दिलवाड़ा जैन मंदिर: इतिहास, जानकारी और रोचक तथ्य – Dilwara Jain Temple: History, Information and Interesting Facts

दिलवाड़ा जैन मंदिर: इतिहास, जानकारी और रोचक तथ्य - Dilwara Jain Temple: History, Information and Interesting Facts

Dilwara Temples / Delvada Temples History, Information in Hindi“दिलवाड़ा मंदिर” जिसे “डेलवाड़ा मंदिर” के रूप में भी जाना जाता है, वास्तव में राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू शहर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्वेतांबर जैन मंदिरों (Shwetambar Jain Temple) का एक समूह है.

ऐतिहासिक महत्व और संगमरमर के पत्थरों पर बारीक नक्काशी के लिए मशहूर राजस्थान के सिरोही जिले के इन विश्व प्रसिद्ध मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ खजाना है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता. 

इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने लायक है लेकिन फोटोग्राफी पर प्रतिबंध के कारण Dilwara Jain Temple लोगों की नजरों से दूर है.

दिलवाड़ा जैन मंदिर का इतिहास – Dilwara Jain Temple History In Hindi

दिलवाड़ा जैन मंदिर वास्तव में पांच मंदिरों का समूह है, जिसमें हर मंदिर के निर्माणकर्ता और निर्माण की अवधि अलग-अलग रही है.  इन मंदिरों का निर्माण 11 वी से 13 वी शताब्दी के बीच हुआ था.

दिलवाड़ा जैन मंदिर की कहानी – Dilwara Jain temple story

दिलवाड़ा जैन मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी काफी प्रसिद्ध है. 

ऐसा कहा जाता है कि सोलंकी राजा भीमदेव ने अपने महासचिव विमलशाह को चंद्रावती रियासत में हुए विद्रोह को नियंत्रित करने के लिए भेजा था.

विमलशाह ने अपनी कुशल कूटनीति से विद्रोह पर तो विजय प्राप्त कर ली थी, लेकिन इस युद्ध में हुए रक्तपात के कारण विमलशाह को बहुत अपराधबोध हुआ.

विमलशाह ने तब एक जैन साधक से इस पाप से छुटकारा पाने और पश्चाताप करने का उपाय पूछा. जैन साधक ने विमलशाह को उपदेश देते हुए कहा कि पाप से पूरी तरह छुटकारा पाना तो आसान नहीं है, लेकिन मंदिर बनाकर आप कुछ पुण्य जरूर कमा सकते हैं.

इसी प्रेरणा से विमलशाह ने दिलवाड़ा मंदिर (Dilwara Jain Temple) का निर्माण शुरू करवाया.

दिलवाड़ा जैन मंदिर की वास्तुकला – Architecture of Dilwara Jain Temple

आपको बता दें कि दिलवाड़ा मंदिर वास्तव में पांच समान मंदिरों से बना है, जिनके नाम विमल वसाही, लूना वसाही, पित्तलहार, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी मंदिर हैं. 

यह मंदिर बाहर से देखने में बेहद साधारण लगता है, लेकिन जब आप इस मंदिर को अंदर से देखेंगे तो इसकी छत, दीवारों, मेहराबों और खंभों पर बने डिजाइनों को देखकर हैरान रह जाएंगे.

दिलवाड़ा में स्थित जैन मंदिरों की वास्तुकला नगर शैली से प्रेरित है और इसमें प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह है.

इनमें से प्रत्येक मंदिर में एक मंडप, एक गर्भगृह, एक केंद्रीय कक्ष और अंतरतम गर्भगृह है जहां भगवान का निवास माना जाता है.

इन मंदिरों में नवचौकी है जो नौ सजी हुई छतों का समूह है. मंदिरों में उत्तम कारीगरी युक्त भव्य प्रवेश द्वार है. 

इस मंदिर में स्थापित आदिनाथ की मूर्ति की आंखें असली हीरे से बनी हैं और उनके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है.

यहां वास्तुकला की सादगी है जो ईमानदारी और मितव्ययिता जैसे जैन मूल्यों को दर्शाती है.

इन मंदिरों में जैन तीर्थंकरों के साथ-साथ हिंदू देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं.

एक और बात जो इस मंदिर को सबसे खास बनाती है वह यह है कि मंदिर में हर जगह अलग-अलग छत्र, द्वार, तोरण, सभा मंडप स्थापित हैं.

