“मुंबई डब्बावाला” के बारे में हिंदी में जानकारी | Information about Mumbai Dabbawala in Hindi

मुंबई डब्बावाला के बारे में हिंदी में जानकारी | Information about Mumbai Dabbawala in Hindi

Mumbai Dabbawala History And Information In Hindi – क्या आपने कभी मायानगरी कहे जाने वाले मुंबई शहर की सैर की है? अगर हां, तो आपने एक खास बात पर गौर किया होगा कि कुछ लोग साईकिल पर ढेर सारे डिब्बों (Tiffin Box) को टांग देते हैं और बहुत शीघ्रता से आगे बढ़ते हुए नज़र आते हैं, जीने को “डब्बावाला” कहते हैं.

“डब्बावाला” या “डब्बेवाले” वास्तव में उन लोगों का एक समूह है जो भारत के मुंबई शहर में काम करने वाले सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों को दोपहर का भोजन (Tiffin) पहुंचाने का काम करते हैं.

ये लोग काफी मेहनत, लगन और समय नियोजन (Time planning) के साथ अपने काम को पूरा करते हैं.

मुंबई में “डब्बावाला” की शुरुआत कब और कैसे हुई थी? When and how did “Dabbawala” system start in Mumbai?

Mumbai Dabbawala History in Hindi – एक शताब्दी पूर्व, सदा व्यस्त रहने वाले मुंबई में जब लोगों को सुबह दफ्तरों और संस्थानों में जाना पड़ता था, तो उनके घर के ग्रहणी को जल्दी-जल्दी खाना बनाना मुश्किल हो जाता था, क्योंकि उस समय न तो गैस-स्टोव था और न ही प्रेशर कुकर.

दिनभर की भागदौड़ वाली जिंदगी से कर्मचारी लोगों को थकान का सामना करना पड़ता था और उनके सेहद पर भी बुरा प्रभाव पड़ता था. 

खासकर मुंबई में दूसरे गांवों और शहरों से काम के लिए रहने आए लोगों को घर जैसा पौष्टिक खाना पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. 

जनता की इसी जरूरत को देखते हुए उन्हें समय पर और स्वस्थ भोजन के पूर्तता के लिए “डब्बावाला” उपक्रम का आरंभ हुआ था. 

बताया जाता है कि करीब 125 साल पहले एक पारसी बैंकर को अपने ऑफिस में घर का बना खाना चाहिए था और उसने पहली बार किसी डब्बावाले को यह जिम्मेदारी दी थी. कई लोगों को यह आइडिया पसंद आया और देखते ही देखते डब्बा डिलीवरी (Tiffin delivery) की मांग बढ़ गई.

मुंबई डब्बावाला सिस्टम किसने शुरू किया था? Who started the Mumbai Dabbawala system?

Mumbai Dabbawala in Hindi – वर्ष 1890 में, श्री. महादु हावजी बचे (Mahadu Havji Bache) नाम के व्यक्ति ने सबसे पहले मुंबई में “नूतन टिफिन (Nutan Tiffin)” शुरू करके इस पहल की शुरुआत की थी, जिसे “डब्बावाला” या “डब्बेवाले” के रूप में पहचान मिली.

शुरू में डब्बा डिलीवरी एक अनौपचारिक और व्यक्तिगत प्रयास था, लेकिन दूरदर्शी महादु हावजी बचे ने इसके आगामी लाभ के बारे में समझा और दोपहर के भोजन की सेवा शुरू की. डब्बावालों का काम था डिब्बे को घर से ऑफिस पहुंचाना. 

शुरुआत में यह काम सिर्फ 100 ग्राहकों तक ही सीमित था. लेकिन जैसे-जैसे शहर बढ़ता गया, डब्बा डिलीवरी की मांग भी बढ़ती गई. वर्तमान में करीब 5,000 डब्बेवाले 2,00,000 लोगों को डब्बा (Tiffin) पहुंचाते हैं.

पहले डिब्बों की आवाजाही के लिए केवल साइकिल का उपयोग किया जाता था, लेकिन समय बीतने के साथ, मुंबई की लोकल ट्रेन और अन्य वाहनों की मदद से भी डब्बे पहुचाये जाते हैं.

डब्बावालों का पारंपरिक पहनावा -Traditional dress of dabbawalas

जैसा कि हम देख सकते हैं कि अलग-अलग स्कूलों, दफ्तरों और संस्थानों में अलग-अलग यूनिफॉर्म होती है, उसी तरह डब्बावालों की भी एक विशिष्ट यूनिफॉर्म होती है.

डब्बावाले लोग आमतौर पर सफेद रंग का कुर्ता-पायजामा, सिर पर गांधी टोपी, गले में रुद्राक्ष की माला और पैरों में कोल्हापुरी चप्पल पहने रहते हैं.

डब्बावालों के इस विशिष्ट पोशाख का उद्देश्य भीड़ में अलग दिखना हो सकता है, ताकि दफ्तरों और फैक्ट्रियों में डब्बावालों के पहुंचने पर सुरक्षाकर्मियों को उनकी पहचान करने की जहमत न उठानी पड़े.

