Gayatri Mantra in Hindi with meaning – हिंदू धर्म के प्राचीन भारतीय वेदों और पुराणों में गायत्री मंत्र को महामंत्र (Mahamantra) भी कहा गया है और इसका महत्व सर्वोपरि माना गया है। ऐसा माना जाता है कि विश्व की प्रथम पुस्तक “ऋग्वेद (Rigveda)” का आरंभ इसी मंत्र से होता है। यह भी माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने चारों वेदों की रचना से पहले इस मंत्र की रचना की थी।
गायत्री मंत्र क्या है? Gayatri Mantra kya hai?
गायत्री मंत्र एक प्राचीन धार्मिक मंत्र है जिसे हिंदू धर्म में प्रमुख माना जाता है। इस मंत्र का उपयोग सूर्य देव की प्रार्थना के रूप में किया जाता है और यह आध्यात्मिक विकास, ज्ञानोदय और देवत्व की प्राप्ति के लिए जाना जाता है।
गायत्री मंत्र संस्कृत भाषा में छंद के रूप में है और इसका अर्थ सहित उच्चारण किया जाता है। गायत्री मंत्र का रूप यह है:
ॐ भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेणियं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
इस मंत्र के अर्थ का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है:
गायत्री मंत्र हिंदी में अर्थ सहित – Gayatri Mantra in Hindi with meaning
- ॐ भूर्भुवः स्वः – हम जीवन के तीन आदि लोकों की प्राप्ति को याद करते हैं। भूर्भुवः स्वः – यह ईश्वर की प्रकृति, आत्मा और परमात्मा का प्रतीक है।
- तत्सवितुर्वरेण्यम – हम परमपिता (सविता) की ओर देखते हैं जो सभी में से सर्वश्रेष्ठ को चुनते हैं।
- भर्गो देवस्य धीमहि – हम उस दिव्य तेज की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, जो हमारी बुद्धि को प्रकाशित करती है और हमें अज्ञान से मुक्त करती है।
- धियो यो नः प्रचोदयात् – हम उस देवता से प्रार्थना करते हैं, जो हमारी बुद्धि को सही मार्ग पर निर्देशित करते हैं।
इस मंत्र का जाप आत्मा के उत्थान और प्राकृतिक ऊर्जा के साथ आदर्श मानवीय गुणों की प्राप्ति के लिए प्रार्थना का प्रतीक है। यह मंत्र वास्तव में सूर्य देव (Sun God) को समर्पित है जो जीवन को प्रकाशित करते हैं और बुद्धि को प्रबुद्ध करने में मदद करते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि गायत्री मंत्र के तीन अन्य अर्थ भी हैं? आइए इस मंत्र का अर्थ विस्तार से जानते हैं।
#1. पहला अर्थ: हम उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान ईश्वर के तेज का ध्यान करते हैं जो पृथ्वी, पाताल और स्वर्ग में व्याप्त है। ईश्वर की महिमा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे।
#2. दूसरा अर्थ: हम उस दुःखनाशक, तेजस्वी, पापनाशक, जीवनस्वरूप, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, भगवत्स्वरूप ईश्वर को अपने हृदय में धारण करें। ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।
#3. तीसरा अर्थ: ॐ – सर्व-रक्षा करने वाला भगवान, भू – जीवन का प्रिय, भुव – दुख का नाश करने वाला, स्व: – सुख, तत – वह, सवितु – उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक, वरेण्य – परिवर्तन के योग्य, भर्गो – शुद्ध विज्ञान स्वरूप , देवस्य – देव के, धीमहि – ध्यान करें, धियो – बुद्धि, यो – कौन, न: – हमारा, प्रचोदयात् – शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति
गायत्री मंत्र की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है और संस्कृत भाषा में इसका तात्पर्य “सृजन” या “सृष्टि” से है। गायत्री मंत्र का उपयोग वेदों में सूर्य देव की पूजा के रूप में किया जाता है और यह विभिन्न रूपों में प्रकट होता है।
गायत्री मंत्र का पहला भाग, “ओम भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं”, “ऋग्वेद” से लिया गया है। इसकी चर्चा ऋग्वेद में प्रमुख ऋषि विश्वामित्र ने विस्तार से की है।
दूसरा भाग, “भर्गो देवस्य धीमहि”, “यजुर्वेद” से लिया गया है।
तीसरा भाग, “धियो यो नः प्रचोदयात्”, “सामवेद” से लिया गया है।
इसी प्रकार, गायत्री मंत्र की उत्पत्ति वेदों से हुई है और इसे विभिन्न वेदों के मंत्रों को मिलाकर बनाया गया है। इस मंत्र का उपयोग सूर्य देव की प्रार्थना के रूप में किया जाता है और आध्यात्मिक प्रगति के प्रति जागरूकता पैदा करता है।
कहा जाता है कि गायत्री मंत्र केवल देवी-देवताओं को ही उपलब्ध था, लेकिन जब ऋषि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या की, तो उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने इस मंत्र को आम लोगों के लिए भी उपलब्ध कराया। इस प्रकार कहा जाता है कि गायत्री मंत्र के रचयिता ऋषि विश्वामित्र हैं।
गायत्री मंत्र की शक्ति का रहस्य क्या है?
हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र को एक प्रमुख और शक्तिशाली मंत्र माना जाता है। सभी ऋषि-मुनि गायत्री का गुणगान मुक्त कंठ से करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस एक गायत्री मंत्र में चारों वेदों का सार समाहित है। शास्त्रों के अनुसार यह मंत्र वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है। इसका रहस्य इसके मानसिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं में छिपा हो सकता है।
गायत्री मंत्र कुल 24 अक्षरों से बना है, इन 24 अक्षरों को देवी-देवताओं के स्मरण का बीज माना जाता है। इन 24 अक्षरों को शास्त्रों और वेदों के ज्ञान का आधार भी बताया गया है।
गायत्री मंत्र की महिमा का पवित्र वर्णन प्राचीन हिन्दू धर्मग्रन्थों में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि अगर इस मंत्र का लगातार जाप किया जाए तो यह मस्तिष्क की प्रणाली को बदल देता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है और जाप करने वाले से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।
गायत्री मंत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का सार है। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है “गायत्री छंदसामहम्” अर्थात मैं स्वयं ही गायत्री मंत्र हूं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र ने इसी मंत्र के बल पर नई सृष्टि की रचना की थी। इससे पता चलता है कि यह मंत्र कितना शक्तिशाली है। ऐसा कहा जाता है कि इसके प्रत्येक अक्षर के उच्चारण से एक देवता का आह्वान होता है।
गायत्री मंत्र जप के लाभ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गायत्री मंत्र के जाप के कई फायदे बताए गए हैं।
#1. ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति: गायत्री मंत्र के जाप और ध्यान से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है। इस मंत्र का जाप मानसिक विकल्पों को नियंत्रित करता है और व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है। यह आध्यात्मिक विकास का एक साधन भी हो सकता है, क्योंकि इसका जाप करने से व्यक्ति अपनी आत्मा से संवाद करने में सक्षम होता है।
#2. शक्ति में वृद्धि: गायत्री मंत्र का जाप शरीर की ऊर्जा को बढ़ावा देता है और उसकी शक्ति में वृद्धि करता है। यह जप मानव शरीर के चेतन और अचेतन क्षेत्र में ऊर्जा के संचार में मदद कर सकता है।
#3. मानवीय गुणों का विकास: गायत्री मंत्र के जाप से मनुष्य के आंतरिक गुणों का विकास होता है। यह विवेक, जागरूकता, सहानुभूति, उदारता, आदर्शवाद और अन्य सकारात्मक गुणों को प्रोत्साहित कर सकता है। इसके अलावा व्यक्ति का मन धर्म और मानव सेवा में लगने लगता है।
#4. बुद्धि और ज्ञान का विकास: गायत्री मंत्र का जाप बुद्धि को शक्तिशाली बनाने में मदद करता है और ज्ञान का विकास होता है। इसके जाप से व्यक्ति की सोचने की क्षमता बढ़ती है और उसकी आत्मा को विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।
#5. प्राकृतिक संवेदना का विकास: गायत्री मंत्र का जाप प्राकृतिक इंद्रियों को जागृत कर सकता है और व्यक्ति को उसके सबसे पसंदीदा लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
#6. सकारात्मकता में वृद्धि: जो भी व्यक्ति गायत्री मंत्र का जाप करता है उसके जीवन में उत्साह और सकारात्मकता की वृद्धि होती है। इसके चलते वह बुरी से बुरी परिस्थिति से भी निकलने में कामयाब हो जाता है।
#7. क्रोध शांत हो जाता है: किसी भी व्यक्ति को कितना भी गुस्सा क्यों न हो, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गायत्री मंत्र का जाप करने से उसका गुस्सा धीरे-धीरे कम हो जाता है।
