दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – सिंह और सियार की कहानी (The Lion and the Jackal Story In Hindi) पेश कर रहे हैं। Singh Aur Siyar Ki Kahani के अनुसार एक सियार, सिंह के संगत में रहकर स्वयं को सिंह समझने लगता है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – The Lion and the Jackal Story In Hindi।
The Lion and the Jackal Story In Hindi – Tales of panchatantra
प्राचीन काल में हिमालय की एक पहाड़ी पर एक बहुत शक्तिशाली शेर रहता था। वह प्रतिदिन शिकार के लिए जाता था और अपनी भूख मिटाकर गुफा में लौट आता था।
एक दिन शेर एक भैंसे का शिकार करके और खाकर अपनी गुफा में लौट रहा था कि बीच रास्ते में उसने एक मरियल सियार को देखा। शेर को देखते ही सियार ने उसे आदर से प्रणाम किया।
शेर ने सियार से ऐसा व्यवहार करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “राजन, मैं आपका सेवक बनकर आपकी सेवा करना चाहता हूं। आप मुझे अपनी शरण में ले लीजिए और मैं आपके द्वारा छोड़े गए शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।”
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शेर ने सियार की चिकनी-चुपड़ी बात मान ली और उसे मित्रवत तरीके से अपनी शरण में ले लिया।
कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गए शिकार को खाकर सियार हृष्ट-पुष्ट और ताकतवर हो गया। प्रतिदिन सिंह का पराक्रम देखकर सियार भी अपने आप को सिंह समझने लगा।
उसने अभिमान में आकर एक दिन सिंह से कहा, “अरे सिंह! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूं। आज मैं भी एक हाथी का शिकार करूंगा और उसे खाकर उसका शेष मांस तुम्हारे लिए छोड़ दूंगा।”
सिंह ने सियार की बातों का बुरा नहीं माना क्योंकि सिंह सियार को अपने मित्र के रूप में देखता था और उसे ऐसा जोखिम भरा साहसिक कार्य करने से मना भी किया।
अहंकारी सियार ने शेर की बात नहीं मानी और पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया और चारों ओर हाथियों के झुंड की खोज करने लगा। उसने पहाड़ी के तल पर हाथियों का एक छोटा समूह देखा। हाथियों के उस झुण्ड को देखकर उसने भी सिंह की दहाड़ के समान तीन बार सियार की आवाज की और एक हाथी पर कूद पड़ा।
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उत्तेजित होकर सियार ने छलांग लगाई लेकिन वह हाथी के सिर के बजाय पैरों में गिर पड़ा। उस हाथी ने अपनी मस्तानी चाल में अपना कदम उठाया और सियार के सिर पर रखकर आगे बढ़ गया।
बेचारे सियार का सिर पल भर में चूर-चूर हो गया और उसके प्राण निकल गए।
पहाड़ की चोटी से सियार की सारी हरकतें देखकर शेर ने फिर यह गाथा कही- “जो मूर्ख और अभिमानी होते हैं, उनकी ऐसी ही गति होती है।”
कहानी का भाव:
घमंड और मूर्खता साथ-साथ चलते हैं, इसलिए जीवन में कभी भी घमंड न करें।
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