गुप्त साम्राज्य का इतिहास और शासनकाल – Gupta Empire History In Hindi

Gupta Empire Dynasty Period History In Hindi

Gupta Dynasty And History In Hindi – भारतीय इतिहास में हमें प्राचीन काल के अनेक राजवंशों का वर्णन मिलता है। भारत के लगभग सभी राजवंशों ने उत्तरी भारत में ही शासन किया है। ऐसे ही एक शक्तिशाली साम्राज्य की उत्पत्ति हमें तीसरी और चौथी शताब्दी में भारत में देखने को मिलती है। 

इस गौरवशाली साम्राज्य को हम “गुप्त वंश (Gupta Dynasty)” के नाम से जानते हैं। भारत का सबसे महान साम्राज्य गुप्तकाल (Gupta Period) था, जो हमारे पूर्वजों का विशाल हिंदू साम्राज्य (Hindu Empire) था। इस काल को इतिहासकार भारत का स्वर्ण युग (Golden Age of India) भी मानते हैं।

मौर्य वंश (Maurya dynasty) के पतन के बाद, लंबे समय तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं हो पाई थी। मौर्य वंश के पतन के बाद नष्ट हुई राजनीतिक एकता को पुनः स्थापित करने का श्रेय गुप्त वंश (Gupta Vansh) को जाता है।

आज इस लेख में हम इसी गुप्त वंश (Gupta Dynasty in Hindi) और गुप्त साम्राज्य (Gupta Dynasty in Hindi) के बारे में जानकारी साझा करने जा रहे हैं। इसलिए अधिक जानकारी के लिए आप इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें ताकि आपको इसके संबंध में पूरी जानकारी मिल सके।

Table of Contents

गुप्त साम्राज्य की स्थापना किसने की थी? (Gupta Dynasty History In Hindi)

Gupta Empire founder in Hindi  – गुप्त साम्राज्य की स्थापना हिंदू धर्म के राजा “श्रीगुप्त (Srigupta)” ने की थी। गुप्त साम्राज्य का साम्राज्य दूर-दूर तक फैला हुआ था और इतिहासकारों का मानना है कि गुप्त वंश ने लगभग 300 वर्षों तक पीढ़ी दर पीढ़ी शासन किया।

गुप्त साम्राज्य की नींव तीसरी शताब्दी के चौथे दशक में पड़ी और चौथी शताब्दी के प्रारंभ में इसका उदय हुआ। गुप्त साम्राज्य का उदय प्रयाग के निकट कौशाम्बी (Kaushambi) में हुआ था।

गुप्त वंश के ही एक शासक प्रभावती गुप्त (Prabhavati Gupta) ने पुणे अभिलेख में गुप्त वंश के संस्थापक श्रीगुप्त को “आदिराज (Adiraja)” के नाम से सम्बोधित किया था। 

गुप्त साम्राज्य (Gupta Empire) का नाम श्रीगुप्त के नाम पर ही पड़ा था। श्रीगुप्त की मृत्यु के बाद उनका पुत्र “घटोत्कच (Ghatotkacha)” श्रीगुप्त की गद्दी पर बैठा।

इस वंश का प्रथम प्रतापी राजा “चंद्रगुप्त प्रथम (Chandragupta I)” था जिसने इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था।

इतिहासकारों का यह भी मानना है कि गुप्त वंश की नींव रखने वाले श्रीगुप्त ने प्राचीन काल में भारत आने वाले लगभग सभी चीनी यात्रियों के आश्रय के लिए एक मंदिर बनवाया था और इसका उल्लेख स्वयं एक चीनी यात्री यिजिंग (Yijing) ने अपने यात्रा वृत्तांत में किया है। 

यिजिंग भी उस समय भारत आया था जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था और उसने अपने यात्रा वृत्तांत में इस घटना का उल्लेख किया है।

गुप्त शासकों का राज्य चिन्ह क्या था? Gupta rulers emblem in Hindi

भारतीय इतिहास की पुस्तकों में आपने गुप्त वंशीय साम्राज्य का नाम अवश्य सुना होगा। भारत के इतिहास में स्थापित प्रथम मौर्य वंश (Maurya dynasty) के बाद गुप्त वंश (Gupta dynasty) ही एकमात्र ऐसा साम्राज्य है जो ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है।

हर राज्य में हर समय कोई न कोई “राज्य चिह्न (Emblem)” रहा है जो उस राज्य की गरिमा को भी दर्शाता है। ऐसे में गुप्त वंश के शासकों ने गरुड़ (Garuda) को अपने राज्य के चिन्ह के रूप में चुना था। गुप्त वंश की शाही मुहर पर गरुड़ की छवि भी अंकित थी।

गुप्त शासकों ने गरुड़ को ही अपने राज्य चिन्ह के रूप में क्यों चुना?

