मिच्छामी दुक्कड़म का हिन्दी में अर्थ / Micchami Dukkadam meaning in Hindi – अगर आप जैन धर्म से अवगत हैं तो आपने अनुभव किया होगा कि जैन धर्म में एक विशेष दिवस पर लोग एक दूसरे को “मिच्छामी दुक्कड़म” कहते हैं और कभी न कभी आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि ऐसा क्यों?
आपकी इसी जिज्ञासा को हम आज के लेख Michhami Dukkadam Meaning In Hindi में विस्तार से बताएंगे.
“मिच्छामी दुक्कड़म” क्या है? What is “Michhami Dukkadam” in Hindi?
हमारी धरती पर लाखों जीव-जंतु निवास करते हैं, लेकिन उन सभी जीवों में से केवल मानव ही जीवन (Life) के इस महत्व को भली-भांति समझता है. लेकिन पृथ्वी पर जितने भी प्राणी हैं उनमें से मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जिसके पास दूसरे व्यक्ति की भावनाओं, दुख-दर्द, सुख-दुःख और अन्य कई प्रकार की भावनाओं को महसूस करने या अनुभव करने की शक्ति है.
यही कारण है कि यदि कोई व्यक्ति हमें कुछ बुरा कहता है तो हमें बहुत दुख होता है और फिर हम उस व्यक्ति से ईर्ष्या करने लगते हैं. कभी-कभी बड़े मानवीय रिश्तों में अपूरणीय दरार आ जाती है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी कार्य या किसी अन्य चीज के लिए दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाई होती है.
ऐसे में अगर किसी वजह से दो लोगों के रिश्ते में दरार आ जाए और वो दो लोग आपस में तालमेल बनाकर एक-दूसरे से माफी मांगें या एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील हो जाएं तो ऐसे रिश्ते को टूटने से बचाया जा सकता है.
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में तो किसी के पास बिगड़े रिश्तों को सुधारने की फुर्सत भी नहीं है. लेकिन जैन धर्म (Jainism) में एक दिल को छू लेने वाली प्रथा है जिसे “मिच्छामी दुक्कड़म” कहा जाता है जिसके बारे में हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं.
इसके अलावा आपके मन में भी यह सवाल आता होगा कि मिच्छामी दुक्कड़म क्या हैं? मिच्छामी दुक्कड़म कब और क्यों कहा जाता है? मिच्छामी दुक्कड़म meaning in Hindi? तो दोस्तों, इस लेख में हम इन सभी सवालों के जवाब देंगे, कृपया इस महत्वपूर्ण लेख को अंत तक पढ़ें.
What is Michhami Dukkadam? Michhami Dukkadam meaning in Hindi
मिच्छामी दुक्कड़म अर्धमगधी भाषा (Ardhamagadhi Prakrit – भगवान महावीर के समय बोली जाने वाली भाषा) का एक शब्द है. यदि हम “मिच्छामी दुक्कड़म” को हिंदी में समझने की कोशिश करें तो हमें पता चलता है कि मिच्छामी का अर्थ है “क्षमा (Forgiveness)” और दुक्कड़म का अर्थ है “बुरे कर्म (Bad Karma)” अर्थात किए गए बुरे कर्मों के लिए क्षमा याचना करना (Apologize).
इस अलौकिक साधना “मिच्छामी दुक्कड़म” से सभी जैन धर्म परिवार बचपन से ही परिचित होते हैं और इसे अच्छी तरह से समझते भी हैं.
मिच्छामी दुक्कड़म जैन धर्म का पर्यूषण पर्व है – Michhami Dukkadam, the Paryushan festival of Jainism
जैन धर्म के अनुयायी आचरण में बहुत शांत और शुद्ध विचारों वाले होते हैं. जैन धर्म में बहुतांश अनुयायी भगवान महावीर (Lord Mahavira) की सबसे अधिक पूजा करते हैं और सभी जैन धर्मावलंबी भी उनके द्वारा मानव जीवन के महत्व पर बताए गए अमूल्य धार्मिक ग्रंथों को मानते हैं.
पर्यूषण पर्व (Paryushan Parv) जैन धर्म के लिए आत्मनिरीक्षण और आत्मा की खोज का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व होता है. श्वेतांबर जैन (Shwetambar Jain) इस पर्व को 8 दिनों तक मनाते हैं जिसे “अष्टान्हिका (Ashtanhika)” कहते हैं और दिगंबर जैन (Digambar Jain) इसे 10 दिनों तक मनाते हैं जिसे वे “दशलक्षण (Dasalakshana)” कहते हैं.
