Joshimath History In Hindi – प्राचीन काल से ही भारत का उत्तरी राज्य उत्तराखंड (Uttarakhand) पूरे विश्व में “देव भूमि” यानि देवताओं की भूमि (Land of the Gods) के रूप में प्रसिद्ध है. यह भारत का वह पवित्र स्थान है जहां हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाने वाले चार धाम (Char Dham – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) स्थित है.
इसके अलावा यहां अन्य देवी-देवताओं के कई छोटे-बड़े मंदिर हैं, जो बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध हैं और प्रत्येक मंदिर से जुड़ी कुछ पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं.
उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में स्थित ऐसा ही एक खास प्राचीन मंदिर है “नरसिंह मंदिर (Narsingh Temple)”, जो इन दिनों जोशीमठ की खबरों में काफी छाया हुआ है. जोशीमठ यहां कुछ दिनों से हो रही भयानक दरारों से चर्चा में है, जिससे यहां के लोगों का जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया है.
यहां स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि जोशीमठ में जमीन में दरारें आने से राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार ने भी इस प्राकृतिक आपदा से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है.
पिछले कुछ दिनों से आपदा अधिकारी लगातार जोशीमठ की मौजूदा स्थिति का जायजा ले रहे हैं और सुरक्षित उपाय करने के निर्देश भी दे रहे हैं. तकनीकी समिति की जांच के बाद यहां के प्रशासन ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जर्जर मकानों, भवनों और होटलों को भी गिराने का निर्णय लिया है.
इन जर्जर इलाकों में स्थित मकानों और होटलों को समय रहते नहीं तोड़ा गया तो जान-माल के भारी नुकसान की आशंका है.
हालांकि ऐसी भीषण घटना के बाद भी जोशीमठ हिंदुओं के लिए एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जहां हर कोई धार्मिक तीर्थ यात्रा और दर्शनीय स्थलों की यात्रा करना चाहता है. यह स्थान न केवल भौगोलिक महत्व रखता है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है.
लेकिन जोशीमठ के जीर्णोद्धार के बिना बद्रीनाथ सहित कई धार्मिक स्थलों की यात्रा संभव नहीं मानी जाती है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब तक इस शहर में मौजूद नरसिंह देवता के मंदिर के दर्शन नहीं किए जाते, तब तक बद्री धाम के दर्शन का लाभ नहीं मिलता है.
तो चलिए आज हम आपको इस लेख के माध्यम से जोशीमठ के महत्व और यहां मौजूद नरसिंह देवता के मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों से अवगत कराते हैं.
जोशीमठ क्यों प्रसिद्ध है? Joshimath In Hindi
जोशीमठ, जिसे ज्योतिर्मठ (Jyotirmath) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय राज्य उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित एक धार्मिक और प्राचीन प्राचीन शहर है. जोशीमठ न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि उत्तराखंड के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
यह हिंदू धर्म के धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत प्रसिद्ध स्थान है. जोशीमठ को कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों का प्रवेश द्वार भी माना जाता है.
इसी जोशीमठ में हिंदू धर्म के चार पवित्र स्थानों में से एक “बद्रीनाथ धाम” स्थित है, जहां हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को जोशीमठ में ही विश्राम गृहों में ठहराया जाता है. इस प्रकार जोशीमठ बद्रीनाथ धाम के तीर्थयात्रियों का आधार है.
8वीं शताब्दी में यहीं पर धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने देश के विभिन्न कोनों में बद्रीनाथ मंदिर और तीन और मठों की स्थापना से पहले यहां पहला मठ स्थापित किया था.
हिंदू अनुयायियों के अलावा, जोशीमठ सिख समुदायों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि जोशीमठ सिखों के पवित्र तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब (Hemkund Sahib) के रास्ते का मुख्य पड़ाव है.
जोशीमठ का इतिहास (Joshimath History in Hindi)
बताया जाता है कि 815 ईस्वी में शहतूत के पेड़ के नीचे आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने ध्यान के माध्यम से ज्ञान का दिव्य प्रकाश प्राप्त किया था. तभी से इस स्थान का नाम ज्योतिर्मठ (Jyotirmath) पड़ा, जो बाद में जोशीमठ (Joshimath) के नाम से जाना जाने लगा.
जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश है, जिसे कभी-कभी ज्योतिषपीठ (Jyotishpeeth) भी कहा जाता है.