आपके मन में एक सवाल जरूर आया होगा कि गुप्त शासकों ने गरुड़ को अपना राज्य चिन्ह क्यों चुना? तो दोस्तों असल में गरुड़ को पक्षियों का राजा (King of birds) कहा जाता है और भगवान श्री कृष्ण का वाहन भी गरुड़ ही है और गरुड़ बहुत तेज गति से उड़ता भी है, जिसके कारण गुप्त वंश के शासकों ने गरुड़ को अपना राजकीय चिन्ह चुना। जिससे ज्ञात होता है कि गुप्त वंश कितना प्रतापी और वीर था।

गुप्त वंश की उत्पत्ति के सिद्धांत (Gupta dynasty origin in Hindi)

इतिहासकारों के अनुसार गुप्त साम्राज्य की उत्पत्ति (Gupta Empire Origin) तीसरी शताब्दी में मानी जाती है। इस वंश ने लगभग 300 वर्षों तक शासन किया और इन 300 वर्षों में इस वंश में अनेक वीर योद्धा उभरे जिन्होंने इतिहास में अपना स्थान बनाया।

श्रीगुप्त को गुप्त वंश का संस्थापक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने ही गुप्त वंश की नींव रखी थी। गुप्त वंश के एक शासक प्रभावती गुप्त के पूना अभिलेख में श्रीगुप्त को “आदिराज (Adiraj)” के रूप में संबोधित किया गया है।

ऐसा माना जाता है कि “प्रशस्ति लेखन” का सर्वप्रथम विकास गुप्त वंश के राजाओं के काल में हुआ था। प्रशस्ति को ही लेखन शैली के रूप में जाना जाता है। उस समय इन प्रशस्तियों की रचना राजाओं की स्तुति के लिए की जाती थी। राजाओं की स्तुति के साथ-साथ उन स्तुतियों से हमें गुप्त वंश की भी जानकारी मिलती है। 

हरीसेना, वत्सभट्टी, वासुल आदि प्राचीन काल की कुछ प्रमुख प्रशस्तियों के रचयिता थे जो उस समय प्रशस्ति लिखने का कार्य करते थे। उनकी लेखन शैली के कारण गुप्त साम्राज्य के बारे में अनेक प्रकार की जानकारी हमें प्राप्त होती है। उनकी लेखन शैली से हमें “हर्षचरित (Harshacharita)” और कादम्बरी “हर्षवर्धन (Harshavardhana)” आदि की जानकारी मिलती है।

गुप्त साम्राज्य की वंशावली – Gupta Empire genealogy in Hindi

इतिहासकारों को गुप्त काल के कई अभिलेख और ताम्रपत्र मिले हैं, जिनसे उनके साम्राज्य, शासनकाल और उनके वंशजों में महान शासकों की जानकारी मिलती है। उन सभी गुप्त वंशों के कुछ प्रमुख राजाओं का वर्णन इस प्रकार है:

चंद्रगुप्त प्रथम (Chandragupta I)

कहा जाता है कि कुषाण काल में मगध राज्य की शक्ति और महत्व समाप्त होने के साथ ही चंद्रगुप्त प्रथम ने इस राज्य को पुनर्स्थापित किया था। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार साकेत और वर्तमान प्रयागराज तक किया था।

उस समय इस राज्य को मगध (Magadha) के नाम से जाना जाता था। यह भी माना जाता है कि चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी वंश (Licchavi dynasty) की राजकुमारी कुमारदेवी (Kumaradevi) से विवाह करके अपने वंश को राजनीतिक और सामाजिक सम्मान दिलाया। चंद्रगुप्त प्रथम को महाराजाधिराज (Maharajadhiraj) की उपाधि से भी संबोधित किया जाता था।

समुद्रगुप्त (Samudragupta)