#8. शारीरिक व्याधियों से मुक्ति: इसके अलावा यह मंत्र कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों से भी मुक्ति दिलाता है। माना जाता है कि गायत्री मंत्र का जाप करने से रक्त का संचार ठीक से होता है। इससे बीमारियों से भी राहत मिलती है और चेहरे पर निखार भी आता है। इसके अलावा इसका जाप अस्थमा के मरीजों के लिए भी फायदेमंद होता है।
#9. पढ़ाई में मन लगने लगता है: धार्मिक मान्यता है कि विद्यार्थियों के लिए गायत्री मंत्र अत्यंत लाभकारी है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना आसान हो जाता है। पढ़ाई में मन लगने लगता है और पढ़ा हुआ सबकुछ एक बार में याद हो जाता है।
इन सभी पहलुओं के साथ-साथ गायत्री मंत्र के जाप से संवेदनशीलता, आत्म-नियंत्रण और शक्ति का भी विकास हो सकता है। यह मंत्र ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास के माध्यम से व्यक्ति को आध्यात्मिक और मानव विकास की ओर मार्गदर्शन करता है।
गायत्री मंत्र का वैज्ञानिक महत्व
गायत्री मंत्र की शुरुआत “ओम” शब्द से होती है। ओम शब्द के उच्चारण से आपके होंठ, जीभ, तालु, गले के पिछले हिस्से और खोपड़ी में कंपन पैदा होता है। ऐसा माना जाता है कि हार्मोन रिलीज होने से दिमाग शांत रहता है।
गायत्री मंत्र के उच्चारण से जीभ, होंठ, स्वरयंत्र और मस्तिष्क में कंपन होने से हाइपोथैलेमस ग्रंथि से हार्मोन का स्त्राव होता है। इस हार्मोन के रिलीज होने से व्यक्ति के शरीर में खुशी का एहसास कराने वाले हार्मोन का प्रवाह होता है। ये हार्मोन इंसानों में शारीरिक विकारों से लड़ने की क्षमता बनाए रखते हैं।
मंत्र जाप के दौरान आपको लंबी सांसें लेनी होती हैं, जिससे आपकी सांस लेने की शक्ति मजबूत होती है, इससे न सिर्फ आपके फेफड़े मजबूत होते हैं बल्कि सांस लेने से आपका ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छा रहता है।
मंत्र के उच्चारण के साथ-साथ शरीर के विभिन्न हिस्सों में होने वाली कंपन मस्तिष्क में रक्त संचार को नियंत्रित करती है। इस मंत्र के जाप से मन और शरीर में मौजूद तंत्रिकाओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने में मदद मिलती है।
गायत्री मंत्र का जाप करने से मन नियंत्रण में रहता है। इस मंत्र के जाप से जल्दी गुस्सा आना, आपा खोना, पढ़ाई में मन न लगना जैसी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
गायत्री मंत्र जप का समय
गायत्री मंत्र का जाप करने का समय धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है। इस समय को दिन के विभिन्न भागों में विभाजित किया जा सकता है।
धार्मिक आधार पर ज्योतिष शास्त्र में गायत्री मंत्र के जाप के 3 समय बताए गए हैं:
इसमें गायत्री मंत्र का जाप का पहला समय सुबह का होता है। मंत्र जाप सूर्योदय से थोड़ी देर पहले शुरू करना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए। मंत्र जाप का दूसरा समय दोपहर का होता है। इस मंत्र का जाप दोपहर के समय भी किया जाता है। मंत्र जाप का तीसरा समय है शाम को, सूर्यास्त से कुछ देर पहले। मंत्र जाप सूर्यास्त से पहले शुरू करना चाहिए और सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जाप करना चाहिए।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गायत्री मंत्र के जाप के समय इस प्रकार है:
#1. सुबह का समय: सुबह सूर्योदय के समय गायत्री मंत्र का जाप करना विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान मंत्र का जाप करने से मानसिक तनाव कम होता है और मन शांत रहता है।
#2. संध्या का समय: गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए शाम का समय भी उपयुक्त माना गया है। इस समय मंत्र का जाप करने से दिन भर के कामकाज की थकान दूर हो जाती है और मानसिक ताजगी मिलती है।
#3. अन्य समय: यदि आपके पास सुबह और शाम के समय मंत्र जाप करने का समय नहीं है तो आप दिन में किसी भी समय किसी एकांत और शांतिपूर्ण स्थान पर बैठकर गायत्री मंत्र का जाप कर सकते हैं।
