350 साल पहले भारत में बना था पहला बुलेट-प्रूफ जैकेट – जानिए क्या है इतिहास . The first bulletproof jacket was made in India

350 साल पहले भारत में बना था पहला बुलेट-प्रूफ जैकेट - जानिए क्या है इतिहास । The first bullet-proof jacket was made in India

First bulletproof jacket by Sambhaji Maharaj in Hindi – आज इस पोस्ट में हम बात करेंगे हिंदवी स्वराज के उस महान राजा के बारे में जिन्होंने दुनिया का पहला बुलेट प्रूफ जैकेट (First bullet proof jacket) बनाया था. 

युद्ध की रणनीति में महारत हासिल करने वाले उस राजा का नाम छत्रपति संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) था, जो वीर मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) के पुत्र थे.

बात 1684 की है जब छत्रपति संभाजी महाराज के राज्य में अकाल पड़ा था, किसान खेतों में कुछ भी नहीं उगा पा रहे थे और जो भी फसल उग रही थी उसे औरंगजेब (Aurangzeb) के सैनिक आकर बर्बाद कर देते थे. बार-बार होने वाली घटनाओं के कारण राज्य में खाद्यान्न की किल्लत हो गई थी.

छत्रपति संभाजी महाराज को जैसे ही इस बात का पता चला, उन्होंने तमिलनाडु के जिंजी किले (Gingee Fort) में मौजूद अपने सरदार को एक पत्र लिखा. जिंजी का किला उस समय संभाजी महाराज के स्वराज के अधीन ही आता था.

संभाजी महाराज ने पत्र में लिखा है कि यहां अकाल की स्थिति है, खाद्यान्न की कमी है, लेकिन उधर ऐसी कोई समस्या नहीं है, इसलिए आप खाद्यान्न की व्यवस्था करें और यथासंभव अनाज भेजें. 

जिंजी के सरदार को जैसे ही संभाजी महाराज का पत्र मिला, उन्होंने तुरंत अनाज से भरी सैकड़ों बैलगाड़ियां भेज दीं. यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा, अनाज को बैलगाड़ियों से संभाजी महाराज के राज्य में पहुंचाया जा रहा था.

लेकिन औरंगजेब को इस बात का पता चला और खबर मिलते ही उसने इस अनाज की आपूर्ति को रोकने के प्रयास शुरू कर दिए. औरंगजेब द्वारा मैसूर के राजा चिक्का देवराज (Chikka Devaraja) को एक फरमान भेजा गया कि आपके राज्य से सटे रास्ते से संभाजी महाराज के पास खाद्यान्न पहुंचाया जा रहा है, उसे तुरंत रोक दिया जाए.

चिक्का देवराज को जैसे ही बादशाह औरंगजेब से आदेश मिला, चिक्का देवराज ने संभाजी महाराज के पास जाने वाले खाद्यान्न की आपूर्ति में बाधा डालना शुरू कर दिया.

कुछ दिनों के बाद, जब संभाजी महाराज ने देखा कि अनाज आना बंद हो गया है, तो उन्होंने इसके पीछे का कारण जानने के लिए अपने जासूसों को जांच के लिए भेजा. जैसे ही संभाजी महाराज को पता चला कि चिक्का देवराज के सैनिक रास्ते में अनाज लूट रहे हैं, वे बहुत क्रोधित हुए.

बात आनाज की थी, अपनी प्रजा की थी, इसलिए संभाजी महाराज ने बिना समय बर्बाद किए मैसूर यानी चिक्का देवराज के किले पर हमला करने की तैयारी कर ली. कुछ ही दिनों में संभाजी महाराज अपने सैनिकों के साथ युद्ध के लिए त्रिचनापल्ली में मौजूद चिक्का देवराज के किले के पास पहुंच गए.

उस समय संभाजी महाराज के पास चिक्का देवराज की तुलना में कम सैन्य बल था, लेकिन फिर भी आत्मविश्वास के बल पर उन्होंने चिक्का देवराज के किले पर आक्रमण कर दिया. इधर चिक्का देवराज भी अपने धनुर्धारियों के साथ किले पर तैयार थे और उनके आदेश पर उनकी सेना ने संभाजी महाराज की सेना पर किले से तीर चलाना शुरू कर दिए.