समुद्रगुप्त को चंद्रगुप्त प्रथम का पुत्र माना जाता है और सभी गुप्त वंश के शासकों में सबसे महान शासक माना जाता था। समुद्रगुप्त न केवल एक महान शासक था बल्कि वह स्वयं एक कवि, संगीतकार, विद्वान और एक महान योद्धा भी था।

समुद्रगुप्त की पहचान एक कुशल शासक के रूप में की जाती है, जो हिंदू धर्म का अनुयायी था और साथ ही बौद्ध और जैन धर्म का भी सम्मान करता था। वह वास्तव में धर्मनिरपेक्षता का राजा था, जिसने सभी धर्मों का सम्मान किया और धर्म के संबंध में धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई।

समुद्रगुप्त इतिहास का एक महान शासक था जिसकी विजय गाथा हमें इलाहाबाद प्रशस्ति से प्राप्त होती है। यदि आपने एरण अभिलेख का नाम सुना है तो आपको पता होगा कि समुद्रगुप्त के बारे में हमें एरणपुरा अभिलेख और सिक्कों से भी जानकारी मिलती है।

कवि हरिषेण द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी गई एक स्तुति में यह भी बताया गया है कि समुद्रगुप्त ने अपने आसपास के नौ राज्यों को पराजित किया था, जिनमें दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उसके आसपास के क्षेत्र शामिल थे। इसके साथ ही यह भी बताया जाता है कि समुद्रगुप्त ने लगभग 12 राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था, जिनमें उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, पल्लव आदि राज्य शामिल थे।

विक्रमद्वितीय (Vikramadwitiya)

विक्रमद्वितीय को चंद्रगुप्त द्वितीय (Chandragupta II) के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रगुप्त द्वितीय के अन्य नामों की भी हमें विभिन्न प्रशस्ति में जानकारी मिलती है, जिनमें देवराज (Devraj) और देवगुप्त (Devagupta) आदि शामिल हैं।

देश के विभिन्न स्थानों, जैसे उदयगिरि, सांची, मथुरा, महरौली आदि में अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिसमे चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारे में जानकारी के स्रोत प्रशस्ति में मिलते हैं। 

इन सभी शिलालेखों से हमें चंद्रगुप्त द्वितीय के शौर्य का प्रमाण मिलता है, जिसमें बताया गया है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने गुजरात और मालवा तथा सौराष्ट्र जैसे राज्यों को पराजित कर अपने अधीन कर लिया था। चंद्रगुप्त द्वितीय ने उज्जयिनी अर्थात उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था।

चंद्रगुप्त और विक्रमादित्य की मुद्रा

कुमारगुप्त प्रथम (Kumaragupta I)

कुमारगुप्त प्रथम को भी गुप्त वंश के इतिहास में एक महान शासक के रूप में जाना जाता है। कुमारगुप्त प्रथम के बारे में जानकारी के स्रोत हमें कई भितरी अभिलेख, भिल्साद सत्मभ अभिलेख, गढ़वा अभिलेख और मनकुवर मूर्ति अभिलेख से मिलते हैं।

स्कन्दगुप्त (Skandagupta)

कुमारगुप्त प्रथम का पुत्र स्कंदगुप्त भी ऐसा ही शासक था, जिसने शकों और हूणों को पराजित किया था और उन्हें पराजित कर स्कंदगुप्त ने शंकर द्वितीय (Shankar II) की उपाधि भी धारण की थी।

जिस समय कुमारगुप्त के पुत्र स्कंदगुप्त ने शकों और हूणों को हराया था, उस समय शकों ने भारत के उत्तर-पश्चिम भागों पर कई बार आक्रमण किया था।

अभी तक आपको गुप्त वंश के कुछ महत्वपूर्ण शासकों के बारे में बताया गया है, जिन्होंने गुप्त वंश के शासन काल में कई महान कार्य किये।

गुप्त वंश के कुछ अन्य शासक जिनका संबंध गुप्त वंश से था, इस प्रकार हैं:

  • श्रीगुप्त (Srigupta)
  • घटोत्कच (Ghatotkach)
  • चंद्रगुप्त प्रथम (Chandragupta I)
  • समुद्रगुप्त (Samudragupta)
  • चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) (Chandragupta II (Vikramaditya))
  • कुमारगुप्त / महेंद्रादित्य (Kumaragupta / Mahendraditya)
  • स्कन्दगुप्त (Skandagupta)
  • पुरुगुप्त (Purugupta)
  • नरसिंहगुप्त (बालादित्य) (Narasimhagupta (Baladitya))
  • कुमारगुप्त द्वितीय, बुधगुप्त, भानुगुप्त (Kumaragupta II, Budhagupta, Bhanugupta)
  • वैन्यगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय (Vainyagupta, Kumaragupta II)
  • विष्णुगुप्त तृतीय (Vishnugupta III)

