माँ दुर्गा देवी कवच संस्कृत और हिंदी में (Maa Durga Devi Kavach in Sanskrit and Hindi)

Maa Durga Devi Kavach in Sanskrit and Hindi

Maa Durga Devi Kavach in Sanskrit and Hindi – माँ दुर्गा के आशीर्वाद प्राप्त करने और माता को प्रसन्न करने के विभिन्न पर्याय हैं, और “माँ दुर्गा देवी कवच (Durga Kavacham)” एक ऐसा पाठ है जो भक्तों के लिए माँ दुर्गा की कृपा और सुरक्षा की प्राप्ति में मदद कर सकता है।

माँ दुर्गा देवी कवच पढ़ने से भक्त अपने मानसिक और आध्यात्मिक जीवन को सुधार सकते हैं और माँ दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति को मजबूत कर सकते हैं। इसके अलावा, Durga Kavach Stotra पढ़ने से भक्त का मानसिक और भौतिक रूप से सुरक्षा महसूस होती है।

माँ दुर्गा देवी कवच (Maa Durga Kavach Prarthana) के अलावा, आप उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अन्य उपायों को भी आजमा सकते हैं, जैसे कि माँ के मंत्रों का जाप, ध्यान, आरतियां, और तंत्र-मंत्र विद्या का अभ्यास करना। ये सभी प्रक्रियाएँ माँ दुर्गा के प्रति आपकी भक्ति और साधना को मजबूत करने में मदद कर सकती हैं और आपको उनके आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायक हो सकती हैं।

आज के लेख में आप माँ दुर्गा कवच का अर्थ और लाभ, दुर्गा कवच का महत्व, माँ दुर्गा कवच पाठ विधि, माँ दुर्गा कवच प्रयोग, माँ दुर्गा कवच के बोल संस्कृत और हिंदी में (Maa Durga Kavach lyrics in Sanskrit and Hindi) आदि जानेंगे।

माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र क्या है? What is Maa Durga Devi Kavach Stotra?

“माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र” एक प्रमुख हिंदू पौराणिक पाठ (Hindu Mythological Text) है जिसका पाठ माँ दुर्गा की महिमा और शक्ति की प्रशंसा करने के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र माँ दुर्गा के भक्तों द्वारा पढ़ा जाता है और यह भी माना जाता है कि यह उन्हें सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करता है। यह स्तोत्र संस्कृत में रचनबद्ध है और विभिन्न प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में पाया जाता है।

मां दुर्गा के देवी कवच स्तोत्र (Maa Durga Devi Kavach Stotra in Sanskrit) का पाठ भक्ति और पूजा के दौरान किया जाता है और खासकर नवरात्रि (Navratri) जैसे धार्मिक त्योहारों के दौरान इसका महत्व कही अधिक बढ़ जाता है। स्तोत्र के शब्द माँ दुर्गा की शक्ति, कृपा और सुरक्षा में भक्त के विश्वास को बढ़ावा देते हैं।

माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र (Maa Durga Devi Kavach Stotra in Hindi) का पाठ करने का मुख्य उद्देश्य माँ दुर्गा का आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त करना है और इसके पाठ से भक्त को आध्यात्मिक प्रगति और सुख और शांति की अनुभूति होती है।

माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र का पाठ क्यों किया जाता है?

“माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र (Maa Durga Devi Kavach Stotra)” का पाठ इसलिए किया जाता है क्योंकि इसके पाठ से माँ दुर्गा की महिमा, शक्ति और सुरक्षा में भक्तों का विश्वास बढ़ता है और उनके जीवन में सुरक्षा और शांति की भावना आती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से माँ दुर्गा के भक्तों द्वारा पढ़ा जाता है और विभिन्न कारणों से इसका महत्व है।

आध्यात्मिक सुरक्षा (Spiritual Protection): माँ दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ भक्तों को आध्यात्मिक सुरक्षा का एहसास कराता है और उन्हें नकारात्मक शक्तियों और कुप्रबंधन से बचाने में मदद करता है।