घोड़े पर सवार संभाजी महाराज और उनके सैनिक अचानक हुए बाणों के हमले से दंग रह गए. संभाजी महाराज की सेना के कई सैनिक घायल हुए और कई सैनिक भी मारे गए. संभाजी महाराज ने तुरंत अपना आक्रमण रोक दिया और निकटतम पहाड़ी के पास शरण ले ली और आगे क्या करना है, इसकी रणनीति बनाने लगे.

संभाजी महाराज समझ चुके थे कि वे इस युद्ध को तलवार से नहीं जीत पाएंगे. क्योंकि चिक्का देवराज के सैनिकों का मुख्य हथियार तीर था और जब तक हम आकाश से आने वाले बाणों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते, तब तक वे किले तक नहीं पहुंच पाएंगे और न ही वे इस युद्ध को जीत पाएंगे.

संभाजी महाराज के दिमाग में एक तरकीब आई और उन्होंने तुरंत अपने सैनिकों को पास के गांव में मौजूद चर्मकारों से खाल (चमड़ी) इकट्ठा करने को कहा. और लोगों की मदद से उन्होंने चमड़े के ऐसे कपड़े बनाए, जिनसे चेहरे को छोड़कर शरीर के सभी अंग छिपाए जा सकते थे.

इतना ही नहीं संभाजी महाराज ने कपड़ों पर बरसने वाले बाणों की तीव्रता को कम करने के लिए तेल की व्यवस्था करने का भी आदेश दिया. तेल का उपयोग चमड़े से बने उन कपड़ों पर किया गया ताकि आने वाले तीर जैसे ही उस चमड़े से टकराये तो वह कपड़े से फिसल जाए और ऐसा हुआ भी. 

जब महाराज और उनके सैनिकों ने पूरी तैयारी के साथ किले पर फिर से हमला किया, तो किले से गिरने वाले तीर उनके नवीन कपड़ों से फिसल कर नीचे गिरने लगे और संभाजी महाराज अपनी सेना के साथ किले में प्रवेश करने में सफल रहे.

किले में प्रवेश करते ही महाराज और उनके सैनिकों ने कुछ ही समय में किले पर कब्जा कर लिया और चिक्का देवराज को बंदी बना लिया.

संभाजी महाराज की कल्पना से बनी यह अलौकिक जैकेट बाद में पुर्तगालियों से लड़ने में भी काफी काम आई. जब उनका सामना पुर्तगालियों से हुआ तो वे समझ गए थे कि पुर्तगालियों के पास बंदूकें हैं जिनकी गोलियों को उनके चमड़े की जैकेट नहीं रोक पाएंगी, इसलिए उन्होंने अपनी जैकेट के अंदर लोहे की एक पतली परत इस तरह से लगाई कि वह बंदूकों की गोलियों को भी रोक सकते थे.

संभाजी महाराज ने मात्र 26 दिनों में यह अद्भुत कार्य कर दिया और उन बुलेट प्रूफ जैकेटों का उपयोग करके पुर्तगालियों को भी मैदान से खदेड़ दिया.

आज से 350 साल पहले जब तकनीक इतनी विकसित नहीं हुई थी, ज्यादा संसाधन उपलब्ध नहीं थे, उस समय दूरदर्शी संभाजी महाराज ने ऐसी बुलेट प्रूफ जैकेट तैयार की थी, जिस जैकेट को भेदने की क्षमता आज भी कई गोलियों में नहीं है. संभाजी महाराज के नेतृत्व में बनी इन बुलेट प्रूफ जैकेटों में से एक आज भी लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है.

खुशी की बात है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के वीर सपूत छत्रपति संभाजी महाराज ने भारत में दुनिया की पहली बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल किया था और दुख की बात यह है कि आज भी कई भारतीयों को इसके बारे में पता भी नहीं है.

संभाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में 200 से अधिक युद्ध लड़े और खास बात यह है कि वे एक भी युद्ध नहीं हारे और अपराजित रहे.

एक युद्ध में, संभाजी महाराज ने 37,000 मराठा सैनिकों के साथ 5,00,000 सैनिकों की मुगल सेना के साथ लड़ाई लड़ी थी और वे जीते भी थे, तब भी युद्ध में सैनिकों का अनुपात 1:12 था.

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