गुप्त वंश का शासन काल कितने वर्ष का था? (Gupta dynasty reign in Hindi)

इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार गुप्त वंश का संपूर्ण कार्यकाल (Gupta dynasty period in Hindi) लगभग 300 वर्षों तक रहा। गुप्त वंश के इन 300 वर्षों के शासनकाल में, पीढ़ी दर पीढ़ी, प्रत्येक शासक ने कुछ वर्षों तक शासन किया। राजपाठ को आगे बढ़ाते हुए गुप्त वंश का शासन 300 वर्षों तक चला।

गुप्त वंश के कुछ शासकों के कार्यकाल की जानकारी हमने आगे दी है, जो इस प्रकार है:

श्रीगुप्त (Srigupta) 

शासन काल 275 ई. से 300 ई. तक

इतिहासकारों का मत है कि श्रीगुप्त ने ही गुप्त वंश की नींव रखी थी, महाराजा की उपाधि श्री गुप्त ने ही धारण की थी। श्रीगुप्त का शासन काल 275 ई. से 300 ई. तक रहा।

घटोत्कच (Ghatotkach)

शासन काल 300 ई. से 319 ई. तक

इस शासक के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। उसके शासनकाल की किसी घटना की जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

स्कंदगुप्त के समय के सुपिया शिलालेख और प्रभावतीगुप्त के पूना ताम्रपत्र शिलालेख के अनुसार, घटोत्कच गुप्त वंश का संस्थापक था, लेकिन समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार, इस वंश के संस्थापक श्रीगुप्त ही थे।

उन्होंने महाराज की उपाधि भी ग्रहण की। घटोत्कच का शासन काल 300 ई. से 319 ई. तक रहा।

चंद्रगुप्त प्रथम (Chandragupta I)

शासन काल 319 ई. से 335 ई. तक

कुछ इतिहासकार चंद्रगुप्त प्रथम को ही गुप्त वंश (Gupta dynasty) का वास्तविक संस्थापक मानते हैं। क्योंकि पहले गुप्त वंश केवल मगध तक फैला हुआ था लेकिन चंद्रगुप्त प्रथम ने इसे वर्तमान के इलाहाबाद तक फैलाया था।

चंद्रगुप्त प्रथम, गुप्त वंश का एकमात्र ऐसा शासक था जिसने महाराजाधिराज (Maharajadhiraja) की उपाधि धारण की थी। कुछ समय बाद, चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारा देवी (Kumaradevi) से विवाह किया।

चंद्रगुप्त प्रथम को कुमारा देवी से संतान के रूप में समुद्रगुप्त (Samudragupta) की प्राप्ति हुयी। चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने जीवनकाल में ही समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, लेकिन उत्तराधिकारी का पद पाने के लिए समुद्रगुप्त को युद्ध करना पड़ा।

चंद्रगुप्त प्रथम के शासनकाल के दौरान ही पहली बार गुप्त वंश में चांदी के सिक्के (Silver coin) पेश किए गए थे। चन्द्रगुप्त प्रथम का शासन काल 319 ई. से 335 ई. तक रहा।

समुद्रगुप्त (Samudragupta)

शासन काल 335 ई. से 375 ई. तक

चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद गुप्त वंश का शासक समुद्रगुप्त आया। समुद्रगुप्त गुप्त वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था। उसने गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया।

समुद्रगुप्त भी एक बहुत प्रतापी राजा था जिसने उत्तर भारत के 9 और दक्षिण भारत के 12 राजाओं को पराजित किया और समुद्रगुप्त ने कभी भी हार नहीं मानी। समुद्रगुप्त की सैन्य विजयों का विवरण हरिषेण के प्रयाग प्रशस्ति लेख में मिलता है।

उत्तर भारत के जिन नौ शासकों को समुद्रगुप्त ने पराजित किया उनमें अहिच्छत्र के अच्युत, चम्पावती के नागसेन और विदिशा के गणपति के नाम प्रमुख हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि उसने सीधे तौर पर पूरे उत्तर भारत (आर्यावर्त) पर शासन किया था। 