यहीं पर रहते हुए आदि शंकराचार्य ने घोर तपस्या कर “शंकर भाष्य (Shankar Bhashya)” नामक ग्रंथ की रचना की थी. आदि शंकराचार्य ने यहां ज्योतिर्मठ की स्थापना के बाद उस मठ को अपने अनन्य शिष्य त्रोटका को सौंप दिया और फिर वे यहां के पहले शंकराचार्य (First Shankaracharya) बने.
ज्योतिर्मठ स्थित शिवालय को ज्योतिश्वर महादेव (Jyotishwar Mahadev) कहा जाता है. यहां स्थित भगवान नरसिंह देव का मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. हिंदू पुराणों में नरसिंह देव को भगवान विष्णु का चौथा अवतार माना जाता है.
इसके अलावा यहां वासुदेव, नवदुर्गा का भी मंदिर है. यहां भगवान वासुदेव की 8 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है.
जोशीमठ के बारे में रोचक तथ्य – Interesting facts about Joshimath in Hindi
- जोशीमठ में स्थित भगवान नरसिंह देव की मूर्ति करीब 10 इंच की है, जो 12000 साल पुरानी बताई जाती है. यह मूर्ति कमल पर विराजमान शालिग्राम पत्थर को तराश कर बनाई गई है.
- जोशीमठ में भगवान नरसिंह देव के दाहिनी ओर भगवान राम, माता सीता, हनुमान जी और गरुड़ की मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि बाईं ओर कालिका माता की मूर्ति स्थापित है.
- जोशीमठ से 10 किलोमीटर की दूरी पर “तपोवन (Tapovan)” नामक प्राकृतिक झरना हैं, वहां से गर्म पानी की धारा निकलती है, जिसे अमृत के समान माना जाता है.
- जोशीमठ में ही आदि शंकराचार्य की तपस्थली गुफा है, जो ज्योतेश्वर महादेव (Jyoteshwar Mahadev) के नाम से प्रसिद्ध है.
- जोशीमठ के प्राचीन स्थान का वर्णन कई धार्मिक हिंदू ग्रंथों जैसे स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण में भी मिलता है.
- जोशीमठ में एक शहतूत का पेड़ है जो 2400 साल पुराना माना जाता है, जिसकी जड़ परिधि लगभग 36 मीटर है. इस पेड़ को कल्पवृक्ष (Kalpavriksha) भी कहा जाता है.
- जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में भगवान बद्रीनाथ का शीतकालीन आसन भी स्थापित किया गया है. ऐसा माना जाता है कि भगवान बद्रीनाथ सर्दियों के दौरान इस मंदिर में आते हैं और निवास करते हैं.
- सर्दियों के 6 महीनों के दौरान जब बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढका रहता है, तब जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में ही भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.
- बद्रीनाथ के रावल सर्दियों में मंदिर के कर्मचारियों के साथ जोशीमठ में तब तक रहते हैं जब तक कि सर्दियों के बाद मंदिर के कपाट खुल नहीं जाते.
- नरसिंह मंदिर को “नरसिंह बद्री मंदिर (Narsingh Badri Temple)” के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति स्वयं भगवान शिव ने की थी. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़ा (Lalitaditya Muktapida) ने करवाया था. ऐसी भी मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर की नींव रखी थी.
- जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में आदि शंकराचार्य के आसन (गद्दी) को भी सुरक्षित रखा गया है.
- ऐसा कहा जाता है कि नरसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की मूर्ति आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी क्योंकि भगवान नरसिंह उनके अधिष्ठाता देवता थे.
मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह की मूर्ति की पतली एक भुजा का रहस्य
जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थित भगवान नरसिंह की मूर्ति में उनकी एक भुजा पतली दिखाई देती है. इस रहस्य से जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है.
कहा जाता है कि जिस स्थान पर यह मंदिर बना है उस स्थान पर प्राचीन काल में वासुदेव नाम के राजा का शासन था.
एक बार जब राजा वासुदेव शिकार के लिए महल से बाहर गए थे, तब भगवान नरसिंह एक साधारण व्यक्ति के रूप में उनके महल में प्रकट हुए.
महल में प्रवेश करने के बाद, भगवान नरसिंह का रानी द्वारा सम्मानपूर्वक स्वागत किया जाता है, उन्हें भोजन कराया जाता है और फिर राजा के बिस्तर पर जाकर उन्हें आराम करने के लिए कहा जाता है.
इस बीच, जब राजा शिकार यात्रा से महल में लौटता है, तो वह देखता है कि एक आदमी उनके बिस्तर पर लेटा हुआ है. जिससे वह क्रोधित हो जाता है और अपने बिस्तर पर सो रहे व्यक्ति पर तलवार से वार कर देता है.
