Brief History of Mohenjodaro Civilization – मोहनजोदड़ो सभ्यता का संक्षेप में इतिहास
मोहनजोदड़ो (Mohenjo-daro) सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पुराना शहर था. सिंधु घाटी सभ्यता 1921 तक पूरी तरह से अज्ञात थी. इसकी खोज भारतीय पुरातत्वविद् राखालदास बनर्जी ने 1922 में की थी. मोहनजोदड़ो एक ऐसा शहर है जिसका सदियों पुराना अज्ञात इतिहास है.
यह रहस्यमय संस्कृति लगभग 4,500 साल पहले उभरी और एक हजार साल तक फली-फूली. एक ऐसी सभ्यता जहां हजारों साल पहले लोगों ने जीवन जीने के अद्भुत तरीकों को आत्मसात कर लिया था. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि यह सभ्यता अचानक दुनिया के नक्शे से गायब हो गई.
19वीं शताब्दी से वर्तमान तक सिंधु सभ्यता के सैकड़ों स्थलों की खोज की गई है. इन्हीं में से एक है ‘मोहनजोदड़ो’. यहां खोजकर्ताओं ने कई वर्षों तक खुदाई का काम जारी रखा और जमीन के नीचे से पूरे शहर को खोज निकाला.
सिंधु नदी के आसपास मिले इस शहर के प्रमाणों के कारण मोहनजोदड़ो को सिंधु सभ्यता के मोहनजोदड़ो शहर के रूप में जाना गया. प्राचीन शहर मोहनजोदड़ो का वास्तविक नाम मोहनजोदड़ो है भी या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती क्योंकि इतिहासकारों ने खोज के बाद क्षेत्रीय नामों के आधार पर इसका नाम मोहनजोदड़ो रखा था. इस ऐतिहासिक शहर का वास्तविक नाम अभी भी अज्ञात है. इस शहर की खोज के पीछे भी एक रहस्य्मय और दिलचस्प कहानी है.
वर्ष 1856 में सिंध प्रांत में रेलमार्ग निर्माण के लिए जमीन की खुदाई का काम चल रहा था. तब इंजीनियर को रेलमार्ग के लिए गिट्टी बनाने और रेलमार्ग की नींव को व्यवस्थित करने के लिए कुछ कठोर पत्थरों की आवश्यकता महसूस हुई और वह कठोर पत्थरों की तलाश में जुट गए.
आसपास के क्षेत्र में थोड़ी खुदाई के दौरान उन्हें कुछ पुरानी मजबूत ईंटें मिलीं जो बिल्कुल आज की ईंटों की तरह बनाई गई थीं. जब अंग्रेज इंजीनियर ने आस-पास के गांव के स्थानीय लोगों से इन ईंटों के बारे में उत्सुकता से जानने की कोशिश की तो उन्हें कुछ रोचक जानकारी मिली.
स्थानीय लोगों ने ब्रिटिश इंजीनियर को बताया कि आसपास के गांवों की सभी इमारतें जमीन से मिली इन ईंटों से ही बनी हैं. इस रोचक जानकारी से इंजीनियर को समझ आ गया था कि यह स्थान प्राचीन इतिहास को अपनी गोद में समेटे हुए है.
1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्वविद् राखलदास बनर्जी द्वारा आधिकारिक तौर पर इस ऐतिहासिक सभ्यता को खोजने के लिए खुदाई शुरू की गई थी. खुदाई के पहले चरण में ही उन्हें एक बड़ा स्तूप दिखाई दिया. यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी. अब उन्हें विश्वास हो गया था कि इस भूमि के नीचे कोई गहरा इतिहास छिपा है. जिसके बाद इस दफन इतिहास को उजागर करने की कोशिशें तेज हो गईं.
1924 में काशीनाथ नारायण और 1925 में सर जॉन मार्शल ने उत्खनन कार्य को आगे बढ़ाया. जैसे-जैसे उत्खनन आगे बढ़ रहा था, यह रहस्यमयी सभ्यता दुनिया के सामने प्रकट होने लगी और अपनी विविधता से सभी को चकित कर रही थी.
