Biography of Kavikulguru Kalidas In Hindi – कालिदास जी भारत के अब तक के सबसे महान कवियों में से एक थे। वह संस्कृत भाषा के विद्वान भी थे और राजा विक्रमादित्य के दरबार के नौरत्न में शामिल थे। उनकी रचनाएं देश-विदेश की कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
महाकवि कालिदास का जीवन परिचय – Kalidas ka Jivan Parichay
कालिदास जी कौन थे ?
महाकवि कालिदास संस्कृत कवियों में श्रेष्ठ कवि हैं। उनके नाम के पहले विशेषण “कविकुलगुरु (Kavikulguru)” का प्रयोग किया जाता है। उन्हें न केवल भारत के बल्कि विश्व के भी सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में जाना जाता है।
कालिदास जी ईसा पूर्व पहली शताब्दी के संस्कृत भाषा के महान कवि एवं नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन के आधार पर साहित्य की रचना की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विभिन्न रूपों और बुनियादी तत्वों का प्रतिनिधित्व किया गया है।
इन्हीं विशेषताओं के कारण कालिदास जी राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रकवि (National poet) का स्थान भी देते हैं।
कालिदास जी वैदर्भि शैली के कवि थे और तदनुसार वे अपनी अलंकृत किंतु सरल और मधुर भाषा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके प्रकृति वर्णन अद्वितीय हैं और विशेष रूप से उनकी उपमाओं के लिए जाने जाते हैं।
कालिदास जी को साहित्य में उदारता से विशेष प्रेम रहा है और उन्होंने अपने श्रृंगार रस प्रधान साहित्य में भी आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है।
कालिदास जी के परवर्ती कवि बाणभट्ट (Banabhatta) ने भी उनके लोकोक्तियों की विशेष रूप से प्रशंसा की है।
कालिदास जी का प्रारंभिक जीवन
कालिदास जी के जन्म के संबंध में कोई ठोस प्रमाण या जानकारी या कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। कालिदास जी का जन्म किस काल में हुआ था और वे मूल रूप से किस स्थान के थे, इस पर बहुत विवाद है। इनके जन्म के संबंध में अनेक विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ विद्वान कालिदास का जन्म 150 ईसा पूर्व से 400 ईस्वी के बीच मानते हैं।
चूंकि, कालिदास जी ने “मालविकाग्निमित्रम (Malavikagnimitram)” नाटक लिखा था जिसमें शुंग शासक अग्निमित्र (Sunga ruler Agnimitra) को नायक के रूप में दिखाया गया था और अग्निमित्र वह शासक थे जिन्होंने 170 ईसा पूर्व में भारतीय क्षेत्र पर शासन किया था, इसलिए ऐसा माना जाता है कि कालिदास जी इस समय से पहले के तो नहीं हो सकते।
छठी शताब्दी ई. में बाणभट्ट (Banabhatta) ने अपनी कृति हर्षचरितम् (Harshacharita) में कालिदास जी का उल्लेख किया है और उसी काल के पुलकेशिन द्वितीय (Pulakeshin II) के ऐहोल अभिलेख (Aihole inscription) में भी कालिदास जी का उल्लेख आता है, अत: वह इनके बाद के नहीं हो सकते।
इस प्रकार कालिदास जी का काल प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईस्वी तक होना निश्चित है। दुर्भाग्य से, इस समय सीमा के भीतर वे कब हुए, इस पर काफी असहमति है।
कालिदास के जन्म स्थान के संबंध में भी विद्वानों और इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कालिदास जी ने अपने काव्य मेघदूत (Meghdoot) में उज्जैन शहर का प्रेमपूर्वक उल्लेख किया है, जो मध्य प्रदेश राज्य में है। उज्जैन के प्रति उनके विशेष प्रेम को देखकर कुछ इतिहासकारों और विद्वानों का मत है कि उनका जन्म स्थान उज्जैन ही है।
जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कालिदास जी का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव (Kaviltha village) में हुआ था। सरकार द्वारा यहां कालिदास जी की एक प्रतिमा और एक सभागार का भी निर्माण किया गया है।
कालिदास जी का वैवाहिक जीवन
कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार, कालिदास शारीरिक रूप से बहुत सुंदर थे और वे महापराक्रमी विक्रमादित्य (Vikramaditya) के दरबार में नवरत्नों में से एक थे। कहा जाता है कि कालिदास अपने प्रारंभिक जीवन में अनपढ़ और मूर्ख थे।
कालिदास का विवाह राजकुमारी विद्योत्तमा (Vidyottama) से हुआ था जो एक विद्वान स्त्री थीं। लेकिन कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह एक संयोग ही माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि विद्योत्तमा को अपने ज्ञान और बुद्धि पर बहुत गर्व था तथा उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो भी उसे वाद-विवाद में पराजित करेगा, वह उसी से विवाह करेगी।
कई विद्वान जो विद्योत्तमा से विवाह करना चाहते थे, वे विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में हार गए। जब विद्योत्तमा ने शास्त्रार्थ में सभी विद्वानों को पराजित कर दिया तो उस पराजय को अपमान समझकर कुछ विद्वानों ने बदला लेने के लिए विद्योत्तमा का विवाह एक मूर्ख व्यक्ति से कराने का षड्यन्त्र रचा।
