नागा साधुओं का इतिहास और रोचक तथ्य – History and Interesting facts about Naga Sadhus

History and Interesting facts about Naga Sadhus - नागा साधुओं का इतिहास और रोचक तथ्य

Information and facts about Naga Sadhu in Hindi – नागा साधुओं के बारे में तो आपने सुना ही होगा या फिर आपने उन्हें कुंभ में देखा होगा. नागा साधु अक्सर कुंभ मेले के दौरान ही देखे जाते हैं. कुंभ मेले में नागा साधुओं को लेकर आम जनता में और विशेष रूप से विदेशी पर्यटकों में काफी जिज्ञासा और कौतुहल रहता है. 

नागा साधु अपने शरीर पर किसी भी तरह के कपड़े नहीं पहनते हैं और हमेशा नग्न रहते हैं, जिसके कारण उन्हें दिगंबर भी कहा जाता है.

वस्त्र के नाम पर धूनी की राख को पूरे शरीर पर लपेटने वाले ये साधु कुंभ मेले में शाही स्नान के समय ही भक्तों के सामने खुलकर आते हैं.

नागा साधुओं को धार्मिक रक्षक और सच्चे तपस्वी कहा जाता है और उन्हें कुंभ में सबसे पहला शाही स्नान करने का अधिकार भी मिलता है, उसके बाद आम जनता पवित्र स्नान करती है.

नागा साधु कौन हैं और उनकी भूमिका क्या है? Who are Naga Sadhus and what is their role?

नागा साधु हिंदू धार्मिक भिक्षु-संन्यासी होते हैं जो पूर्णतः नग्न रहने और युद्ध कला में निपुण होने के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं. वे विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परंपरा आदिगुरु श्री शंकराचार्य ने स्थापित की थी.

दिगंबर देह, मस्तक पर तिलक, पूरे शरीर पर भभूत, हाथ में भाला और उग्र रूप होने के बावजूद नागा बाबा संसार के हितैषी और कठोर तपस्वी होते हैं. कहा जाता है कि भारत में नागा साधुओं की संख्या 5 लाख से अधिक है.

नागों के प्रमुख पांच गुरु भगवान शंकर, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश माने जाते हैं.

नागा साधुओं का इतिहास – History of Naga Sadhu

नागा बाबाओं की उत्पत्ति आदि जगत गुरु शंकराचार्य के मठों से हुई है. भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव तत्त्वज्ञानी आदिगुरु श्री शंकराचार्य ने रखी थी. 

शंकराचार्य का जन्म 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था, जब भारतीय जनता की स्थिति और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी. प्राचीन भारत के वैभव और संपन्नता से मोहित होकर परकीय आक्रमणकारी इस देश की ओर आकृष्ट हुए थे.

भारत पर आक्रमण करते हुए कुछ आक्रमणकारी अपने साथ मूल्यवान और अतुलनीय खजाने को लूट ले गए, जबकि कुछ भारत की दिव्य आभा से इतने मोहित हो गए कि वे यही बस गए, लेकिन कुल मिलाकर मातृभूमि की सामान्य शांति और व्यवस्था बाधित हो गई थी.

भारत भूमि के पुत्रों को ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, शस्त्र और शास्त्रों के लिए सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा और उद्धार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिनमें से एक देश के चारों कोनों में चार पीठों का निर्माण करना था; ये थे गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ.

इसके अलावा आदिगुरु ने मठों और मंदिरों की संपत्ति को लूटने और भक्तों पर अत्याचार करने वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना शुरू की.

कालचक्र को देखते हुए आदिगुरु शंकराचार्य ने महसूस किया कि सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का सामना करना काफी नहीं है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि युवा भिक्षुओं को अपने शरीर को मजबूत करने के लिए योग-व्यायाम करना चाहिए और हथियारों को चलाने में भी दक्षता हासिल करनी चाहिए.

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसे मठों का निर्माण किया गया जहां इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास किया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा. सदियों बाद आज भी बोलचाल की भाषा में अखाड़ा वह जगह कहा जाता है जहां पहलवान अभ्यास के गुर सीखते हैं.

बाद में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए. शंकराचार्य ने अखाड़ों को मठों, मंदिरों और भक्तों की रक्षा के लिए आवश्यक होने पर ही शक्ति का उपयोग करने का सुझाव दिया. इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने मातृभुमि के सुरक्षा कवच का काम किया. धर्म के समक्ष जब भी संकट आया तो महात्माओं के साथ-साथ नागा साधु-संत भी धर्म की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए.