आशीर्वाद प्राप्त करना (Receiving Blessings): कवच स्तोत्र का पाठ करने से देवी दुर्गा का आशीर्वाद और आशीष प्राप्त होने की आशा की जाती है। भक्त इसका पाठ करते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।

भक्ति को मजबूत करना (Strengthening of Devotion): यह स्तोत्र माँ दुर्गा के प्रति भक्ति को मजबूत करने में मदद करता है और उन्हें अपनी आस्था में माँ की उपस्थिति का एहसास कराता है।

पारंपरिक महत्व (Traditional Significance): “माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र” प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में पाया जाता है और विशेष रूप से नवरात्रि (Navratri) जैसे धार्मिक त्योहारों के दौरान इसका पाठ किया जाता है, जिससे इसका महत्व और अधिकार बढ़ जाता है।

मानसिक शांति (Mental Peace): कवच स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति मिलती है और यह उनके जीवन में स्थिरता और सद्भाव लाता है।

संक्षेप में, “माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र” एक महत्वपूर्ण धार्मिक पाठ है जो माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की आस्था, भक्ति और सुरक्षा को बढ़ावा देता है और उनके जीवन में आशीर्वाद और सुख और शांति लाता है।

माँ दुर्गा कवच (Devi Durga Kavach) का पाठ विशेष श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है और यह कई भक्तों के लिए माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने में सहायक हो सकता है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा की पूजा और भक्ति का एक माध्यम है।

यह स्तोत्र भक्तों को माँ दुर्गा की शक्ति, कृपा और सुरक्षा में उनके आदर्श और विश्वास का प्रतीक देता है और इसका पाठ उनकी आत्मा को ऊर्जावान और प्रेरित करता है। यह स्तोत्र उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम भी बन सकता है।

धार्मिक दृष्टिकोण से, माँ दुर्गा कवच स्तोत्र का पाठ भक्ति और साधना का एक हिस्सा है जो माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की आस्था, भक्ति और सुरक्षा को बढ़ावा देता है और उनके जीवन में आशीर्वाद और शांति लाता है।

यहां हमने संस्कृत में मां दुर्गा कवच (Durga Kavach in Sanskrit) साझा किया है और इसके साथ ही हमने हिंदी में अनुवाद (Durga Kavach in Hindi) भी प्रदान किया है, जो आपको इस स्तोत्र का अर्थ समझने में मदद करेगा।

माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र संस्कृत में (Durga Kavacham Lyrics in Sanskrit)

।।अथ देव्यः कवचम्।।

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्चण्डिकायै

।।मार्कण्डेय उवाच।।

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।।१।।

।।ब्रह्मोवाच।।

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।।२।।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।३।।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।४।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।५।।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।६।।

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।७।।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।।८।।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना।।९।।

माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।।१०।।

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता।।११।।

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः।।१२।।

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।१३।।

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।।१४।।

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।।१५।।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि।।१६।।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।१७।।

दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।।१८।।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।१९।।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।।२०।।

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।२१।।

मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके।।२२।।

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी।।२३।।

नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके।।२५।।

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी।।२६।।

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी।।२७।।

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी।।२८।।

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी।।२९।।

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी।।३०।।

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी।।३१।।

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी।।३२।।

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा।।३३।।

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी।।३४।।

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु।।३५।।

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी।।३६।।

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना।।३७।।

रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा।।३८।।

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी।।३९।।

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।४०।।

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता।।४१।।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी।।४२।।

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति।।४३।।

तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।
परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।।४४।।

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्।।४५।।

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।।४६।।

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः।।४७।।

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्।।४८।।

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः।।४९।।

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः।।५०।।

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः।।५१।।

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्।।५२।।

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा।।५३।।

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी।।५४।।

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः।।५५।।

लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते।।ॐ।।५६।।

।।इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।।

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Devi Kavacham Lyrics in Sanskrit PDF