लेकिन कुछ नैतिक कारणों से 1965 में खुदाई का काम रोक दिया गया. लेकिन जब तक उत्खनन बंद किया गया, तब तक शहर का मुख्य पहलू पूरी तरह से दुनिया के सामने आ चुका था. दुनिया के नक्शे पर एक ऐसा अद्भुत और अविश्वसनीय शहर (मोहनजोदड़ो) उभर आया था, जिसकी 4,500 साल पहले अस्तित्व में होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
मोहनजोदड़ो शहर के निर्माण को व्यवस्थित रूप से इस तरह से शहरीकृत किया गया था कि जैसे इसे एक प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर द्वारा आज के आधुनिक तकनीक का उपयोग करके बनाया गया हो.
मोहनजोदड़ो नगर भवनों की खास बात यह थी कि इन्हें जाल की तरह संरूपित किया गया था. यानी सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं और शहर कई आयताकार खंडों में बंटा हुआ था. नगर में बड़े-बड़े मकान, चौड़ी सड़कें तथा अनेक कुएं होने के प्रमाण मिले हैं. शहर से गंदा पानी बाहर निकालने के लिए नालियां भी बनाई गईं थी. यहां के लोग स्वच्छता और सफाई के मामले में काफी जागरूक थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि हजारों साल पुरानी इस सभ्यता में हर घर में स्नानघर और शौचालय भी हुआ करता था.
अब तक ज्ञात उत्खननों से मोहनजोदड़ो के इतिहास को इस प्रकार समझा जा सकता है – अब तक की गई एक तिहाई खुदाई से यह स्पष्ट हो गया है कि मोहनजोदड़ो अपने समय में दुनिया का सबसे बड़ा और एक प्रसिद्ध शहर हुआ करता था.
लगभग 4,500 साल पहले, सिंधु नदी के किनारे 250 एकड़ में बसे इस विशाल शहर में लगभग 40,000 लोग रहते थे और जीवन यापन करते थे. यहां के लोग बहुत मेहनती होने के साथ-साथ पढ़ना, लिखना, गणित जानते थे और उनकी भाषा शैली चित्रात्मक थी जिसे अब तक पढ़ा या समझा नहीं गया है, इसीलिए इस शहर के प्राचीन नाम के बारे में मतभेद है.
मोहनजोदड़ो में तांबे और टिन को मिलाकर धातुशिल्पी कांसे का भी निर्माण किया जाता था. हांलाकि, दोनों में से कोई भी खनिज यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था.
मोहनजोदड़ो के लोगों को कपास के बारे में भी जानकारी थी. मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले सूती कपड़ों के प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया है कि ये लोग कपास के बारे में अच्छी तरह जानते थे और सूत से कपड़े भी बुने जाते थे.
मोहनजोदड़ो शहर में रहने वाले लोगों ने सार्वभौमिक रूप से पूरी योजना के साथ मोहनजोदड़ो शहर की स्थापना की थी. उत्खनन में मिले साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहां के निवासी लोग योजना बनाने और भवन निर्माण की कला में निपुण थे.
मोहनजोदड़ो की कई इमारतों में दो या दो से अधिक मंजिलें थीं. खुदाई में तीन मंजिला मकान भी मिले हैं. घरों के अंदर शौचालय और घरों से निकलने वाले पानी की निकासी के लिए नालियां भी मिली हैं. यहां बने नालों की व्यवस्था को देखते हुए कहा जाता है कि दुनिया में सबसे पहले नाले का निर्माण यहीं से हुआ था. यहां मिले अवशेषों से पता चलता है कि शहर में एक बड़े दरवाजे से प्रवेश किया जाता था. इस शहर में 700 से अधिक कुओं के प्रमाण मिले हैं.
घरों में बने स्नानघर भी काफी बड़े होते थे. यहां के स्नानघरों और नालियों में इस्तेमाल होने वाली ईंटों को जिप्सम और चारकोल की पतली परत से लेपित किया गया था. ये लोग अपने अनाज के भंडारण के लिए बड़े-बड़े अन्न भंडार भी बनाते थे.
मोहनजोदड़ो में एक विशाल सार्वजनिक स्नानागार भी खोजा गया है और यह ईंटो से निर्मित वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है. यह स्नानागार 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है और इसका फर्श जलरोधी पकी ईंटों से बना है. ऐसा अनुमान है कि इस भव्य स्नानागार का उपयोग सार्वजनिक समारोहों के दौरान किया जाता था.
