कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है? Krishna Janmashtami in Hindi

Krishna Janmashtami in Hindi Krishna Janmashtami kyon manae jaati hai

Krishna Janmashtami kyon manae jaati hai? भगवान कृष्ण हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं, जिन्हें पूरी दुनिया कृष्ण के नाम से जानती है। इन्हें आध्यात्मिक और लोकप्रिय माना जाता है और ये महाभारत महाकाव्य की कथा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भगवान कृष्ण की बचपन की लीलाएँ, जैसे माखन चोरी करना, गोपियों के साथ रास लीला और कंस का वध, उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और वे भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय हैं।

भगवान कृष्ण को आस्था, प्रेम और भक्ति में समर्पण का प्रतीक माना जाता है। भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में महत्वपूर्ण धार्मिक और मानवीय शिक्षाएँ दीं, जैसे भक्ति, सेवा और प्रेम का महत्व।

कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखती है और इसे भगवान कृष्ण के जन्म के स्मरणोत्सव और एक महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। इस लेख को पढ़ने के बाद आप विस्तार से जान जायेंगे कि Janmashtami Kyu Manaya Jata Hai?

जन्माष्टमी क्या है? What is Janmashtami in Hindi?

जन्माष्टमी, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी या श्री कृष्ण जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, भगवान कृष्ण के जन्म की याद में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की आषाढ़ी शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है।

जन्माष्टमी का मुख्य आयोजन भगवान कृष्ण के मंदिरों में होता है, जहां भगवान की मूर्ति को सजाकर विशेष पूजा की जाती है। रात में, भगवान कृष्ण की मूर्ति को झूले पर ले जाया जाता है और विशेष विधि के साथ पूजा की जाती है। भगवद गीता का पाठ, कृष्ण की लीलाओं का पाठ और संगीत कार्यक्रम भी उत्सव का हिस्सा हो सकते हैं।

जन्माष्टमी का दिन भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रति अपना प्यार और भक्ति व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है और उन्हें भगवान कृष्ण के आदर्शों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस पर्व का महत्व ईश्वर के प्रति भक्ति, सेवा एवं आदर्श भावना उत्पन्न करने में है।

कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है? Krishna Janmashtami in Hindi

कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है, जिसे जन्माष्टमी का दिन कहा जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर भगवान कृष्ण के जन्म का स्मरण किया जाता है और उनके आदर्शों का पालन किया जाता है। उन्होंने धार्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर जीवन जीने के तरीके बताए और उनका जीवन और शिक्षाएं हिंदू धर्म के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि (Krishna Jnmashtami puja vidhi in Hindi)

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि इस प्रकार है:

  • मंदिर या पूजा स्थल की सजावट: पूजा के लिए मंदिर या पूजा स्थल को सजाना शुरू करें। इसमें भगवान कृष्ण की मूर्ति, तुलसी का पौधा और पूजा सामग्री शामिल होनी चाहिए।
  • व्रत आदिकरण: श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को व्रत रखें। यह व्रत निर्जला रहकर या फल खाकर किया जा सकता है।
  • पूजा सामग्री: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में दीपक, धूप, अगरबत्ती, पूजा की थाली, फूल, दही, मिश्रित दूध और मक्खन शामिल होना चाहिए।
  • मूर्ति स्थापना: पूजा स्थल पर भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था मूर्ति स्थापित करें।
  • आरती: सुबह और शाम भगवान कृष्ण की आरती करें।
  • भजन-कीर्तन: कृष्ण भजन और कीर्तन गाने के लिए कथाकार-गीतकार आमंत्रित करें, और भगवान कृष्ण की कहानियाँ सुनें।
  • दही हांडी: रात के समय दही हांडी खेल का आयोजन करें। इसमें युवक गोपियों के साथ मटकी फोड़ने का प्रयास करते हैं, मानो श्रीकृष्ण गोपियों के साथ दही चुरा रहे हों।
  • फल और प्रसाद: व्रत के बाद भगवान कृष्ण को फल और विशेष प्रसाद चढ़ाएं और फिर खुद और परिवार के सदस्यों को खिलाएं।
  • ध्यान और प्रार्थना: कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण का ध्यान और प्रार्थना करें और उनके धार्मिक संदेशों का पालन करने का संकल्प लें।
  • सेवा और दान: इस दिन गरीबों को दान दें, असहायों की सेवा करें और अच्छे कर्म करें, क्योंकि भगवान कृष्ण ने भी न्याय और धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण कार्य किए।