इतिहास बताता है कि कई बार विदेशी आक्रमण की स्थिति में स्थानीय राजा-महाराजा भी नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लेते थे. इतिहास में ऐसे कई गौरवशाली युद्धों का वर्णन है जिनमें 40 हजार से अधिक नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया था. अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृंदावन के बाद गोकुल पर हमले के समय, नागा साधुओं ने उनकी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी और गोकुल की रक्षा की.

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नागा साधु बनने की प्रक्रिया – Procedure to become a Naga Sadhu

नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन, कष्टपूर्ण और 12 साल लंबी होती है. नागा साधुओं के संप्रदाय में शास्त्र सम्मत तरीके से शामिल होने की प्रक्रिया में करीब छह साल का समय लगता है.

इस दौरान नवनिर्वाचित सदस्य एक लंगोट के अलावा अपने शरीर पर कुछ भी नहीं पहनते हैं. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद, वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर दिगंबर रहते हैं.

कोई भी अखाड़ा पूरी जांच के बाद ही योग्य व्यक्ति को प्रवेश देता है. पहले उसे लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना पड़ता है, फिर उसे महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है.

अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान होती है जिसमें उनका अपना पिंडदान और दांडी संस्कार आदि शामिल हैं.

नागा एक उपाधि है. साधुओं में, वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों संप्रदायों के अखाड़े नागा बनाते हैं.

नागा साधु बनने की प्रक्रिया इस प्रकार है:

नागा साधु बनने की प्रक्रिया अर्धकुंभ, महाकुंभ और सिंहस्थ के दौरान शुरू होती है. संत समाज के 13 अखाड़ों में से केवल 7 अखाड़े ही नागा बनाते हैं. ये हैं जूना, महानिरवाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा.

नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती है. दीक्षा के बाद, व्यक्ति अखाड़े में शामिल हो जाता है और 3 साल तक अपने गुरुओं की सेवा करता है. वहां उसे धर्म, दर्शन और कर्मकांड आदि को समझना होता है. इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष बनने की दीक्षा शुरू होती है.

कुंभ के दौरान अगली प्रक्रिया में उसे एक संन्यासी से महापुरुष बना दिया जाता है, जिसकी तैयारी सेना में भर्ती होने के समान होती है. कुंभ में पहले उनका मुंडन किया जाता है और नदी में 108 डुबकी लगाई जाती है, उसके बाद वे अखाड़े के 5 संन्यासियों को अपना गुरु बनाते हैं.

महापुरुष बनने के बाद उन्हें अवधूत बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है. उसे अवधूत बनाने के लिए उस साधु का जनेऊ संस्कार किया जाता है और उसके बाद उसे संन्यासी जीवन की शपथ दिलाई जाती है. शपथ के बाद उनका पिंडदान किया जाता है. इसके बाद दंडी समारोह की बारी आती है और फिर पूरी रात ‘ओम नमः शिवाय’ का जाप होता है.

जप के बाद, जैसे ही सुबह होती है, व्यक्ति को अखाड़े में ले जाया जाता है और उसके द्वारा विजय हवन करवाया जाता है और फिर गंगा में 108 डुबकी लगाई जाती है. डुबकी लगाने के बाद अखाड़े के झंडे के नीचे दंडी त्याग करवाया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को ‘बिजवान’ कहते हैं.

अंतिम परीक्षा दिगंबर और फिर श्रीदिगंबर की होती है. दिगंबर नागा लंगोटी पहन सकते हैं, लेकिन श्रीदिगंबर को बिना कपड़ों के रहना पड़ता है. श्रीदिगंबर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है.

साधु जो नागा बन गया, उसे जंगलों, हिमालय, आश्रमों और पहाड़ों में कठोर योग-साधना या तपस्या करनी पड़ती है. नागा बनने वाले साधुओं को भस्म, भगवा वस्त्र, चिमटा, धूनी, कमंडल और रुद्राक्ष की माला धारण करनी होती है.

दीक्षा लेने के बाद नागा साधुओं को उनकी योग्यता के आधार पर पद भी दिया जाता है. नागा में कोतवाल, बड़ा कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव इनके पद होते हैं. मूल रूप से नागा साधु के बाद महंत, श्री महंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नाम के पद होते हैं.

