Dhanteras full information in Hindi – नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम जानेंगे कि धनतेरस कब और क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे की कहानी क्या है.
कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी (Krishna Trayodashi) को धनतेरस कहा जाता है, यह पर्व दीपावली के आगमन की पूर्व सूचना देता है.
धनतेरस को हम अन्य नामों से भी जानते हैं जैसे धन्वंतरि त्रयोदशी (Dhanvantari Trayodashi) या धनत्रयोदशी (Dhantrayodashi).
आइए सबसे पहले जानते हैं कि धनतेरस का अर्थ क्या है:-
धनतेरस दो शब्दों “धन” और “तेरस” से बना है, धन का संबंध धन से है अर्थात रुपया-पैसा से है और तेरस हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने के 13 वें दिन को संदर्भित करता है.
इस दिन लोग नए आभूषण और नए बर्तन आदि खरीदते हैं, लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि यह धनतेरस क्यों मनाया जाता है, इसका क्या महत्व है और इस दिन को कैसे मनाया जाना चाहिए. तो आज हम इस पोस्ट में धनतेरस के बारे में सब कुछ जानेंगे.
क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्योहार? Why is the festival of Dhanteras celebrated?
जैसा की हम सभी जानते है की पुराणों में वर्णित एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुनसर देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया था.
समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि (Dhanvantari) अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. धनतेरस का त्योहार भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही मनाया जाता है.
धन्वंतरि देवता को आयुर्वेद (Ayurveda) का जनक कहा जाता है, इसलिए हम इस दिन को आयुर्वेद दिवस (Ayurveda Day) के रूप में भी मनाते हैं.
इस दिन लोग स्वास्थ्य के लिए भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं तो वहीं कुछ लोग यम देव की पूजा करते हैं. इसके बाद लोग लक्ष्मी जी और भगवान कुबेर की पूजा करते हैं.
भारतीय संस्कृति में धन से अधिक स्वास्थ्य को महत्व दिया गया है. यह कहावत आज भी प्रचलित है कि “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया” इसलिए दीपावली उत्सव में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है जो भारतीय संस्कृति के अनुसार एकदम उपयुक्त है.
धनतेरस के दिन क्या करें? What to do on the day of Dhanteras?
धनतेरस के दिन अपनी क्षमता के अनुसार किसी भी रूप में चांदी और अन्य धातुएं खरीदना बहुत शुभ होता है.
लोग इस दिन सोने, चांदी के आभूषण, चांदी के सिक्के आदि खरीदते हैं, साथ ही नए बर्तन खरीदते हैं और नए कपड़े खरीदते हैं.
कहीं-कहीं यह भी माना जाता है कि इस दिन धन खरीदने से 13 गुना वृद्धि होती है और लक्ष्मी जी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.
धन की प्राप्ति के लिए घर के पूजा स्थल पर कुबेर देवता को दीपक दान करें और मुख्य द्वार पर मृत्यु देवता यमराज को भी दीपक दान करें.
धनतेरस की पौराणिक और प्रामाणिक कहानी
धनतेरस से जुड़ी किवदंती है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य (Shukracharya) की एक आंख फोड़ दी थी.
किंवदंती के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा बलि के भय से देवताओं को मुक्त करने के लिए वामन के रूप में अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थान पर पहुंच गए.
शुक्राचार्य ने भी भगवान विष्णु को वामन के रूप में पहचान लिया और राजा बलि से वामन के कुछ भी मांगने पर देने से इनकार करने का आग्रह किया. राजा बलि को यह भी बताया गया कि वामन ही भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए आपसे सब कुछ छीनने आए हैं.
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और वामन भगवान द्वारा मांगे गए तीन पग भूमि को दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे. तभी शुक्राचार्य ने बलि को दान करने से रोकने के लिए लघु रूप धारण करके राजा बलि के कमंडल में प्रवेश किया, जिससे कमंडल से पानी निकलने का रास्ता अवरुद्ध हो गया.
वामन भगवान शुक्राचार्य की चाल समझ गए थे इसलिए उन्होंने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को इस तरह रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और शुक्राचार्य छटपटाकर कमंडल से बाहर आ गए.
इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प पूरा किया. फिर भगवान वामन ने एक पैर से पूरी पृथ्वी को और दूसरे चरण से अंतरिक्ष को नाप लिया लेकिन तीसरा कदम रखने के लिए जगह नहीं थी, तब बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया. इसी के साथ बलि ने दान में अपना सब कुछ गंवा दिया.
इस प्रकार देवताओं को बलि के भय से मुक्ति मिल गई और बलि ने देवताओं से जो धन-सम्पत्ति छीन ली थी, वह देवताओं को कई गुना अधिक वापस मिल गई. इस अवसर पर भी धनतेरस का पर्व मनाया जाता है.
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