यह कृष्ण जन्माष्टमी पूजा की सामान्य विधि है, लेकिन यह अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकती है क्योंकि यह अलग-अलग समुदायों और अलग-अलग पारंपरिक प्रक्रियाओं और शैलियों वाले समुदायों के अनुसार बदल सकती है।

कृष्ण भगवान की आराधना (Shri Krishna bhagwan ki aradhna)

भगवान कृष्ण की आराधना भक्ति और पूजा के रूप में की जा सकती है, और इसे किसी भी रूप में किया जा सकता है। सदियों से, लोगों ने भगवान कृष्ण के चरणों में अपनी भक्ति और प्रेम के अस्तित्व को महसूस किया है। यहां कुछ सामान्य तरीके दिए गए हैं जिनका पालन करके आप भगवान कृष्ण की पूजा कर सकते हैं:

पूजा: आप भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने पूजा कर सकते हैं। इसमें फूल, धूप, दीप और भोग का चढ़ावा शामिल हो सकता है।

भजन और कीर्तन: भगवान कृष्ण के नाम का गायन और जप भक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।

मंत्र जाप और जाप: “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जाप भी भगवान कृष्ण की पूजा का एक तरीका हो सकता है।

साधना और ध्यान: भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और ध्यान आत्मा को शांति और सांत्वना लाने में मदद कर सकता है।

पुराणों की कहानियाँ सुनना: कृष्ण की कहानियाँ और लीलाएँ सुनना और पढ़ना भी भगवान की पूजा का एक हिस्सा हो सकता है।

सेवा और भक्ति: भगवान कृष्ण की सेवा करना और उनका भक्त बनना भी भगवान की पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू हो सकता है।

योग और ध्यान: योग और ध्यान के माध्यम से आप भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को गहरा कर सकते हैं।

आप अपने अनुभव से और विशेषकर उनका अनुसरण करके भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति विकसित कर सकते हैं। यह आपके आध्यात्मिक और आत्मिक विकास में मदद कर सकता है और आपको ऊर्जा और आत्मा की शांति प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

कृष्ण जन्माष्टमी के खास प्रसाद (Krishna Janmashtami prasad list / recipe)

कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष रूप से प्रसाद बनाया जाता है, जिसे आप पूजा और व्रत के दौरान सेवन कर सकते हैं। कुछ विशेष कृष्ण जन्माष्टमी प्रसाद रेसिपी निम्नलिखित हैं:

माखन: भगवान कृष्ण को मक्खन बहुत पसंद है। आप माखन लड्डू, माखन रोटी या सादा माखन प्रसाद बना सकते हैं।

धनिया-गुड़ का लड्डू: धनिया-गुड़ का लड्डू भी एक लोकप्रिय कृष्ण जन्माष्टमी प्रसाद है।

पंचामृत: पंचामृत प्रसाद बनाने के लिए दही, दूध, घी, शहद और शर्करा का मिश्रण बनाया जाता है। इसे भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।

पंजीरी: पंजीरी एक प्रकार की मिठाई है जिसमें गोंद, गंध और आटा मिलाया जाता है। इसे कृष्ण जन्माष्टमी पर बनाया जाता है।

अंजीर बर्फी: अंजीर बर्फी भी एक लोकप्रिय प्रसाद है जिसे कृष्ण जन्माष्टमी पर चढ़ाया जा सकता है।

सूखे मेवे: आप प्रसाद के रूप में काजू, बादाम, पिस्ता, किशमिश और खजूर जैसे सूखे मेवे भी भोग के रूप में चढ़ा सकते हैं।

पूरी और आलू की सब्जी: इसे मुख्य भोजन के रूप में परोसा जा सकता है, जिसमें पूरी और आलू की सब्जी शामिल है।

फल्ली (स्वादिष्ट गुझिया): फल्ली भी एक प्रसिद्ध और स्वादिष्ट गुझिया है जो कृष्ण जन्माष्टमी पर बनाई जाती है।

चावल की खीर: चावल की खीर भी एक लोकप्रिय मिठाई है जिसे प्रसाद के रूप में खाया जा सकता है।

गोपालकालु (व्रती चिप्स): ये व्रती चिप्स सुंदर और स्वादिष्ट होते हैं और व्रत करने वाले लोगों के लिए एक अच्छा प्रसाद बन सकते हैं।

ये प्रसाद बनाकर विशेष रूप से कृष्णजन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जा सकता है। ये प्रसाद आपकी पूजा और व्रत को और भी खास बना सकते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी का मुख्य महत्व यह है कि यह भगवान कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन उनके जन्म की घटना को याद किया जाता है और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर चिंतन किया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन को भगवान श्री कृष्ण के अवतार धारणा का समय माना जाता है। महाभारत के अहम पात्र रहे श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म बृज नगर (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत में) में हुआ था और उनके जीवन का गीता और भगवद पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया है।