चार आध्यात्मिक चरण- 1. कुटीचक, 2. बहुदक, 3. हंस और सबसे बड़ा 4. परमहंस. परमहंस को नागाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. नागाओं में, सशस्त्र नागाओं को अखाड़ों के रूप में संगठित किया जाता है. इसके अलावा नागों में औघड़ी, अवधूत, महंत, कपालिक, श्मशान आदि भी होते हैं.

प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को ‘नागा’ कहा जाता है, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को ‘खूनी नागा’ कहा जाता है, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को ‘बर्फानी’ और नासिक में दीक्षा लेने वालों को ‘खिचड़िया नागा’ कहा जाता है.

ये नागा साधु हिमालय में शून्य से कम तापमान में नग्न होकर जीवित रहते हैं और काफी दिनों तक भूके भी रह सकते है. उन्हें सर्दी, गर्मी और बारिश के सभी मौसमों में तपस्या के दौरान नग्न ही रहना पड़ता है.

नागा साधु हमेशा जमीन पर ही सोते हैं. नागा साधु अखाड़े के आश्रमों और मंदिरों में रहते हैं. कुछ अपना जीवन हिमालय की गुफाओं या ऊंचे पहाड़ों में तपस्या करते हुए बिताते हैं. वे अखाड़े के आदेशानुसार पैदल भी भ्रमण करते हैं, इस दौरान किसी गांव के रिज पर झोंपड़ी बनाकर धुनी रमाते है. यात्रा के दौरान वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भरते हैं. वे एक दिन में एक ही समय पर भिक्षा के लिए केवल 7 घरों में जाते हैं. यदि सातों घरों से भिक्षा नहीं मिलती है, तो उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है.

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नागा साधु अखाड़ों की वर्तमान स्थिति – Current status of Naga Sadhu Akharas

भारत की स्वतंत्रता के बाद, इन अखाड़ों ने अपने सैन्य स्वरूप को त्याग दिया. इन अखाड़ों के प्रमुखों ने जोर देकर कहा कि उनके अनुयायी भारतीय संस्कृति और दर्शन के शाश्वत मूल्यों का अध्ययन और पालन करते हुए एक शांत और संयमित जीवन व्यतीत करें.

वर्तमान में, देश में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें से प्रत्येक का नेतृत्व एक महंत करते हैं. वर्तमान में, देश में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें से प्रत्येक का नेतृत्व एक महंत करते हैं. इन प्रमुख अखाड़ों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-

1. श्री निरंजनी अखाड़ा (Shree Niranjani Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 826 ई. में गुजरात के मांडवी में हुई थी. उनके पीठासीन देवता भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकस्वामी हैं. इनमें दिगंबर, साधु, महंत और महामंडलेश्वर शामिल हैं. इनकी शाखाएं प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर और उदयपुर में हैं.

2. श्री जूनादत्त या जूना अखाड़ा (Sri Junadatta or Juna Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 1145 ई. में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में हुई थी. इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं. उनके पीठासीन देवता रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं. इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है. उनका हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास एक आश्रम है.

3. श्री महाननिर्वाण अखाड़ा (Shri Mahanirvana Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 671 ई. में हुई थी, कुछ लोगों का मानना है कि इसका गठन बिहार-झारखंड के बैजनाथ धाम में हुआ था, जबकि कुछ इसका गठन स्थान हरिद्वार में नील धारा के पास मानते हैं. इनके देवता कपिल महामुनि हैं. इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और कनखल में हैं.

4. श्री अटल अखाड़ा (Shri Atal Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 569 ई. में गोंडवाना क्षेत्र में हुई थी. इनके अधिष्ठाता देवता भगवान गणेश हैं. इसे सबसे पुराने प्राथमिक अखाड़ों में से एक माना जाता है. इसकी मुख्य पीठ पाटन में है लेकिन आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में भी हैं.

5. श्री आवाहन अखाड़ा (Shree Avahan Akhara):

यह अखाड़ा 646 ई. में स्थापित हुआ था और 1603 ई. में पुनर्गठित किया गया था. इसके पीठासीन देवता श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन हैं. काशी इस अखाड़े का केंद्र है. इसका आश्रम भी ऋषिकेश में है.

6. श्री आनंद अखाड़ा (Shri Anand Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 855 ई. में मध्य प्रदेश के बरार में हुई थी. इसका केंद्र वाराणसी में है. इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में भी हैं.