अपनी जीत के बाद, समुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ (Ashwamedha Yagya) किया, जो उसके सिक्कों और उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेखों से सिद्ध होता है।

जानकारी के अनुसार समुद्रगुप्त को 100 युद्धों का विजयी राजा कहा जाता है और समुद्रगुप्त के पूरे शरीर पर युद्ध के 100 घाव थे। समुद्रगुप्त एक महान सेनापति और विजेता था, इसीलिए विन्सेन्ट ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन (Napoleon of India) कहा है।

समुद्रगुप्त के शासन काल से लगभग 6 प्रकार के सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन पर विभिन्न चित्र अंकित हैं। जिसमें कुछ धनुर्धर प्रकार, परशु प्रकार, व्याघ्रहणन प्रकार, अश्वमेध प्रकार, गरुड़ प्रकार और वीणावादक प्रकार है, उनके सिक्कों पर अंकित विदा इस बात का प्रतीक है कि समुद्रगुप्त एक संगीत प्रेमी शासक था, जिसके कारण उन्हें कविराज (Kaviraj) की उपाधि दी गई है।

समुद्रगुप्त का शासन काल 335 ई. से 375 ई. तक रहा।

चंद्रगुप्त द्वितीय (Chandragupta II)

शासन काल 380 ई. से 412 ई. तक

चंद्रगुप्त नाम का अर्थ “पराक्रम का सूर्य” है। चंद्रगुप्त द्वितीय गुप्त साम्राज्य के एक बहुत ही शक्तिशाली राजा थे। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने “विक्रमादित्य (Vikramaditya)” की उपाधि धारण की थी क्योंकि चन्द्रगुप्त अपने काल में लड़ाई और युद्ध के कारण काफी चर्चा में रहे थे।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, जिन्हें भारत के महानतम सम्राटों में से एक माना जाता है, ने वैवाहिक गठबंधनों और विजय के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी दो पत्नियां थीं, ध्रुवदेवी (Dhruvadevi) और कुबेरनागा (Kubernaga)

महरौली, दिल्ली से प्राप्त लौह स्तम्भ, जिस पर “चन्द्र” का उल्लेख मिलता है, चन्द्रगुप्त द्वितीय से सम्बन्धित बताया जाता है।

चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल न केवल उनकी लड़ाइयों, युद्धों और विजयों के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि कला और साहित्य के प्रति उनके गहरे लगाव और प्रेम के कारण भी प्रसिद्ध है। 

चंद्रगुप्त द्वितीय कला और साहित्य के महान संरक्षक थे। उनके दरबार में विद्वानों का एक समूह हुआ करता था, जिसे चंद्रगुप्त के नवरत्नों (Navaratnas of Chandragupta) के रूप में जाना जाता था। चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में कार्यरत उन सभी विद्वानों के नाम निम्नलिखित हैं।

  1. कविकुलगुरु कालिदास (Kavikulguru Kalidas)
  2. धन्वन्तरि (Dhanvantari)
  3. क्षपडक (Kshapadak)
  4. अमर सिंह (Amar Singh)
  5. वराहमिहिर (Varahamihira)
  6. वररुचि (Varruchi)
  7. शंकु (Shanku)
  8. बेताल भट्ट (Betal Bhatt)
  9. घटपर्कर (Ghatparkar)

चंद्रगुप्त के दरबार में उपस्थित ये नौ विद्वान चंद्रगुप्त के नौ रत्नों के रूप में जाने जाते थे। चंद्रगुप्त द्वितीय के समय पाटलिपुत्र (Pataliputra) और उज्जैन (Ujjain) शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे। उज्जैनी विक्रमादित्य की दूसरी राजधानी थी।

चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (Chinese traveler Fa Hien) भारत भ्रमण के लिए आया था। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में मध्यप्रदेश को ब्राह्मणों का देश कहा है। फाह्यान के यात्रा वृतांत में चंद्रगुप्त द्वितीय के समय के शांतिपूर्ण और सुखी जीवन की झलक मिलती है।

चंद्रगुप्त द्वितीय का शासनकाल कला, संस्कृति और धर्म के लिए उन्नति का काल था। चंद्रगुप्त द्वितीय साहित्यिक विकास की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध था।

