दोस्तों, पंचतंत्र की कहानियां (Tales of Panchatantra in Hindi) श्रृंखला में आज हम – सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कहानी (Panchtantra Story Frogs That Rode A Snake) पेश कर रहे हैं। Saanp Aur Mendhak Ki Kahani में बताया गया है की कैसे एक मुर्ख मेंढक अपने ही कुल का नाश करने के लिए शत्रु को आमंत्रण देता है। उसके बाद क्या होता है? यह जानने के लिए पढ़ें – Frogs That Rode A Snake Panchatantra Story In Hindi।
Frogs That Rode A Snake Story In Hindi – Tales of Panchatantra
एक सुदूर पहाड़ी इलाके में “मंदविश” नाम का एक बूढ़ा सांप रहता था। बूढ़ा होने के कारण वह शिकार करने में असमर्थ था और भूख के कारण उसका शरीर दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा था।
एक दिन वह सोचने लगा कि बिना प्रयास के ही शिकार मिल जाए तो कितना अच्छा होगातभी उसके मन में एक क़ुरापति विचार आया। थोड़ी दूर पर एक तालाब के किनारे मेंढकों का एक झुण्ड बड़े मौज-मस्ती से रहता था।
सांप मेंढकों से भरे उस तालाब के किनारे पर पहुंचा और इस प्रकार बैठ गया, मानो ध्यान में लीन हो। सांप को इस तरह बैठे देख एक मेंढक ने आश्चर्य से पूछा, “मामा! शाम हो गई है और तुमने अभी तक खाने-पीने का इंतजाम नहीं किया?”
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सर्प ने करुण स्वर में कहा, “बेटा! अब मुझे भोजन करने की कोई इच्छा नहीं है। आज सुबह जब मैं खाने की तलाश में निकला, तो मैंने एक झील के किनारे एक मेंढक को देखा। जब मैं शिकार के लिए उसकी ओर बढ़ा, तो उसने मुझे देखा और पास के ध्यानमग्न साधुओं के बीच छिप गया।”
उसकी उलझन में मैंने ब्राह्मण के बेटे का अंगूठा काट लिया और वह मर गया। इस बात का उनके पिता को बहुत दुख हुआ। उन्होंने मुझे यह श्राप दिया कि तुमने मेरे पुत्र को अकारण दु:ख दिया है, अपने इस अपराध के लिए तुम्हें मेंढकों का वाहन बनना पड़ेगा।
इसलिए मैं यहां आपका वाहन बनकर आया हूं। मेंढक ने यह बात अपने घर वालों को बताई और धीरे-धीरे यह बात सभी मेंढकों में आग की तरह फैल गई। जब उनके राजा जलपद को यह खबर मिली तो वे भी हैरान रह गए।
पहले तो जलपाद को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन कुछ देर सोचने के बाद मेंढकों का राजा जलपाक तालाब से बाहर आया और तुरंत कूद कर सांप के फन पर बैठ गया।
बाकी मेंढकों ने जब अपने राजा को ऐसा करते देखा तो वे सब धीरे-धीरे सांप की पीठ पर बैठ गए।
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सांप ने उस समय किसी को भी परेशान नहीं किया। क्योंकि सांप समझ गया था कि अभी मेंढक मेरी परीक्षा ले रहे हैं। तभी सांप भी सभी को बिना घबराए आराम से अपने फन पर कूदने दे रहा था और इधर-उधर घुमा रहा था।
सांप सभी मेंढकों को अलग-अलग करतब दिखाने लगा। वह दिन भर मेंढकों को इधर-उधर घुमाता रहा, जिसमें सभी मेंढकों ने खूब आनंद उठाया। इस तरह एक दिन बीत गया।
सर्प की कोमल त्वचा का स्पर्श पाकर जलपद बहुत ही प्रसन्न हुआ। तब मेंढकों के राजा ने कहा, “मुझे सांप की सवारी करने में जितना मजा आज आया, उतना मजा आज तक किसी और की सवारी में नहीं आया।”
मेंढकों का भरोसा जीतने के बाद सांप धीरे-धीरे रोज मेंढकों की सवारी बनने लगा और उनका खूब मनोरंजन भी करता। शातिर सांप ने कुछ दिनों के बाद अपनी चलने की गति जानबूझकर थोड़ी धीमी कर ली।
फिर एक दिन जब जलपद सांप पर चढ़ा तो वह सांप टस से मस नहीं हुआ। उसे देखकर जलपद ने पूछा, “क्या बात है, आज तुम चल नहीं पा रहे हो?”
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सांप ने कहा, “हां, एक तो मैं बूढ़ा हो गया हूं और बहुत दिनों से भूखा भी हूं, इसलिए मैं चलने में असमर्थ हूं।”
इस पर जलपद ने कहा, ”आप यहां साधारण श्रेणी के छोटे-छोटे मेंढक खा सकते हैं.”
यह सुनकर सांप बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि वह यही तो चाहता था। उसने कहा, “राजन, मुझे एक ब्राह्मण का श्राप लगा है। मैं मेंढ़क नहीं खा सकता, पर यदि आप कहते हैं तो मैं मेंढक खा लेता हूं।”
इस प्रकार बिना किसी प्रयास के प्रतिदिन सांप को भोजन मिलने लगा। ऐसा करते-करते वह प्रतिदिन छोटे-छोटे मेंढकों को खाने लगा और वह स्वस्थ हो गया।
लेकिन जलपद यह नहीं समझ सका कि वह अपने सुख के लिए धीरे-धीरे अपने ही वंश का विनाश कर रहा है।
धीरे-धीरे सारे मेंढकों को खाने के बाद एक दिन सांप ने जलपाद को भी खा लिया। इस प्रकार मेंढकों के पूरे वंश का नाश हो गया।
कहानी का भाव:
इसलिए कहा गया है कि हमें अपने शुभचिंतकों की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि उनकी रक्षा करने से ही हमारी रक्षा होगी। तथा किसी भी शत्रु की बात पर शीघ्र विश्वास नहीं करना चाहिए। इससे अपना और अपनों का नुकसान होना तय है।
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