महात्मा बसवेश्वर: जीवन परिचय, इतिहास – Mahatma Basaveshwara: Life Introduction / Biography, History

महात्मा बसवेश्वर: जीवन परिचय, इतिहास - Mahatma Basaveshwara: Life Introduction / Biography, History

Mahatma Basaveshwara Biography And History In Hindi – महात्मा बसवेश्वर लिंगायत समाज (Lingayat society) के 12वीं शताब्दी के महान समाज सुधारक (Social reformer) थे। एक समाज सुधारक होने के अलावा, वह एक महान दार्शनिक, उपदेशक, कवि और शिव भक्त भी थे। भगवान बसवेश्वर (Lord Basaveshwara) को हिंदू धर्म में प्रचलित जाति व्यवस्था और अन्य बुराइयों के खिलाफ लड़ने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। 

उन्हें विश्व गुरु, भक्ति भंडारी और बसवा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने लिंग, जाति, सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना समाज में सभी लोगों को समान अवसर देने की बात कही थी। वह निराकार ईश्वर (Formless God) की अवधारणा के समर्थक हैं।

महात्मा बसवेश्वर का संक्षिप्त में जीवन परिचय – Brief biography of Mahatma Basaveshwara

नामबसव
उपनाम / पहचानविश्व गुरु, भक्ति भंडारी, बसवा, बसवण्णा 
राष्ट्रीयताभारतीय
जन्म तिथि1134 ईस्वी
जन्म स्थानबागवाड़ी 
पिता का नाममादिराज (Madiraj)
माता का नाममदालम्बिके (Madalambike)
धर्मलिंगायत 
पेशाधर्म प्रवर्तक, समाज सुधारक, दार्शनिक, उपदेशक
वैवाहिक स्थितिविवाहित 
पत्नी का नामगंगाम्बिके (Gangambike)
बच्चेज्ञात नहीं
मृत्यु1196 ईस्वी

संत बसवेश्वर का प्रारंभिक जीवन – Saint Basaveshwara early life

संत बसवेश्वर का जन्म 1134 ईस्वी में बागवाड़ी (Bagewadi) में एक शैव ब्राह्मण परिवार में अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। उनकी माता का नाम मदालम्बिके और पिता का नाम मादिराज था। बसवेश्वर के भाई का नाम देवराज (Devraj) और बहन का नाम नागम्मा (Nagamma) था। उनके धर्मपरायण और संस्कारी शैव ब्राह्मण परिवार का गांव में विशेष स्थान और सम्मान था।

उनके माता-पिता, जो भगवान शिव (Lord Shiva) के उपासक थे, ने भगवान शिव के वाहन वृषभ, नंदी, नंदिकेश्वर के नाम पर अपने बच्चे का नाम “बसव” (वृषभ) रखा। 

एक अन्य कथा के अनुसार स्वयं भगवान शिव (Lord Shiva) के कहने पर उनका वाहन नंदी (Nandi) मादिराज और मदालम्बिके नामक शिव भक्तों के घर में अवतरित हुए थे, इसलिए बालक का नाम कन्नड़ भाषा में “बसव”, “वृषभ” (संस्कृत) रखा गया था।

जब बसवेश्वर जी आठ वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता ने परंपरा के अनुसार उनका उपनयन-व्रतबंध (जनेऊ) के संस्कार को बड़े धूमधाम से करने का फैसला किया। तब बालक बसवेश्वर जी ने अपने पिता से पूछा कि व्रत विधि क्यों की जाती है? इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर न मिलने पर उन्होंने इस विधि को करने से सख्त मना कर दिया।

इतना ही नहीं, उपनयन संस्कार केवल लड़कों के लिए ही क्यों, मेरी बहन और अन्य लड़कियों के लिए क्यों नहीं? ऐसा प्रश्न पूछकर बसवेश्वर जी ने समस्त विद्वानों को अनुत्तरित कर दिया था। इस प्रकार बसवेश्वरजी के सुधारवादी दृष्टिकोण और स्वतंत्र दृष्टिकोण के दर्शन का सभी ने अनुभव किया।