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Durga Kavach in Sanskrit PDF

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माँ दुर्गा देवी कवच स्तोत्र हिंदी में (Durga Kavacham Lyrics in Hindi)

।।अथ श्रीदेव्याः कवचम्।।

ॐ नमश्चण्डिकायै

।।मार्कण्डेय उवाच।।

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्‌।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।।1।।

मार्कण्डेय जी ने कहा – पितामह! कोई ऐसा साधन बताइये जो इस संसार में अत्यंत गुप्त हो और जो मनुष्यों की हर तरह से रक्षा करता हो और जिसे आपने अब तक किसी और पर प्रकट न किया हो।

।।ब्रह्मोवाच।।

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।।2।।

ब्राह्मण – ऐसा साधन तो देवी का कवच मात्र है, जो अत्यंत गोपनीय, पवित्र और समस्त प्राणियों के लिए कल्याणकारी भी है। हे महामुनि! आप उसे श्रवण करें।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌।।3।।

भगवती का पहला नाम “शैलपुत्री”, दूसरे रूप का नाम “ब्रह्मचारिणी” है। तीसरे स्वरूप को “चंद्रघंटा” के नाम से जाना जाता है। चौथा रूप “कुष्मांडा” के नाम से जाना जाता है।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌।।4।।

दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम”स्कंदमाता” है। देवी के छठे रूप को “कात्यायनी” कहा जाता है। सातवें स्वरूप को “कालरात्रि” और आठवें स्वरूप को “महागौरी” के नाम से जाना जाता है।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।5।।

देवी दुर्गा के नौवें रूप का नाम “सिद्धिदात्री” है। ये सभी नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् द्वारा ही प्रतिपादित किये गये हैं।

अग्निता दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।6।।

जो व्यक्ति अग्नि में जल रहा हो, युद्धभूमि में शत्रुओं से घिरा हो, कठिन परिस्थिति में फंस गया हो और भय से उबरकर देवी दुर्गा की शरण लेता हो, उसे कभी दुर्भाग्य का सामना नहीं करना पड़ता।

न तेषा जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।7।।

युद्ध के समय संकट में पड़ने पर भी उन्हें कोई विपत्ति नहीं दिखती, दु:ख, शोक और भय का अनुभव नहीं होता।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धि प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।।8।।

जो लोग भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण करते हैं उनका उत्थान अवश्य होता है। देवेश्वरी! आप निस्संदेह उन लोगों की रक्षा करते हैं जो आपके बारे में सोचते हैं।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमानरूढा वैष्णवी गरुडासना।।9।।

चामुंडा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैंसे की सवारी करती है। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरुड़ को अपना आसन बनाती हैं।

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।।10।।

माहेश्वरी बैल पर आरूढ़ होती हैं। कौमारी का वाहन मोर है। भगवान विष्णु (हरि) की प्रिय लक्ष्मीदेवी, कमल के आसन पर बैठी हैं और अपने हाथों में कमल धारण किये हुए हैं।

श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता।।11।।

बैल पर सवार ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण किया हुआ है। ब्राह्मी देवी हंस पर विराजमान हैं और सभी प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित हैं।

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः।।12।।

इस प्रकार ये सभी माताएँ सभी प्रकार की यौगिक शक्तियों से सम्पन्न हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेक देवियाँ हैं, जो नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषित तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुसज्जित हैं।

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शंख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।13।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शांर्गमायुधमुत्तमम्‌।।14।।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वस।।15।।

ये सभी देवियां क्रोध से भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी नजर आती हैं। वह अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल, खेटक और तोमर, परशु और पाश, कुन्त और त्रिशूल तथा उत्तम धनुष आदि अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए हैं। उनके अस्त्र-शस्त्र का उद्देश्य राक्षसों को नष्ट करना, भक्तों को सुरक्षा प्रदान करना और देवताओं का कल्याण करना है।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महावले महोत्साहे महाभयविनाशिनि।।16।।

