How will the earth be destroyed in Hindi? कहा जाता है कि न तो मृत्यु, प्रलय और समस्याएं स्थिति देखकर आती हैं और न ही उनके आने का कोई समय होता है. हम नहीं जानते कि दुनिया कब खत्म होगी? या यह खत्म होगी भी या नहीं? लेकिन भगवतगीता की शिक्षाओं के अनुसार, हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि जो पैदा होता है उसका अंत भी एक न एक दिन अवश्य होता है.
दोस्तों आज के इस लेख में हम उन तथ्यों के बारे में मंथन करेंगे जो पृथ्वी के विनाश का कारण बन सकते हैं (How the Earth will be Destroyed?).
ब्रह्मांड में पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व हुआ था और अब तक ज्ञात जानकारी के आधार पर पृथ्वी हमारे सौरमंडल का तीसरा और एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन (Life) संभव है.
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को लगभग 3.5 अरब वर्ष हो चुके हैं और तब से लेकर आज तक पृथ्वी ने कई प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं का सामना किया है और इन्हीं कारणों से पृथ्वी के अंत की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
तो आइए एक नज़र डालते हैं उन संभावित तथ्यों पर जो पृथ्वी के अंत की ओर ले जा सकते हैं.
पृथ्वी के विनाश पर वैज्ञानिक मान्यता (Scientific belief on the destruction of the earth)
वैज्ञानिकों को डर है कि आने वाले समय में “X” नाम का कोई ग्रह पृथ्वी के काफी करीब से गुजर जाएगा और अगर इस दौरान यह पृथ्वी से टकरा जाता है तो पृथ्वी को तबाह होने से कोई नहीं बचा सकता.
लेकिन कई वैज्ञानिक हैं जो इस बात से साफ इनकार करते हैं, उनका मानना है कि ब्रह्मांड में कई ऐसे ग्रह और उल्कापिंड हैं जो कई बार पृथ्वी के पास से गुजरे हैं और उनसे अभी तक कोई खतरा नहीं देखा है.
हालांकि 1994 में एक घटना हुई थी जब पृथ्वी के बराबर के 10-12 उल्कापिंड बृहस्पति ग्रह (Jupiter) से टकरा गए थे और तब वह नजारा किसी महाप्रलय से कम नहीं था, जिसके कारण उस ग्रह की आग और विनाश आज तक शांत नहीं हुआ है. इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि बृहस्पति ग्रह के साथ जो हुआ वह अगर भविष्य में कभी पृथ्वी के साथ हुआ तो पृथ्वी को विनाश से कोई नहीं बचा सकता.
ज्वालामुखी विस्फोट से पृथ्वी का विनाश (Earth’s destruction due to volcanic eruption)
दोस्तों ज्वालामुखी (Volcano) का फटना भी पृथ्वी के विनाश का एक कारण बन सकता है. जब ज्वालामुखी फटते हैं तो वे गर्म, खतरनाक गैसें, राख, लावा और चविशाल चट्टानें ट्टान उगल सकते हैं जो विनाशकारी नुकसान का कारण बन सकते हैं.
1816 में इंडोनेशिया में स्थित माउंट तंबोरा (Mount Tambora) नामक ज्वालामुखी से भारी तबाही मची थी, जिससे 1.5 लाख लोगों की जान चली गई थी.
दोस्तों यह भीषण तबाही एक सामान्य ज्वालामुखी (Normal volcano) के कारण ही हुई है. कल्पना कीजिए कि अगर एक सामान्य ज्वालामुखी के बजाय एक सुपरवॉल्केनो (Supervolcano ) फट जाए, तो पृथ्वी पर विनाश की स्थिति क्या होगी?
सुपर ज्वालामुखी के फटने के दौरान ज्वालामुखी से जो लावा निकलेगा, वह ब्रिटेन के आकार से करीब 8 गुना बड़ा होगा और इस ज्वालामुखी के फटने से आकाश में घने काले धुएं के बादल बनेंगे, जो वर्षों तक सूर्य की किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकेंगे, जिससे पृथ्वी से जीवन लुप्त होने लगेगा और पृथ्वी का विनाश शुरू हो जाएगा.
नष्ट होते सितारे भी बन सकते है पृथ्वी के विनाश का कारण (Destroying stars can also become the reason for the destruction of the earth)
रात में तारों को टिमटिमाते देखना किसे अच्छा नहीं लगता? लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये टिमटिमाते तारे पृथ्वी के विनाश का कारण भी बन सकते हैं, जी हां, जब दो लुप्त होते तारे एक साथ आपस में मिलने लगते हैं, तो उनमें से एक गामा किरण (Gamma ray) निकलती है जो इतनी शक्तिशाली और चमकीली होती है कि पलक झपकते ही हमारी धरती को नष्ट कर सकती है.
वैसे तो यह प्रक्रिया ब्रह्मांड में हमेशा घटित होती रहती है, लेकिन यह प्रक्रिया हमारे सौर मंडल से इतनी दूर है कि इसका हमारी पृथ्वी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इन दो क्षयकारी तारों के मिलन से इतनी अधिक गामा किरणें निकलती हैं कि इनकी ऊर्जा हमारे सूर्य से लगभग 10 अरब गुना अधिक होती है.
अगर यह प्रक्रिया हमारी पृथ्वी से 1000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर घटित होती है तो इस शक्तिशाली किरणों से हमारी पृथ्वी पल भर में नष्ट हो जाएगी.
महाभारत की गाथा के अनुसार पृथ्वी का विनाश कैसे होगा? (According to the story of Mahabharata, how will the destruction of the earth take place?)
महाभारत में भी कलियुग के अंत में प्रलय का उल्लेख मिलता है, यह प्रलय पृथ्वी पर लगातार बढ़ती गर्मी के कारण होगा.
महाभारत महाकाव्य में लिखा है कि कलियुग के अंत में सूर्य का तापमान इतना बढ़ जाएगा कि समुद्र और नदियां सूख जाएंगी. धरती पर बारिश पूरी तरह से रुक जाएगी और सूरज की यह भीषण आग धरती को पाताल तक भस्म कर देगी.
सब कुछ जलकर राख हो जाएगा, उसके बाद 12 साल तक लगातार बारिश होगी, जिसके परिणामस्वरूप पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी और धीरे-धीरे इस धरती पर फिर से जीवन की शुरुवात होगी.