए और उन्होंने एक तालाब के किनारे हनुमान जी का मंदिर स्थापित किया. यहां वे तालाब में खड़े होकर घंटों तपस्या करते थे. जिसके कारण, उन्हें तलैया बाबा (Talaiya Baba) के नाम से पुकारा जाने लगा.

1967 में एक संत रमाबाई (Saint Ramabai) को आश्रम समर्पित करने के बाद, बाबा मां गंगा से मिलने के लिए आगे की यात्रा पर निकल पड़े.

बाबा का नाम “नीम करोली” कैसे पड़ा? How did Baba get the name “Neem Karoli”?

बाबा मां गंगा मैया के दर्शन करने के लिए टूंडला से फर्रुखाबाद जाने वाली ट्रेन के प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे. लेकिन जब टिकट चेकर आया तो बाबा के पास टिकट नहीं था. तब टिकट निरीक्षक ने उनका अपमान किया और उन्हें अगले स्टेशन “नीबकरोरी (Nibkarori)” पर ट्रेन से उतार दिया. बाबा भी बिना किसी विरोध के शांतिपूर्वक ट्रेन से उतर गए.

फिर बाबा कुछ दूर जाकर एक नीम के पेड़ के नीचे अपना चिपटा जमीन में गाड़कर बैठ गए. इसके बाद अधिकारियों ने ट्रेन चलाने का आदेश दिया और गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, लेकिन ट्रेन अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिली.

जब काफी कोशिशों के बाद भी ट्रेन नहीं चली तो बाबा को जानने वाले स्थानीय मजिस्ट्रेट ने अधिकारियों से कहा कि वे बाबा से माफी मांगें और उन्हें सम्मान के साथ अंदर ले आएं. ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेट की सलाह का समर्थन किया.

मजिस्ट्रेट और अन्य लोगों के अनुरोध पर, अधिकारियों ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें सम्मान के साथ ट्रेन में वापस बिठाया. बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन शुरू हो गई और चल पड़ी.

उनके साथ उस गांव के कई लोग गंगा मैया में स्नान करने जा रहे थे; उन्होंने बाबा से अपने गांव में ही रहने का अनुरोध किया.

तब बाबा ने ग्रामीणों से एक गुफा बनवाने को कहा. उसी समय बाबा ने अपने हाथों से हनुमान जी की मूर्ति का निर्माण किया, जो आज भी नीम करौली धाम में मौजूद है. बाबा उस गुफा में कई दिनों तक घोर साधना करते थे. बताया जाता है कि तभी से बाबा का नाम “नीम करोली” पड़ गया.

बाबा नीम करौली हनुमान जी के परम भक्त थे (Baba Neem Karauli was the supreme devotee of Hanuman ji)

नीम करोली बाबा स्वयं हनुमान जी के उपासक थे और माना जाता है कि बाबा नीब करोरी ने हनुमान जी की आराधना कर कई सिद्धियां प्राप्त कीं थीं. बाबा को मानने वाले उन्हें हनुमान जी का ही अवतार मानते थे.

अब नीम करोली बाबा इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके भक्त आज भी उन्हें उसी श्रद्धा से पूजते हैं. बाबा ने अपने जीवन में देश भर में लगभग 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया.

कैंची धाम नीम करौली बाबा आश्रम (Kainchi Dham Neem Karoli Baba Ashram)

1961 में पहली बार बाबा नीम करौली उत्तराखंड में नैनीताल के पास कैंची धाम (Kainchi Dham) आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी (Purnanand ji) के साथ यहां एक आश्रम बनाने का विचार रखा था. 

बाबा नीम करौली ने 1964 में इस आश्रम की स्थापना की जिसे “नीम करोली बाबा आश्रम (Neem Karoli Baba Ashram)” के नाम से जाना जाता है. कैंची धाम आश्रम, नैनीताल, भुवाली से 7 किमी दूर स्थापित किया गया था.

उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में बसा यह छोटा सा आश्रम देवदार के पेड़ों के बीच एक पहाड़ी इलाके में स्थित है. समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित यह आश्रम बेहद शांत, स्वच्छ, हरियाली से भरपूर और शांति से भरपूर है.

उनके आश्रम में उनके जीवित रहते और समाधि लेने के बाद भी देश-विदेश से उनके अनुयायियों का ताता लगा रहता है.

देश-विदेश में नीम करोली बाबा के असीम भक्त हैं (Devotees of Neem Karoli Baba)

नीम करोली बाबा की ख्याति देश-विदेश में फैली हुई है. बाबा को भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों और विभिन्न धर्मों के लोग भी पूजते हैं और उन्हें अपना गुरु मानते हैं.

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और क्रिकेटर विराट कोहली से लेकर बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा तक नीम करोली बाबा के भक्त हैं.

नीम करोली बाबा के भक्तों में Apple के मालिक स्टीव जॉब्स (Steve Jobs), Facebook के मालिक मार्क जकरबर्ग (Mark Zuckerberg) और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स (Julia Roberts) जैसी विश्व प्रसिद्ध हस्तियों का नाम लिया जाता है.

कहा जाता है कि नीम करोली बाबा के धाम में आने से उनका जीवन बदल गया और उन्होंने जीवन की ऊंचाइयों को प्राप्त किया.