कृष्ण जन्माष्टमी मनाने का मुख्य उद्देश्य भगवान की पूजा करना और उनके आदर्शों का पालन करना और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है। यह त्यौहार हिंदू समुदाय में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और भक्तों के लिए आध्यात्मिक रूप से एक महत्वपूर्ण अवसर है।

भगवान कृष्ण का एक महत्वपूर्ण कार्य भगवद गीता प्रदान करना है, जिसमें वे अर्जुन को धर्म, कर्म और भक्ति के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देते हैं।

भगवान कृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएँ हिंदू धर्म में आध्यात्मिकता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रकट करती हैं। उनकी भगवद गीता एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है जिसमें उन्होंने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की है।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भक्त एकत्रित होकर मंदिरों में भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। इसके माध्यम से सामाजिक एकता एवं साझा भक्ति की भावना को बढ़ावा मिलता है।

कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, भक्त भगवान कृष्ण की पूजा, कीर्तन, आरती और व्रत करते हैं। मंदिरों में विशेष धार्मिक आयोजन भी किये जाते हैं। इसके अलावा, बाल कृष्ण के रूप में कृष्ण की छवि का उपयोग उनके जीवन की घटनाओं को याद करने के लिए किया जाता है, जैसे कि उनके बचपन की लीलाओं की कहानियाँ और कीर्तन में माखन चोरी की कहानियाँ।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, द्वारका के मंदिरों में भक्तों द्वारा विशेष पूजा की जाती है, और रात में भगवान कृष्ण की मूर्ति को झूले पर ले जाया जाता है और विशेष उपचार के साथ पूजा की जाती है। भगवद गीता का पाठ, कृष्ण की लीलाओं का पाठ और संगीत कार्यक्रम भी उत्सव का हिस्सा हो सकते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत और ध्यान करके भगवान कृष्ण के आदर्शों का पालन करते हैं और उनके जीवन सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा भगवान की लीलाओं का नृत्य, गीता के उपदेशों का अध्ययन और भक्ति गीत गाना भी इस त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण के जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को समझते हैं और उनके प्रेरणादायक जीवन का सम्मान करते हैं। यह त्यौहार भक्ति, आध्यात्मिक अभ्यास और समर्पण का प्रतीक है और हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन संगीत, नृत्य और कला कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो हिंदू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण भक्तों को भगवान कृष्ण की भक्ति और सेवा के लिए प्रेरित करते हैं। भक्त भगवान की लीलाओं से उनके प्रति प्रेम और भक्ति की भावना महसूस करते हैं और उसे अपने जीवन में अपनाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी / कृष्ण जन्माष्टमी कथा

कृष्ण जन्माष्टमी कथा महाभारत के भीष्म पर्व में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की एक महत्वपूर्ण कथा मिलती है। यह कहानी भगवान कृष्ण के जन्म की घटनाओं को दर्शाती है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी मथुरा नगर से प्रारंभ होती है। मथुरा शहर, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है, उस समय की घटना है, जब मथुरा नगर में राजा कंस नामक राजा शासन कर रहे थे। कंस एक राक्षस राजा थे, जो गरीबों पर अत्याचार और लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए प्रसिद्ध थे, जिससे पूरे राज्य की जनता परेशान थी।

कंस हमेशा अपने शासन का क्षेत्र बढ़ाने की इच्छा रखते थे, इसलिए उन्होंने अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से करवा दिया। उनका उद्देश्य था कि वासुदेव के साथ विवाह करके वे उनके राज्य का विस्तार कर सकें और अपने शासन को दशों दिशाओं बढ़ा सकें।

कंस ने अपनी बहन देवकी के विवाह के बाद उन्हें उनके पति वासुदेव के साथ उनके राज्य में पहुंचाने की योजना बनाई थी। इस दौरान, रास्ते में आकाश से आवाज आई और आकाशवाणी ने कंस को बताया कि वह “जिस बहन का विवाह करके उसे उसके ससुराल पहुंचाने की यात्रा पर जा रहा है, उसी बहन का आठवा पुत्र उसका वध करेगा।” यह सुनकर, कंस ने तुरंत अपनी बहन देवकी को मारने का प्रयास किया।

लेकिन वासुदेव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह अपनी सभी संतानों को उनके सामने प्रस्तुत करेंगे, जिन्हें वह जन्म लेते ही मार सकते हैं। कंस ने वासुदेव की बातों को मान लिया और अपने राज्य में कालकोठरी में उनकी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को बंद करवा दिया।