ऐसा माना जाता है कि संगमरमर का काम पूरा करने वाले कारीगरों को संगमरमर की एकत्रित धूल के अनुसार भुगतान किया जाता था, जिससे वे और अधिक अद्वितीय डिजाइन तैयार करते थे.

इन मंदिरों के असाधारण शिल्प कौशल और वास्तुकला की समान रूप से सराहना की जाती है.

यह सब निर्माण ऐसे समय में किया गया था जब माउंट आबू में 1200+ मीटर की ऊंचाई पर कोई परिवहन या सड़क उपलब्ध नहीं थी.

अंबाजी में अरासुर पहाड़ियों से माउंट आबू के इस सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में हाथी की पीठ पर संगमरमर के पत्थरों के विशाल ब्लॉक ले जाने का काम किया जाता था.

यह सिर्फ एक तीर्थ स्थल नहीं है बल्कि संगमरमर से बनी एक जादुई संरचना है जो यहां आने वाले पर्यटकों को बार-बार यहां आने पर मजबूर कर देती है.

दिलवाड़ा जैन मंदिर परिसर में स्थित पांच मंदिरों का विवरण – Details of five temples located in Dilwara Jain Temple Complex

1) विमल वसाही मंदिर (Vimal Vasahi Temple):

दिलवाड़ा के मंदिरों में “विमल वसाही मंदिर (Vimal Vasahi Temple)” सबसे प्राचीन है.

सफेद संगमरमर से पूरी तरह से उकेरा गया यह मंदिर 1031 ईस्वी में गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव प्रथम के मंत्री विमल शाह (Vimal Shah) द्वारा बनवाया गया था. यह मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ (Adinath) को समर्पित है.

यह मंदिर एक खुले प्रांगण में स्थित है जो एक गलियारे से घिरा हुआ है जिसमें तीर्थंकरों की छोटी मूर्तियां बनाई गई हैं. 

मंदिर के उत्कृष्ट रूप से निर्मित पच्चीकारी वाले गलियारों, स्तंभों, मेहराबों और मंडपों या पोर्टिको को देखना एक दिव्य अनुभव है. छतों पर कमल की कलियों, पंखुड़ियों, फूलों और जैन पुराणों के दृश्यों की नक्काशी की गई है.

अच्छी तरह से सजाया गया गुडा मंडप मंदिर के मुख्य आकर्षणों में से एक है, जिसमें श्री आदिनाथ के कई चित्र उकेरे गए हैं.

इस मंदिर को बनाने में कुल 14 साल का समय लगा था और इसके निर्माण में 18 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. 

मंदिर के निर्माण कार्य में 1500 शिल्पकारों और 1200 श्रमिकों ने योगदान दिया था.

2) लूना वसाही मंदिर (Luna Vasahi Temple):

यह मंदिर बाईसवें जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ (Bhagwan Neminath) को समर्पित है.

यह भव्य मंदिर 1230 में दो पोरवाड़ भाइयों, वास्तुपाल (Vastupal) और तेजपाल (Tejpal) द्वारा बनवाया गया था, जो गुजरात में वेहेला के शासक थे. 

इस मंदिर का निर्माण विमल वसाही मंदिर के बाद उनके दिवंगत भाई लूना की स्मृति में किया गया था.

मंदिर में एक मुख्य सभामण्डप है जिसे रंगमंडप कहा जाता है. यह रंग मंडप जैन तीर्थंकरों की 360 छोटी-छोटी मूर्तियों के लिए जाना जाता है जिन्हें यहां गोलाकार आकार में स्थापित किया गया है.

गुडा मंडप में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की काले संगमरमर से बनी मूर्ति है. मंदिर के बाईं ओर एक बड़ा काला कीर्ति स्तंभ है जिसे मेवाड़ के महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) ने बनवाया था.

मंदिर की एक  विशेषता “हाथीशाला” या “हाथी कक्ष” है, जिसमें शुभ्र संगमरमर से बनी हाथियों की 10 खूबसूरत मूर्तियां स्थापित हैं, जिन्हें सावधानीपूर्वक पॉलिश किया गया है और उन्हें उनका मूल रूप दिया गया है.

