Information about Maharaj Jarasandh of Mahabharata in Hindi – यदि आप महाभारत से पूरी तरह परिचित हैं, तो आप महाराज जरासंध के व्यक्तित्व से परिचित होंगे, लेकिन जो नहीं जानते हैं उनके लिए हम एक बार फिर महाभारत में महाराज जरासंध की भूमिका को उजागर करते हैं.
इस लेख में आज हम आपको महाराज जरासंध के बारे में कुछ रोचक जानकारी Maharaj Jarasandh History Information in Hindi देने जा रहे हैं.
महाराज जरासंध महाभारत काल में द्वापर युग के एक महान और शक्तिशाली राजा थे, जिनकी चर्चा दूर-दूर तक होती थी. देवताओं के देवता भगवान महादेव (Lord Shankar) के उपासक महाराज जरासंध भगवान शंकर के परम भक्तों में गिने जाते थे.
महाराज जरासंधी के जन्म की कथा – The story of the birth of Maharaj Jarasandh
मगधदेश के बृहद्रथ (Brihadratha) नाम के एक राजा की दो पत्नियां थीं, लेकिन किसी भी पत्नी से कोई संतान नहीं थी. एक दिन राजा बृहद्रथ अपनी दो पत्नियों के साथ चण्डकौशिक (Chandkaushik) नाम के एक महात्मा की शरण में गए और उनसे संतान प्राप्ति की प्रार्थना की.
तब महात्मा चण्डकौशिक ने राजा बृहद्रथ की मनोकामना को पूर्ण करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ के सिद्धि से प्राप्त एक फल (आम) राजा बृहद्रथ के पत्नी को भक्षण करने के लिए सौप दिया.
राजा बृहद्रथ ने वह फल अपनी दोनों पत्नियों को आधा-आधा खिलाया, जिससे उन दोनों की संतान भी आधी-आधी पैदा हुई. दोनों रानियों ने आधा-आधा बच्चा देखकर विलाप करते हुए दोनों टुकडो को घबराकर राज्य से बाहर घने जंगल में एकांत में छोड़ दिए.
उस समय जंगल में भ्रमण कर रही एक “जरा” नामक राक्षसी ने उन दोनों टुकड़ो को देखा और उन्हें अपनी मायावी शक्ति से आपस में जोड़ दिया, जिससे दोनों टुकड़े मिलकर एक पूर्ण बालक बना जिसका नाम “जरासंध” रखा गया.
जरासंध नाम इसलिए रखा गया क्योंकि “जरा” नामक राक्षसी ने उन दो विभाजित टुकड़ो का जोड़ (संधि) किया था – (जरा + संधि = जरासंध).
महाराज जरासंध का इतिहास हिंदी में -Maharaj Jarasandh History in Hindi
महाराज जरासंध की दो बेटियां थीं और दोनों का विवाह मथुरा के महाराज कंस (Maharaj Kansa) से हुआ था. इसके अनुसार महाराज जरासंध कंस के ससुर थे.
महाराज जरासंध के पास दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेना थी, जिसके सेनापति पराक्रमी शिशुपाल (Shishupala) थे, जो जरासंध के सबसे प्रिय सेनापति भी थे.
महाराज जरासंध पराक्रमी होते हुए भी अत्यंत क्रूर आचरण के थे. महाराज जरासंध के भय से अनेक राजा-महाराजाओं ने उनके अधीन अपने राज्य सौप दिये थे और उनके सामने घुटने टेक दिये थे.
महाराज जरासंध के अनुसार यदि कोई 100 राजाओं को बंदी बनाकर उनकी बलि चढ़ा देता था तो उसे चक्रवर्ती सम्राट माना जाता था, इसी उद्देश्य से महाराज जरासंध ने भारतवर्ष के 86 राजा-महाराजाओं को पराजित कर एक पहाड़ी गुफा में कैद कर रखा था.
जरासंध वध की कथा – Story of Jarasandha Vadh
महाराज कंस की मौत का बदला लेने के लिए महाराज जरासंध ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया था, लेकिन वह अपने सभी 17 प्रयास में असफल रहे.
जरासंध की क्रूरता और उत्पात को देखते हुए प्रजा के कल्याण के लिए उनका वध करना जरुरी हो गया था. जरासंध को मारने के लिये भीम, अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का रूप धारण करके उनके समक्ष उपस्थित हो गये और उन्हें किसी भी एक के साथ मल्ल्युद्ध करने की चुनौती भी दी.
लेकिन जरासंध को यह ज्ञात हो गया था कि ये तीनों ब्राह्मण नहीं हैं, इसलिए उन्होंने ब्राह्मण का रूप धारण किये भगवान कृष्ण से अपना वास्तविक परिचय देने का अनुरोध किया.
तब भगवान कृष्ण ने जरासंध को अपना वास्तविक परिचय दिया और किसी एक के साथ मल्ल्युद्ध करने का प्रस्ताव रखा.
जरासंध ने पराक्रमी भीम को कुश्ती के लिए सबसे उपयुक्त मानते हुए मल्ल्युद्ध के लिए चयन किया लेकिन सच तो यह है कि इस धरती पर मगध महाराज जरासंध को हराने वाला कोई नहीं था.
राजा जरासंध और भीम का मल्ल्युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिनों तक लगातार चलता रहा और लोगों को लगा कि यह कभी न खत्म होने वाला युद्ध है.
चौदहवें दिन भीम ने श्रीकृष्ण के इशारे को समझकर जरासंध के शरीर को दो टुकड़ों में काट दिया और दो विपरीत दिशाओं में फेंक दिया, जिसके परिणामस्वरूप भीम ने अंत में जरासंध का वध कर दिया.
जरासंध की मृत्यु के बाद,उनके पुत्र सहदेव (Sahadeva) को अभयदान देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे मगध का राजपाठ भी सौप दिया.
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