उसके बाद उस आदमी की बांह से खून की जगह दूध निकलने लगता है और फिर वह आदमी भगवान नरसिंह में बदल जाता है, जिसे देखकर राजा को अपनी गलती का एहसास होता है और वह उससे माफी मांगने लगता है.
उसके बाद भगवान नरसिंह राजा से कहते हैं कि तुमने जो अपराध किया है उसका दंड तुम्हें अवश्य मिलेगा. आपको अपने परिवार सहित जोशीमठ छोड़कर कत्यूर में बसना होगा और आपके प्रहार के प्रभाव से मंदिर में स्थित मेरी मूर्ति की एक बाजू पतली होती जाएगी औ एक दिन जीर्ण-शीर्ण होने के कारण वह बाजू गिर जाएगी और उसके साथ-साथ राजवंश भी समाप्त हो जाएगा.
यहां तक कि केदारखंड की “सनत कुमार संहिता” में भी उल्लेख किया गया है कि भगवान नरसिंह की मूर्ति से हाथ टूट कर गिरने पर “जय-विजय” नाम की दो पहाड़ियां जो विष्णु प्रिया के पास पटमिला नामक स्थान पर स्थित हैं, ये दोनों आपस में मिल जाएंगी जिससे बद्रीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जाएगा.
इसके बाद जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित “भविष्य बद्री मंदिर” में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन किए जाएंगे. कहा जाता है कि भविष्य बद्री मंदिर की स्थापना भी आदि गुरु शंकराचार्य ने ही की थी.
जोशीमठ कैसे पहुंचे? How to reach Joshimath?
अगर आप जोशीमठ पहुंचकर यहां स्थित नरसिंह देवता के मंदिर और अन्य मंदिरों के दर्शन करना चाहते हैं तो हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्गों से जा सकते हैं.
रेल मार्ग (Railway route):
अगर आप रेल मार्ग से जोशीमठ पहुंचना चाहते हैं तो बता दें कि जोशीमठ के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून (Dehradun railway station) और हरिद्वार (Haridwar railway station) हैं. हरिद्वार जोशीमठ से लगभग 270 किमी की दूरी पर स्थित है, जबकि देहरादून 290 किमी की दूरी पर स्थित है.
ये दोनों रेलवे स्टेशन चंडीगढ़, लुधियाना, दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, बैंगलोर जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण शहरों से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं. रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद जोशीमठ की आगे की यात्रा के लिए यहां से स्थानीय बस या टैक्सी उपलब्ध है.
हवाई मार्ग (Air route):
यदि आप हवाई मार्ग से जोशीमठ आना चाहते हैं तो जोशीमठ का निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डा (Jolly Grant Airport) है. जोशीमठ से इस एयरपोर्ट की दूरी करीब 265 किलोमीटर है.
यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़, बैंगलोर जैसे एयरपोर्ट से सीधे जुड़ा हुआ है. यदि आपके शहर से सीधी उड़ानें उपलब्ध नहीं हैं तो आप इन संबंधित शहरों के लिए उड़ानें बुक कर सकते हैं और यहां से जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के लिए उड़ानें बुक कर सकते हैं.
सड़क मार्ग (Roadway):
अगर आप बस से जोशीमठ पहुंचना चाहते हैं तो बता दें कि आपको किसी और राज्य से जोशीमठ के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध नहीं होगी. जानकारी के मुताबिक, ज्यादातर बसें सीधे दिल्ली और उत्तराखंड के बीच चलती हैं.
ऐसे में आपको पहले अपने शहर से दिल्ली आना होगा और फिर दिल्ली से हरिद्वार या देहरादून के लिए बस पकड़नी होगी. यहां पहुंचने के बाद आपको जोशीमठ के लिए दूसरी बस लेनी होगी.
कई श्रद्धालु और पर्यटक अपने निजी वाहनों से भी जोशीमठ घूमने आते हैं. कुछ अनुभवी यात्रियों के अनुसार जो लोग अपने निजी वाहन, कार या बाइक से जोशीमठ आना चाहते हैं, उनके लिए यह जानना जरूरी है कि हरिद्वार और देहरादून से जोशीमठ जाने वाली सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. ऐसे में अगर आप एक अच्छे अनुभवी ड्राइवर हैं तभी यह सफर आपके लिए ज्यादा सुगम होगा.
एक बात और भी बताई जाती है कि यहां से जोशीमठ के रास्ते में आपको बहुत कम पेट्रोल पंप मिलेंगे. ऐसे में बेहतर होगा कि सफर के दौरान जहां भी आपको पेट्रोल पंप दिखे आप तुरंत अपने वाहन का फ्यूल टैंक भरवा लें.
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