#4. विशेष त्यौहार और तिथियाँ: पौराणिक उपदेशो के अनुसार कुछ विशेष त्योहारों और तिथियों जैसे सूर्य ग्रहण के समय या अमावस्या के दिन भी गायत्री मंत्र के जाप का महत्व बढ़ जाता है।
सामान्यतः गायत्री मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम तीन बार किया जाता है, लेकिन आप अपनी साधना के अनुसार इससे अधिक बार भी जाप कर सकते हैं। आप अपने जीवन स्तर, समय की उपलब्धता और आध्यात्मिक लक्ष्यों के आधार पर गायत्री मंत्र का जाप करने का समय तय कर सकते हैं।
गायत्री मंत्र का जाप करते समय इन बातों का ध्यान रखें
गायत्री मंत्र का जाप करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें यहां साझा की गई हैं:
- मानसिक शुद्धि: जप से पहले, अपने मन को शुद्ध करने के लिए कुछ गहरी साँसों के साथ ध्यान करें। मन में एक खुलापन रखें और चिंताओं को दूर करें।
- मानसिक स्थिति: मानसिक शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए गायत्री मंत्र के जाप के दौरान अपने दिमाग को सकारात्मक और निष्कलंक रखें।
- मंत्र का उच्चारण: मंत्र का जाप सही उच्चारण और ताल के साथ करें। मंत्र का जाप सावधानीपूर्वक एवं स्पष्ट रूप से करें।
- मंत्र के अर्थ के साथ ध्यान: मंत्र का अर्थ समझकर जप करने से आपके जप का महत्व बढ़ सकता है। इससे मंत्र का सार्थक अर्थ समझने में मदद मिलती है और आपका जप अधिक उपयुक्त हो जाता है।
- भावना और श्रद्धा: गायत्री मंत्र के जप के दौरान उसके महत्व को समझकर भावना और श्रद्धा के साथ जप करें। आप इस मंत्र के द्वारा दिए गए विशेष संदेश को समझे और उसे अपने मन में समाहित करें।
- ध्यान और संयम: गायत्री मंत्र का जाप करते समय मन को ध्यान और संयमित स्थिति में रखने का प्रयास करें। इससे आपका जप अधिक प्रभावशाली होगा।
- नियमितता: गायत्री मंत्र के जप को नियमित रूप से करें। नियमित जप से आपके मानसिक, आध्यात्मिक, और शारीरिक विकास में मदद मिलेगी।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण: गायत्री मंत्र के जप के दौरान आप अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को समझने और प्राप्त करने का संकेत प्राप्त कर सकते हैं।
इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जाप करना हो तो मंत्र का जाप मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। ध्यान रखें कि इस दौरान मंत्र जाप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
साथ ही गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए हमेशा रुद्राक्ष की माला का उपयोग करना चाहिए। मंत्र जाप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। ध्यान रखें कि मंत्र का जाप घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए करना चाहिए।
गायत्री मंत्र का जाप करते समय उपरोक्त बातों का ध्यान रखने से आपका जाप अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली हो सकता है।
FAQ – Gayatri Mantra in Hindi with meaning
Q – गायत्री मंत्र का संबंध किस धर्म से है?
A – गायत्री मंत्र का संबंध हिंदू धर्म से है।
Q – गायत्री मंत्र का दूसरा नाम क्या है?
A – गायत्री मंत्र का दूसरा नाम तारक मंत्र है।
Q – गायत्री मंत्र किस देवता को समर्पित है?
A – गायत्री मंत्र सूर्य देव को समर्पित है।
Q – गायत्री मंत्र का रचयिता किसे कहा जाता है?
A – ऋषि विश्वामित्र को गायत्री मंत्र का रचयिता माना जाता है।
Q – गायत्री मंत्र में कितने अक्षर हैं?
A – गायत्री मंत्र कुल 24 अक्षरों से बना है, इन 24 अक्षरों को देवी-देवताओं के स्मरण का बीज माना जाता है। इन 24 अक्षरों को शास्त्रों और वेदों के ज्ञान का आधार भी बताया गया है।
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