करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai In Hindi

Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai In Hindi

Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai In Hindi – करवा चौथ हिंदुओं का एक प्रमुख और पारंपरिक त्योहार है। करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित देश के उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में मनाया जाने वाला त्योहार है।

यह त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। प्राचीन काल से ही सनातन भारतीय सौभाग्यवती (सुहागिन) महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती आ रही हैं। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और भगवान से आशीर्वाद मांगती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे शुरू होता है और रात में चंद्रमा देखने के बाद समाप्त होता है।

आज के लेख में हम जानेंगे कि करवा चौथ क्या है? करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? और करवा चौथ मनाने की प्रथा कैसे शुरू हुई? इसके अलावा आज हम आपको करवा चौथ की कहानियों की भी जानकारी देने जा रहे हैं।

करवा चौथ क्या है? Karwa chauth kya hota hai?

करवा चौथ, जिसे निर्जला व्रत के नाम से भी जाना जाता है, एक दिवसीय त्योहार है जहां विवाहित हिंदू महिलाएं अपने पतियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए व्रत रखती हैं। करवा चौथ पति-पत्नी के बीच प्रेम दर्शाने के लिए बड़ी श्रद्धा और भक्ति से व्रत रखने का त्योहार है। करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के बीच मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती ने सबसे पहले भोलेनाथ के लिए यह व्रत रखा था। इस व्रत से माता पार्वती को भी अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान मिला था। इसलिए विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं और माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।

ग्रामीण महिलाओं से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी महिलाएं करवाचौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा और उत्साह से रखती हैं। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए भालचंद्र गणेश जी की पूजा करती हैं।

करवा चौथ में भी संकष्टी गणेश चतुर्थी की तरह पूरे दिन व्रत रखकर रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन किया जाता है। वर्तमान समय में अधिकतर महिलाएं करवाचौथ व्रतोत्सव अपने परिवार में प्रचलित रीति के अनुसार ही मनाती हैं, लेकिन अधिकांश महिलाएं निराहार रहकर चंद्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करक चतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने की शास्त्रीय विधि है। इस पवित्र व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। विवाहित स्त्री चाहे किसी भी उम्र, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सभी को यह व्रत करने का अधिकार है।

जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य तथा सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएं लगातार 12 वर्ष या 16 वर्ष तक हर वर्ष करती हैं। अवधि पूरी होने के बाद इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो विवाहित स्त्रियां इस व्रत को आजीवन करना चाहती हैं, वे इस व्रत को जीवन भर कर सकती हैं।

करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? Karwa chauth kyu rakha jata hai?

प्राचीन काल से ही यह मान्यता चली आ रही है कि जब यमराज पतिव्रता सती सावित्री के पति सत्यवान के प्राण लेने पृथ्वी पर आये, तब सत्यवान की पत्नी ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस करने के लिए याचना करने लगी। उसने यमराज से अपना सुहाग वापस मांगा। लेकिन यमराज ने उसकी एक न सुनी। इस पर सावित्री ने अन्न-जल त्याग दिया और अपने पति के शव के पास बैठकर विलाप करने लगी।

सावित्री के इस हठ को देखकर यमराज को उस पर दया आ गई, तब यमराज ने उससे वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने अनेक संतानों की मां बनने का वरदान मांगा। सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी और अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के बारे में भूलकर भी नहीं सोच सकती थी इसलिए यमराज को भी उसके सामने झुकना पड़ा और उन्होंने सत्यवान को पुनः जीवित कर दिया। तभी से महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए सावित्री का पालन करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं।

करवा चौथ मनाने के पीछे यह भी एक कारण है।

करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से देश के उत्तरी और पश्चिमी राज्यों की महिलाएं रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल से ही इन राज्यों के लोग सेना में सेवा करते रहे हैं और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में भर्ती होते रहे हैं। इसलिए इन राज्यों की महिलाएं अपने पतियों की सलामती के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं ताकि उनके पतियों की दुश्मनों से रक्षा हो सके और उनकी उम्र लंबी हो।

वहीं जिस अवधि में यह त्योहार मनाया जाता है उस दौरान रबी की फसल यानी गेहूं की फसल बोई जाती है। कुछ स्थानों पर महिलाएं करवा में गेहूं भरकर भगवान को अर्पित करती हैं ताकि उनके घर में गेहूं की भरपूर फसल पैदा हो।

