मकड़ियां अपना जाला क्यों बनाती हैं? Why do spiders make their webs?

मकड़ियां अपना जाला क्यों बनाती हैं? Why do spiders make their webs?

Makdi apna jala kyon banati hai? इस संसार का प्रत्येक प्राणी, प्रत्येक जीव अपने भोजन की व्यवस्था स्वयं करता है. चाहे वह इंसान हो, पक्षी हो या जानवर, सभी अपनी जरूरत और क्षमता के अनुसार अपने भोजन की व्यवस्था करते हैं. 

इसी तरह मकड़ी (Spider) को भी अपने भोजन की व्यवस्था करनी होती है, जिसके लिए मकड़ी जाला (Web) बनाती है. जिससे छोटे-छोटे कीट-मकड़ी, मक्खियां आदि इसके जाल में फंस जाते हैं और मकड़ी उन्हें अपना शिकार बना लेती है.

मकड़ी जाला कैसे बनाती है? Makdi apna jala kaise banati hai?

दरअसल, मकड़ी के शरीर में ऐसी ग्रंथियां होती हैं, जिनसे एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है. जब यह पदार्थ हवा के संपर्क में आता है, तो यह रेशम के धागे के रूप में बदल जाता है, जिसे स्पाइडर सिल्क (Spider silk) कहा जाता है.

मकड़ी अपने जाले को रचनात्मक तरीके से बेहद बुद्धिमानी से बुनती है. जैसे ही कोई कीड़ा इस जाल में फंस जाता है तो वह जाले में कम्पन पैदा कर देता है और तभी मकड़ी तुरंत अपने शिकार को जकड़ लेती है और अपने जहर से उसे घायल कर देती है.

अब शायद आपके मन में भी यह सवाल आ रहा होगा कि मकड़ी खुद अपने ही जाल में क्यों नहीं चिपकती हैं?

मकड़ी का जाला किसी को भी भ्रमित कर सकता है कि उसमें कैसे प्रवेश किया जाए और कैसे उससे बाहर निकला जाए, लेकिन इसमें मकड़ियां आसानी से आ-जा सकती हैं.

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मकड़ी का जाला पूरी तरह से चिपचिपा नहीं होता है. यह केवल कुछ हिस्सों को ही चिपचिपा बुनती है ताकि कीट-पतंगें उसमें फंस जाएं और शेष भाग अर्थात जिस पर वह बैठती है वह चिपचिपा नहीं होता है.

वहीं, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मकड़ी के पैर तैलीय होते हैं, जिसके कारण वह जाले में नहीं चिपकती है. साथ ही मकड़ी अपना जाला बनाते समय उसमें जगह जरूर छोड़ती है ताकि वह बाहर निकल सके.

कुछ वैज्ञानिक इसका श्रेय मकड़ी के पैरों पर मौजूद बालों को देते हैं, जो जाले की चिपचिपाहट से प्रभावित नहीं होते हैं.

मकड़ी का जाला किस चीज से बना हुआ होता है? What is a spider’s web made of?

मकड़ी के शरीर से “Spider silk” नामक रेशमी धागे जैसा पदार्थ निकलता है, इस द्रव में प्रोटीन होता है. यानी जाल का रेशमी धागा दरअसल प्रोटीन से बना प्राकृतिक फाइबर होता है. पहले तो यह चिपचिपा होता है लेकिन हवा के संपर्क में आने पर यह धागे जैसी संरचना में बदल जाता है. 

मकड़ी उड़ नहीं सकती, फिर भी वह दो पेड़ों के बीच जाला कैसे बना लेती है?

आपने दो पेड़ों के बीच बने मकड़ी के जालों को तो देखा होगा और अक्सर सोचते होंगे कि यह कैसे बना होगा? आखिर एक छोटी सी मकड़ी ने इतनी दूरी कैसे तय की होगी? यह दूरी कई फीट तक भी हो सकती है.

तो इन सवालों के जवाब की शुरुआत मकड़ी के जाले बनाने की प्रक्रिया से होती है. दरअसल, मकड़ियां अपने पेट की ग्रंथियों से एक तरल पदार्थ (Spider silk) निकालती हैं जो ठोस में बदल जाता है.

रेशम के धागे जैसा यह द्रव इतना हल्का होता है कि हवा का जरा सा झोंका भी इसे दूर-दूर तक उड़ सकता है. यहां तक कि यह पृथ्वी से निकलने वाली गर्मी के कारण भी यह हवा में झूलता है. 

चिपचिपा होने के कारण यह पेड़ की डालियों से चिपक जाता है. एक पेड़ पर बैठी मकड़ी का यह रेशमी धागा जैसे ही दूसरे पेड़ से चिपक जाता है, यह मकड़ी के लिए पुल का काम करता है और फिर मकड़ी अपने जाले को बड़ी कुशलता से बुनती है.

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