7. श्री पंचग्नि अखाड़ा (Shri Panchagni Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 1136 ई. में हुई थी. इनकी अधिष्ठात्री देवी गायत्री हैं और इनका मुख्य केंद्र काशी है. इसके सदस्यों में चार पीठों के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु और महामंडलेश्वर शामिल हैं. परंपरा के अनुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं.

8. श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा (Shri Nagpanthi Gorakhnath Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 866 ई. में अहिल्या-गोदावरी संगम पर हुई थी. इसके संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं. इनके प्रमुख देवता गोरखनाथ हैं और इनमें बारह सम्प्रदाय हैं. यह संप्रदाय योगिनी कौल के नाम से प्रसिद्ध है और उनकी त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका के नाम से प्रसिद्ध है.

9. श्री वैष्णव अखाड़ा (Shri Vaishnav Akhara):

इस बालानंद अखाड़े की स्थापना 1595 ई. में श्री मध्यमारी, दारागंज में हुई थी. समय बीतने के साथ, निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदायों का निर्माण हुआ.

10. श्री उदासी पंचायती बड़ा अखाड़ा (Shri Udasin Panchayati Bada Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 1910 ई. में हुई थी. इस संप्रदाय के संस्थापक श्री चंद्राचार्य उदासीन हैं. इनमें सांप्रदायिक भेद हैं. इनमें उदासीन साधुओं, महंतों और महामंडलेश्वरों की संख्या अधिक है. इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुल्तान, नेपाल और मद्रास में हैं.

11. श्री उदासी नया अखाड़ा (Shree Udasin Naya Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 1710 ई. में हुई थी. इसे बड़ा उदासीन अखाड़े के कुछ सांधुओं ने विभक्त होकर स्थापित किया था. उनके प्रवर्तक महंत सुधीर दासजी थे. इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर में हैं.

12. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा (Shri Nirmal Panchayati Akhara):

इस अखाड़े की स्थापना 1784 में हुई थी. इसकी स्थापना श्री दुर्गा सिंह महाराज ने 1784 ई. में हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान एक बड़ी सभा में विचारों का आदान-प्रदान कर की थी. उनकी ईष्ट पुस्तक ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ है. इनमें साम्प्रदायिक साधुओं, महंतों और महामंडलेश्वरों की संख्या बहुत अधिक है. इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं.

13. निर्मोही अखाड़ा (Nirmohi Akhar):

निर्मोही अखाड़ा की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी. इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं.

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नागा साधुओं की जीवन शैली कैसी होती है? What is the lifestyle of Naga Sadhus?

हिंदू संत धारा में नागा साधुओं ने राष्ट्र और धर्म की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और उनपर धर्मयोद्धा की जिम्मेदारी भी रही है. यद्यपि आज कोई युद्ध नहीं होते है, ऐसे में उक्त साधुओं की दिनचर्या में अंतर आ गया है.

नागा साधु आम जनजीवन और भोगविसाली दुनिया से  दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं. नागा साधुओं के आश्रम हरिद्वार और अन्य तीर्थों के दूरदराज के इलाकों में हैं जहां वे एक बहुत ही रहस्यमय जीवन जीते हैं और एकांत जीवन व्यतीत करते हैं.

नागा साधु स्वभाव से उग्र और तेज-तर्रार होते हैं, उनके क्रोध के बारे में प्रचलित कहानियां भी भीड़ को उनसे दूर रखती हैं. इनका आम जनसमुदाय से कोई लेन-देन नहीं होता है और ये शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन अगर कोई उन्हें बिना वजह उकसाए या परेशान करे तो उनका गुस्सा भयानक हो जाता है.

नागा साधु की दैनिक दिनचर्या में गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग गतिविधियां शामिल हैं. नागा साधु सुबह चार बजे उठ जाते हैं और नित्य कर्मकांड और स्नान के बाद सबसे पहले श्रृंगार का काम करते हैं जिसमें माथे पर तिलक और शरीर पर भस्म लगाना शामिल है.

इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया और नौली क्रिया की जाती है. शाम के समय दिन में एक बार भोजन करते हैं. वे अपने विचारों और अपने भोजन दोनों में संयमित होते हैं.

ऐसा माना जाता है कि नागा, नाथ और नागा परंपराएं गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं हैं. नवनाथ की परंपरा सिद्धों की एक बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है.

नागा साधुओं के बारे में कहा जाता है कि भले ही दुनिया अपना रूप बदलती रहती है, लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त चिरकाल तक इस रूप में ही रहेंगे.

