इटली के प्रसिद्ध चित्रकार लिओनार्दो दा विंसी द्वारा चित्रित “मोनालिसा” पेंटिंग के बाद जो दूसरी प्रसिद्ध पेंटिंग है वह है “द लास्ट सपर”, 15वीं शताब्दी में बनाई गई यह दुनिया की सबसे ज्यादा पसंदीदा और अध्ययन किये जाने वाले पेंटिंग में से एक है. इस पेंटिंग में जीजस को उनके 12 शिष्यों के साथ अंतिम भोजन करते हुए दर्शाया गया है.
यह पेंटिंग आपको किसी भी संग्रहालय में देखने को नहीं मिलेगी, इसे इटली के मिलान शहर के एक कान्वेंट में स्थायी रूप से रखा गया है. मिलान शहर में “Santa Maria Delle Grazie” नामक एक चर्च और कान्वेंट है, लिओनार्दो दा विंसी ने वहा के भोजन कक्ष के एक दीवार पर इस पेंटिंग को बनाया था.
लास्ट सपर का मतलब है अंतिम भोजन. इस पेंटिंग को जीजस को रोमनों द्वारा पकड लिए जाने के बाद और सूली पर चढाये जाने से पहले उनको उनके 12 शिष्यों के साथ अंतिम भोजन करते हुए दिखाया गया है.
लिओनार्दो इस पेंटिंग में उन पलों को दर्शाना चाहते थे जब जीजस अपने शिष्यों को यह कहते है की तुम में से एक मेरे साथ विश्वासघात करेगा और यह बात सुन कर सभी शिष्यों को गहरा धक्का लगता है और सभी अचंबित रह जाते है. इसी पल को लिओनार्दो अपने पेंटिंग में दृश्यमान करना चाहते थे.
लिओनार्दो ने दर्शाया है की जीजस के कथन का सभी शिष्यों पर कितना गहरा असर पडता है. सभी के बीच भावनाओं की लहर उमड पडती है. उन सभी के चेहरों की प्रतिक्रिया और हावभाव ने लिओनार्दो के इस पेंटिंग को और भी मनोहर बनाया है.
बाइबल के अनुसार जब जीजस कहते है की “तुम में से एक मेरे साथ विश्वासघात करेगा”, तो उनके इस बात पर एक शिष्य “फिलिप्स” पूछते है “हे प्रभु, क्या वह दगाबाज मैं हूं?”. जीजस भविष्यवाणी करते है की उनका विश्वासघाती उनके साथ ब्रेड को उठायेगा और पेंटिंग में हम देख सकते है की जीजस के यह कहने बाद उनका एक शिष्य “जेम्स” अपने हाथों को पीछे कर लेता है. वही दूसरे एक शिष्य “जूडस” का ध्यान “पीटर” और “जॉन” के बातों से विचलित हो जाता है, और वह ब्रेड उठाने के लिए हाथ आगे बढाता है और उसी वक्त जीजस भी ब्रेड उठाने के लिए हाथ आगे बढाते है. जैसा की हम पेंटिंग में देख सकते है “जूडस” ही वह इंसान था जिसने जीजस के साथ विश्वासघात किया था.
पेंटिंग में “जूडस” ही एक अकेला ऐसा व्यक्ति है जिस लिओनार्दो ने सांवली त्वचा से दर्शाया है और उसके दाहिने हाथ में पैसों से भरा थैला है जो की उसे रोमनों द्वारा जीजस के साथ विश्वासघात करने के लिए उपहार के रूप में मिले थे.
यह कहा जाता है की जब पेंटिंग में “जूडस” का चेहरा बनाने का वक्त आया तो लिओनार्दो मिलान शहर के जेलों में ऐसे अपराधी की तलाश में लग गए जो चेहरे से ही वाकई में किसी दुष्ट जैसा दिखाई देता हो. और जब उन्हें ऐसा अपराधी मिला तो उसी अपराधी को ध्यान में रखते हुए “जूडस” का चेहरा बनाया था.
जितना हम सोंचते है यह पेंटिंग उससे काफी बडी है, इसका आकर 460 सेमी × 880 सेमी (15.1 फीट × 28.9 फीट) है और इसने दीवार के दोनों कोणों को आगे तक आछ्यादित किया है.
“द लास्ट सपर” के सामने वाली दीवार पर एक अन्य पेंटिंग बनी है, इस पेंटिंग में जीजस को सूली पर चढाये जाने वाली घटना को चित्रित किया गया है. इसे भी इटली के ही एक कलाकार “जियोवन्नी डोनाटो दा मोंटफोरानो” ने 1495 में बनाया था.
“द लास्ट सपर” सदियों से इतिहासकारों के बिच चर्चा और अध्ययन का विषय रही है, इसने इतिहासकारों और लेखकों को सोचने पर काफी मजबूर किया है. और कई तरह के अनुमान इस पेंटिग के बारे में लगते रहे है. क्योंकि लिओनार्दो ने इस पेंटिंग में कई सारे रहस्यों को दर्शाया है.
“सबरीना सोरज़ा गालिट्ज़िया” एक इटालियन कला विशेषज्ञ है जिसने 2010 में इस पेंटिंग में छिपे रहस्यों को समज़ने की कोशिश की, उसने पेंटिंग में कुछ गणितीय और ज्योतिषीय संकेतो को देखा. उन्होंने बताया के लिओनार्दो ने पेंटिंग में दुनियां के अंत की तारीख के बारे में एक संदेश छिपाया है. सबरीना के अनुसार लिओनार्दो ने पेंटिंग में ऐसे संकेत दिए है की सन 4006 में दुनियां का अंत हो जायेगा.