3) पित्तलहार मंदिर (Pittalhar Temple):

इस मंदिर का निर्माण अहमदाबाद के सुल्तान दादा के मंत्री भीम शाह ने करवाया था. इस मंदिर में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) की एक विशाल धातु की मूर्ति स्थापित की गई है, जिसे पांच धातुओं (पंचधातु) में ढाला गया है.

क्योंकि इस मूर्ति के निर्माण में सर्वाधिक मात्रा में पीतल धातु का प्रयोग किया गया है, इसलिए इसका नाम पित्तलहार पड़ा.

इस मंदिर में मुख्य गर्भगृह, गुडा मंडप और नव चौक का निर्माण किया गया है. मंदिर में स्थित शिलालेख के अनुसार, 1468-69 ईस्वी में 108 मूडों (चार मीट्रिक टन) वजन की मूर्ति को मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया था.

4) श्री पार्श्वनाथ मंदिर (Shri Parshvanath Temple):

जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ (Bhagwan Parshwanath) को समर्पित इस मंदिर का निर्माण मांडलिक और उनके परिवार ने 1458-59 में करवाया था. यह एक तीन मंजिला इमारत है, जो दिलवाड़ा के सभी मंदिरों में सबसे ऊंची है.

इस मंदिर के गर्भगृह के चारों मुखों पर भूतल पर चार विशाल मंडप हैं. मंदिर की बाहरी दीवारों को दीक्षित, विधादेवियों, यक्षों, शब्दांशों और अन्य सजावटी मूर्तियों सहित सुंदर कलाकृतियों के साथ ग्रे बलुआ पत्थर में तराशा गया है, जो खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों के समान हैं.

5) श्री महावीर स्वामी मंदिर (Shri Mahaveer Swami Temple):

यह मंदिर 1582 में बनी एक छोटी सी संरचना है और जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर (Bhagwan Mahavir) को समर्पित है. 

मंदिर का आकार छोटा होने के कारण यह दीवारों पर नक्काशी वाला एक अद्भुत मंदिर है. इस मंदिर की ऊपरी दीवारों पर 1764 में सिरोही के कलाकारों द्वारा चित्रकारी की गई है.

धार्मिक महत्व के इस तीर्थ स्थल (Dilwara Temple) पर हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. दिलवाड़ा का यह प्राचीन जैन मंदिर अपने बेजोड़ आकर्षण से भी पर्यटकों को आकर्षित करता है.

इन उत्कृष्ट नक्काशीदार मंदिरों को राजस्थान के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक माना जाता है.

तो दोस्तों आप Dilwara Jain Temple देखने कब जा रहे हैं? अगर आप पहले ही दिलवाड़ा मंदिर घूम आये हैं, तो नीचे अपना अनुभव जरूर कमेंट करें.

एक और अनुरोध, कृपया दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में जानकारी व्हाट्सएप, फेसबुक पर साझा करें ताकि अधिक से अधिक लोग हमारे महान अतीत और शिल्पकारों के कौशल के बारे में जान सकें.

FAQ

Q: दिलवाड़ा जैन मंदिर के खुलने और बंद होने का समय – Dilwara Jain Temple opening and closing timings

Ans: जैन भक्तों के लिए मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है और अन्य धर्मों के लिए यह दोपहर 12 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है. यहां जाने से पहले इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस मंदिर में किसी भी पर्यटक और तीर्थयात्री को मंदिर परिसर में फोटो लेने की अनुमति नहीं है.

Q: दिलवाड़ा जैन मंदिर का प्रवेश शुल्क – Entry Fee of Dilwara Jain Temple

Ans: अगर आप दिलवाड़ा मंदिर में घूमने या दर्शन करने जा रहे हैं, तो आपको बता दें कि इन मंदिरों में प्रवेश करने के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है.

Q: दिलवाड़ा मंदिरों में जाने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit Dilwara Temples

Ans: अगर आप दिलवाड़ा मंदिरों के दर्शन करने जा रहे हैं, तो आपको बता दें कि माउंट आबू में साल भर मौसम अच्छा रहता है. हालांकि, अप्रैल से जून के महीने गर्म होते हैं. लेकिन मानसून और सर्दियों का मौसम इस जगह की यात्रा करने के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि इस जगह पर न तो ज्यादा ठंड पड़ती है और न ही ज्यादा बारिश होती है.

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