करवा चौथ की कहानी (karwa chauth katha in Hindi)

करवा चौथ की कथा यह है कि प्राचीन काल में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री हुआ करती थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, उसी समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। इसके बाद उसने करवा को मदद के लिए बुलाया तो करवा ने अपने सतीत्व के प्रताप से मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास पहुंच गई। 

यमराज ने करवा से पूछा कि हे देवी तुम यहां क्या कर रही हो और क्या चाहती हो। तब करवा ने यमराज से अपने पति के प्राण बचाने और मगर को मृत्युदंड देने की प्रार्थना की।

करवा की इस प्रार्थना पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, इसलिए उसे समय से पहले मृत्यु नहीं दी जा सकती। तब करवा ने क्रोधित होकर यमराज से कहा कि यदि उन्होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह उसे अपने तपोबल से नष्ट होने का श्राप दे देगी। 

यमराज करवा के सतीत्व के कारण न तो उसे शाप दे सकते थे और न ही उसके वचन को टाल सकते थे। तब करवा के तपोबल से भयभीत यमराज ने करवा के पति को जीवनदान दे दिया और मगरमच्छ को मृत्युदंड दिया। इसके साथ ही यमराज ने करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा जीवन सुख और समृद्धि से भरा रहेगा।

यमराज ने करवा की प्रशंसा करते हुए कहा कि जिस प्रकार तुमने अपनी तपस्या से अपने पति के प्राण बचाए हैं, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं वरदान देता हूं कि इस तिथि पर जो भी सुहागिन स्त्री पूर्ण आस्था से तुम्हारा व्रत और पूजन करेगी, मैं उसके सौभाग्य की रक्षा करूंगा।

उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी होने के कारण करवा और चौथ का मिलन होने के कारण इस काल को करवा चौथ नाम दिया गया। इस तरह मां करवा पहली महिला हैं जिन्होंने अपने सुहाग की रक्षा के लिए न सिर्फ व्रत रखा बल्कि करवा चौथ की शुरुआत भी की।

इसके अलावा एक कथा यह भी है कि एक बार देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। उस समय लाख उपायों के बावजूद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल रही थी और राक्षस देवताओं पर हावी होते जा रहे थे। ऐसी स्थिति में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की।

तब ब्रह्मदेव ने एक उपाय सुझाया कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियाँ अपने पतियों के लिए व्रत रखें और उनकी जीत के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें। ब्रह्मदेव ने वचन दिया कि ऐसा करने से इस युद्ध में देवताओं की अवश्य विजय होगी।

ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की जीत के लिए प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई और सभी देवताओं की युद्ध में विजय हुई।

इस विजय के बाद सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत तोड़ा और भोजन किया। उस समय चंद्रमा भी आकाश में निकल आया था और तभी से चंद्रमा की पूजा के साथ करवा चौथ का व्रत शुरू हो गया।

इसके अलावा इस बात का उल्लेख महाभारत और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। 

महाभारत में करवा का एक प्रसंग है

महाभारत काल की कथा के अनुसार एक बार अर्जुन तपस्या करने के लिए नीलगिरि पर्वत पर गए गए थे। उसी समय पांडवों पर अचानक कई तरह के संकट आ गए, तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से पांडवों को संकट से निकालने का उपाय पूछा। तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा व्रत रखने की सलाह दी और उसके बाद द्रौपदी ने यह व्रत किया और पांडवों को संकट से मुक्ति मिल गई।

वीरावती की करवा चौथ कथा

बहुत समय पहले की बात है, वीरावती नाम की एक राजकुमारी थी जिसके 7 भाई थे, सभी भाई अपनी इकलौती बहन का बहुत प्यार से ख्याल रखते थे। वीरावती के वयस्क होते ही उसकी शादी एक राजघराने के राजकुमार से कर दी जाती है।

शादी के बाद वीरावती अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखने के लिए अपने मायके जाती है, कमजोर स्वास्थ्य के साथ वीरावती यह करवा चौथ का व्रत रखती है। और कमजोरी के कारण वीरावती रात में चंद्रमा निकलने से पहले ही भूख और प्यास से व्याकुल होने लगी।

वीरावती का भाई इस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर सका और इसीलिए वीरावती के छोटे भाई ने इस व्रत को तोड़ना उचित समझा। लेकिन चंद्रमा को अर्ध्य दिए बिना वह खाना नहीं खा सकती थी।