उन्होंने उपनयन संस्कार (जनेऊ) होने के बाद ही 8 साल की उम्र मेंइस धागे को तोड़ दिया था। कुछ समय बाद उन्होंने बागवाड़ी को छोड़ दिया और अगले 12 साल कुदाल संगम के तत्कालीन शैव गढ़ संगमेश्वर में अध्ययन करने में बिताए। वहां उन्होंने विद्वानों से शिक्षा प्राप्त की और अपनी सामाजिक समझ के साथ अपने आध्यात्मिक और धार्मिक विचारों को विकसित किया।

Basaveshwar maharaj history in hindi – अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, बसवेश्वर जी अपनी बड़ी बहन नगम्मा के साथ “मंगलवेढा” में रहने लगे। मंगलवेढा (आज के महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर जिले का तालुका स्थान) उस समय कृष्णा और मालाप्रभा नदियों के संगम पर राजा बिज्जल की राजधानी हुआ करती थी। 1132 से 1153 तक, लगभग 21 वर्ष बसवेश्वर जी का निवास मंगलवेढा में रहा।

1153 ई. में राजा बिज्जल ने अपनी राजधानी मंगलवेढा से कल्याण (बीदर के पास, कर्नाटक) में स्थानांतरित कर दी, जिसके कारण बसवेश्वर जी को मंगलवेढा छोड़कर कल्याण जाना पड़ा। 1153 से 1168 तक, कल्याण (आज “बसवकल्याण” गांव ) महात्मा बसवेश्वर की मुख्य कर्मभूमि रही थी।

यहीं पर उन्होंने “अनुभव मंतपा (Anubhava Mantapa)” के नाम से धर्म संसद की स्थापना की और उसके माध्यम से उन्होंने कई शिवशरण-शरणियों को व्यासपीठ दिलवाया। अनुभव मंतपा में सभी धर्मों के लोग एक साथ आ सकते थे और चर्चा कर सकते थे कि सामाजिक समस्याओं को कैसे हल किया जाए।

कल्याण में बसवेश्वर जी द्वारा शिवशरण का अंतरजातीय विवाह कराने के बाद वहां काफी हिंसा हुई जिसके कारण बसवेश्वर जी ने महामंत्री पद त्याग दिया और वे कल्याण छोड़कर श्रीक्षेत्र कुदलसंगम (Srikshetra Kudalasangama) चले गए।

यही 1196 में, नाग पंचमी के दिन, उन्होंने संजीवन समाधि ली और श्री कुडलसंगमेश्वर के चरणों में देहार्पण कर दिया।

बसवेश्वर जी समाज सुधारक अवधारणा – Basaveshwara social reformation

बसवेश्वर जी न केवल एक दार्शनिक और विचारक थे बल्कि एक रचनात्मक धर्म सुधारक (Religious reformer) भी थे। बसवेश्वर स्वयं एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे लेकिन उन्होंने ब्राह्मणों की श्रेष्ठतावादी व्यवस्था का विरोध किया क्योंकि वह जन्म आधारित प्रणाली के बजाय कर्म आधारित प्रणाली में विश्वास करते थे।

महात्मा बसवेश्वर के समय में समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां धार्मिक पाखंड, जातिवाद, छुआछूत, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, पंडित-पुजारियों का पाखंड और सांप्रदायिक उन्माद चरम पर था। अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के खिलाफ उनका विद्रोह हमेशा मुखर रहा है।

समाज में गरीब-अमीर और जाति के आधार पर भेदभाव होता था, जिसके खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई। महात्मा बसवेश्वर ने ही 800 साल पहले महिलाओं के उत्पीड़न को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी थी। साथ ही उन्होंने मठों और मंदिरों में प्रचलित कुरीतियों, अंधविश्वासों और अमीरों की सत्ता को भी चुनौती दी।

महात्मा बसवेश्वर जी के समग्र कार्य में आत्मबोध का विशेष स्थान था। यह बसवेश्वर जी के अभिनव विचार थे कि सभी जातियों और धर्मों के पुरुषों और महिलाओं को समान अवसर मिलना चाहिए, इसलिए उन्होंने “अनुभव मंतपा (Anubhava Mantapa)” नामक एक आध्यात्मिक संसद का निर्माण किया।

इस अनुभव मंतपा के अध्यक्ष शिवयोगी साक्षात्कारी संत अल्लमप्रभु (Saint Allama Prabhu) थे। कश्मीर से अफगानिस्तान तक (उस समय अफगानिस्तान भारत का अंग था, जिसे खुरासान कहा जाता था) शिवशरण बनकर भगवान शिव के भक्त इस अनुभव मंतपा की ओर खिंचे चले आते थे।