चंद्रगुप्त द्वितीय को नरेंद्र चंद्र, सिंहचंद्र, देवराज, देवगुप्त और देव श्री भी कहा गया है। चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल 380 ई. से 412 ई. तक रहा।

कुमारगुप्त (Kumaragupta)

शासन काल 415 ई. से 457 ई. तक

कुमारगुप्त ने अपने शासनकाल में नए राज्यों को अपने राज्य में शामिल नहीं किया, लेकिन कुमारगुप्त ने अपने राज्य का विस्तार कम भी नहीं होने दिया। अर्थात कुमार गुप्त अपने राज्य की सीमा को यथासम्भव रखने में समर्थ रहे।

यह गुप्त वंश के सभी शासकों में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला शासक था, जिसने सबसे अधिक समय तक गुप्त साम्राज्य पर शासन किया।

अपने शासनकाल के अंत में, कुमारगुप्त को पुष्यमित्र (Pushyamitra) या हूणों (Huns) के विद्रोह का सामना करना पड़ा। ऐसा लग रहा था कि इस विद्रोह के बाद गुप्त साम्राज्य विघटन की ओर अग्रसर होगा।

लेकिन कुमारगुप्त के पुत्र स्कंदगुप्त (Skandagupta) ने राजा बनने के बाद हूणों को अपनी वीरता और शौर्य से पराजित कर गुप्त वंश को भीषण संकट से उबार लिया।

कुमारगुप्त के सिक्कों से ज्ञात होता है कि उसने अश्वमेध यज्ञ किया था। इसके सिक्कों पर पहली बार शिव-पार्वती को पति-पत्नी के रूप में चित्रित किया गया है।

नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda Vishwavidyalaya) की स्थापना कुमारगुप्त के शासनकाल में हुई थी।

कुमारगुप्त ने महेंद्रादित्य, श्रीमहेंद्र और महेंद्र कल्प की उपलब्धियां धारण कीं थी। कुमारगुप्त का शासन काल 415 ई. से 457 ई. तक था।

स्कंदगुप्त (Skandagupta)

शासन काल 455 ई. से 467 ई. तक

कुमारगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र स्कंदगुप्त गुप्त साम्राज्य का शासक बना। स्कंदगुप्त गुप्त वंश (Gupta dynasty) का अंतिम महत्वपूर्ण शासक था। वह गुप्त वंश का एक वीर और पराक्रमी योद्धा था।

उसके शासन काल में हूणों (मलेच्छों) का आक्रमण हुआ, पर उसने अपनी वीरता से हूणों को पराजित कर साम्राज्य की प्रतिष्ठा स्थापित की। स्कंदगुप्त की हूणों पर विजय का उल्लेख जूनागढ़ अभिलेख (Junagarh inscription) से मिलता है।

स्कंदगुप्त का साम्राज्य पूरे उत्तरी भारत में काठियावाड़ से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था। पश्चिम में सौराष्ट्र, कैम्बे, गुजरात और मालवा के कुछ भाग शामिल थे।

स्कंदगुप्त एक सक्षम सैन्य संचालक होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी था। उसने 466 ईस्वी में चीनी सम्राट के दरबार में एक राजदूत भेजा, जो दूर के चीन के साथ उसके मैत्रीपूर्ण संबंधों को भी दर्शाता है।

एक समय ऐसा भी आया जब उनके शासनकाल में आंतरिक समस्याएं उत्पन्न होने लगीं थी। राज्य के सामंत अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुके थे। फिर भी वह गुप्त साम्राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सक्षम रहे।

स्कंदगुप्त को कहौम स्तंभ लेख में “शक्रादित्य”, आर्यगंजु श्री मूल कल्प में “देवराय” और जूनागढ़ शिलालेख में “श्री परिक्षिपृवआ” कहा गया है। उन्होंने सौ राजाओं के स्वामी की उपाधि भी धारण कर ली थी। 

प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए स्कंदगुप्त के शासनकाल के दौरान, गुप्त वंश की राजधानी को अयोध्या (Ayodhya) में स्थानांतरित कर दिया गया था। 

स्कंदगुप्त के शासनकाल में ही भारी वर्षा के कारण सुदर्शन झील का बांध टूट गया था। इसके बाद स्कंदगुप्त ने सौराष्ट्र के राज्यपाल पर्यदत्त (Paryadatta) के पुत्र पत्रपालित (Patrapalit) को सुदर्शन झील के पुनर्निर्माण का कार्य सौंपा था।