उसके भाई अपनी बहन को इस प्रकार नहीं देख सकते थे, इसलिए उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी द्वारा सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखाया और कहा कि बहन, चंद्रमा निकल आया है, अब चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन कर लो।

इस तरह वीरावती इस धोखे को सच मान लेती है और अग्नि को अर्ध्य देकर भोजन कर लेती है। लेकिन भोजन का निवाला मुंह में डालने से पहले ही पहले कौर में अशुभ संकेत निकलने लगे, दूसरे कौर में छींक आ गई और तीसरे कौर में उसे यह समाचार मिला कि उसका पति मर गया है।

अपने पति का शव देखकर वीरावती को बहुत दुःख हुआ और वह इस कृत्य के लिए स्वयं को दोषी मानने लगी। उसका यह विलाप सुनकर इंद्र देव की पत्नी देवी इंद्राणी वहां पहुंची और वीरावती को सांत्वना देने लगी।

जब वीरावती ने देवी इंद्राणी से पूछा कि उसके पति की मृत्यु करवा चौथ के दिन ही क्यों हुई, तो इसके जवाब में देवी इंद्राणी ने कहा कि तुमने चंद्रमा को अर्ध्य दिए बिना ही अपना करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया है, इस कारण तुम्हारे पति की असामयिक मृत्यु हो गई। 

और देवी इंद्राणी ने वीरावती से कहा कि तुम करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ हर महीने की चौथ का व्रत भी करना शुरू कर दो, ऐसा श्रद्धापूर्वक करने से तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जाएगा।

देवी इंद्राणी के कहे अनुसार वीरावती ने करवा चौथ के साथ-साथ हर महीने की चौथ का व्रत पूरी श्रद्धा से किया, जिसके पुण्य के रूप में वीरावती को उसका पति फिर से जीवित हो गया।

करवा चौथ का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

यह सभी शादीशुदा महिलाओं के लिए एक खास दिन होता है इसलिए इस मौके पर महिलाएं अपने हाथों को मेंहदी से सजाती है, रंग-बिरंगी चूड़ियां पहनती है, खूब सजती-संवरती है और इस तरह विवाहित महिला अपने पति की पूजा करती है और व्रत रखती है।

इस दिन महिलाएं व्रत शुरू करने से पहले सरगी का सेवन करती हैं, सरगी में सेब, अनार, केला, पपीता जैसे फल होते हैं जो शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। अगर हम सरल शब्दों में सरगी को समझें तो व्रत से पहले दिए जाने वाले नाश्ते को सरगी कहते हैं। 

अतः इस व्रत को रखने वाली महिलाओं को सूर्योदय से पहले सरगी के व्यंजन खाने के बाद पूरे दिन पानी पीने की भी मनाही होती है। और रात को आकाश में चंद्रमा दिखाई देने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर और अपने पति के पैर छूकर और उनके हाथ से जलपान ग्रहण करके व्रत समाप्त किया जाता है।

करवा चौथ की व्रत विधि क्या है?

  • विवाहित महिलाएं सुबह जल्दी स्नान करके अपने विवाहित जीवन के लिए लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सौभाग्य के संकल्प के साथ पूरे दिन निर्जला रहे। 
  • करवा चौथ का व्रत रखने के बाद शाम के समय पूजा करते समय माता करवा चौथ कथा का पाठ करना चाहिए। 
  • साथ ही महिलाओं को करवा माता से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे मां जिस तरह आपने अपने सुहाग और सौभाग्य की रक्षा की, उसी तरह हमारे सुहाग की भी रक्षा करें। 
  • शाम के समय मंदिर में पूजा करते समय भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्रीगणेश की पूजा करें।
  • माता पार्वती को सुहाग का सामान चढ़ाएं और कथा चित्र में उनका श्रृंगार करें।
  • साथ ही यमराज और चित्रगुप्त से प्रार्थना करें कि वे अपना व्रत रखते हुए हमारे व्रत को स्वीकार करें और हमारे सौभाग्य की रक्षा करें।
  • सभी विवाहित महिलाओं को व्रत की कथा सुननी चाहिए और शाम के समय चंद्रमा को देखने के बाद ही अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करना चाहिए।
  • और उसके बाद अपने पति, सास-ससुर और बड़ों का आशीर्वाद लेकर इस व्रत को समाप्त करें।

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