Heer Ranjha Love Story in Hindi – प्यार को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता और न ही इसकी कोई परिभाषा होती है, इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. यह एक भावनात्मक एहसास है जो दो लोगों को बहुत गहराई से जोड़ता है. यह एक ऐसा बंधन है जो दो लोगों को उनकी आत्मा की गहराई से बांधता है.
आज भी 21वीं सदी में जब सच्चे प्यार का जिक्र आता है तो हीर-रांझा (Heer-Ranjha) का नाम यूं ही हमारे जहन में आ जाता है.
तमाम मुश्किलों और दर्द के बावजूद सच्चे प्यार की निशानी बन चुके इन प्रेमियों ने कई प्यार करने वाले जोड़ों को राह दिखाई है और बताया है कि सच्चा प्यार कोई खेल नहीं, बल्कि यह एक आग का दरिया है… और डूब कर जाना है!!!
आज के इस लेख में हम आपके लिए हीर-रांझा के पवित्र प्रेम की कहानी (Heer Ranjha True Love Story In Hindi) लेकर आए हैं.
हीर रांझा के प्यार की सच्ची कहानी – Heer Ranjha True Love Story In Hindi
यह कहानी मुगलकालीन भारत की है जब पाकिस्तान भारत का हिस्सा हुआ करता था. हीर-रांझा की इस अद्भुत प्रेम कहानी की शुरुआत पाकिस्तान से हुई थी.
ऐसा कहा जाता है कि रांझा का जन्म पाकिस्तान में चिनाब नदी के तट पर स्थित तख्त हजारा (Takht Hazara) नामक गांव में हुआ था और उनका असली नाम धीदो (Dheedo) था जबकि रांझा उनका उपनाम (Surname) था.
रांझा के पिता उस गांव के मुख्य जमींदार थे और उनके पिता का नाम मौजूद चौधरी (Maujud Chowdhary) था.
रांझा को मिलाकर ये चार भाई थे और इन सब में रांझा सबसे छोटे थे. चार भाइयों में सबसे छोटा होने के कारण वह अपने पिता के सबसे चहिते और लाडले पुत्र थे.
रांझा के तीनों भाई अपने खेतों में कड़ी मेहनत करते थे जबकि रांझा अपने पिता के चहिते होने के कारण अपने भाइयों को कामों में मदद करने के बजाय बांसुरी बजाते हुए खेतों और गांवों में घूमते रहते थे. इन्हीं कारणों से उसके सब भाई उससे बहुत द्वेष करते थे.
रांझा जब महज 12 साल के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. उनके पिता की मृत्यु के कुछ समय बाद, उनके और उनके भाइयों के बीच कुछ बातों को लेकर विवाद हो गया. वह अपने भाइयों से अलग होकर एक पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजाते और अपनी प्रेमिका के बारे में कल्पना करते रहते थे.
रांझा बचपन से ही बहुत आशिक मिजाज के थे और उन्हें सुंदरता से इतना लगाव था कि उन्होंने अपने मन में ही अपनी प्रेमिका की छवि स्थापित कर ली थी.
एक बार वह उदास मन से एक पेड़ के नीचे बैठे अपनी प्रेमिका के बारे में सोच रहे थे तभी वहां से गुजर रहे एक पीर ने उन्हें देख लिया और उन्हें उदास देखकर उनसे पूछा कि तुम इतने उदास क्यों हो.
तब रांझा ने पीर को एक स्व-रचित प्रेम गीत सुनाया, जिसमें उन्होंने अपनी प्रेमिका का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया.
यह सुनकर पीर ने उनसे कहा कि हीर नाम की लड़की ही तुम्हारे सपनों की राजकुमारी बनेगी. पीर की यह बात सुनकर रांझा अपनी हीर की तलाश में निकल पड़ा.
हीर का जन्म आज के पाकिस्तान अधिकृत पंजाब में हुआ था. रांझा सब कुछ पीछे छोड़कर अपने सपनों की राजकुमारी की तलाश में निकल पड़ा. चलते-चलते वह दूसरे गांव में पहुंच गया जो हीर का गांव था.
हीर का जन्म तत्कालीन पंजाब में स्थित सियाल जनजाति के एक संपन्न जाट परिवार में हुआ था. हीर को देखते ही रांझा को एहसास हुआ कि वह उसके सपनों की राजकुमारी थी.
हीर बहुत ही सख्त स्वभाव की लड़की थी. एक रात ऐसा हुआ कि रांझा हीर की नाव में ही सो गया. यह देखकर हीर आगबबूला हो गई और जैसे ही उसने रांझा के सिर से कंबल हटाया, वह उसे देखती रह गई, क्योंकि रांझा बहुत ही हट्टा-कट्टा और सुंदर था.
तब रांझा ने उसे अपने सपने के बारे में और पीर ने जो कहा था, उसके बारे में बताया. हीर रांझा पर मुग्ध हो गई और उसे अपने घर ले गई, जहां उसके पिता ने रांझा को नौकरी पर रख लिया.
रांझा की कद-काठी देखकर हीर के पिता ने उसे अपने पालतू मवेशियों को पालने का काम सौंपा. मवेशियों को चराते समय रांझा मधुर बांसुरी बजाता था और हीर इस बांसुरी की धुन पर मंत्रमुग्ध हो जाती थी और रांझा के लिए उसका रुझाव बढ़ता गया.