कंस का इरादा था कि जैसे ही उसके पास सभी बच्चे होंगे, वह सभी बच्चों को मार डालेगा। उसकी यह योजना थी कि इसके बाद आकाशवाणी मिथ्या साबित हो जाएगी, और देवकी की संतान उसे नहीं मार पायेगा, जिससे वह हमेशा के लिए अमर हो जाएंगे।कुछ समय बाद, जब कंस की बहन देवकी और वासुदेव को पुत्र हुआ, तो कंस ने उसे मार डाला। इस प्रकार, कंस ने अपनी बहन देवकी और वासुदेव के सात पुत्रों को एक-एक करके मार डाला। 

लेकिन होनी को कौन टाल सकता है? अंततः, भगवान विष्णु के अवतार, भगवान कृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सुबह-सुबह भगवान श्री कृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया, जो उस समय अपने मामा कंस के कालकोठरी में कैद थीं।

जैसे ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, वहां मौजूद सभी दरबारी गहरी निद्रा में सो गए और उनके कारागार के ताले अपने आप खुल गए। इस अद्वितीय घटना को देखकर वासुदेव को विश्वास हो गया कि यह वाकई भगवान का अवतार है, और भगवान स्वयं उन्हें बचाना चाहते हैं। पिता वासुदेव ने बिना कोई देरी किये भगवान श्री कृष्ण को बांस से बनी छाबरी में सुरक्षित रख दिया और उन्हें बचाने के लिए तुरंत निकल पड़े।

भगवान विष्णु ने वासुदेव से कहा, “श्रीकृष्ण को गोकुल नगर में यशोदा और नंद बाबा के पास वहां ले जाओ। वहां वे सुरक्षित रहेंगे।” उसी दिन, यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जिसे भगवान विष्णु ने वहीं ले जाने के लिए कहा। इस पर, वासुदेव ने श्रीकृष्ण को अपने सिर पर उठाया और गोकुल नगरी की ओर रवाना हुए।

उस समय, एक भयंकर तूफ़ान आया और भारी वर्षा हुई, जिसके कारण बाढ़ आ गई और वासुदेव डूबने लगे। फिर भी वासुदेव ने स्वयं डूबते हुए भी हाथ ऊपर उठाए और श्रीकृष्ण को बचाने का प्रयास किया। जब पानी श्री कृष्ण की छबड़ी तक पहुंच गया, तो श्री कृष्ण ने अपना एक पैर छबड़ी से बाहर निकाला और पानी को छू लिया। पानी के स्पर्श होते ही, रास्ते से सारा पानी गायब हो गया। इस दृश्य को देखकर वासुदेव को विश्वास हो गया कि वह भगवान का अवतार हैं।

जैसे ही पानी खत्म हुआ, वासुदेव तुरंत गोकुल नगरी पहुंचे और नंद बाबा को पूरी घटना विस्तार से बताई। यह सुनकर, नंद बाबा अपनी बेटी देने को तैयार हो गए और उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने पास रख लिया।

वसुदेव नंद बाबा और यशोदा की पुत्री को लेकर मथुरा नगरी लौट आये और फिर से कारागार में बैठ गये, तब तक सभी लोग सो रहे थे और किसी को कोई खबर नहीं हुई। सूर्योदय के बाद जब कंस को बताया गया कि देवकी को आठवां पुत्र हुआ है, तो कंस उसके आठवें पुत्र को मारने के लिए स्वयं कारागृह में पहुंच गया।

जब कंस ने देखा, तो वह एक कन्या थी, जबकि आकाशवाणी हुई थी कि “तेरी बहन का आठवां पुत्र तुझे मार डालेगा।” कंस को इस पर संदेह हुआ, और उसने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कोड़े मारे, लेकिन वासुदेव ने कुछ भी नहीं बताया, जिससे कंस को यह विश्वास हो गया कि वे सभी कैद में थे। आख़िरकार, उसने मान लिया कि अब उसे कोई खतरा नहीं है, क्योंकि यह आठवां और आखिरी बच्चा है, जिससे उन्हें खतरा हो सकता था।

ऐसा करते ही, कंस ने उस कन्या को नीचे रखे पत्थर पर पटक कर मारने का प्रयास किया, तब वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में चली गई और उसने भविष्यवाणी की कि तुम्हारा काल किसी अन्य स्थान पर बढ़ रहा है, जिससे कंस का वध होगा। कंस आश्वस्त हो गया कि अब वह सुरक्षित नहीं है, क्योंकि देवकी के आठवें पुत्र को भगवान ने दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया है।

धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि कंस जिस कन्या को मारना चाहता था, वह कन्या आकाश में जाकर बिजली बन गई। उस दिन से आकाश में बिजली चमकने लगी। इस घटना के बाद, कंस ने देवकी के आठवें पुत्र को मारने के लिए विभिन्न प्रकार के राक्षसों और विभिन्न प्रकार के योद्धाओं को बुलाया और उन्हें हर जगह उस लड़के को खोजने और उसे मारने का आदेश दिया। परंतु कोई भी इस कार्य में सफल नहीं हो सका।

अंततः, कंस के राक्षस गोकुलधाम में बड़े हो रहे कृष्ण का पता लगाते हैं, लेकिन वे उन्हें मारने में असफल हो जाते हैं। ऐसा कई वर्षों तक चलता रहा और बचपन में श्रीकृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा कंस का वध कर दिया, जिसके बाद से पूरे भारत में लोग उनके जन्मदिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में धूमधाम से मनाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी और दही हांडी (Dahi Handi in Hindi)

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दही हांडी एक लोकप्रिय और आध्यात्मिक त्योहार है जो भगवान कृष्ण के बचपन की एक मजेदार हांडी घटना को याद करने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत में, विशेषकर भारत में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, और दिल्ली जैसे राज्यों में, विभिन्न हिंदू समुदायों में धूमधाम से मनाया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, एक छोटे बच्चे को भगवान कृष्ण के रूप में तैयार किया जाता है, जिसे “कन्हैया” या “नंदलाल” कहा जाता है। इस बच्चे को जन्म स्थान पर रखा जाता है और वहां उसे दही और मक्खन का मिश्रण खिलाया जाता है।

इस क्रिया का उद्देश्य यह दिखाना है कि कृष्ण बचपन में दही और मक्खन चुराने के लिए प्रसिद्ध थे और उनकी नटखट गतिविधियाँ किसी भी कठिनाई को मुस्कुराहट के साथ दूर कर सकती थीं। 

दही हांडी कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का एक हिस्सा है, जिसमें युवा गोपियों के घरों में जाकर दही हांडी तोड़ने का प्रयास करते हैं। यह एक पुरानी परंपरा है और कृष्ण के बचपन के खेलों को फिर से जीवंत करती है। गोपियाँ दही हांडी को सबसे ऊंचे स्थान पर लटकाकर रखती हैं और युवा अपने दोस्तों के साथ उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं। यदि वे सफल हो जाते हैं तो खुशी-खुशी दही को हांडी में डालकर बांट देते हैं।

इसके अलावा, इस गतिविधि के माध्यम से लोग भगवान कृष्ण के बचपन की दिलचस्प कहानियों को याद करते हैं और उनकी लीलाओं का जश्न मनाते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी और दही हांडी दोनों ही खुशी और आनंद के अवसर होते हैं, और भगवान कृष्ण के जन्म को याद करने और उनके जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों का पालन करने का अवसर प्रदान करते हैं। इन त्योहारों के माध्यम से लोग भगवान कृष्ण के प्रति अपना प्रेम और भक्ति व्यक्त करते हैं।

निष्कर्ष

भागवत पुराण के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाने का एक अवसर है। इस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, जिन्हें हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व भगवान कृष्ण के जीवन और उनके धार्मिक संदेश को याद करना है।

इस त्योहार के दौरान, लोग भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं, मंदिरों में उनकी मूर्तियों को सजाते हैं, भजन गाते हैं और उनके जीवन की कहानियाँ सुनते हैं। रासलीला के प्रसंगों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण के बचपन और उनकी गोपियों के साथ रासलीला की कहानियाँ देखने को मिलती हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, भगवान कृष्ण का विशेष प्रसाद, जैसे छाछ, पेड़ा, दही, फल और अन्य व्रत के भोजन का प्रसाद तैयार किया जाता है। लोग इस प्रसाद का आनंद लेते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ जश्न मनाते हैं।

साथ ही, यह दिन कृष्ण की भगवद गीता से भी जुड़ा है, जो भगवान कृष्ण की शिक्षाओं का सार है और मानव जीवन के मूल्यों और धर्म के प्रति एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।

इसके अलावा, कृष्ण जन्माष्टमी की रात को “दही हांडी” नामक एक पारंपरिक खेल आयोजित किया जाता है, जिसमें युवा गोपियों के साथ बर्तनों में करतब दिखाने की कोशिश करते हैं, जैसे कृष्ण गोपियों के साथ दही चुराते थे।

वैसे, कृष्ण जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो भगवान कृष्ण की महिमा करने और उनके धार्मिक संदेश को साझा करने का अवसर प्रदान करता है।

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