स्कंदगुप्त का शासन काल 455 ई. से 467 ई. तक रहा। स्कंदगुप्त की मृत्यु के बाद गुप्त साम्राज्य पर कई शासकों ने शासन किया लेकिन सबसे शक्तिशाली शासक बुधगुप्त (Budhagupta) हुआ।

बाद के शासकों की कमजोरी का फायदा उठाते हुए एक ओर जहां सामंतों ने सिर उठाना शुरू कर दिया, वहीं दूसरी ओर हूणों के आक्रमण ने गुप्तों की शक्ति को इतना कम कर दिया कि स्कंदगुप्त के बाद गुप्त साम्राज्य कायम नहीं रह सका।

पुरुगुप्त (Purugupta)

शासन काल 467 ई. से 473 ई. तक

पूर्वगुप्त गुप्त वंश का एकमात्र शासक था, जो अपनी ढलती उम्र में गुप्त वंश का सम्राट बना था। यह अपने सौतेले भाई स्कंदगुप्त का उत्तराधिकारी बना था। अभी तक पुरुगुप्त के शिलालेख या प्रशस्ति प्राप्त नहीं हुई हैं।

इनकी पहचान इनके पोते कुमारगुप्त तृतीय (Kumaragupta III) की चांदी-कांस्य मुहर और उनके पुत्रों नरसिंहगुप्त (Narasimhagupta) और बुधगुप्त (Budhagupta) द्वारा बनाई गई नालंदा टेराकोटा पट्टिकाओं से होती है। साथ ही वह गुप्त वंश का पहला शासक था, जो बौद्ध धर्म का अनुयायी (Buddhism) था।

पूर्वगुप्त का शासन काल 467 ई. से 473 ई. तक रहा।

बुधगुप्त (Budhagupta)

शासन काल 476 ई. से 495 ई. तक

पुरुगुप्त के बाद बुधगुप्त एक ऐसा शासक था जो बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसके शासन काल में गुप्त साम्राज्य तीन शाखाओं में विभाजित था, वे शाखाएं इस प्रकार हैं:

  1. मालवा (Malwa) – भानुगुप्त (Bhanugupta)
  2. बंगाल (Bengal) – वैन्यगुप्त (Vainyagupta)
  3. मगध (Magadha) – नरसिंहगुप्त बालादित्य (Narasimhagupta  Baladitya)

भानुगुप्त (Bhanugupta)

भानुगुप्त के शासनकाल में हूणों के आक्रमण में गुप्त सेनापति के मारे जाने के बाद उसकी पत्नी के सती होने की जानकारी प्राप्त होती है।

विष्णुगुप्त तृतीय (Vishnugupta III)

शासन काल 540 ई. से 550 ई. तक

विष्णुगुप्त तृतीय गुप्त वंश का अंतिम शासक था।

गुप्त वंश का पतन – Fall of Gupta Dynasty in Hindi

गुप्त वंश भारतीय इतिहास का एक प्रसिद्ध शासक वंश था जिसका अस्तित्व लगभग तीन शताब्दियों तक रहा। ऐसा माना जाता है कि स्कंदगुप्त की मृत्यु 467 ईस्वी में हुई थी। लेकिन इसके बाद भी यह वंश अगले 100 वर्षों तक चलता रहा और समय के साथ कमजोर होता गया।

गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णुगुप्त तृतीय था, जिसके शासन काल में गुप्त वंश का अस्तित्व कमजोर होता चला गया। वह हूणों के आक्रमणों से जूझ रहे थे, जो उसकी सेना को हराने वाले थे और उसके साम्राज्य को उजाड़ने वाले थे।

वंश के अंतिम शासक विष्णुगुप्त तृतीय ने अपने साम्राज्य को बचाने के लिए हूणों से कई युद्ध लड़े और उन्हें पराजित भी किया, लेकिन इससे भी साम्राज्य को बचाना मुश्किल हो गया था।

विष्णुगुप्त तृतीय के बाद गुप्त वंश के शासकों की सत्ता धीरे-धीरे समाप्त हो गई और उनके बाद भारत में कई राज्यों की स्थापना हुई।