नागा साधु हिमालय में रहते हुए शून्य से नीचे के तापमान पर भी जीवित रहते हैं. नागा साधु विशेष रूप से तीन तरह के योग करते हैं जो सर्दी से निपटने में उनके लिए मददगार साबित होते हैं.

नागा साधु एक सैन्य संप्रदाय हैं और वे एक सैन्य दाल की तरह विभाजित होते हैं. उनके द्वारा धारण किये जाने त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम के साथ वह अपनी सैन्य स्थिति दर्शाते हैं.

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महिला नागा साधुओं के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts About Female Naga Sadhus

तो दोस्तों, आपने नागा साधुओं के बारे में तो बहुत कुछ जान लिया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नागा साधुओं की एक महिला शाखा भी होती है जिन्हें महिला नागा साधु (Female Naga Sadhu) कहा जाता है.

महिला नागा साधुओं का उद्भव बहुत प्राचीन तो नहीं है, लेकिन उनकी दुनिया भी काफी दिलचस्प बातों से भरी है. 

जब महिलाएं संन्यास की दीक्षा लेती हैं, तो उन्हें भी नागा बना दिया जाता है, लेकिन वे सभी सदैव कपड़े पहने होते हैं. महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की अनुमति नहीं है.

आइए अब हम आपको महिला नागा साधुओं से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं.

#1. नागा तपस्वी की दीक्षा केवल उसी महिला को दी जाती है जो ब्रह्मचर्य का अभ्यास और पालन करने में सक्षम होती है. 

#2. संन्यासी बनने से पहले महिला को यह सिद्ध करना होता है कि उसे परिवार और समाज से कोई लगाव नहीं है, वह केवल ईश्वर की पूजा करना चाहती है. इस बात की पुष्टि होने के बाद ही महिला को दीक्षा दी जाती है.

#3. सबसे पहले, एक महिला को नागा तपस्वी में शामिल करने से पहले, अखाड़े के भिक्षु और संत महिला के परिवार और पिछले जीवन की जांच करते हैं.

# 4. नागा संन्यासी बनने से पहले महिलाओं को भी अपना पिंडदान और तर्पण स्वयं करना पड़ता है.

# 5. उसी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर महिला को दीक्षा देते हैं, जहां से वह दीक्षा लेना चाहती है.

# 6. पुरुष नागा साधुओं की तरह महिलाओं को भी नागा संन्यासी बनाने से पहले उनका मुंडन कराया जाता है और उन्हें नदी में स्नान करना होता है.

# 7. दीक्षा प्राप्त करने के बाद, महिला नागा संन्यासी पूरे दिन भगवान का जप करती है. उन्हें सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है. इसके बाद दैनिक अनुष्ठानों के बाद वह शिवजी का जाप करती हैं, दोपहर में भोजन करती हैं और फिर शिवजी का जाप करती हैं. शाम को, दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं और फिर सो जाते हैं.

# 8. सिंहस्थ और कुंभ में नागा साधुओं के साथ-साथ महिला संन्यासी भी शाही स्नान करती हैं. अखाड़े में महिला संन्यासी को भी पूरा सम्मान दिया जाता है.

# 9. जब महिलाएं नागा संन्यासी बन जाती हैं, तो अखाड़े के सभी साधु और संत उन्हें माता कहकर संबोधित करते हैं.

# 10. पुरुष नागा साधु और महिला नागा साधु में केवल इतना अंतर है कि महिला नागा साधु को पीले कपड़े धारण करने होते है और उसी कपड़े को पहनकर स्नान करना होता है. महिला नागा साधुओं को नग्न स्नान करने की अनुमति नहीं है, कुंभ मेले में भी नहीं.

# 11. हालांकि, महिला साधुओं को केवल एक कपड़ा पहनने की अनुमति होती है. यह कपड़ा भी सिला हुआ नहीं होता है, इसे ‘गंती’ कहते हैं. इन महिला नागा साधुओं को कुंभ स्नान के दौरान नग्न स्नान करने की अनुमति नहीं होती है. नहाते समय भी उन्हें इस पीले कपड़े को पहनकर ही स्नान करना होता है.

# 12. जूना अखाड़े में दस हजार से अधिक महिला साधु और संन्यासी हैं. इसमें बड़ी संख्या में विदेशी महिलाएं भी हैं. खासकर यूरोप की महिलाओं में नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ गया है. विदेशी महिलाओं ने यह जानकर भी इसे अपनाया है कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना पड़ता है.

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