श्वेतांबर समुदाय भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक और दिगंबर समुदाय भाद्रपद शुक्ल की पंचमी से चतुर्दशी तक इस पर्व को मनाते हैं.
इस पर्व को मनाते समय जैन धर्मावलंबी पूजा, अर्चना, समागम, तपस्या, आरती, त्याग, उपवास आदि धार्मिक कार्यक्रमों का पालन करते हैं.
इस पर्व के अंत में, सभी लोग एक दूसरे को मिच्छामी दुक्कड़म कहते हैं. जैन धर्मावलंबी इस पर्व के अंतिम दिन को क्षमा दिवस (Apology Day) के रूप में मनाते हैं जिसमें वे सभी मिलते हैं और “मिच्छामी दुक्कड़म” कहते हैं.
जैन धर्म में “मिच्छामी दुक्कड़म” क्यों कहा जाता है? Why is it called “Michhami Dukkadam” in Jainism?
पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन सभी जैन एक दूसरे से मिच्छामी दुक्कड़म अर्थात एक दूसरे को क्षमा करने की प्रार्थना करते हैं.
जैनियों की मान्यता है कि इस दिन वे आपस में “मिच्छामी दुक्कड़म” कहते हैं, क्योंकि यदि उन्होंने अनजाने में कभी किसी व्यक्ति को दुःख दिया हो या ठेस पहुंचाई हो तो इस विशेष दिन के अवसर पर क्षमा याचना करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
जैन धर्म में मान्यता है कि कभी-कभी जाने-अनजाने में हम अपने मन, वाणी और शरीर से दूसरे व्यक्ति को दुखी कर देते हैं. ऐसे में अगर हम उस व्यक्ति के सामने जाकर “मिच्छामी दुक्कड़म” कह देते है तो सारी कड़वाहट मिठास में बदल जाती है और रिश्ते में एक नया एहसास भी पैदा होने लगता है.
क्षमाशील भाव रखने से मन तो पवित्र होता ही है साथ ही मन की पवित्रता से शारीरिक कष्ट भी दूर हो जाते हैं. इससे परिवार और समाज में शांति भी स्थापित होती है.
यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्म”, “जियो और जीने दो” के मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है.
क्या अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों से माफ़ी मांगना अच्छी बात नहीं है? यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हर कोई अपने नाजुक रिश्तों को सुधारे और रिश्तों को नकारात्मक रिश्तों से मुक्त और नफरत से दूर रखे.
दरअसल, “मिच्छामी दुक्कड़म” सामुदायिक तरीके से व्यक्तिगत क्षमा याचना की औपचारिकता है. यह व्यक्तिगत क्षमा की अपेक्षा मानवीय करुणा को बढ़ाने का दृढ़ साधन है.
मनुष्य अपने जीवन में गलतियां करता रहता है चाहे वह गलतियां जानबूझकर की गई हों या अनजाने में क्योंकि कई बार हमें पता ही नहीं चलता और हम जाने-अनजाने में लोगों को नुकसान पहुंचा देते हैं या उनका दिल दुखा देते हैं.
यदि हम सामान्य दैनिक जीवन की बात करें तो हम “क्षमा” यानि Sorry शब्द का प्रयोग लगभग निरंतर रूप से या हर रोज करते हैं. ऐसे में इसका कोई खास महत्व नहीं रह जाता है.
किसी पर्व के दिन किसी विशेष कार्य को करना अनिवार्य होता है, उसी प्रकार पर्यूषण पर्व के दिन “मिच्छामी दुक्कड़म” कहने का भी अपना महत्व है. “मिच्छामी दुक्कड़म” शब्द पर्युषण पर्व के दिन ही प्रयोग करने योग्य है.
निष्कर्ष:
हमारे भारत देश में विविध संस्कृतियों के साथ अनेक धर्मों के लोग रहते हैं और सभी धर्मों से हमें मानव जीवन की महत्ता और एक दूसरे के प्रति प्रेम व्यवहार बढ़ाने का ज्ञान प्राप्त होता है.
अगर हम सभी धर्मों का सम्मान करें और सभी धर्मों के विचारों से प्रेरणा लें तो हमें अपने जीवन में सही और गलत कर्मों का आसानी से पता चल जाएगा.
हमें सभी धर्मों और सभी संप्रदायों का हमेशा सम्मान करना चाहिए.
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