गुप्त वंश से जुड़े प्रमुख तथ्य – Gupta dynasty important facts in Hindi

#1. जब महाभारत और रामायण का काल समाप्त हुआ तो गुप्त वंश का प्रारंभ माना जाता है।

#2. गुप्त वंश एक ऐसा साम्राज्य था, जिसके शासन काल में विकेंद्रीकरण (Decentralization) की प्रवृत्ति बढ़ती ही गई।

#3. गुप्त वंश के ये तीन शासक थे, जिन्होंने “विक्रम द्वितीय” की उपाधि धारण की, जिनमें समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त और स्कंदगुप्त शामिल हैं।

#4. इस शासन के दौरान महिलाओं की सामाजिक स्थिति भी दयनीय हो गई थी। इस शासन का कार्यकाल महिलाओं के लिए काफी कठोर था। इस काल में महिलाओं के लिए बाल विवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी अनेक प्रथाएं प्रचलित हुईं।

#5. भरतपुर राजस्थान का एक मात्र जिला है, जहां सर्वाधिक गुप्तकालीन सिक्के (Gupta coins) मिले हैं।

#6. गरुड़ गुप्त वंश के राजाओं का शाही प्रतीक था और यह राजचिन्ह केवल गरुड़ प्रकार के सिक्कों पर अंकित किया गया था। गरुड़ का चिन्ह हमेशा उनके सिक्कों पर होता था।

#7. हमने अपने आसपास कई प्राचीन मंदिर देखे होंगे, उनमें से देवगढ़ और दशावतार के मंदिर भी इसी गुप्त वंश के काल में बने थे। यह मंदिर पंचायतन शैली (Panchayatana style) में बने हुए है।

#8. उदयगिरि का प्राचीन मंदिर गुप्त वंश के दौरान ही बना था, जिसमें विष्णु के 12 अवतारों की विशाल मूर्ति काफी प्रसिद्ध है।

#9. अजंता की गुफाएं (Ajanta caves) भी बहुत प्रसिद्ध हैं, उनमें से गुफा क्रमांक 16, 17 और 19 का निर्माण भी इन्ही के काल में हुआ था।

#10. गुप्त वंश के काल में ही गणित (Mathematics) और ज्योतिष (Astrology) का बहुत विकास हुआ है। इस वंश के कुछ राजा स्वयं गणितज्ञ और विशेषज्ञ थे।

#11. “पंचसिद्धांतिका (Panchasiddhantika)” नामक ज्योतिष ग्रंथ तथा नागार्जुन (Nagarjuna) द्वारा रचित “अष्टांगसंग्रह (Ashtanga Sangraha)” नामक आयुर्वेद ग्रंथ की रचना भी गुप्त काल में की गई है।

#12. जिन प्राचीन भारतीय पुराणों की हम बात करते हैं, उन पुराणों की रचना भी गुप्त काल में हुई थी।

#13. शल्य चिकित्सा (Surgery) का विकास भी गुप्तकाल में हुआ है।

FAQ – Gupta Empire History In Hindi

Q – गुप्त वंश की स्थापना किसने की थी?
A – गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी।

Q – गुप्त वंश का साम्राज्य कितनी दूर तक फैला था?
A – गुप्त वंश का साम्राज्य उत्तर भारत के साथ-साथ मध्य भारत और दक्षिण भारत तक फैला हुआ था।

Q – गुप्त वंश का सबसे महान शासक किसे माना जाता है?
A – वैसे तो गुप्त वंश के सभी शासक महान थे, लेकिन हम समुद्रगुप्त को महानतम कह सकते हैं क्योंकि इतिहास के स्रोतों में उनके बारे में बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है, जो उन्हें महान दर्शाती है।

Q – गुप्त साम्राज्य की राजधानी कहां थी?
A – पाटलिपुत्र को गुप्त साम्राज्य की राजधानी माना जाता है।

Q – गुप्त साम्राज्य की प्रमुख भाषाएं कौन-सी थीं?
A – गुप्त साम्राज्य में मुख्य रूप से संस्कृत और प्राकृत भाषा बोली जाती थीं।

निष्कर्ष – गुप्त साम्राज्य का इतिहास और शासनकाल

इस लेख में, हमने गुप्त साम्राज्य का इतिहास, शासक और शासनकाल (Gupta Empire History In Hindi) आदि के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की है। आशा है कि गुप्त साम्राज्य पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा। इस लेख को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें।

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