ऐसे महामूर्ख की खोजबीन में चलते-चलते उन्हें एक वृक्ष पर एक व्यक्ति दिखाई पड़ा, जो उस डाली को काट रहा था, जिस पर वह बैठा था। तब उन सभी को लगा कि इससे बड़ा मूर्ख इस संसार में खोजने पर भी कोई नहीं मिलेगा।
उन्होंने कालिदास को राजकुमारी से विवाह का प्रलोभन देकर पेड़ से नीचे उतारा और कहा कि तुम बस “मौन धारण कर लो और जैसा हम कहते हैं वैसा ही करो”।
तब वे कालिदास का स्वांग भेष बदलकर उसे विद्योत्तमा के पास ले गए और कहा कि कालिदास हमारे गुरु महाराज हैं, जिन्होंने आज मौन धारण किया है, लेकिन आप उनके साथ मूक शब्दों में सांकेतिक भाषा में शास्त्रार्थ कर सकती हैं। इनके संकेतों को समझकर हम आपको वाणी में इसका जवाब देंगे। और फिर दोनों में सांकेतिक शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ।
जब विद्योत्तमा कालिदास से मूक शब्दों में इशारों से कोई गूढ़ प्रश्न पूछती तो कालिदास मौन सांकेतिक भाषा में अपनी सूझबूझ से उसका उत्तर देते। जिस पर वहां उपस्थित सभी विद्वान सही तर्क देकर उस प्रश्न का उत्तर विद्योत्तमा को समझा देते।
पहले प्रश्न के रूप में विद्योत्तमा ने अंगुली दिखाकर संकेत किया कि ब्रह्म एक है। लेकिन कालिदास समझ बैठे कि यह राजकुमारी उनकी एक आंख फोड़ना चाहती है, इसलिए गुस्से में उन्होंने दो अंगुलियों का इशारा इस भाव से किया कि अगर तुम मेरी एक आंख फोड़ दोगी तो मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा।
लेकिन पाखंडियों ने उनके संकेत की इस तरह व्याख्या की कि आप कह रही हैं कि ब्रह्म एक है लेकिन हमारे गुरु यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए भी दूसरे (जगत) की मदद लेनी होती है। अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता है।
राजकुमारी विद्योत्तमा ने दूसरे प्रश्न के रूप में कालिदास को खाली हथेली दिखाई कि तत्व पांच है जिसे कालिदास समझ बैठे कि वह मुझे थप्पड़ मारने की धमकी दे रही है। जवाब में कालिदास ने राजकुमारी को घूंसा दिखाते हुए संकेत किया कि अगर तुम मेरे गाल पर थप्पड़ मारोगी तो मैं मुक्का मारकर तुम्हारा चेहरा बिगाड़ दूंगा।
लेकिन पाखंडियों ने समझाया कि गुरु यह कहना चाह रहे हैं कि यद्यपि आप कह रही हैं कि पांच अलग-अलग तत्व हैं, पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि। लेकिन ये तत्व अलग-अलग कोई विशिष्ट कार्य नहीं कर सकते, बल्कि आपस में मिलकर एक पूर्ण मानव शरीर का रूप धारण कर लेते हैं, जो ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
इस तरह विद्योत्तमा अंत में सवाल-जवाब से अपनी हार मान लेती है और फिर शर्त के अनुसार कालिदास और विद्योत्तमा का विवाह हो जाता है। विवाह के बाद कालिदास विद्योत्तमा को अपनी कुटिया में ले आते हैं।
कुछ ही दिनों बाद विद्योत्तमा को पता चला कि कालिदास मंदबुद्धि और मूर्ख व्यक्ति है। तब विद्योत्तमा ने कालिदास को धिक्कार कर घर से निकाल दिया और कहा कि जब तक वह विद्वान नहीं बन जाते तब तक घर वापस मत आना।
कालिदास अपनी पत्नी द्वारा अपमानित किए जाने के बाद घर छोड़ देते हैं और विद्योत्तमा को तब तक अपना चेहरा नहीं दिखाने का निश्चय करते हैं जब तक कि वह एक ज्ञानी विद्वान नहीं बन जाते।
वर्षों तक कालिदास ने सच्चे मन से देवी काली की पूजा की और उनके आशीर्वाद से वे बुद्धिमान और धनवान बन गए। उसके बाद वह घर लौट आये और जब वह घर पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी को संस्कृत में पुकारा, तब विद्योत्तमा ने आवाज सुनी और उसे बोध हो गया कि आज दरवाजे पर एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति आया है।
कालिदास जी की रचनाएं
कालिदास जी ने कई रचनाएं लिखी हैं, जिनमें से कुछ सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। कालिदास द्वारा लिखित कुछ महत्वपूर्ण कार्यों की सूची नीचे दी गई है।
महाकाव्य
- रघुवंश
- कुमारसंभव
खंडकाव्य
- मेघदूत
- ऋतुसंहार
नाटक
- अभिज्ञानशाकुंतलम
- मालविकाग्निमित्रम
- विक्रमोर्वसियाम
अन्य रचनाएं
- श्यामा दंडकम्
- ज्योतिर्विद्याभरणम्
- श्रृंगार रसाशतम्
- सेतुकाव्यम्
- श्रुतबोधम्
- श्रृंगार तिलकम्
- कर्पूरमंजरी
- पुष्पबाण विलासम्
- अभ्रिज्ञान शकुंन्त्लम
- विक्रमौर्वशीय
- मालविकाग्निमित्रम:
अभिज्ञानशाकुंतलम (Abhijnanasakuntalam) कालिदास जी की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। यह नाटक यूरोपीय भाषाओं में अनुवादित होने वाली पहली भारतीय साहित्यिक कृतियों में से एक है। यह संपूर्ण विश्व साहित्य में अग्रणी रचना मानी जाती है।
मेघदूतम् (Meghadootam) कालिदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचना है, जिसमें कवि की कल्पना और अभिव्यक्ति शक्ति अपने श्रेष्ठतम स्तर पर है और रखंडकाव्ये से लेकर खंडकाव्य तक प्रकृति का अद्भुत मानवीकरण देखने को मिलता है।
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