बसवेश्वर जी की इस पहल का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को नष्ट करना था। भगवान शिव की स्तुति में उनके द्वारा रचित भजनों ने उन्हें कन्नड़ साहित्य और हिंदू भक्ति साहित्य में भी प्रमुख स्थान दिलाया।

लिंगायत संप्रदाय की स्थापना (Lingayat Sect History In Hindi)

उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए इस नए संप्रदाय की स्थापना की, जिसका नाम लिंगायत (Lingayat) रखा गया। इस धर्म में भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा की जाती है।

आपको बता दें कि शुरुआती दौर में लिंगायत भी हिंदू वैदिक धर्म (Hindu Vedic religion) का ही पालन करते थे। बाद के लिंगायत समुदाय के लोग न तो वेदों को मानते हैं और न ही मूर्ति पूजा को बल्कि उचित आकार “इष्टलिंग (Ishtalinga)” के रूप में भगवान की पूजा करने का एक तरीका प्रदान करते हैं।

इष्टलिंग एक अंडे के आकार का गोला होता है जिसे वे अपने शरीर पर एक धागे से बांधते हैं। इष्टलिंग, वीरशैव (Veerashaiva) या लिंगायत समुदाय के पुरुषों के लिए पूजा का स्थान है।

हर वीरशैव या लिंगायत अपने गले में चांदी के एक छोटी सी डिब्बी में इष्टलिंग धारण करता है, और सुबह सबसे पहले उसकी पूजा करता है और फिर जल ग्रहण करता है।

बसवा बसव पुराण (Basava Purana) के भी रचयिता हैं, जो हिंदू वीरशैव (लिंगायत) संप्रदाय के पवित्र ग्रंथों में से एक है

लिंगायत समुदाय के अनुयायी पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते हैं। लिंगायतों का मानना है कि जीवन एक बार ही मिलता है और व्यक्ति अपने कर्मों से जीवन को स्वर्ग या नरक बना सकता हैं।

आपको बता दें कि लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। आज लिंगायत समुदाय की गिनती कर्नाटक की अगड़ी जातियों में होती है। वर्तमान में कर्नाटक की 18 प्रतिशत आबादी लिंगायत है। इतना ही नहीं, आसपास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है।

गुरु बसवेश्वर और लिंगायत संप्रदाय पर मंथन

महात्मा बसवेश्वर शिव के उपासक (Shiva worshiper) थे और एक ऐसे संत थे जिनके नाम से कन्नड़ साहित्य (Kannada literature) का एक पूरा युग जाना जाता है। उन्होंने उस दौरान कई पदों पर अपनी सेवाएं भी दी थीं। बासवन्ना कलचुरी राजा (Kalachuri king) के दरबार में मंत्री थे। वह चालुक्य राजा बिज्जल प्रथम (Chalukya king Bijjala I) के शाही खजाने के प्रबंधक थे।

बसवेश्वर जी लिंगायत धर्म के संस्थापक हैं, कुछ लोग ऐसा गौरव करते हैं, लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह वास्तविकता नहीं है।

परंपरा के अनुसार, वह वीरशैववाद के वास्तविक संस्थापक थे, लेकिन चालुक्य शिलालेख से पता चलता है कि उन्होंने वास्तव में एक पुरानी विचारधारा को पुनर्जीवित किया था। यह भी माना जाता है कि बसव ने वीरशैव संस्थाओं की मदद करके और वीरशैववाद की शिक्षा देकर वीरशैववाद के प्रचार-प्रसार में मदद की थी।

दरअसल वीरशैव परंपरा को बहुत प्राचीन माना जाता है और 27 आगम, 205 उपगम और सिद्धांत शिखामणि जैसे वीरशैव साहित्य बसवेश्वर जी से कई सदियों पुराने हैं। बसवेश्वर जी ने इस जीर्ण-शीर्ण परम्परा को नया जीवन प्रदान किया था।

16वीं सदी के महाराष्ट्र के वीरशैव संत मन्मथस्वामी (Saint Manmathaswami) बसवेश्वर जी के कार्य की प्रशंसा में कहते हैं – बसवेश्वर नि:संदेह नष्ट हो रहे वीरशैव धर्म के रक्षक हैं।