वे दोनों कई सालों तक एक दूसरे से एक गुप्त स्थान पर मिलते रहे, लेकिन एक दिन हीर के चाचा को कहीं से इस बारे में पता चला और उन्होंने पूरी सच्चाई हीर के पिता (चुचक) और मां (मलकी) को बता दी.
उनके प्यार के बारे में पता चलते ही हीर के माता-पिता ने रांझा को नौकरी से निकाल दिया और उन्हें मिलने से मना किया. इसके बाद हीर के पिता ने जबरन हीर को शारदा खेड़ा नाम के शख्स से शादी करने के लिए राजी कर लिया.
माता-पिता और रिश्तेदारों के दबाव में हीर ने उस शख्स से शादी तो कर ली थी, फिर भी हीर का दिल केवल रांझा के लिए धड़कता था. हीर की शादी का पता चलने पर रांझा बहुत दुखी हुआ और उसका दिल जुदाई से टूट गया.
हीर के विलाप से रांझा का बुरा हाल था और वह हीर की याद में भूखे-प्यासे इधर-उधर भटकता रहता था. एक दिन रांझा इधर-उधर भटक रहा था की तभी उसे एक जोगी गुरु गोरखनाथ (Guru Gorakhnath) मिले, गोरखनाथ जोगी संप्रदाय के “कनफटा” समुदाय के थे और रांझा भी उस भले आदमी गोरखनाथ जी की उपस्थिति में जोगी बन गया.
जोगी बनने के बाद रांझा भगवान का नाम जपते हुए पूरे पंजाब में यात्रा करता फिरता था. एक दिन घूमते-घूमते वह हीर के ससुराल पहुंच गया, जहां वह रहती थी.
रांझा हीर के पति सदा शेर के घर पहुंचा और उसका दरवाजा खटखटाया और जोगी की आवाज सुनकर हीर बाहर आई और उसे भिक्षा देने लगी, दोनों भिक्षा देते हुए एक-दूसरे को देखते ही रह गए. रांझा रोज जोगी का वेश बनाकर उस घर में आता और हीर से भिक्षा लेता.
रोज ऐसा करने से वे आपस में मिलने लगे. एक दिन जब वह भिक्षा ले रहा था, तभी हीर की भाभी ने दोनों को हंसते-मुस्कुराते देख रांझा को टोका.
भाभी के तीखे शब्दों के बाद रांझा गांव से बाहर चला गया. इधर, गांव के लोग योगी के रूप में रांझा की पूजा करने लगे थे. जब दोनों फिर से अलग हो गए तो रांझे के अलग होने से हीर की तबीयत बिगड़ गई.
जब वैद्य और हकीम से हीर का इलाज नहीं हो सका तो हीर के ससुर ने रांझा (जो जोगी बन चुका था) से मदद मांगी, तब रांझा हीर के घर गया और जैसे ही उसने हीर के सिर पर से हाथ फेरा, हीर की सेहत में कुछ सुधार होने लगा.
लेकिन जब लोगों को यह पता चलता है कि जोगी बना वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि रांझा है तो हीर के परिवार वालों और वहां के निवासियों द्वारा उसे पीट-पीटकर गांव से बाहर निकाल दिया गया.
उसे राजा के सिपाहियों ने गलती से चोर समझकर पकड़ लिया और दरबार में पेश किया, राजा ने उसे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कहा, तब रांझे ने राजा को अपने प्यार के बारे में विस्तार से बताया।
तब राजा ने रांझा को अपने प्यार की परीक्षा देने के लिए अपने हाथ में आग के अंगारे लेने को कहा. अपने प्यार का परीक्षण करने के लिए, रांझा ने आग के अंगारों को भी अपने हाथ में ले लिया, तब राजा ने हीर के पिता को हीर और रांझा की शादी एक दूसरे से करने का आदेश दिया.
राजा के डर से हीर के पिता ने शादी के लिए अपनी सहमति दे दी और जल्द ही उनकी शादी का दिन भी आ गया. लेकिन उसी दिन हीर के चाचा कैदो ने हीर के खाने में जहर मिला दिया था ताकि वह इस शादी को रोक सके.
जैसे ही रांझा को इस बारे में पता चला, वह हीर को रोकने के लिए दौड़ पड़ा, लेकिन जब तक वह हीर के पास पहुंचता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. हीर ने जहर मिला हुआ खाना खा लिया था जिससे उसकी मृत्यु हो गई थी. तब रांझा को फिर से हीर का वियोग सहना पड़ा, इसके लिए रांझा ने भी हीर के वियोग में जहर मिला हुआ खाना खाकर अपनी जान दे दी.
इस दर्दनाक घटना के बाद दोनों के शवों को उनके पैतृक गांव में ही दफना दिया गया. भले ही हीर मर गई हो, रांझा मर गया हो, लेकिन उनका प्यार अभी भी जीवित है.
दुनिया में प्यार की और भी कई कहानियां हैं जो हमें साबित करती हैं कि सच्चा प्यार कभी हार नहीं मानता और कभी झुकता नहीं है, दुनिया कितनी भी क्रूर क्यों न हो जाए वह हमेशा अमर रहता है. अंत में जीत सिर्फ प्यार की होती है.
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