पुरातात्विक खोजों के अनुसार इन लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती था. ये लोग गेहूं, चावल, कपास, जो के बारे में अच्छी तरह जानते थे. पुरातात्विक खोज के अनुसार, इन लोगों को खेल-कूद का भी शौक था, यहां के लोग शतरंज से मिलता जुलता एक खेल खेला करते थे, हो सकता है कि यह शतरंज का प्राथमिक रूप रहा होगा.
इस सभ्यता के लोग पत्थर के कई औजारों और उपकरणों का इस्तेमाल करते थे लेकिन वे कांस्य के निर्माण से भी अच्छी तरह परिचित थे. मोहनजोदड़ो में, मुद्रा बनाना और मूर्ति बनाना, साथ ही बर्तन बनाना भी मुख्य कारीगरी का व्यवसाय था.
इस सभ्यता के लोग कितने विकसित थे, इसका एक और उदाहरण यह है कि उस समय इन लोगों ने अपने शहर को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए शहर के बाहर एक बड़ा बांध भी बनाया गया था. इतना ही नहीं, वे इस बाढ़ के पानी को शहर के चारों ओर बने छोटे-छोटे टांको में जमा भी करते थे. इस इकट्ठा पानी का उपयोग न केवल पूरे शहर द्वारा किया जाता था, बल्कि वे इस पानी को साल भर खेतों के कामों में भी इस्तेमाल करते थे. वे नाव बनाना और नौकायान भी जानते थे.
लेकिन लगभग 1500 ईसा पूर्व में फलता-फूलता मोहनजोदड़ो शहर अचानक ढह गया और शहर पूरी तरह से विलुप्त हो गया.
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण आज तक ज्ञात नहीं है, कुछ लोग आर्यों को उनके पतन का कारण मानते हैं, लेकिन यह अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है. कई विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ था. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि 1900 ईसा पूर्व के आसपास सरस्वती नदी का सूखना एक प्राकृतिक आपदा थी जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण थी, जबकि अन्य का निष्कर्ष है कि इस क्षेत्र में एक बड़ी बाढ़ आई थी.
1947 में भारत के विभाजन के बाद, पाकिस्तान एक अलग देश बन गया और इसके साथ ही मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत का हिस्सा बन गया.
Interesting facts about Mohenjo-daro Civilization in Hindi – मोहनजोदड़ो सभ्यता के बारे में रोचक तथ्य
#1. मोहनजोदड़ो को व्यापक रूप से दक्षिण एशिया और सिंधु सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक शहरों में से एक माना जाता है.
#2. ऐसा माना जाता है कि मोहनजोदड़ो सभ्यता 4500 साल पुरानी है. मोहनजोदड़ो का निर्माण 26वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था. यह प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े शहरों में से एक था.
#3. मोहनजोदड़ो एक सिंधी शब्द है जिसका अर्थ है ‘मृतकों का टीला’. इसे ‘मुआन जो दारो’ के नाम से भी जाना जाता है. सिंधी भाषा में मुआन का मतलब मृत और दारा का मतलब टीला होता है.
#4. मोहनजोदड़ो दक्षिणी पाकिस्तान के उत्तरी सिंध प्रांत में स्थित सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर टीले और खंडहरों का एक समूह है.
#5. मोहनजोदड़ो को विश्व का सर्वाधिक नियोजित नगर माना जाता है, जिसमें वर्तमान नगर निर्माण के ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनका प्रयोग हम आज भी करते हैं.
#6. खुदाई के दौरान यहां इमारतें, धातु की मूर्तियां और मुहरें मिलीं. ऐसा माना जाता है कि मोहनजोदड़ो शहर 12,00,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था. 2500 ईसा पूर्व इसकी सीमाएं वर्तमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत तक फैली हुई थीं.
#7. मोहनजोदड़ो दुनिया की चार प्राचीन नदय-घाटी सभ्यताओं में सबसे विशाल है.
#8. 4500 साल पुरानी इस सभ्यता की आबादी शायद 40000 से ज्यादा थी.
#9. मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोगों को तांबे का ज्ञान तो था पर लोहे का कोई ज्ञान नहीं था.
#10. मोहनजोदड़ो में 8 फीट गहरा, 23 फीट चौड़ा और 30 फीट लंबा एक जलरोधक कुंड भी मिला है. इसमें जलरोधक ईंटें भी लगी हैं, ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग सामूहिक स्नान के लिए किया जाता था.