अमेरिकी लेखक और टेक्नोलॉजिस्ट लैरी ब्रिलियंट (Larry Brilliant) भी उत्तराखंड में कैंची धाम के दर्शन कर चुके हैं. उनकी पत्नी भी बाबा नीम करोली के प्रति श्रद्धा रखती हैं.

बताया जाता है कि बाबा के आश्रम में ज्यादातर अमेरिकी आते हैं.

कैंची धाम मेला (Kainchi Dham Mela)

हर साल 15 जून को देवभूमि कैंची धाम में विशाल मेले का आयोजन होता है और बाबा नीम करौली के लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से यहां आते हैं.

बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान का अवतार (Avatar of Lord Hanuman) माना जाता है और इस धाम में श्रद्धालु इसी विश्वास के साथ उनकी पूजा करते हैं. देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं. इस स्थान पर बाबा के भक्तों द्वारा भगवान हनुमान जी का एक भव्य मंदिर भी बनाया गया है.

बाबा नीम करोली स्वयं हनुमानजी के अनन्य भक्त थे और उन्होंने देश भर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे. यहां हनुमान मंदिर समेत 5 अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं.

बाबा नीम करौली का देहावसान

11 सितंबर 1973 की सुबह वृंदावन के एक अस्पताल में बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया था. बताया जाता है कि उस रात वे आगरा से नैनीताल जा रहे थे, लेकिन सीने में दर्द और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के चलते उन्हें वृंदावन स्टेशन पर ही उतरना पड़ा.

अंतिम समय में उन्होंने स्वयं गंगाजल पीकर अपने शरीर का त्याग किया. 

नीम करोली बाबा का समाधि स्थल (Neem Karoli Baba Samadhi)

नीम करोली बाबा की जागृत समाधि (Mausoleum) आज भी वृंदावन में स्थित है. यह एक ऐसा दिव्य और जागृत स्थान है जहां कोई भी भक्त जो मन्नत मांगता है वह खाली हाथ नहीं लौटता है. यहां बाबा नीम करोली और हनुमान जी की भव्य मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं.

बुलेटप्रूफ कंबल (Bulletproof Kambal)

बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट (Richard Albert – रामदास) ने बाबा पर लिखी गई किताब “मिरेकल ऑफ लव (Miracle of Love)” में उनके चमत्कारों का वर्णन किया है, जिसमें ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नामक घटना का उल्लेख किया गया है. इस किताब के बाद बाबा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर कोई जानने लगा.

बाबा हमेशा अपने आप को कंबल से ढक कर रखते थे, जिसके कारण आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें श्रद्धा से कंबल चढ़ाते हैं.

बाबा नीब करोरी के इस पवित्र धाम के बारे में कई आश्चर्यजनक चमत्कारी किस्से बताए जाते हैं.

प्रचलित मान्यता है कि एक बार भंडारे के समय घी की कमी हो गई तो बाबा की आज्ञा से घाटी में नीचे बहने वाली शिप्रा नदी से एक बादली में जल भरकर लाया गया. जब यह जल प्रसाद के लिए प्रयोग किया गया तो यह घी में परिवर्तित हो गया था.

एक और जनश्रुति है कि बाबा ने अपने एक भक्त को चिलचिलाती धूप से बचाने के लिए बादलों की छतरी बनाकर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाया था.

हनुमानगढ़ी मंदिर के निर्माण कार्य के दौरान एक दिन बहुत तेज बारिश होने लगी और रुकने का नाम नहीं ले रही थी. तभी नीम करोली बाबा बाहर निकले और आकाश की ओर जल भरे काले बादलों को देखकर बोले, यह तो अति भयंकर है, अति भयंकर! तब महाराज जी ने ऊपर देख कर अपने दोनों हाथों से अपने शरीर पर से कम्बल हटाते हुए कुछ गर्जना के साथ कहा – “पवन तनय बल पवन समाना”. 

इतना कहते ही तेज हवा तत्काल बादलों को उड़ा ले गई और बारिश भी रुक गई. बाबा के इस चमत्कार से एक पल में ही आसमान भी साफ हो गया था.

एक बार कुछ माताएं भूमिधर में बाबा का पूजन करने आई थीं, पर उस दिन बाबा आश्रम में उपस्थित नहीं थे. बाबा मोटर रोड के प्रवेश द्वार पर बैठे थे. यह देखकर सभी माताएं वहां जाकर पूजा-अर्चना और बाबा के दर्शन करने का विचार करने लगीं. 

लेकिन बाबा ने उन्हें दूर से ही हाथ हिलाकर लौटने का इशारा किया. बाबा जी के पास उनके सहयोगी गुरुदत्त शर्मा भी बैठे थे. महिलाओं को निराश देख उन्होंने बाबा से दर्शन देने की प्रार्थना की.

बाबा ने उनके अनुरोध पर सहमति व्यक्त की और माताओं को आज्ञा दी और उन्हें शीघ्र पूजा करके जाने को कहा. महिलाएं पूजा की तैयारी करने लगीं, लेकिन दिया और धुप-बत्ती जलाने के लिए माचिस लाना भूल गईं.

माताओं ने बाबा के पास बैठे गुरु दत्त शर्मा जी को उनकी समस्या बताई, लेकिन वे उनकी मदद करने में असमर्थ थे. तब बाबा ने हाथ में रूई की बत्ती ली और “ठुलिमां ठुलिमां” कहते हुए उन पर हाथ फेरने लगे और तुरन्त ही दीप प्रज्वलित हो गया. यह नजारा देख हर कोई हैरान रह गया.

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