मुंबई डब्बावाला के नियम – Rules of Mumbai Dabbawala

  • सभी कर्मचारियों के लिए काम के दौरान किसी भी तरह का नशा करना सख्त वर्जित है.
  • डब्बावाले के लिए हमेशा सफेद टोपी पहनना अनिवार्य है.
  • किसी भी कर्मचारी को बिना पूर्व सूचना के छुट्टी नहीं दी जाती है.
  • हर डब्बावाला के लिए यह जरूरी है कि वह हमेशा अपने साथ ID card रखे.

डब्बावालों का अनुशासन और समय की पाबंदी – Dabbawala’s discipline and punctuality

डब्बेवाले घर से ऑफिस तक सिर्फ तीन घंटे में खाना पहुंचा देता है. इसी कड़ी मेहनत में हर डब्बावाला रोजाना 60 से 70 किलोमीटर का सफर तय करता है.

मुंबई में करीब पांच हजार डब्बावाले रोजाना दो लाख टिफिन पहुंचाते हैं. इस सेवा की सबसे बड़ी विशेषता समय पर सटीक डिलीवरी है.

मौसम कोई भी हो, डब्बावालों को कभी देर नहीं होती. ट्रेन की देरी या किसी अन्य कारण से आप ऑफिस में लेट हो सकते हैं, लेकिन डब्बावाला हमेशा आपके टिफिन के साथ समय पर आता है.

जैसा कि हमने पहले बताया कि डब्बावाले रोजाना दो लाख टिफिन पहुंचाते हैं, लेकिन सबसे खास बात यह है कि टिफिन की पहचान में कभी कोई गलती नहीं होती है.

टिफिन पर कोडिंग इस तरह से की जाती है कि जिस व्यक्ति का टिफिन है, उसे ही मिलता है. डिलीवरी करने वाले डब्बावाले ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं, लेकिन टिफिन डिलीवरी में कभी किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं होती है.

अगर आप कोई बिजनेस कर रहे है या कोई बिजनेस करने की सोच रहे हैं तो डब्बावालों के काम करने के तरीके से आपको काफी कुछ सीखने को मिल सकता है. “Dabbawala Business Model” भारत के सर्वश्रेष्ठ IIT कॉलेजों के साथ-साथ विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में भी बच्चों को पढ़ाया जाता है.

मुंबई के डब्बावाले एक बिजनेसमैन को क्या बोध देते हैं?

दुनिया में ऐसे कई व्यवसाय हैं जो नए उद्योजकों के लिए आदर्श होते हैं. नए उद्योजकों को इन आदर्श व्यवसायों से बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है. Mumbai Dabbawala भी एक ऐसा ही कुशल Business model है जिससे नए उद्यमी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

1) दृढ़ निश्चय (Determination): 

भारत के मुंबई शहर में 5 हजार से ज्यादा डब्बावाले रोजाना करीब 2 लाख डब्बे (Lunch box) घर से ऑफिस और ऑफिस से घर पहुंचाते हैं. 

मुंबई के ट्रैफिक, लंबी दूरी आदि की समस्याओं के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में टिफिन बिना तकनीक के आसानी से पहुंचाए जाते हैं. 

संकल्प (दृढ़ निश्चय) एक ऐसा हथियार है जिसकी मदद से कोई भी असंभव कार्य आसान हो जाता है.

2) समय का मूल्य (Importance of time):

मुंबई के डब्बावाले समय-सीमा में रहकर ही अपना फर्ज निभाते हैं और उनसे जुड़े लोगों को भी समय का पाबंद होना पड़ता है. 

घडी के हर काटे का हिसाब रखने वाले ये लोग डब्बा उठाने और पहुंचाने में कभी देर नहीं करते. यदि ग्राहक 3-4 बार डब्बा लौटाने में देरी करते हैं तो डब्बावाले उनका डब्बा उठाना बंद कर देते हैं.

3) कठोर परिश्रम (Hard Work):

एक डब्बावाला व्यक्ति प्रतिदिन औसतन 35-40 डिब्बे योग्य स्थान तक पहुंचाता है, जिसका वजन लगभग 60 से 80 किलोग्राम होता है. इतना वजन ढोने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है, जिससे डब्बावाला रोजाना करीब 50-70 किलोमीटर का सफर तय करता है.

4) वितरण रणनीति (Delivery strategy):

खाने के डब्बों पर अल्फा-न्यूमेरिक कोडिंग होती है, जिसमें पहले बड़े क्षेत्र का नाम होता है, उसके बाद रेलवे स्टेशन से पहुंचने वाले क्षेत्र का नाम, एरिया, बिल्डिंग और फ्लोर की जानकारी होती है.

5) निष्ठा (Dedication):

कर्त्तव्यनिष्ठ सेवा देते हुए, जब तक खाना सभी ग्राहकों तक नहीं पहुंच जाता, तब तक वे खुद भी खाना नहीं खाते है. डब्बावाले एक जगह इकट्ठे होकर खाना खाते हैं, अगर खाने के समय एक भी डब्बावाला पीछे छूट जाता है तो उसके आने तक खाना शुरू नहीं होता है.

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