समाज के प्रमुख नेताओं ने बसवेश्वर महाराज के कार्यों और शब्द साहित्य की प्रशंसा की है। बिज्जल राजा के दरबार में एक साधारण कार्णिक (क्लर्क) से महामंत्री पद तक का उनका सफर पुरुषार्थ और अभ्युदय का उत्तम उदाहरण है।

अभ्युदय और निश्रेयस दोनों का उपदेश स्वयं करने वाले बसवेश्वर जी मानव समाज में एक महान विभूति थे। उनके ऐतिहासिक कार्यों और उपदेशों में क्षेत्र, भाषा और समय की कोई सीमा नहीं है। इसी के कारण बसवेश्वर महाराज एक ऐसा सार्वभौम व्यक्तित्व है जो संपूर्ण मानव जाति का प्रकाश स्तम्भ है।

बसव जयंती – Basava Jayanti in Hindi 

Basaveshwar Maharaj Jayanti – बसव जयंती एक हिंदू त्योहार है जो बासवन्ना के जन्मदिन पर कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में लिंगायत समुदाय (Lingayat community) द्वारा मनाया जाता है।

महात्मा बसवन्ना (Mahatma Basavanna) लिंगायतवाद के संस्थापक थे और उनका जन्मदिन एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है, जिसे बसवन्ना युग या बसवेश्वर युग कहा जाता है। बसवेश्वर का जन्मदिन आमतौर पर वैशाख महीने के तीसरे दिन पड़ता है।

साल 2023 में बसवा जयंती 23 अप्रैल को मनाई जाएगी।

बसव जयंती कैसे मनाई जाती है?

गुरु बसव (Guru Basava) की जयंती को कर्नाटक में राजकीय अवकाश के रूप में घोषित किया जाता है क्योंकि कर्नाटक में बासवन्ना के बड़ी संख्या में अनुयायी हैं। कर्नाटक के सभी कस्बों और गांवों के लोग जयंती को भव्य तरीके से मनाते हैं।

इस दिन लोग भगवान बसवेश्वर के मंदिरों में जाते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस दिन के अवसर पर आमतौर पर लिंगायत समिति विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करती है।

बसवा जयंती पर, लोग अपने परिवार, इष्टमित्रों और रिश्तेदारों के साथ मिठाइयों और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। 

सार्वजनिक कार्यक्रमों में बसवन्ना की शिक्षाओं पर आधारित प्रतियोगिताएं जैसे निबंध लेखन, भाषण, व्याख्यान आदि का आयोजन किया जाता है।

बहुत से अनुयायी कुदालसंगम (Kudalasangama) तीर्थ यात्रा करना पसंद करते हैं, जहां बसवा जयंती 6-7 दिनों तक मनाई जाती है और कई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

गुरु बसव के सुविचार हिंदी में – Mahatma Basaveshwara Quotes In Hindi 

  • इस ब्रह्मांड के निर्माता में विश्वास रखें विश्वास करें कि वह सर्वव्यापी और सर्वोच्च शक्ति है।
  • नैतिक रूप से जियो, दूसरों के धन, स्त्री और भगवान की आकांक्षा मत करो।
  • भरोसे की राह पर चलते हुए कभी हिम्मत न हारें। एक सिद्धांतवादी जीवन जिएं।
  • प्रामाणिकता और अच्छे कर्मों से धन कमाएं।
  • अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपभोग करें और शेष “दसोहा” के माध्यम से समाज को योगदान दें।
  • विश्वास भंग करने का कार्य कदापि न करें।
  • अपने शरीर को भगवान का मंदिर बनाओ।
  • देवलोक मृत्युलोक अलग नहीं है।
  • सत्य बोलना देवलोक है। असत्य वचन बोलना मृत्युलोक है।
  • सदाचार ही स्वर्ग स्वर्ग है और अनाचार ही नरक है।
  • इस भावना के साथ कार्य करें कि मुझसे कम कोई नहीं है; शरणों के समाज से बड़ा कोई नहीं है।
  • गुरु बसव ने सिखाया कि प्रत्येक व्यक्ति का ईश्वर या नियति के साथ सीधा संबंध है और उसे किसी की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं है।

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