हे महान उग्रता, अत्यंत वीरता, महान शक्ति और महान उत्साह की देवी, आप असामान्य भय का नाश करने वाली हैं, आपको नमस्कार है।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिन।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।17।।
दक्षिणेऽवतु वाराहीनैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।।18।।

आपकी तरफ देखना भी मुश्किल है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बे मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री (इंद्रशक्ति) मेरी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण में वाराही तथा दक्षिण-पश्चिम में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करें। पश्चिम में वारुणी और उत्तर में हिरण की सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद्धस्ताद् वैष्णवी तथा।।19।।

उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में देवी शूलधारिणी मेरी रक्षा करें। ब्राह्मणी! आप ऊपर (आसमान) से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे (जमीन) से मेरी रक्षा करें।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।।20।।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।21।।

शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजया पीछे से मेरी रक्षा करें।
बाईं ओर अजिता और दाईं ओर अपराजिता मेरी रक्षा करें। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे। उमा मेरे सिर पर विराजमान होकर मेरी रक्षा करें।

मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके।।22।।
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी।।23।।

मालाधारी मेरे माथे की रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों की रक्षा करें। देवी यमघंटा भौंहों के मध्य भाग और नासिका छिद्र में स्थित त्रिनेत्र की रक्षा करें।
शंखिनी दोनों आँखों के मध्य भाग की और द्वारवासिनी को कानों की रक्षा करें। कालिका देवी गालों की रक्षा करें और भगवती शंकरी कानों के मूल भाग की रक्षा करें।

नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती।।24।।
दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके।।25।।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी।।26।।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी।।27।।

देवी सुगंधा नाक की रक्षा करें और देवी चर्चिका ऊपरी होंठ की रक्षा करें। देवी अमृतकला निचले होंठ की रक्षा करें और सरस्वती जीभ की रक्षा करें।
कुमारी देवी मेरे दांतों की रक्षा करें और चंडिका देवी मेरे गले की रक्षा करें। देवी चित्रघंटा गले में और देवी महामाया तालु में रहकर मेरी रक्षा करें।
देवी कामाक्षी मेरी ठुड्डी की रक्षा करें और सभी सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करें। भद्रकाली गर्दन की रक्षा करें और धनुर्धरी रीढ़ की हड्डी की रक्षा करें।
नलकूबरी गले और स्वरयंत्र के बाहरी हिस्से की रक्षा करें। खड्गिनी मेरे दोनों कंधों की रक्षा करें और वज्रधारिणी मेरी दोनों भुजाओं की रक्षा करें।

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी।।28।।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी।।29।।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी।।30।।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी।।31।।

अंबिका दोनों हाथों की कलाइयों और उंगलियों की रक्षा करें। शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें। कुलेश्वरी कुक्षी (पेट) में रहकर रक्षा करें।
महादेवी दोनों स्तनों की रक्षा करें और दुःखों का नाश करने वाली महादेवी मन की रक्षा करें। ललिता देवी हृदय की और शूलधारिणी पेट की रक्षा करें।
देवी कामिनी नाभि की तथा गुह्येश्वरी गुप्तांग की रक्षा करें। पूतना और कामिका लिंग की और महिषावाहिनी गुदा की रक्षा करें। भगवती कमर की रक्षा करें और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें। सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली देवी महाबाला दोनों पिण्डलियों की रक्षा करें।

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी।।32।।

नारसिंही दोनों घुटनों की रक्षा करें और तैजसी देवी दोनों पैरों के पिछले हिस्से की रक्षा करें। श्री देवी पैरों की उंगलियों में और तलवासिनी पैरों के तलवों में रहकर उनकी रक्षा करें।

नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा।।33।।

देवी दंष्ट्रकराली, जो अपनी दाढों के कारण भयंकर दिखती हैं, नाखूनों की रक्षा करें और देवी उर्ध्वकेशिनी बालों की रक्षा करें। देवी कौबेरी रोमावलियों के छिद्रों की रक्षा करें और देवी वागीश्वरी त्वचा की रक्षा करें।

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी।।34।।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु।।35।।

माता पार्वती रक्त, मज्जा, मेद, मांस, अस्थि और मेद की रक्षा करें। कालरात्रि आंतों की और मुकुटेश्वरी पित्त की रक्षा करें। पद्मावती देवी मूलाधार आदि कमल कोषों में स्थित रहें और चूड़ामणि देवी उनकी रक्षा के लिए कफों में विद्यमान रहें। देवी ज्वालामुखी नाखूनों के तेज की रक्षा करें। जिसका भेदन किसी भी शस्त्र से नहीं किया जा सकता, वह अभेद्य देवी शरीर के समस्त जोड़ों में रहकर रक्षा करें।

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी।।36।।

हे ब्राह्मणी! आप कृपया मेरे वीर्य की रक्षा करें। छत्रेश्वरी देवी छाया की रक्षा करें और धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें।

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना।।37।।

हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करें। कल्याण से सुशोभित देवी कल्याण शोभना मेरे जीवन की रक्षा करें।

रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा।।38।।

स्वाद, रूप, गंध, शब्द और स्पर्श का अनुभव करते समय माँ योगिनी देवी मेरी रक्षा करें और देवी नारायणी सदैव सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा करें।

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी।।39।।

वाराही युग की रक्षा करें। वैष्णवी धर्म की रक्षा करें और देवी चक्राणी मेरे यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन और ज्ञान की रक्षा करें।

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।40।।

इन्द्राणी! आप मेरे कुल की रक्षा करें। चंडिके! आप मेरे जानवरों की रक्षा करें। महालक्ष्मी मेरे पुत्रों की रक्षा करें और भैरवी मेरी पत्नी की रक्षा करें।

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता।।41।।

मेरा पथ सुगम और मेरा पथ सुरक्षित रहे। राजा के दरबार में महालक्ष्मी मेरी रक्षा करें और देवी विजया, जो हर जगह मौजूद हैं, सभी भय से मेरी रक्षा करें।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी।।42।।

हे देवी! जो स्थान कवच से ढका हुआ नहीं है, जो सुरक्षा से रहित है, वह सब आपके द्वारा सुरक्षित हो। क्योंकि आप विजयी और पापों का नाश करने वाले हैं।

पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति।।43।।
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌।।44।।
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌।।45।।

यदि मनुष्य अपने शरीर का कल्याण चाहता है तो उसे बिना कवच के कहीं भी एक कदम भी नहीं रखना चाहिए। कवच का पाठ करके ही यात्रा करें। कवच से सब ओर से सुरक्षित हुआ मनुष्य जहां भी जाता है, उसे धन और विजय की प्राप्ति होती है तथा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली विजय प्राप्त होती है। वह जिस भी इच्छित वस्तु के बारे में सोचता है, उसे वह अवश्य प्राप्त होती है। वह मनुष्य इस पृथ्वी पर अतुलनीय महान ऐश्वर्य का उपभोग करता है।

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।।46।।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः।।47।।
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌।।48।।

कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। वह युद्ध में कभी पराजित नहीं होते और तीनों लोकों में पूजे जाते हैं।
देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो व्यक्ति इसका नियमित रूप से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में भक्तिपूर्वक पाठ करता है, उसे दिव्य कला की प्राप्ति होती है। और वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अमर हैं और सौ वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहते हैं।

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः।।49।।
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः।।50।।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः।।51।।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌।।52।।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा।।53।।