#11. सुनियोजित सड़क जाल-तंत्र (road networks) और एक विस्तृत जल निकासी प्रणाली (drainage system) इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन सिंधु शहर मोहनजोदड़ो के निवासी कुशल शहरी योजनाकार थे जो जल नियंत्रण में माहिर थे.
#12. पूरे शहर में कुएं पाए गए, और लगभग हर घर में स्नानघर और जल निकासी व्यवस्था थी.
#13. यहां कुछ ऐसे प्रशस्त घर भी मिले हैं जिनमें 30 कमरे तक हुआ करते थे.
#14. मोहनजोदड़ो में उत्खनित पत्थर के स्लैब के अवशेष आधुनिक समय की शतरंज से मिलते जुलते हैं, जो दर्शाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने शतरंज का प्रारंभिक रूप खेला होगा.
#15. मोहनजोदड़ो की सड़कों और गलियों में आज भी आसानीसे घूमा जा सकता है. यहां की दीवारें आज भी बहुत मजबूत हैं. इसे भारत का सबसे पुराना भूदृश्य (landscape) कहा गया है. यहां स्तूप भी बने हैं.
#16. मोहनजोदड़ो सभ्यता के दौरान के बड़े-बड़े अन्न भंडार भी मिले हैं, जिससे पता चलता है कि उस काल में उन्होंने भोजन को सहेजना और साल भर उसका उपयोग करना सीख लिया था.
#17. मोहनजोदड़ो की खुदाई में पत्थर से बने कई आभूषणों के अवशेष मिले हैं, जिसके फलस्वरूप हम कह सकते हैं कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता में लोगों ने कीमती पत्थरों से आभूषण बनाने की कला सीखी थी.
#18. मोहनजोदड़ो को समर्पित संग्रहालय में काले गेहूं, तांबे और कांसे के बर्तन, मुहरें, चौपड़ की गोटियां, दीपक, मापने वाले पत्थर, तांबे के दर्पण, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटों की चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन और पत्थर के औजार रखें गए हैं.
#19. शालीनता, व्यवस्था और स्वच्छता को स्पष्ट रूप से प्राथमिकता दी गई थी. तांबे और पत्थर के बर्तनों और औजारों को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया था. मुहरें और नाप-तौल के कड़े नियंत्रित व्यापार की व्यवस्था का सुझाव देते हैं.
#20. मोहनजोदड़ो की खुदाई में पता चला है कि ये लोग कीमती पत्थरों से बने गहने पहनते थे और सजावट में तांबे से बने गहनों का भी इस्तेमाल करते थे.
#21. दुनिया के दो सबसे पुराने सूती कपड़ों में से एक का प्रमाण यहां पर ही पाया गया था.
#22. 500 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता के अवशेषों में मिली मिट्टी की मूर्ति के अनुसार उस समय भी दिवाली मनाई जाती थी. उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीपक जलते हुए दिखाई देते हैं.
#23. खोज के दौरान पता चला कि यहां के लोगों को गणित का भी ज्ञान था, वे जोड़ने, घटाने, मापने आदि के बारे में सब कुछ जानते थे.
#24. आपको जानकर हैरानी होगी कि मोहनजोदड़ो में मिले कुछ कंकालों के दांतों की जांच में पता चला है कि ये लोग नकली दांत भी लगाते थे यानी ये लोग दंत चिकित्सा में भी निपुण थे.
#25. मोहनजोदड़ो सभ्यता में कहीं भी महलों, मंदिरों या स्मारकों के कोई संकेत नहीं मिले हैं. यहां तक कि किसी भी प्रकार की शासन व्यवस्था या शासकों के किसी भी प्रकार के राजा या रानी के प्रमाण नहीं मिले हैं.
#26. मोहनजोदड़ो की सभ्यता से पता चलता है कि उस समय शहर पर कोई राजतंत्र नहीं था, बल्कि शहर को निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता था.
#27. सिंधु घाटी सभ्यता में 1500 ऐसे स्थान मिले हैं जहां मनुष्य रहते थे और अवशेष बताते हैं कि उस काल में युद्ध के कोई निशान नहीं थे.
#28. मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिली लिपि को आज भी हम नहीं समझ पाए हैं और आज भी यह एक रहस्य है कि मोहनजोदड़ो में कौन सी भाषा बोली जाती थी.
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