ईसाई लोग पवित्र त्रिएक (Holy Trinity) में विश्वास करते है, त्रिएक का अर्थ है की परमेश्वर तीन तत्वों से मिलकर बना है – “पिता”, “पुत्र” और “पवित्र आत्मा”. इसी वजह से लिओनार्दो ने पेंटिंग में नंबर तीन की और कई बार इशारा किया है जो ईसाईयों के पवित्र त्रिएक पर विश्वास को दर्शाता है, जैसे की सभी शिष्य तीन-तीन के समूह बनाकर बैठे है, जीजस के पीछे तीन खिडकियां है और जीजस के शरीर को त्रिभुज के आकर में बनाया गया है.
लिओनार्दो ने पेंटिंग में जीजस के दाईं ओर एक व्यक्ति को बेहोशी के हालत में दिखाया है, वह व्यक्ति आदमी है या औरत इस बात पर काफी बहस होती रही है, क्योकि पेंटिंग में चित्रित सभी लोगों में केवल यही व्यक्ति औरत जैसी दिख रही है. बहुत से इतिहासकारों का मानना है की यह जीजस का शिष्य “जॉन” है. लेकिन बहुत से इतिहासकार यह मानते है की यह “मेरी मैग्डलीन” है जो की जीजस की एक शिष्य ही थी और जीजस को सूली चढाये जाने, दफनाने और उनके फिरसे जिन्दा हो उठने की साक्षी भी थी.
“द लास्ट सपर” पेंटिंग में एक छोटीसी गलती है…, गौर से देखने पर पता चलता है की भोजन में ईल मछली के साथ ही संतरे के फांके भी परोसे है, लेकिन जीजस को सूली पर चढाये जाने के कई सदियों बाद तक भी मध्य पूर्व में संतरे नहीं पहुंचे थे, तो जो चीज जीजस के समय में थी ही नहीं उसे भला वह कैसे खा सकते है. दरअसल लिओनार्दो के समय में ईल मछली के साथ संतरे खाना एक सामान्य भोजन था, और इसीलिए लिओनार्दो ने इस पेंटिंग में इसे भी दर्शाया था.
क्योकि पेंटिंग को बाहरी पतली दीवार पर बनाया गया था इसलिए इसपर नमि का शुरुआती दिनों से ही काफी असर पडा और दीवार पेण्ट को अच्छे से नहीं सोख पायी और जैसे ही 1498 वे में यह पेंटिंग पूर्णरूप से बनकर तैयार हुई तभी से यह खराब होना शुरू हो गई थी.
1796 में फ्रेंच क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा पेंटिंग को काफी नुकसान पहुंचाया गया. सन 1943 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान पडोसी देशों के बमबारी ने कान्वेंट के पुरे भोजन कक्ष को काफी क्षतिग्रस्त कर दिया था.
जैसा ही हम जानते है की इस पेंटिंग को लिओनार्दो ने एक दीवार पर बनवाया था, 1692 में इसी दीवार के निचले हिस्से को तोडकर वहा दरवाजा बनवाया गया था जिससे की पेंटिंग में से जीजस के पैर वाला हिस्सा नष्ट हो गया था, बाद में फिर से उसे भरकर दीवार बना दी गई. (दीवार वाली पेंटिंग आप पोस्ट के अंत में देख सकते है)
“द लास्ट सपर” पेंटिंग की तीन नकल भी मौजूद है जिनके बारे में कहा जाता है की इन्हे लिओनार्दो के ही शिष्यों द्वारा बनाया गया था. लिओनार्दो के कलासंस्था द्वारा लगभग 1520 में तीसरी प्रति तैयार की गयी. इनमें से एक लंदन की प्रसिद्ध कला अकादमी Royal Academy of Arts में रखी है जिसे इटली के चित्रकार और लिओनार्दो के शिष्य Giampietrino ने 1520 में बनाया था, जब 1978 और 1998 में लिओनार्दो के “द लास्ट सपर” को पुनर्वास किया गया तब यह पेंटिंग ही मुख्य आधारभूत स्रोत थी और लिओनार्दो की पेंटिग से जो चीजें गायब हो चुकी थी (जीजस के पैर वाला भाग, ई.) इस पेंटिंग में उन सभी को उजागर किया गया है.
आज जो पेंटिंग इटली के चर्च में है वह लिओनार्दो की बनाई गई पेंटिंग नहीं है, क्योंकि कुछ पर्यावरणीय कारकों के कारणों से और कुछ आंतरिक क्षति से यह लगातार नष्ट होती रही और पंद्रहवीं शताब्दी से लेकर 1999 तक पेंटिंग को सात बार पुनर्वास किया गया है. इसे पुनर्वास करने का पहला प्रयास 1726 में किया गया था और 1999 में इसे आखरी बार पुनर्वास किया गया. इसलिए लिओनार्दो के बनाये सर्वोत्कृष्ट रचना का आज कुछ ही हिस्सा शेष बचा है.
“द लास्ट सपर” को लिओनार्दो द विंसी ने 15वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में बनाया था. हर साल दुनियाभर से लगभग साढ़े तीन लाख लोग इस कलाकृति को देखने आते हैं.

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Very helpful
Thank you Anitaji 🙂