उसके सूखा रोग, चेचक और कुष्ठ आदि सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। कनेर, भांग, अफ़ीम, धतूरा आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से उत्पन्न होने वाला स्थावर विष तथा अहिफेन और तेल आदि के संयोग से बना हुआ कृत्रिम विष – ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता।
इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने भी अनुष्ठानिक प्रयोग तथा मन्त्र-यन्त्र किये जाते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण करते ही नष्ट हो जाते हैं।
इतना ही नहीं, पृथ्वी पर विचरण करने वाले ग्राम देवता, विशेष दिव्य देवता, जल के संबंध में प्रकट होने वाले गण, केवल उपदेश से सिद्ध होने वाले निम्न स्तर के देवता, जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुल देवता, माला, डाकिनी, शाकिनी, अंतरिक्ष में विचरण करने वाली अत्यंत शक्तिशाली एवं खतरनाक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड तथा भैरव आदि दुष्ट देवता भी उस पुरुष को देखकर भाग जाते हैं, जो इस कवच को हृदय में धारण करता है।
कवच धारण करने वाला व्यक्ति राजा की ओर से सम्मान बढ़ाता है। यह कवच व्यक्ति के बल को बढ़ाता है और उत्तम होता है।

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी।।54।।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः।।55।।
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते।।ॐ।।56।।

कवच का पाठ करने वाला मनुष्य यश से सुशोभित पृथ्वी पर सुयश सहित समृद्धि पाता है। जो पहले कवच और फिर सप्तशती चंडी का पाठ करता है, जब तक वन, पर्वत और कर्णसहित यह पृथ्वी जीवित है, तब तक यहां पुत्र, पौत्र आदि संतान उत्पन्न करने की परंपरा चलती रहती है।
शरीर के अंत के बाद वह मनुष्य भगवती महामाया की कृपा से प्रतिदिन परम गति को प्राप्त करता है, जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। वह एक सुंदर दिव्य रूप धारण करता है और कल्याण शिव के साथ आनंद का आनंद लेता है।

।।इति देव्याः कवचं संपूर्णम्।।

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माँ दुर्गा कवच प्रार्थना

माँ दुर्गा कवच प्रार्थना का पाठ माँ दुर्गा कवच का पाठ करते समय किया जाता है और यह एक प्रकार की प्रार्थना है जिसमें भक्त देवी दुर्गा से आशीर्वाद, सुरक्षा और शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

दुर्गा कवच प्रार्थना (Maa Durga Kavach Prarthana):

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

त्रैलोक्यकुतियुद्धारिण्यै कात्यायन्यै नमो नमः।

शिवायै जयतामिदं प्राधानं प्रियं तां कृतां वाचामग्निवर्णां कात्यायनीं दुर्गामायाम्।

महादेवीं महाकालीं महालक्ष्मीर्लवाण्यलक्ष्मीं मातरमाप्रियेण त्वां प्रार्थयामि नमोऽस्तु यत्र यत्र रग्शुधामपि वास्मि तत्र तत्र कुरु कुरु ममानुग्रहम्।

कात्यायन्याः पराभक्तिस्तत्र तत्र जगत्त्यदिष्टत्युद्धम्।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

इस प्रार्थना में भक्त देवी दुर्गा के आशीर्वाद, बुराई से सुरक्षा और सुख-शांति की प्रार्थना करते हैं। यह प्रार्थना कवच पाठ के दौरान पढ़ी जाती है और इसके माध्यम से भक्त अपनी आस्था और भक्ति को मजबूत करते हैं और मां दुर्गा के प्रति अपने प्यार और भक्ति को व्यक्त करते हैं।

माँ दुर्गा कवच पाठ विधि

मां दुर्गा कवच का पाठ विशेष श्रद्धा और आस्था के साथ किया जाता है। इसे इस प्रकार पढ़ा जा सकता है:

  • पाठ शुरू करने से पहले किसी शुद्ध और पवित्र स्थान का चयन करें और अपने मन को शांत करें। 
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करते समय मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर को ध्यान से देखें और उनकी आदिशक्ति में लीन हो जाएं।
  • देवी दुर्गा का आह्वान करें और उनसे पाठ में सहायता के लिए आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
  • मां दुर्गा कवच को कंठस्थ एवं सूची से पढ़ें। ध्यानपूर्वक पढ़ने का प्रयास करें और अपने ऊपर उनकी शक्ति को महसूस करने का प्रयास करें।
  • पाठ करने के बाद देवी दुर्गा की उपस्थिति को अपने मन में रखें और उनकी कृपा महसूस करें।
  • पाठ के बाद मां दुर्गा को धन्यवाद दें और उनसे अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करें।
  • पाठ के बाद, माँ दुर्गा के आह्वान के साथ समाप्त करें और प्रार्थना करें कि आपका जीवन उनके आशीर्वाद से रोशन हो।

यहां मां दुर्गा कवच का पाठ करने की विधि बताई गई है और यह आपकी भक्ति और आस्था को मजबूत करने में मदद कर सकता है।

देवी दुर्गा कवच पाठ के महत्व

देवी दुर्गा कवच पाठ का महत्व बहुत अधिक है और यह भक्तों को कई आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्रदान कर सकता है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जिनके लिए देवी दुर्गा कवच पथ महत्वपूर्ण है:

देवी दुर्गा कवच पाठ भक्तों को सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है। यह कवच नकारात्मक शक्तियों, बुराई और अशुभता से सुरक्षा का एहसास कराता है।

कवच का पाठ करके भक्त अपनी आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। यह उनके मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है और उन्हें आध्यात्मिक स्थान के प्रति अधिक विश्वास और भक्ति प्रदान करता है।

देवी दुर्गा कवच का पाठ भक्तों को बुराई और अशुभता के खिलाफ सुरक्षा की भावना देता है और उन्हें जीवंत तरीके से अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करता है।

कवच का पाठ करने से मन और आत्मा को शांति और खुशी की अनुभूति होती है और भक्तों को तनाव से मुक्ति मिलती है।

कवच का पाठ करके भक्त देवी दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति को मजबूत करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपने मन में विश्वास बढ़ाते हैं।

दुर्गा कवच पाठ करने के फायदे 

माँ दुर्गा कवच के पाठ से कई महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक लाभ हो सकते हैं:

माँ दुर्गा कवच का पाठ करने से भक्त अपने जीवन को दुर्गा माता की कृपा और सुरक्षा के अधीन महसूस करते हैं। इससे उन्हें अद्वितीय सुरक्षा की अनुभूति होती है।

कवच का पाठ करके भक्त अपनी आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। यह उनके मानसिक और आध्यात्मिक विकास में मदद करता है और उन्हें आध्यात्मिक स्थान के प्रति अधिक आस्था और भक्ति प्रदान करता है।

माँ दुर्गा कवच का पाठ भक्तों को बुराई और अशुभता के खिलाफ सुरक्षा की भावना देता है और उन्हें जीवंत तरीके से अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करता है।

कवच का पाठ करने से मन और आत्मा को शांति और खुशी की अनुभूति होती है और भक्तों को तनाव से मुक्ति मिलती है।

कवच का पाठ करके भक्त देवी दुर्गा के प्रति अपनी भक्ति को मजबूत करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपने मन में विश्वास बढ़ाते हैं।

ये तो बस कुछ लाभ हैं जो मां दुर्गा कवच का पाठ करने से प्राप्त हो सकते हैं और ये भक्त की श्रद्धा, भक्ति और आदर्शों पर निर्भर करते हैं। ध्यान दें कि कवच का पाठ सही और नियमित रूप से किया जाना चाहिए, और यदि आपको अधिक जानकारी या मार्गदर्शन की आवश्यकता है, तो आपको किसी आदर्श गुरु या पंडित से संपर्क करना चाहिए।

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